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मीरा और मिली कॉलेज से बस नं. ४६ में बेठकर, घर जाने के लिए निकलते है।
मीरा घर पहुंचते ही अपनी दादीको गले लगती है। फिर मम्मी को परेशान करने के लिए कीचन में चली जाती है।
" मम्मा , क्या जला रहे हो।" मम्मी को छेड़ते हुए कहा।
"वो तेरा काम है...। आ गई कॉलेज से..., आज तो बड़ी खुश लग रही हो। ऐसा क्या हुआ ?"
मीरा: नई बूक पढ़ने की खुशी है। जल्द से खाना दो , मुझे बूक पढ़नी है।
मम्मी : कौनसी बूक लाई हो ? क्या नाम है बूक का....?
मीरा : कुछ तो था '..... प्यार पर आधारित उपन्यास है।
मम्मी: ओहो...... अब तुम बड़ी हो गई हो...।
मीरा जोर से पर प्यार से कहने लगी, " मम्मा, तुम भी क्या ......! "
मम्मा : पागल प्रेमी ने ही लिखी होंगी।
मीरा: नहीं मम्मा, ए किसी स्टूडेंट ने है लिखी है। शायद अपने शहेर का ही होगा। गुरु नाम है उसका।
मम्मा : उसने तो गिफ्ट नहीं दी?
मीरा :वो देता तो अच्छा था..।
मम्मा : पापा को बताऊंगी तेरी ये बात...।
मीरा : कौनसी बात।
मम्मा : तेरी शादी जो उससे करादे।
मीरा: ( प्यार से धक्का मारते हुए) तुम भी क्या....! चलो, मुझे खाना दो ,पढ़ने जाना है।
मम्मा: अच्छा बाबा, देती हूं।
मीरा खाना खाकर अपने कमरेमें जाती है और किताब पढ़ने के लिए किताब हाथमे लेती है। इतनेमे अंदर से कागज गिरता है। कागजमे लिखा हुआ होता है," कौन हो ? " और नीचे घरका पता लिखा हुआ था। मीरा पढ़ते ही चेहरे पर एक स्माइल सी आ जाती है।
" इतना ही नहीं पता तुम्हे, मीरा हूं में।जवाब तो भेजना पड़ेगा।"
फिर मीरा बूक स्टोर जाकर खत लिखने के लिए एक लिफाफा लाती है। " किताब पढ़ानेवाली में बिट्टू हूं।" लिखकर खत पोस्ट कर देती है।क्युकी घरमे सब उसे बिट्टू कहते है।
किसी का हल्का सा टच होते ही मीरा यादोकी गलियों से वापस आ जाती है। आंख खोलकर देखती है तो सामने मिली खड़ी हुई होती है। चेहरा फिका और मुरजाया हुआ था। पर मीरा मिली के सामने स्माइल करती है। इतने में मिली एक गुलाब देती है और get well soon कहती है। साथमें कहती है , " मैने क्या कहा था तुझसे... ।" दोनों रोने लगते है।
" छोड़ दे उसे , भूल जा तू...।" मिलीने कहा।
मीरा इशारेमे ही चुप रहने को कहती है। में ठीक हूं ऐसा जताती है।मिली कमरे से बाहर चली जाती है।
सिद्ध: " कैसी हो मिस धक्का....। आज क्यू नहीं दिया धक्का ...।"
मिली: " रोज रोज कैसे सहोगे धक्का। एक दिन मर जाओगे धक्का ख़ाके।"
सिद्ध: ऐसे जीने से धक्का ख़ाके क्यू न मरे...।"
मीरा: बस करो यार.... मिली। ( गस्सेमे कहती है।)
सिद्ध : सॉरी कलकी मजाक के लिए। मेरी बात का दु:ख लगा हो तो जो करना हो वो करो। ( मस्ती के मूड में बोला)
मीरा हाथ को जोर से जोड़कर कहने लगी, " हटो, सामने से तुम।"
सिद्ध थोड़ी देर के बाद, " तुम नई हो कॉलेज में?" मिली से पूछा।
मिली: " फर्स्ट ईयर में है। फिलहाल तुम इस बस में नए हो। जानबूझकर पीछा तो नहीं कर रहे हो!"
सिद्ध : " पीछा में नहीं तुम कर रहे हो। में तो इस बसमे पिछले दो साल से सफर कर रहा हूं। दो महीने से कुछ काम से कॉलेज नहीं आया इसलिए। "
मिली: " यू आर सिद्ध , राईट।"
सिद्ध : " मेरा नाम याद है , बहुत खूब। तुम दो चुड़ैल का नाम क्या है..?"
मीरा गुस्से कहने लगी, " तुम मवाली हो क्या...? "
सिद्ध: " दो दिन में ही मवाली हो गया में।"
मीरा: " मेहरबानी करके दिमाग मत पकाओ....।"
इतने में बीच में ही मिली बोल पड़ी, " क्या कर रहे हो तुम दोनों...? चलो, मेरा नाम मिली है ओर ये मीरा है।"
सिद्ध : कृष्ण की मीरा.....।
गुस्से में लालगुम होकर, " चुप कर, तेरे से क्या ....? "
मीरा सिद्ध से चिड़ती है और उससे जरा सा भी पसंद नहीं करती। उनकी नोकजोक के बीच कॉलेज का स्टैंड आ जाता है। मीरा - मिली और सिद्ध अपने अपने रास्ते पर चले जाते है।
मिली: " कितनी पढ़ी .... कुछ तो था।"
मीरा : नहीं पढ़ी यार, कुछ काम में बिजी हो गई थी। आज पढूंगी....
मिली: कैसा काम करने लगी कि किताब नहीं पढ़ पाईं।
मीरा : ' कुछ तो था ' को खत लिखने में...। ( शरमाते हुई बोली)
मिली: ओ... हो.... लव लेटर लिखा ... तूने तो डायरेक्ट अटैक ही किया।
मीरा : नहीं रे , अपना नाम लिखकर , बाकी सब अधूरा छोड़ दिया।
मिली मीरा को चिढ़ाने के लिए, " दिल की बात कुछ खास तरीके से पेश की। बिन बोले ही प्रपोज कर दिया। "
मीरा : " नहीं यार... चुप कर । बस, ऐसे ही भेजा है। "
मिली: तु कॉलेज के बाद क्या करने वाली है।
मीरा : तेरा क्या प्लान है?
मिली: बस, थोड़ी शॉपिंग करनी है और अपने भाई के लिए बर्थ डे गिफ्ट लेनी है। तु चलेगी साथ में....।
मीरा थोड़ा सोचकर , " हा.. चलूंगी।"
अब दोनों कॉलेज से शॉपिंग के लिए निकल पड़ते है। शॉप में मीरा एक कार्ड देखती है और दुकानदार से पूछती है,
" कितने का है ये...?"
दुकानदार : सॉरी, ये तो किसी गुरु ने खरीदा है।
मीरा: ( चोकते हुए) क्या?
दुकानदार : अभी ही खरीदकर गया।
मीरा: ok। मिली कुछ पसंद आया...।
मिली: प्लीज़ हेल्प करो मेरी, इन दोनों में से कौनसा लू।
मीरा : ये वाला....
दोनों खरीदी करके ऑटोमे बैठकर घरकी ओर चलते है। मीरा चुपचाप ही ऑटॉमे बैठी रहती है। वो उस कार्ड के बारे में ही सोच रही थी। इतने में मीरा का घर आता है।
मिली: कहा खोई हुई हो.... घर नहीं जाना?
मीरा : ओह! चल बाई, बाई।
मिली : बाई...... ऑटो चले उससे पहले ही रोकने को कहती है। ऑटो से उतरकर मीरा से, " ऑय ... पागल रुक। कल मेरे भाईकी बर्थडे में आना है।
मीरा : जरूर से आउगी।
मीरा अपने घर की ओर जाने लगती है और मिली ऑटो से घर की तरफ जाती है।
मीरा घर जाकर भी सोचमें डूबी रहती है, उसका मन अभी भी उसी कार्ड में रुका हुआ था।
क्रमिक........