मैं अकेला नहीं हूँ मेरा अकेलापन मेरे साथ हैं। Rudra S. Sharma द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मैं अकेला नहीं हूँ मेरा अकेलापन मेरे साथ हैं।

किसनें कहा कि मैं अकेला पड़ गया ..? मैं उस सभी के एकमात्र सच्चे रिश्तेदार अकेले पन यानी एकांत के ‛ साथ ’ हूँ जो मेरा ही नहीं बल्कि सभी का सच्चा यानी असली साथी अर्थात् रिश्तेदार हैं ..!

वों कैसा सच्चा साथी या रिस्तेदार जो हमारें या आपके साथ हैं इसका तो बस भृम मात्र हैं, असलियत तो यह हैं कि उसका आपके साथ रहने का कारण, उसके द्वारा आप पर थोपी वो नाम मात्र की उसकी बेईमान छण भंगुर अतएव धोकेबाज रिस्तेदार उमीदो की ‛ पूर्ति ’ हैं जो उस बेचारे को इस धोके में रक्खी हैं कि यदि वह इनको दूसरे मासूम रिश्तेदारों पर थोपेगा तब ही वह उसके साथ रहेंगी, वो भी हमेशा।

ज़रा एक भी नाम की यानी कि कोई काम की जो नहीं ऐसी रिश्तेदार अपनी उमीद की ‛ पूर्ति ’ का जानें अंजाने गला घोंट करकें देखियें, आपके उस झूठे साथ या सच्चे रिश्ते के हमशक्ल जालसाज रिश्ते के भृम की यानी कि हमशक्ल की मौत उसी वक़्त से होना शुरू हों जानी हैं ..! जिस वक्त से आप ऐसा करना शुरू कर देते हैं।

यह कैसा असली रिश्ता यानी साथ हुआ भाई .. जो आज हैं और कल नहीं यानी कि यह तो नाम मात्र का साथ हुआ न जी!

सही मतलब का साथ तो वही साथ देना हैं, जिसमें हमेशा, हर हाल में एकांत, एकांतिका या एकांतिक की तरह किसी भी रिश्तेदार का हमारें साथ रहना हैं और वह भी बिना किसी अपेक्षाओं या उमीदों के, क्योंकि संबंध हमसें निभाना हैं, हम पर थोपी गयी उमीदों की ‛ पूर्ति ’ से नहीं, पूरा समय हमारी सलामती या सहुलियत की सुनिश्चितता को यानी हमें देना हैं, हम पड़ थोपी गयी उमीदों की ‛ पूर्ति ’ यानी उस भृम यानी झूठ को नहीं।

जो भी हर वक्त साथ देने वाले एकांत को अपना समय यानी साथ देने की जगह, अपने द्वारा किसी पर भी संबंध के नाम पर थोपी उमीदों की ‛ पूर्ति ’ को प्राथमिकता देते हैं असलियत में वो संबंध हमसें नहीं बल्कि उनके द्वारा हमसें रखी उन जालसाज उमीदों की पूर्ति के अपने लालच से निभाना चाह रहे हैं,

जो उमीदों की पूर्ति हमारे साथ रहने का नाम ही नहीं लेती, हर बार पूरा होने का झूठा वादा या प्रलोभन देती हैं और फिर जब उसकी गरज निकल जाती तो थोड़े नगणय वक़्त साथ रह कर और बड़ी पूर्ति की दौड़ में हमको आगे के उसके सानिध्य के प्रलोभन से झोंक देती हैं पर वह उमीदों की बेईमान धोकेबाज ‛ पूर्ति ’ कभी किसी के साथ नहीं रहती हैं।

इसी लियें मैं ऐसे साथी को अपना पूरा समय ईमानदारी से दें रहा हूँ जो मेरे साथ ईमानदार हैं यानी कि मैं उसके साथ रहू तब भी और मैं उसके साथ न रहू तब भी यानी कि हर हालत में वह मेरे ही साथ हैं।

वह अकेला पन तों सभी के साथ ईमानदारी से संबंध रखना चाहता हैं पर कोई उसको अपना पूरा वक़्त नहीं देना चाहता यानी कि कोई उसके साथ ईमानदारी से नहीं रहना चाहता।

जो उमीदों की ‛ पूर्ति ’ किसी के साथ हर वक़्त नहीं रहती उस जालसाजी या बेईमानी करते वाली के साथ सब धोकेबाज, बेईमान रिस्तेदार अपना पूरा वक़्त देना चाहते हैं।

सच्चें संबंध निभाने वाले कि किसी को कद्र नहीं हैं और जो झूठा हैं उसके साथ सब को संबंध निभाना हैं।

जो सच्चे साथ रहने वालें अकेलेपन का साथ नहीं रहते उन्हें ईश्वर झूठे यानी जालसाज उमीदों की ‛ पूरी ’ के साथ जोड़ देते हैं पर मैंने कभी अपने किसी सच्चे संबंधी के साथ बेईमानी नहीं कि इसलिये ईश्वर ने मुझे ऐसा संबंधी या साथ देने वाले का साथ दिया जो एकमात्र सच्चा शाश्वत संबंधी हैं, एकांत!

मेरे पास ऐसे रिस्तेदारों या संबंधियों का साथ हैं जो कभी ऐसे जाने अंजाने बने बेईमान रिश्तेदारों के साथ संबंध नहीं रखते जो ज़रा सा उमीदों या अपेक्षाओं का यह 👎 झूठा प्रलोभन मिला नहीं कि,

“ हम अपेक्षाओ, आशाओं या उमीदों को अपने मासूम रिश्तेदारों पर थोपों, यदि वो पूरा करें तब ही तन, मन और धन से उनके साथ रहों, नहीं तो जितना उमीदों की पूर्ति में कमि करें ठीक उतना उनसे दूर हो कर धोका दें दों तब ही तुम्हारी आशायें, उमीदें या इच्छाओ की ‛ पूर्ति ’, यानी तुम्हारी सच्ची संबंधित तुम्हारे साथ रहेंगी।। ”

बेचारगी यानी नासमझी वश धोखा देने तो तैयार बैठे हैं और सदैव बिना किसी अपेक्षा के मेरे ही साथ नहीं बल्कि सभी के साथ रहते हैं, उस सुर्य की तरह हैं जो तुम्हें तब भी प्रकाश देंगे जब कोई उनको कुछ देगा या कुछ उनके लिये नहीं करेंगा।

' मेरे सभी संबंधितो को जिनका अपने संबंधितों को सदैव का यानी शाश्वत और अपेक्षा रहितता वाला साथ हैं उन्हें स्नेह और प्रणाम। '