काश तुम हमारे होते Rakesh Rakesh द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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काश तुम हमारे होते

“बेटा जरा पता तो करो की रेल यमुना के पुल के बीचो-बीच क्यों रुक गई है।” यह बात बुजुर्ग राम सेवक शायद अपने पोते आदित्य से कई बार पूछ चुका था, लेकिन उसकी इस बात को ही नहीं आदित्य उनकी हर एक बात को अनसुना कर रहा था।

जब उसकी इस हरकत पर अपनी विधवा मां के साथ आगरा जाने का सफर कर रही प्रगति से बर्दाश्त नहीं होता है तो वह गुस्से में आदित्य को डांटते हुए कहती है “वह बुजुर्ग शायद आपके दादा जी या नाना जी या कोई और संबंधी आपसे बार-बार कुछ पूछ रहे हैं और आप उनके हर सवाल को अनसुना कर रहे हो।”

जब आदित्य प्रगति के कहे को भी अनसुना कर देता है तो प्रगति समझ जाती है कि यह बदतमीज नहीं बेशर्म और जलील युवक भी है, इसकी वजह से मैं अपने सफर का आनंद क्यों खराब करूं, वैसे भी आगरा पहुंचकर अपनी ममेरी बहन की नाराजगी मुझे बर्दाश्त करनी है, क्योंकि मैं अपनी ममेरी बहन की शादी में एक सप्ताह पहले पहुंचने की जगह शादी से एक दिन पहले पहुंच रही थी और बड़े भाई को फ़ौज से छुट्टी नहीं मिली है, इस वजह से भैया भाभी भी शादी में शामिल नहीं हो रहे हैं इस बात का गुस्सा भी ममेरी बहन का मुझे झेलना है।

एक घंटे रेल के सफर तय करने के बाद आदित्य रेल की चैन खींचकर रेल को रूकवा देता है।

उसकी इस हरकत पर पहले ही रेल के लेट होने से दुखी यात्री जैसे ही उसे पीटने वाले होते हैं तभी एक 12 बरस का चरवाहा बच्चा रेल के डिब्बे में घुसकर कहता है “बाबूजी को कुछ मत कहो इन्होंने मुझे अपनी लाल कमीज और भेड़ का बच्चा दिखाने के बाद रेल को चैन खींच कर रोका था, क्योंकि रेल की पटरी के बीचों बीच मेरी भेड़ ने बच्चे को जन्म दे दिया है और मुझ अकेले से पूरी ताकत लाकर हटाने के बाद भी मेरी भेड़ बच्चे को लेकर रेल कि पटरी से हट नहीं रही थी।” चरवाहे की इस बात को सुनकर सारे यात्री और प्रगति शांत हो जाती हैं।

और कुछ घंटे बाद रेलवे स्टेशन आने के बाद आदित्य अपने बुजुर्ग दादा राम सेवक को रेलवे स्टेशन पर अकेला उतार कर खुद रेलवे के डिब्बे में आकर अपनी सीट पर बैठ जाता है, रेल कि तेज गति पड़ते ही प्रगति आदित्य से कहती है “तूम आराम से बैठे हो और रेल की स्पीड तेज होती जा रही है अपने दादा जी को तो रेल में चढ़ा लो।”

आदित्य के कुछ भी जवाब देने से पहले रेल के डिब्बे में पानी मूंगफली आदि सामान बेचने वाली एक अधेड़ आयु की महिला आदित्य के पास आकर पूछती है “आदित्य भैया उन बुजुर्ग को रेल से ठीक-ठाक उतार दिया है ना।”

“हां कुली को उनके घर का पता देकर कह दिया है कि उनके गांव जाने वाली बस में उनको बिठा दे।” आदित्य बताता है

“शायद उनका बेटा बहू उनका नाम राम सेवक बता रहे थे।” अधेड़ आयु की महिला पूछती है?

“हां उनका नाम राम सेवक था।”आदित्य ने कहा

“बहुत कंजूस और मतलबी लग रहे थे, उनके बहू बेटे बताओ सफर में खर्च करने के लिए उनको सिर्फ ₹50 दिए थे, आपको उन अनजान लोगों की जिम्मेदारी अपने सर नहीं लेनी चाहिए थी, और इस बार बताओ दूसरों की मदद करते हुए आपके कितने रुपए खर्च हुए हैं।”

आदित्य उस अधेड़ आयु की महिला की बात बीच में काटकर पूछता है? “आपके बेटे का काम धंधा ठीक चल रहा है।”

“आपकी दया से बहुत अच्छा चल रहा है, आपकी ईमानदारी मेहनत की कमाई के तीस हजार रुपए से उसने अपना छोटा सा धंधा खोल लिया है तभी तो वह अब मुझे रेल के डिब्बे में घूम फिर कर कोई सामान नहीं बेचने देता है लेकिन बचपन से इस आयु तक बैठकर नहीं खाया है, इसलिए बेटे से नजरे बचा कर चुपचाप कभी-कभी कुछ सामान बेचने आ जाती हूं, नहीं तो पहले महीने में दो-तीन बार आपके दर्शन हो जाते थे।”

फिर दोबारा आदित्य उस अधेड़ महिला की इस बात को अनसुना करके आने वाले रेलवे स्टेशन पर उतरने की तैयारी करने लगता है।

इस बार प्रगति को आदित्य की जवाब न देने की बात के साथ-साथ उस अधेड़ आयु की महिला पर भी बहुत क्रोध आता है, क्योंकि वह महिला शरीर से पूरी तरह तंदुरुस्त होने के बाद बहरे गूंगों की तरह आदित्य से बात कर रही थी।

और आदित्य के रेलवे स्टेशन पर उतरने के बाद प्रगति आदित्य के बारे में सोचने की जगह अपनी विधवा मां से ममेरी बहन की शादी के विषय में बात करने लगती है।

मामा मामी के घर पहुंचने के बाद प्रगति की ममेरी बहन उससे शादी में देर से पहुंचने की वजह से नाराज होने की जगह उससे और अपनी बुआ यानी की प्रगति की मां को देखकर उनसे चिपट कर रोने लगती है।

मामा मामी से प्रगति को अपनी ममेरी बहन के रोने का कारण पता चलता है तो उसे लड़कों वालों पर बहुत गुस्सा आता है, क्योंकि 5 लाख दहेज की रकम का इंतजाम न होने की वजह से उन्होंने शादी से एक दिन पहले प्रगति की ममेरी बहन से शादी करने से इन्कार कर दिया था। बेटी के माता-पिता के दुख तकलीफ को समझ कर लड़के के चचेरा भाई जो दोनों कानों से बहरा था प्रगति की ममेरी बहन से शादी करने के लिए तैयार हो गया था।

प्रगति के मामा मामी अपनी बेटी की शादी उस बहरे लड़के से करने के लिए इसलिए राजी हो गए थे, क्योंकि शादी की पूरी तैयारी होने के बाद एक दिन पहले दूसरा लड़का ढूंढना असंभव था और लड़के का पूरे गांव नहीं पूरे जिले में बहुत मान सम्मान था, पूर्वजों की संपत्ति भी लड़के के पास बहुत थी और अपने माता-पिता का वह इकलौता बेटा था, 26 जनवरी पर बहादुर बच्चे का भारत के राष्ट्रपति से सम्मान भी ले चुका था और सबसे बड़ी बात अपने ताऊ के बेटे के दहेज की वजह से रिश्ता तोड़ने का मोबाइल पर मैसेज पढ़ कर घर परिवार लड़की को देखे बिना शादी करने के लिए तैयार हो गया था।

बारात आने के बाद आदित्य को दूल्हा बना देखकर प्रगति अपनी ममेरी बहन से कहती है “इस लड़के से तो मेरी रेल में मुलाकात हो चुकी है, लेकिन यह दोनों कानों से बहरा है मुझे यह बात पता नहीं चली थी, क्या तेरा दूल्हा जन्म से दोनों कानों से नहीं सुनता है।”

“नहीं पड़ोस में मां बेटी को आग से जलने से बचाते हुए 12 बरस की आयु में इनके बहुत करीब रसोई गैस सिलेंडर फट गया था, इस हादसे का इनके कानों पर बहुत बुरा असर पड़ा था और धीरे-धीरे इनके कानों की सुनने की शक्ति खत्म हो गई थी, इसी बहादुर के लिए इन्हें राष्ट्रपति से बहादुर बच्चे का सम्मान मिला था।” ममेरी बहन बताती है

प्रगति सोचती है “मुझे नहीं पता था, जिस लड़के को मैंने पहली मुलाकात में बदतमीज जलील बेशर्म समझा था, वह दुनिया के हजारों लाखों लोगों से बेहतर है।

अपनी ममेरी बहन के साथ आदित्य की शादी होने के बाद प्रगति आदित्य के कान के पास आकर सच्चे दिल से कहती है “सिर्फ मैं ही नहीं दुनिया की हर एक कुंवारी लड़की आपसे यह बात कहना चाहेगी काश तुम हमारे होते।”