काश हम भविष्य देख पाते Rakesh Rakesh द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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काश हम भविष्य देख पाते

अपने सात बेटों और दो पोतो की चिता को अग्नि देते हुए अमर बहादुर शर्मा सोचता है काश! मैं भविष्य देख पाता तो मेरे बेटे और पोते आज जिंदा होते यही बात जहांगीर खान अपने नौ बेटे और पांच पोतो को दफनाते हुए सोचता है कि काश! में अपना मुस्तकबिल देख पता तो मेरे खुशहाल परिवार का इतना दर्दनाक दहशत से भर अंत नहीं होता।

अमर बहादुर शर्मा जहांगीर खान बचपन के मित्र थे, दोनों एक दूसरे के सुख-दुख के सच्चे साथी थे, जहांगीर खान दिवाली होली आदि त्यौहार आने से पहले जिस उत्साह खुशी से उन त्योहारों के आने का इंतजार करता था, वैसे ही अमर बहादुर शर्मा ईद मुहर्रम आदि त्योहारों के आने का इंतजार करता था, दोनों में सगे भाइयों जैसा प्रेम था, लेकिन जहांगीर खान को अमर बहादुर शर्मा का गांव के महादेव के मंदिर में पूजा करना पसंद नहीं था और अमर बहादुर शर्मा को जहांगीर खान का मस्जिद में नमाज पढ़ना पसंद नहीं था, इसलिए अपने-अपने धर्म को उच्च मानने के पीछे दोनों में आए दिन तू तू मैं मैं होती रहती थी।

लेकिन एक दूसरे के घर में कोई भी दुख संकट या खुशी होती थी, तो दोनों बिना बुलाए एक दूसरे के घर पहुंच जाते थे, एक बार सावन के महीने में अमर बहादुर शर्मा अपने घर में कथा करके पूरे गांव का भंडारा करने का फैसला लेता है, उसके इस फैसले से जहांगीर खान भी बहुत प्रसन्न होता है और कथा भंडारे का सामान खरीदने अमर बहादुर शर्मा के साथ कस्बे के बाजार में जाता है।

वहां बाजार में मिठाई की दुकान के पास भीड़ लगी हुई थी, उस भीड़ की एक महिला से उन्हें पूछने से पता चलता है कि मिठाई की दुकानदार ने अपनी दुकान से मिठाई चोरी करते हुए चोरों को पकड़ लिया है, इसलिए वह अपने नौकरों के साथ मिलकर उस चोर की बहुत पिटाई कर रहा है।

यह बात सुनकर दोनों मित्र भीड़ को चीरते हुए देखते हैं कि हम भी तो देखे वह नीछ कामचोर चोर देखने में कितना भयानक है, लेकिन आठ वर्ष के मासूम बच्चे चोर को देखकर 75 वर्ष के बुजुर्ग अमर बहादुर शर्मा और जहांगीर खान को इतना गुस्सा आ जाता है कि वह आठ वर्ष के बच्चे चोर को हवाई से छुड़ाकर हलवाई को ही पीटने लगते हैं। वहां खड़े लोगों के बीच बचाव करने के बाद मामला शांत होता है।

और दोनों मित्र उसे मासूम बच्चे को अपने घर तो ले आते हैं, लेकिन उनके सामने यह समस्या खड़ी हो जाती है कि इस गूंगे बहरे बच्चे से कैसे पता करें कि इसके माता-पिता कौन है इसका गांव घर ठिकाना कहां है, इसलिए दोनों दूसरे दिन उसी जगह जाते हैं जहां से वह गूंगा बहरा बच्चा उन्हें मिला था।

वहां उन्हें लोगों से पूछने से पता चलता है कि वह बच्चा एक सप्ताह पहले ही इस बाजार में लोगों ने देखा था।

और जब पुलिस उस आठ वर्ष के बच्चे के माता-पिता को ढूंढ नहीं पाती है, तो दोनों मित्र साथ मिलकर उस सुंदर आठ वर्ष के गूंगे बहरे मासूम बच्चे को पालने का फैसला ले लेते हैं।

लेकिन समस्या जब विकट उत्पन्न हो जाती है जब अमर बहादुर शर्मा कहता है “मैं सत्यनारायण की कथा पूजा पाठ करके बच्चे का नामकरण करूंगा और फिर उसके बाद इस बच्चे को जनेऊ पहनाऊंगा।” और जहांगीर खान कहता है “मैं इसका नाम अकबर खान रखकर बच्चे की मुसलमानी करवाऊंगा।”

इस बात को लेकर दोनों में इतना झगड़ा बढ़ जाता है कि दोनों के पोते बेटे एक दूसरे पर त्रिशूल तलवार लाठियों पत्थर डंडों से हमला कर देते हैं और इस झगड़े में दोनों के परिवारों का महाविनाश हो जाता है।

अमर बहादुर शर्मा श्मशान घाट से और जहांगीर खान कब्रिस्तान से वापस आने के बाद वीरान पड़े घर जाने की जगह मंदिर और मस्जिद जाते हैं मन की शांति सुकून के लिए तो मंदिर मस्जिद के सामने लगे आम के पेड़ के नीचे उन्हें वही आठ वर्ष का गूंगा बहरा बच्चा भूखा प्यासा आम के पेड़ के नीचे बैठा हुआ दिखाई देता है और दोनों जैसे ही कुछ खिला कर उसका पेट भरने की सोचते हैं, तो मंदिर से शाम की आरती मंदिर के घंटों की आवाजे आने लगती हैं और मस्जिद से अजान की इसलिए दोनों उस बच्चे को भूखा प्यास छोड़कर मंदिर मस्जिद जाने लगते हैं।

तभी पके मीठे-मीठे आम तेज हवा के साथ उस आठ बरस के गूंगे बहरे बच्चे के सामने गिरने लगते हैं, वह बच्चा किसी की तरफ ध्यान दिए बिना स्वाद से आम खाने लगता है।

तब दोनों आसमान की तरफ देखकर एक दूसरे से कहते हैं “जिन्हें अजान मंदिर के घंटों की आवाज सुनाई दे रही है, वह फिर भी अशांत है और जिसे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा वह शांति सुकून से मीठे-मीठे फल खा रहा है और हम दोनों सृष्टि रचयिता की रक्षा करने चले थे, उसकी रक्षा करते-करते हम दोनों ने अपना भविष्य पता कर लिया है, हम दोनों ने अपने-अपने परिवार का बुढ़ापे में विनाश करवा कर अपना अपना वर्तमान खराब कर लिया है, और वर्तमान ही भविष्य बनता है।