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मिरा अपनी बेग से पुस्तक निकालती है और पढ़ने की शुरुआत करती है। इतने में ही उसका भाई राघव आता है। राघव मीरा को पढ़ते हुए देखता है तो उसके साथ शरारत करने का मन करता है। पीछे जाकर नकली वाली प्लास्टिक टॉयवाली छिपकली फेंकता है और छिपकली किताब पर गिरती है। मिरा बहुत घबराते चिल्ला उठती है और किताब को जोर से फेंकती है। किताब खिड़की से नीचे गटर में गिर जाती है। इतने में अपने छोटे भाई राघव को हसता देखकर उसके पीछे पड़ जाती है। राघव आगे भागता है तो मीरा शेरनी की तरह उसके पीछे दौड़ती है। पुरा घर सिर पर उठा लेते है। राघव भागता हुआ दादी के पीछे छुप जाता है।
दादी, " अरे! अरे! क्या हुआ? इतनी सारी चिल्ला चिल्ली क्यूं कर रहे हो। "
मिरा, " ये मुझे पढ़ने नही देता और ऊपर से मुझ पर छिपकली भी फेंकी। आज तो नही छोडूंगी उसे....... ( मारने जाती है)
राघव, " देखोना दादी, ये छिपकली दूसरी छिपकली से डर गई। ( जोरो से हसता है।)
बीच मे दादी ने कहा, " बेटा, अपनी दीदी को क्यूं परेशान करते हो? पढ़ने दोना इसे और तुम भी पढ़ाई करो।"
इतनी में मिरा को किताब याद आ जाती है और दौड़ती हुई घर के बाहर जाती है, पीछे पीछे राघव भी जाता है। मिरा गटर में देखती है तो किताब का सत्यानाश निकल चुका होता है। मिरा जैसे तैसे करते किताब तो बाहर निकाल लेती है पर किताब गटर के गंदे पानी को वजह से किताब काली, नीली और न जाने कौन कौन से रंग चढ़ जाते है। किताब की हालत दयनीय हो जाती है। पढ़ना तो दूर का पर छूना भी पसंद न आए ऐसा बन पड़ा। किताब को देखकर राघव बचने के लिए घरमे भाग कर चला जाता है। मानो कोइ प्यारी सी चीज बिछड़ गई हो उसी भाती मिरा रोती हुई घर में किताब लेकर आती है। किताब में से गंदा पानी घर में टीपक रहा होता है। उसे देखकर मीरा की मां बोल पड़ी, " अरे ! मिरा, ये क्या लेकर आ रही हो। कितनी बर्दबू फेला रखी है ... गंदा कर रही हो घर को। "
मिरा, " ये सब तेरे लाडले ने किया है। उसने मेरी किताब की कैसी हालत कर दी? (रोते हुए)
मां, " रड़ मत, कल दूसरी किताब ले लेना। राघव कहा गया ? राघव.... राघव..... "
मिरा (गुस्से से) ,"आज तो उसे नही छोडूंगी , पीट दूंगी। मेरी फेवरेट किताब थी।"
इतने में राघव आता है। " हां, मम्मी...... "
मम्मी," ये क्या किया तुने बदमाश, किताब क्यूं गटर में फेंक दी? "
राघव," मेने कहा फेंकी है? ये तो खुदे उसने ही फेंक दी।" ( हंसते हुए)
मिरा (गुस्से से), " मुझ पर छिपकली क्यूं फेंकी थी? खड़ा रह वही पर, अभी चखा ती हूं मज़ा।" मारने के लिए जाती है, राघव मम्मी के पीछे छिप जाता है।
राघव, "मम्मी , मम्मी.... उसे कुछ कहो ना.....
मम्मी," मिरा, अब बस भी करो दोनो। इसमें तुम दोनो की गलती नही है।
मिरा," पर मम्मी उसने छिपकली क्यूं मुझ पर फेंकी....."
राघव," सॉरी दी, कल में तुम्हारे लिए नई किताब लाऊंगा।" राघव मिरा से गले लग जाता है। मिरा प्यार से कहती है, " कहा से लाएगा, मेने तो कॉलेज की लाइब्रेरी से ली थी। अब क्या...." अफसोस जताती है।
मम्मी,"फिकर मत कर। जो भी दंड होगा कल मेरे से ले लेना। अब दोनो शांत हो जाओ और खाना खा लो। राघव आज के बाद ऐसी शरारत मत करना।" मां ने राघव को चेतावनी देते कहा।
सभी खाना खा रहे होते है। पर मिरा की तो किसीने जान ही निकाल ली हो ऐसे बैठी हुई थी। खाना खाकर अपने कमरे में जाती है। मिरा अफसोस जता रहा ही है की मेने किताब की बस दो ही लाइन पढ़ी और न जाने मुझसे किसीने ख्वाब ही छीन लिया हो। पर हमे कभी नही भूलना चाहिए के समय और परिस्थिति के अनुसार कुछ ना कुछ होता ही है। कुछ बाते हो या ख्वाइश हो या अपनी जिंदगी का सपना हो, कभी छूट ही जाते है।