दो पल (love is blind) - 7 ભૂપેન પટેલ અજ્ઞાત द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दो पल (love is blind) - 7

7

सिद्धार्थ: हा, में ही हुं। हाई, मेरा नाम सिद्धार्थ है।
मिली: हेलो, मेरा नाम मिली है और ये मिरा है।

इतने में ही सुभाषभाइ बीच में ही बोल पड़े, "तुम पहले से एक-दूसरे जानते हो।"
"नही अंकल, पहले तो सिर्फ झगडे के साथ ही मिले थे। क्यूं?" सिद्धार्थ मिली और मिरा के सामने देखते हुए कहता है।
"हा, पहले झगड़ा हुआ था, और वैसे भी अंकल-आंटी आपका बेटा बहुत लड़ाकू है।" मिली सिद्धार्थ के सामने देखते हुए कहा।
राजीवजी: "पर अब तो दोस्त बनना ही पड़ेगा, क्योंकि ये दोस्ती का रिश्ता हमारी पेढ़ी दर पेढ़ी से चली आ रही है।"

राजीवजी बोल ही रहे थे । इतने में मीत अपने दोस्त के साथ पार्टी में आता है। आज सजदज और हंगामेदार पार्टी का मुख्य मेहमान भी वही तो था। जिसकी वजह से आज खुशियों को बया करने का अवसर सभी परिवारजन और दोस्तो के लिए था। मनुष्य भी अपनी खुशी को व्यक्त करने के लिए या कुछ अच्छा काम हो जाए तो भी उसको एक त्योहार बनाकर मोज लेता है। आज के जमाने में एक - दूसरे से बड़ा दिखनेका अवसर के रूप में प्रगट करता है। कुछ भी हो जाए बड़ापन तो रखता ही है।

मिली और मिरा मीत को देखकर उसकी ओर आगे बढ़ते है। क्योंकि आज मीत सुबह से ही अपने कमरे से बाहर ही नहीं आया था। इसलिए दोनो को भी जानने की जिज्ञासा थी की सुबह से कमरे में क्या कर रहा था। असली मज़ा तब आता है जब कोई सप्राइज हो। और दिल में उत्सुकता भी बनी रहती है की क्या होगा? कैसा होगा? ' बात ऐसी हो गई की जादूगर जब बंध मुठ्ठी से कुछ न कुछ निकाल कर अपने भक्त को देता है तब बच्चो में उत्सुकता रहती है।' मुझे क्या मिलेगा।' तब बच्चे का ध्यान मुठ्ठी के भीतर होनेवाला उपहार ही नजर में आता है। बस, यह तो है दिल के अंदर छुपी रहनेवाली गहराईवाली इच्छा। जो हर दम अपनी ओर ध्यान आकर्षित करता रहता है। मिला और मिली भी इसका ही शिकार थे।वो भी अपने प्यारे से भाई की ओर अपना कदम रोक नहीं पा रहे थे। मीत के पास पहुंचने से पहले दोनो को शरारत करने का मन होता है। मिली और मिरा छुपके से मीत के पीछे चले जाते है।छिपके से मिरा मीत की आंखे बनकर देती है। इतने में मीत चिल्ला के बोल पड़ता है, " आज के दिन भी छिपकलियां मुझेह क्यूं परेशान कर रही है।"
मिरा:- अरे भाई, हम नही करेंगे तो कौन करेगा?( प्यार से आंख से हाथ हटाते हुए बोलती है।) और ये बता आज क्यू अपने आप को कैद कर के रखा था ?( प्यार से हग करती है।) हैप्पी बर्थडे डियर ब्रो।
"थैंक यू" मीत बोलता है।
"गिफ्ट तो नही लाए होगे ना?" मजाक करने के लिए कहता है। मिरा सिर पर लाई हुई गिफ्ट प्यारसे मारती है और देती है।
"ये लो, तुम्हारी गिफ्ट गिफ्ट। मुझे मुफ्त में पार्टी में आना अच्छा नही लगता। ओर ये बताओ की तुम सुबह से कमरे में क्या कर रहे थे?"
"वो तो में नही बताऊंगा। मीत हंसकर कहता है।
"गर्लफ्रेंड के साथ फोन पर बात चल रही होगी।" मिली मीत को परेशान करने के लिए कहती है।
"तुम को तो ऐसा ही लगता है और में तुम्हारे जितना कमिना नही हु। " मीत अपनी बहन की खिंचाई करते हुए कहता है। फिर दोहराता है, " मेरे लिए क्या गिफ्ट लाई हो?"
" तुझे से तो अच्छी ही होगी मेरी गिफ्ट।" मिली फिर मजाक करती है।

तीनों के बीच हररोज ऐसे ही मजाक- मस्ती चलती थी। इसी से तो प्यार मे बढ़ोतरी होती है। आपस में मिल जुलकर रहना ही तो जिंदगी की परिभाषा है। चलते सफर में कई लोग हमारे लिए जरूरी बन जाते है। उनके साथ अपनेपन का गहरा रिश्ता हो जाता है। ये भी है की जहा अपना लगता है वहा ही गम, खुशी, दोस्ती या किसी भी तरह का रिश्ता होता है। यही तो हमारे लिए जिंदगी और कुदरत की अहमियत है। पर उसमें से कुछ लोग अकेलेपन की जिंदगी को संवारने में मजा आता है। अपने आप में ही खुश रहते है, और ऐसे लोग कला के पुजारी होते है। अपने अंतरमे रहनेवाले भावो को निरूपण करते है। समाज की बनी रचनाओं से दूर रहना पसंद करते है।