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मिली और मिरा दोनों बाज़ार की ओर जाते है। मिरा रास्ते में भी एक ही सोच में डूबी हुई होती है। जिंदगी में ऐसा कई बार हो सकता है कि हम किसी भी बात हो या बनाव हो अपने अंदर की गहराई में बैठ जाते है, जब हम अकेले हो जैसे के रात के सोने के समय पर सुबह उठने के समय पर वही बात सोच में डाल कर रखती है। उसी की ओर अपना ध्यान खींचती है। यही दिल की गहराई की शक्ति है। बस मिरा की जिंदगी भी उस पुस्तक की और ज्यादा लगाव नजर आ रहा था। बीना पढ़े भी उसी और अपनी भावना ये जुड गई थी।
इतने में मिली अपनी गाड़ी रोकी और मिरा को उतरने के लिए कहा। पर मिरा का ध्यान दूसरी ओर था, इसलिए सुनपाई नही । फिर जोर से चिल्लाकर कहती है..…. कब तक बैठी रहोगी, उतरना नही है क्या?
मिरा : सॉरी। (गाड़ी से उतरती है।)
मिली: तेरा ध्यान कहा है? कहां इतनी खोई खोई रहती हो? इतना सबकुछ हो गया ओर मुझसे बताया भी नहीं। ( मिरा को छेड़ने के लिए कहती है।)
मिरा: मेरी मां, मुझसे ऐसा कुछ नही हुआ है और होगा भी नही। ( हल्का सा मिली को धक्का देती है।)
इसी मजाक मस्ती में फूल खरीदकर घर पहुंच जाते है। बर्थ डे पार्टी की शानदार तैयारी हो रही थी। सभी काम में लगे हुए थे। शाम होने को आई थी ओर घर में रोशनी छा गई थी। सभी तरह उजाला ही उजाला दिखाई दे रहा था। ऐसा लगता था की चांद सितारे घर में आ गए हो।ऐसा ही उजाला मिरा और मिली के चेहरे पर दिख रहा था। दोनो ही परियों की तरह सज धज कर घर के बाहर गार्डन में जहां पार्टी रखी थी वहा आ रही थी। सभी लोगो का ध्यान उसी ओर खींचा जा रहा था। रोशनी से सजे घर को ओर भी रोशन कर रहे थे दोनो। चहरे पर दिखता स्मित हर फूल की फोरम से भी ज्यादा महेकता दिखता था, शायद यह कहेना ठीक होगा की फूलो को भी शर्म से जूक जाए ऐसी रोनक दिखती थी। धीरे धीरे रोनक गार्डन की ओर बढ़ रही थी। इतने में ही मिली और मिरा के पैरेंट्स ने दोनों को आवाज लगाकर अपने पास बुलाया। मिली और मिरा के पैरेंट्स अच्छे दोस्त भी और बिजनेस में भी पार्टनर थे।
संजयभाई (मिरा के पापा) : देखो, बेटा ये है राजीव अंकल और संध्या आंटी। ( मिरा और मिली को पहचान करवाते है) हमारे अच्छे दोस्त है और परिवार जैसा रिश्ता भी है।
मिरा और मिली : हेलो, अंकल और आंटी ।( दोनो साथ मे बोलते है।)
सुभाषभाई (मिली के पिता) : उनका बेटा तुम्हारी ही कॉलेज में फाइनल ईयर में है।
कहा गया तुम्हारा बेटा? (राजीवजी को पूछते है।)
राजीवभाई: यहां पर ही था।
इतने में ही सामने से आता है।
राजोवभाई : सिद्धार्थ यहां पर आ।
मिरा और मिली : तुम? ( जोर से)
सिद्धार्थ वही था, जिस दिन वह दोनो को बस में मिला था। थोड़ी लड़ाई झगडे के बाद अब लगता था की दोस्त हो जायेगे।