दो पल (love is blind) - 5 ભૂપેન પટેલ અજ્ઞાત द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

दो पल (love is blind) - 5

5

जिंदगी में कुछ ना पाने का अफसोस रह ही जाता है। कुछ चीज छूट ही जाती है। इंसान कामयाब या निष्फल नहीं होता, मंजिल कभी खत्म नही होती, मौत के बाद भी नहीं। मौत आने पर भी जिंदगी जीने में कुछ ख्वाईश अधूरी रह जाती है, जिसका अफसोस भी रहता है और गम भी। उस वक्त हम खुदा से प्रार्थना करते है के जीने के लिए दो पल ओर मिल जाते ते तो जिंदगी की आखरी ख्वाईश पूरी हो जाती, बाद में भले ही मौत आए।

सुबह सुबह फोन की घंटी बजने लगती है। मिरा सोई हुई थी। फोन लेकर देखती है तो मिली का फोन था। बात करते हुई....
" हेलो... इतनी सुबह सुबह क्या हुआ।"
मिली," मुझे तो पता था कि तु भूल जाएंगी, इसलिए याद दिलाने के लिए फोन किया।"
मिरा," मुझे याद है। में टाईम पर आ जाउंगी। अब फोन रख मुझे सोने दे।"
मिली," तु आंटी को फोन दे।"
मिरा,"क्यूं? अब क्या हुआ?"
मिली, " दे तो सही बाबा, मुझे कुछ काम है।"
मिरा,"हा, देती हुं। मम्मा.....मम्मा... मिली का फोन है।" आवाज सुनकर संगीताजी, मिरा की मम्मी आती है।
संगीतजी," हेलो, बेटा, कैसे हो?"
मिली,"में ठीक हुं, आप कैसे हो?"
संगीताजी," में भी ठीक हुं। क्या काम था?"
मिली,"मेरे भाईकी बर्थडे पार्टी है तो आप सब को श्याम को आना है। लो.. मेरी मॉम से बात करो।"
सरस्वतीजी (मिली की मॉम), "संगीताजी, कैसी हो?"
संगीताजी,"में ठीक हूं। आप कैसी हो?"

" में भी ठीक हुं। श्याम को आना न भूलना, दादीजी को भी लाना है।"
"जरूर से ... ओम को मेरी तरह से बधाई देना और ढेर सारा प्यार देना।"
"हां, चलो अब पार्टी में मिलते है।"

मिली एक घंटे के बाद मिरा को फोन करती है। मिरा को कुछ काम से बुला लेती है। मिरा मिली के घर जाने के लिए निकलती है।

मिरा अपनी मोपेड लेकर मिली के घर जाने के लिए निकलती है, पर पुरे रास्ते में वो एक ही सोच में डूबी हुई होती है। न जाने क्यूं वह किताब उसके दिमाग घुस न गई हो?
पर एक बात याद रखनी चाहिए की,"जब दिल करता है गलती तो, आंख को दोष नही देना चाहिए।"

मनुष्य हो या प्राणी हो, जब कोई बात, चीज या किसी के साथ अपनापन लगने लगता है तो उसीके साथ अजब सा लगाव बन जाता है।बस, उसीको पाने की चाह रहती है, जिंदगी के अंत तक। इसे हम एहसास भी कह सकते है। यही तो जिंदा रखता है एक दूसरे के प्रति गम हो खुशी हो।
इतने में मिरा मिली के घर पहुंचती है। घर में सेलिब्रेशन की तैयारी हो रही थी। घर को फूल, गुबारे और लाइटिंग से डेकोरेट किया जा रहा था।अचानक से मिरा पर फूल बरसने लगे। एक पल के लिए मिरा गोल्डन फीलिंग में पहोंच गई। इतने में, " इतने में चलेगा या और बरसाऊ।" मिली ने जोर से आवाज लगाई।

मिरा," मेरे लिए कोई काम बचा के रखा है क्या?"
मिली," हा, रखा है ना....।"
" क्या?"
" खाना खाने का...." गुस्से से कहा।
"सॉरी यार, आने में देर हो गई।"
" इट्स ओके। किताब पढ़ने तो नहीं बैठ गई थी, कुछ तो था! "
" याद मत दिला किताब का नाम।"
" क्यूं? क्या हुआ?"
" बाद में बताती हुं, मुझे ओम को विश करने दे। कहा गया है, दिखाई नही दे रहा है।"
"अंदर कमरे में है।"
" आज भी कमरे में क्या कर रहा है। चल, में मिलकर आती हुं।"
" उसको मिलना अलाउड नही है। श्याम को ही मिलना पड़ेगा।"
"क्यूं?"
" भाईसाब सप्राइज है ऐसा कह रह है। अभी तु मेरे साथ चल, बाजार से कुछ लाना है।"

दोनो बाजार की ओर जाते है।