दोनों अस्पताल पहुँचे और प्रत्यन्चा ने शीलवती जी से पूछा....
"अब आप कैंसीं हैं चाची जी!",
"ठीक हूँ!",शीलवती जी बोली...
"लेकिन इन्होंने यहाँ का नाश्ता करने से इनकार कर दिया,जब ये खाऐगीं नहीं तो अच्छी कैंसे होगीं", डाक्टर सतीश बोले...
"ये गलत बात है,आप ने नाश्ता क्यों नहीं किया",प्रत्यन्चा बोली...
"मुझसे नहीं खाया गया बेटी!",शीलवती जी मुँह बनाते हुए बोलीं...
"यहाँ का खाना कोई खा भी कैंसे सकता है,मुझसे भी नहीं खाया गया था,जब मैं अस्पताल में था", धनुष बोला...
"लेकिन ये अच्छी बात नहीं है",प्रत्यन्चा बोली...
"तो तुम ही क्यों नहीं कुछ बना लाती चाची जी के लिए,जैसे मेरे लिए बनाकर लाई थी",धनुष ने कहा...
"अगर डाक्टर बाबू इजाज़त दे दें तो मैं अस्पताल की रसोई से इनके लिए कुछ बना लाऊँगी ",प्रत्यन्चा बोली...
"उसकी कोई जरुरत नहीं है प्रत्यन्चा जी! इनके लिए अस्पताल का खाना ही बेहतर है", डाक्टर सतीश ने सख्त लहजे में कहा....
जब डाक्टर सतीश ने इजाजत नहीं दी तो फिर प्रत्यन्चा भी क्या कर सकती थी,वो शीलवती जी से मिलकर वापस घर आ गई,ऐसे ही शीलवती जी एक हफ्ते अस्पताल में भरती रहीं,अब वे ठीक हो चुकी थीं इसलिए उन्हें अस्पताल से घर वापस आने की इजाज़त मिल गई और उनकी देखभाल के लिए डाक्टर सतीश ने भी अस्पताल से एक हफ्ते की छुट्टी ले ली....
डाक्टर सतीश को खाना बनाना नहीं आता था,इसलिए प्रत्यन्चा खाना बनाकर उनके घर भिजवा देती थी और कभी कभी शीलवती जी से मिलने के बहाने खुद भी खाना दे आती थी,इस दौरान वो घर की साफ सफाई और घर भी व्यवस्थित कर आती थी,जिससे शीलवती जी प्रत्यन्चा को और भी ज्यादा पसंद करने लगी थीं...
और इधर अब भी प्रत्यन्चा और धनुष के बीच बातचीत नहीं हो रही थी और धनुष को प्रत्यन्चा से बात किए बिना अच्छा नहीं नहीं लग रहा था,वो प्रत्यन्चा से बात करने के बहाने ढूढ़ता रहता लेकिन प्रत्यन्चा है कि वो धनुष पर ध्यान नहीं दे रही थी.....
सच बात तो ये थी कि प्रत्यन्चा अपने अतीत को ध्यान में रखकर कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहती थी कि जिससे सभी को दुख पहुँचे,वो केवल धनुष से दोस्ती का रिश्ता कायम रखना चाहती थी, वो अपनी सीमारेखा जानती थी और वो उसके पार नहीं जाना चाहती थी,फिर वो जिस घर में रह रही थी,जिस घर का खा रही थी, कोई भी ऐसा काम करके वो उस घर के लोगों की नजरों में नहीं गिरना चाहती थी, इसलिए वो धनुष की भावनाओं को समझते हुए भी उन्हें दरकिनार कर रही थी....
और फिर हुआ वही जो शायद कोई भी नहीं चाहता था,अब शीलवती जी बिलकुल से स्वस्थ हो चुकीं थीं और एक शाम वो भागीरथ जी से अकेले ही मिलने उनके घर पहुँची, प्रत्यन्चा उस समय घर पर नहीं थी,वो विलसिया के साथ बाज़ार तक गई थी, उस समय विलसिया और प्रत्यन्चा दोनों ही घर पर नहीं थे और फिर शीलवती जी मौका देखकर बातों ही बातों में भागीरथ जी से बोलीं....
"दीवान साहब! मैं आपके पास किसी जरूरी काम से आई थी"
"जी! कहिए",भागीरथ जी बोले...
"कहते हुए संकोच हो रहा है लेकिन यहाँ मैं आपसे कुछ माँगने आई हूँ",शीलवती जी बोलीं...
"जी! कहिए,इतना संकोच मत कीजिए,अगर हमारे वश में होगा तो जरूर आपको वो चींज मिलेगी", भागीरथ जी ने शीलवती जी को तसल्ली देते हुए कहा...
"जी! मेरे लिए तो ये छोटा मुँह और बड़ी बात होगी",शीलवती जी बोलीं...
"जी! कहिए,बात को इतना मत घुमाइए फिराइए,हमने कहा ना कि कर पाऐंगे तो जरूर करेगें",भागीरथ जी बोले...
"जी! मैं अपने सतीश के लिए प्रत्यन्चा का हाथ माँगने आई हूँ"शीलवती जी बोलीं...
शीलवती जी की बात सुनकर भागीरथ जी एक क्षण को सन्न रह गए और फिर उनसे बोले...
"जी! आप ये अच्छी तरह से जानती हैं ना! कि उसका कोई भी सगा सम्बन्धी नहीं है,वो कौन है और कहांँ से आई है ,ये तो हम भी नहीं जानते,अगर ये सब जानते हुए भी आप उसे अपने घर की बहू बनाना चाहती हैं तो हमें कोई एतराज़ नहीं,लेकिन आप इस बारें में प्रत्यन्चा से जरूर पूछ लें", भागीरथ जी शीलवती जी से बोले...
"जी! मुझे उसके बारें में और कुछ नहीं जानना,उसके संस्कार बताते हैं कि उसकी परवरिश किस प्रकार हुई है, मुझे उस जैसी बहू कहीं नहीं मिलेगी",शीलवती जी बोलीं....
"तो फिर ये बात आप प्रत्यन्चा से और पूछ लीजिए,उसी की रजामंदी मायने रखती है",भागीरथ जी बोले...
"जी! कब तक तक लौटेगी वो बाजार से",शीलवती जी ने पूछा...
"वो बस आने वाली ही होगी",भागीरथ जी बोले...
फिर शीलवती जी और भागीरथ जी के बीच यूँ ही बातें चलतीं रहीं और फिर कुछ ही देर में प्रत्यन्चा विलसिया के साथ बाजार से लौटी,इसके बाद भागीरथ जी ने शीलवती जी से कहा...
"ये रही प्रत्यन्चा! अब आप इसी से पूछ लीजिए",
तब शीलवती जी प्रत्यन्चा के पास गईं और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं...
"बेटी! एक बात पूछनी थी तुमसे",
"जी ! पूछिए!",प्रत्यन्चा बोली...
"तुझे सतीश कैसा लगता है?",शीलवती जी ने पूछा...
" ये कैसा सवाल हुआ,डाक्टर बाबू अच्छे हैं और कैंसे हैं भला!",प्रत्यन्चा बोली...
तब भागीरथ जी ने प्रत्यन्चा से साफ साफ लफ्ज़ों में कहा....
"प्रत्यन्चा बेटा! ये अपने बेटे सतीश के लिए तुम्हारा हाथ माँगने आई हैं और तुम्हारा जवाब चाहती हैं",
"शादी...और मेरी...ये सब कैंसे सोच लिया आप लोगों ने,मैं ये शादी नहीं कर सकती",
और इतना कहकर प्रत्यन्चा अपने कमरे में चली गई,सब उसे जाते हुए देखते रहे,किसी को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर शादी की बात पर प्रत्यन्चा इतना गुस्सा क्यों हो गई,उस शाम प्रत्यन्चा फिर दोबारा नीचे नहीं आई और ना ही उसने रात का खाना खाया,विलसिया उसे बुलाने भी गई लेकिन प्रत्यन्चा नीचे ना उतरी,जब धनुष को पता चला कि प्रत्यन्चा डाक्टर सतीश से शादी की बात पर ख़फा है तो उसे यूँ लगा कि प्रत्यन्चा भी उसे पसंद करती है तभी तो वो इस शादी से इनकार कर रही है,लेकिन वजह तो कोई और ही थी, किसी को भी प्रत्यन्चा का अतीत मालूम नहीं था....
और वो अपने अतीत के बारें में किसी को कुछ बता भी नहीं सकती थी,जैसे तैसे तो वो अपने अतीत को भूलने की कोशिश कर रही थी और वो उसे जितना भी भूलने की कोशिश कर रही थी,तब कोई ना कोई कारण लेकर उसका अतीत उसके सामने आ ही जाता था,वो उस भयानक रात को हमेशा के लिए भूल जाना चाहती थी,जिस रात उसका संसार और उसकी अस्मत उजड़े थे,कैंसे उसकी आँखों के सामने ही एक पल में सबकुछ खतम है गया था,वो अपने वर्तमान में खुश थी लेकिन शादी की बात ने उसे एक बार फिर से उसके अतीत के सामने खड़ा किर दिया था....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....