एक अंत की प्राप्ति ही शाश्वत अतएव सर्वश्रेष्ठ सफलता हैं। Rudra S. Sharma द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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एक अंत की प्राप्ति ही शाश्वत अतएव सर्वश्रेष्ठ सफलता हैं।

अकेला हों जाना ही दुनिया की सबसे बड़ी सफलता हैं, और मैं दुनिया का सबसे सफल इंसान और जो अकेले पन से दूर भाग रहें हैं न वह सभी अपनी आदत खराब कर रहें हैं क्योंकि पहले और अंततः यानी कि आखिर में भी रहना तो उन्हें भी पड़ेगा तो अकेले हीं क्योंकि विज्ञान के हर नियमों में सभी से अधिक सिद्ध नियम जो ठैरा यही, अभी भी कहता हूँ कि अकेले हों जाने की आदत डाल लों क्योंकि जिसकी आदत हो जाती हैं न नियम यानी कि नियति अर्थात् हकीकत का विज्ञान कहता हैं की उसमें असुविधा नहीं होती यानी कि परेशानी खत्म हो जाती हैं, नहीं तो जिसकी जितनी कम आदत वों उतनी ही ज्यादा अपनी परेशानी का कारण खुद होने वाला हैं।

और हाँ अब भगवान के पास मत चले जाना, यह इच्छा लेकर कि हें भगवान अकेले पन से बचा लों, जान लों अकेलापन नियति हैं और भगवान भी नियति के अधीन ही हैं वह भी बेचारा कुछ नहीं कर सकता।

हाँ! पर तुम कुछ कर सकते हों।

क्या समझा नाम रुद्र हैं तो बस डराऊँगा, नहीं! नहीं! समस्या बता कर छोडूँगा नहीं, देखों क्योंकि समस्या मेरी नहीं बल्कि तुम्हारी हैं मैं तो अकेला कुछ नहीं कर सकता पर तुम चाहों तो कुछ किया जा सकता हैं।

अभी जो उपरोक्त संज्ञान यानी कि विज्ञान द्वारा सत्यापित वास्तविकता के वास्तविक ज्ञान की शब्दों यानी कि सटीक इशारों और अर्थों यानी कि जिन अहसासों की ओर इशारे शब्दों के माध्यम से कियें गये हैं उन शब्दों और अर्थों की सहितता की जो मैंने अभिव्यक्ति की ठीक उसी तरह तुमनें शब्दों के प्रति तो संज्ञान की प्राप्ति कर ली जिस तरह रुद्र नाम से डराना यानी शमशान बताके परेशानी यानी असुविधा बताना जिसका काम इसका संज्ञान तुमनें प्राप्त कर लिया यानी यह तुमनें समझ लिया पर क्या तुमनें इस पर ध्यान दिया कि जो तुमनें समझा क्या वह विज्ञान यानी विशेष रूप से प्रतीत होता सत्यापित सत्य ज्ञान क्या हकीकत में भी वास्तविक ज्ञान यानी संज्ञान हैं भी कि नहीं जिसकी ओर शब्द यानी तथ्य के द्वारा इशारा किया जा रहा हैं।

संस्कृत में रुद्र का मूल यानी पहला इशारा भयंकर यानी डरावना इन अहसासों की ओर नहीं हैं बल्कि रुद्र शब्द रु उपसर्ग और द्र प्रत्यय इन दोनों से मिल कर बना हैं जिनका अर्थ हैं रु यानी कि ऐसी ध्वनि का विज्ञान यानी कि विशेष ज्ञान जो चिंता और समस्या यानी कि असुविधा की ओर इशारा करती हैं और द्र ध्वनि की हकीकत का ज्ञान यानी सत्यापित होने से विशेष ज्ञान ‛दूर करने वाला’ इस संज्ञान यानी कि अहसास की ओर इशारा करती हैं अतएव रुद्र शब्द का मतलब हैं वह जो चिंताओं, समस्याओं या असुविधाओं यानी परेशानियों को दूर करनें वाला वह हैं रुद्र।

किसी की भी वास्तविकता के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों की पहेलु होते हैं, सकारात्मक वह जो हमें सुबिधा यानी कि सुख अर्थात् समाधान देते हैं औऱ नकारात्मक यानी कि जो हमें असुविधा यानी कि परेशानी अर्थात् दिक्कत देते हैं।

हमारा कल्पना का जगत अर्थात बौद्धिक आयाम वहाँ यह स्पष्ट नहीं होता कि हमारी जरूरत क्या हैं और इस कारण हम वहाँ वास्तविकता के उसी पहेलु को देखते हैं जो अंजाने में स्वतः ही हमारें सामने आ जाता हैं, अब यदि उस पहेलु के द्वारा जिस ओर इशारा उसे दिखा कर किया जा रहा हैं यदि हमारें मन को हम स्पष्ट नहीं कर पातें उसे बार बार बताकर की हमारी जरूरत परेशानी को अनुभव करके परेशान होना हैं या इसके विपरीत सुविधा को अनुभव करके सुबिधा की उपलब्धता को अंजाम देना हैं, यदि हम हमारें मन को यह स्पष्ट कर सकते हैं पर्याप्तता के साथ तो उसी तरह हमारी समस्या हमारें लिये समाधान सिद्ध होंगी जिस तरह तलवार की वास्तविकता का ज्ञान यानी विज्ञान, उस विज्ञान का संज्ञान हमें हों जाता हैं, तलवार हाथ आते ही संज्ञान का विलोम अज्ञान यानी कि मन में यह स्पष्ट की तलवार दिखाई देने में क्योंकि दूर से हल्की मालूम होती हैं तो वो हकीकत में भी हल्की हैं आदि इत्यादि यदि हों तो वह तलवार हमारें लियें समस्या हैं नहीं तो समाधान क्योंकि उसकी हकीकत के संज्ञान के विज्ञान का ज्ञान होना यानी कि उसके सही वजन आदि इत्यादि सब ज्ञात होने और जिसे यह ज्ञान हैं वह तलवार से अपनी और दूसरों की आत्म रक्षा करके दूसरों की और खुद की भी समस्या खत्म कर सकता हैं, न कि अज्ञानी की तरह खुद के या दूसरों के पैरों को गिरा कर समस्या खड़ी कर सकता हैं।

तो केवल अकेले पन के असुविधा वाले पहेलु की स्पष्टता जो आपके कल्पना पट पर स्पष्ट हों रही हैं वो आपके लिये असुविधा देने वाली इसलिये हैं क्योंकि आपनें उसके पीछे के अज्ञान को गलती से महसूस कर लिया हैं ठीक उसी तरह जिस तरह रुद्र के पीछे के अधूरे ज्ञान यानी हकीकत के अहसास वश आपके लिये रुद्र बस समस्या यानी असुविधा से ही तात्पर्य था पर अपने कल्पिततता कर्ता मन को स्पष्ट करें कि आपकी जरूरत असुविधा यानी कि समस्या को महसूस करना हैं या सुबिधा यानी समाधान अर्थात् सुखी रहना, जब आपका मन आपकी जरूरत समझ जायेंगा तब संज्ञान के विज्ञान वश यानी कि कॉग्निटिव साइंस की अंडरस्टैंडिंग आपकों हों जायेंगी और यह रिलेटिविटी के सिद्धांत की तरह ही सार्वभौमिक सिध्द अंत हैं कि जिसकी भी हमें समझ अनुभव हों जाती हैं वों हमारें लियें औसधि जितना सुविधा देने वाला हों जाता हैं अन्यथा ज़हर के समतुल्य।

अब मैंने जो उपरोक्त बताया वह मेरे नाम की तरह ही भयंकर हैं, निर्भर आप पर करता हैं कि आप उसकी पूरी हकीकत की असलियत को समझ पाते हैं या नहीं, यदि आप समझ पायें तो जहर को भी औसधि की तरह उपयोग कर पायेंगे और यदि समझना ही नहीं चाहने से नहीं समझ पायें तो औसधि भी आपके लियें जहर से कम नहीं ठीक उस तरह जिस तरह नासमझ उस अबोध मन वाले बच्चें को यदि यह मालूम हों गया कि गोली खाने से तबियत ठीक हों जाती हैं तो वह गलती से कही दस्त लगने पर पेट साफ करने वाली गोली न खा लें और फिर आखिर में बेचारा गोली को ही दोष देने वाला हैं।

हमारा अकेले पन को दोष देना ठीक उस बच्चे का दवाई को दोष देने जैसा ही हैं, तो बच्चों की तरह औसधि यानी कि जिसका जरूरी या व्यर्थ होना हमारी बुद्धि और उसकी समझ पर निर्भर करता हैं, दवाई की तो जितनी खूबी हैं उतनी खामी भी हैं इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं, आश्चर्य तो इसमें होगा यदि हम हमारी गलती पहलें तो करें और फिर दोष भी उल्टा दवाई को ही दें तो औसधि को दोष न दें, उसे सोच समझ कर लें, जो आपके लिये समस्या हैं वह ही समाधान सिध्द होंगी।

और मुझे नहीं लगता कि हम इतनी छोटी छोटी गलतियों से बड़ी गलती को अब आकार देने वाले हैं।

समय - १४:५२, दिनांक - मंगलवार, ०५ मार्च २०२४
© Rudra S. Sharma