सर्कस - 12 Madhavi Marathe द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

सर्कस - 12

                                                                                          सर्कस : १२

 

         आज से सर्कस के खेल शुरू होने वाले थे। सही मायने में मेरे काम का पहला दिन। आदत के नुसार पाँच बजे ही मैं उठ गया। हम लोगों को कमरा मिल गया था, दस लडके उसमें समाए थे। यहाँ आते ही अपनी-अपनी चारपाई, छोटी अलमारी, कमरे में लगा दी थी, उसमें अपना सामान भी रख दिया था। आज से मुझे अपना दिनक्रम तय कर के उसी के नुसार चलना था। सबसे पहले नहा धोकर योगाभ्यास कर लिया। फिर डायरी में सब मन की बाते लिखकर पढाई करने बैठ गया। पढाई खतम होते-होते, आजू-बाजू में चहल-पहल महसुस होने लगी। सुबह का प्रफुल्लित वातावरण सबको नई उमंग दे रहा था।

        सात बजे हम सब मिलकर रसोईघर गए। टेबल पर चाय-बिस्किट, उबले अंडे रखे हुए थे। धीरज ओैर मैं एक थाली में सब कुछ समेटकर पेड के नीचे जाकर बैठ गए। धीरज ने कहा “ श्रवण, आज से तुम अपना काम शुरू करोगे। कही भी कुछ प्रॉब्लेम आया गया तो मुझे झटसे बताना, मन पर बोझ रखकर मत जीना। उससे कुछ बात नही बनती है। बोलने से मन भी हलका हो जाता है ओैर मार्ग भी निकल आता है। वैसे तो सब लोग अच्छे ही है, लेकिन किसी के मानसिक स्थिती अनुसार कही कुछ बातें होती रहती है, वही पर सब छोड देना, दिल पर मत लेना।” मैने भी उसे सहमती दी ओैर पुछा “ कैसी है जयंती मॅडम?”

 वैसे वह हँसकर बोला “ मॅडम, सर ऐसे मत बोलना, यहाँ कोई ऐसे बात नही करता। वैसे तो वह अच्छी ही है, उसके साथ काम करने में भी मजा आता है। लेकिन उसके पती की हॉस्पिटल से कोई खबरबात आ गई, तो वह एकदम से अस्वस्थ हो जाती है। फिर कई दिन उसकी मानसिक अवस्था ठीक नही रहती। उस वजह से डिप्रेशन, चिडचिडाहट अवस्था का शिकार हो जाती है।”

  “ क्युं ? क्या हो गया ? उसके पती हॉस्पिटल में क्युं है ?” मुझे जीवन के बारें में जादा जानकारी नही थी इसलिए हॉस्पिटल का नाम सुनते ही थोडा अजीब सा महसुस हुआ।

  “ अब जल्दी चल, हमे करतब के प्रॅक्टिस के लिए भी जाना है। बाद में सब बताउँगा।” ऐसा कहते धीरज थाली में बचा हुआ खाना खतम करने लगा। मैने भी चाय पी ली ओैर कप थाली धोकर अपने जगह रख दी। जहाँ खेल की प्रॅक्टिस हो रही थी वहाँ चल दिए। सब अपने-अपने खेलों में डुबे हुए थे। धीरज ने विक्रमभाई से मिलाया ओैर बताया यही नए-नए खेल का निर्माण करते है, सिखाते है, प्रॅक्टिस भी करवा लेते है।

  विक्रमभाई ने कहा “ आजा श्रवण, मैं तुम्हारी राह ही देख रहा था। अरुणसर ने तुम्हारे बारे में बता कर रखा है। यहाँ कौन-कौनसे खेल चलते है इसके बारे में तो अब तुम जान चुके होंगे। तुम्हे किसी खेल में इंटरेस्ट आ गया है क्या? किस खेल से शुरू करना पसंद करोगे? कुत्ते अच्छे लगते है?”

   “ हा, कुत्ते तो पसंद है। चाचाजी के पास कुत्ते है तो हम उनसे खेलते है।”

   “ फिर तो ठीक है, उनसे ही शुरू करते है। जो टीम कुत्तों के करतब दिखाती है उनमें तुम शामिल हो जाओ।” विक्रमभाई के साथ कुत्तों की कसरत चल रही थी वहाँ पहुंच गया। एक लडकी ओैर तीन लडके वहाँ पर थे. उनमें मन्या भी था। आठ कुत्ते मुझे देखते ही जोरसे भौंकने लगे। उन्हे सहलाते हुए मेरी, बाकी टीम से जान-पहचान करा दी ओैर विक्रमभाई चले गए। मन्या, शेरू, चिकी, पक्या उनमें से मैं एक श्रव्या। हर एक नाम के साथ खेलना यह तो शायद यहाँ की रीत थी।

     मन्या चार पामेलीयन कुत्तों को बडे रिंग के उपर पाँव रखकर चलना सीखा रहा था। एक-दुसरे के पीठ पर पाँव रखते हुए एक कतार में वह चल रहे थे। एक का पाँव फिसला तो सब गिर जाते तो फिरसे रिंग पकडते हुए सबकी परेड चालू हो जाती। चिंकी एक कुत्ते के गले में छोटा बॅंड लटकाकर उसे बजाने का हुनर करवा रही थी। दुसरा कुत्ता उस लय में  नाच रहा था। दुसरी ओर एक बडे से रंगबिरंगी बॉल पर एक कुत्ता अपना समतोल बनाए चल रहा था। चिंकी ने एक कुत्ती को मेरे पास दिया ओैर कहा “ तू इसे लेकर प्रॅक्टिस कर ले। लुसी नाम है इसका। आँखों पर गॉगल, रंगबिरंगी छाता, फ्रॉक पहने हुए दो पैरों पर चलती है। शांत स्वभाव की है, हर किसी से घुल-मिल जाती है।” मैंने उसकी तरफ हाथ बढाया तो वह भी दुम हिलाते पास आ गई ओैर हाथ में हाथ देते हुए दो पैरों पर चलने लगी। दो-तीन राऊंड के बाद चिंकी ने उसके हाथ में छाता दिया तो बडे शान से उसे लेकर चलने लगी।

    “ श्रवण, आज तू यह खेल स्टेज पर करेगा।” विक्रमभाई पीछे से बोले। वह कब आ गए पताही नही चला। मैं तो एकदम से चौंक गया। इतने लोगों के सामने कभी खडा नही हुआ था, यह कल्पना भी मुझे डर का आभास दे रही थी। “ मुझे एकदम से ऐसे स्टेज पर काम करना मुश्किल लग रहा है, मैं नही कर पाऊंगा।” डरते-डरते विक्रमभाई को कहा।

   “ डर मत श्रवण, तुम्हारा उसके साथ का ट्युनिंग देखकर ही मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ। कभी ना कभी तो तुम स्टेज पर जाओगे ना, वह दिन अब आ गया ऐसा समझ ले। तुम्हे कुछ खास तो करना नही है। सिर्फ लुसी को लेकर घुमना है, वह भी पांच मिनिट।” मैं कुछ हाँ, ना बोलने से पहले ही वे वहाँ से चले गए। अंदर से डरा हुआ मैं ऐसे ही खडा रहा। मानसिक तैयारी के बिना स्टेज पर जाना एक चुनौती जैसा लग रहा था। मेरी अवस्था जानकर वह तीनों पास आए ओैर समझाने लगे “ श्रव्या, इतना क्युं टेंशन ले रहा है? प्रॅक्टिस किए बिना ऐसे छोटे-बडे परफॉर्मन्स तू आराम से कर सकता है। इस कारण स्टेज पर कैसे, कहाँ खडे रहना है, चेहरे पर मुस्कान कैसे हमेशा रखनी है, यह बाते तू स्टेज के बाहर सिर्फ सोचते हुए नही कर सकता। खुद स्टेज पर जाएगा तभी जान पाएगा। फिर तुम्हे कोई भी कठिन करतब दिखाने के लिए आसान हो जाएगा। स्टेज का भय मन में ना रहते तुम अपने काम पर एकाग्र हो सकोगे।” मन्या मुझे समझा रहा था। अब पानी में गिर गए डुबने के बजाय तो हाँथ-पाँव तो हिलाने ही पडेंगे, ऐसी अवस्था मेरी हो गई थी। इस घटना का सामना तो करना ही पडेगा। वैसे देखा जाय तो मैं कभी स्टेज पर खडा नही रहा ऐसी बात तो नही थी। पाठशाला में गायन स्पर्धा, किसी विषय पर अपने विचार व्यक्त करना इसमें सहभाग तो रहा था। अव्वल भी आता था, पर उस वातावरण से मैं परिचित था। यहा सब अनजान, नाना तरह के लोग, इसलिए थोडा डर गया। पर अब मैंने भी ठान लिया यह करना है। फिर सब मिलकर मुझे कैसे करना है यह समझाने लगे। स्टेज पर हाँथ हिलाते कैसे आना है, चेहरे पर मुस्कान रखकर कैसे चलना है यह क्रिया उन्होंने मुझसे दस बार करवा ली तब मुझे कॉन्फिडन्स आ गया। उसके बाद लुसी के साथ दस राऊंड लगवाए। लुसी तो ट्रेंड ही थी, वह चलती रही। उसको जो सिखाया था वह करती रही। जब तक हमारी टीम का समाधान नही हुआ तब तक मुझे सिखाते रहे फिर आखरी में तालीयों के गुंज में मेरा हौसला बढाया।

        प्रॅक्टिस का समय खतम हो गया, अभी खाना खाकर अपने-अपने काम के लिए जाना था। चिंकी निकल गई, हम तीनों मिलकर रसोईघर की तरफ बढे। गोदाक्का से थोडी बातचीत करने के बाद मैंने अपने थाली में रोटी, सब्जी, सलेड लिया ओैर हमारे ग्रुप की जो जगह थी वहाँ बैठ गया। धीरज, जमनादास, मन्या, पक्या, अनिल पहले ही अपनी थाली लेकर वहाँ बैठे थे। गपशप में खाना कब खतम हुआ पता ही नही चला। हाथ धोते समय आज का किस्सा धीरज को बताया तो वह खुष हो गया ओैर बोला “ यहा ऐसी ही रीत है, पहले तुम्हे छोटे-छोटे काम में तरबेज करते है ओैर आगे ले जाते है। मैं भी सीखते-सीखते झुले तक आया हूँ। बाद में जानवरों का विभाग आ जाएगा। इस में कही सख्ती नही है, तुम करना चाहो करो। जिम्नॅस्टिक, वादक, रिंगमास्टर यह अपना पेशा नही बदलते। चल देर हो रही है, तुम्हे जयंती से मिलवाता हूँ।” जल्दी-जल्दी में हम दोनों मेकप रूम की तरफ गए। वहाँ अभी तक कोई आया नही था।

       अच्छे नाक-नक्ष वाली तीस-पैतीस की महिला मेकप का सामान दो लडकियों को निकालकर दे रही थी। धीरज उसके पास गया “ जयंती, ये है श्रवण, आज से यहाँ काम करेगा।” बडे ममता से बात करते हुए जयंती बोली “ हाँ, मुझे अरुणसर ने बताया है। मैं राह ही देख रही थी। पहले भी दो-चार दिन तुम यहाँ काम कर रहे थे ना, मैंने देखा है तुझे। मन लगाकर काम करता है। आजा बैठ यहाँ।” मुझे जयंती के पास छोडकर धीरज अपने काम के लिए निकल गया। मुझे मेकप के सामान दिखाते हुए जयंती बात करने लगी “ वैसे देखा जाय तो मेकप आर्टिस्ट का काम लडकियों को जादा पसंद आता है, तुम्हे यहाँ काम करना कैसे पसंद आ गया?”

      “ इतने दिन में जरा यही काम कम मेहनत का ओैर महत्वपूर्ण लगा। ऐसी बात नही है की मैं काम से जी चुरा रहा हूँ। पर अभी भी कुछ जादा जानकारी नही है तो सोचा, जो समझ आता है वही से शुरुवात करते है।”

      “ अच्छा है। कोई भी काम छोटा-बडा नही होता, काम करने में मजा आना जरुरी है।”

  मेरे खयाल से जयंती भी जिम्नॅस्टिक करती होंगी। उसके देहयष्टी से लग रहा था। कुछ गुढ भाव चेहरे पर मँडरा रहे थे।

    “ तुम भी स्टेज पर काम करने वाले हो ?” उसकी बातों से मैं सजग हो गया।

    “ हाँ, लुसी के साथ का खेल दिया है। शो के मध्य में आता है। खेल का समय हो जाएगा तब मन्या मुझे बुलाने आएगा।”

    “ अच्छा ठीक है, तो तुम अब जोकर का मेकप शुरू करो। पहले उनका मेकप जरूरी होता है। अभी आ जाएँगे वह लोग। खेल के वक्त पहनने का ड्रेस तुम लाए हो क्या?”

    “ नही, मन्या ही लेकर आनेवाला है, यही तैयार होकर आने के लिए मुझे कहा गया है।”

   सामने से राजू, पपलू आते दिख गए तो जयंती मेकप स्टँड के पास लेकर गई ओैर बोली “ अभी मैंने कितना भी मेकप के बारे में बताया तो भी जादा समझ नही पाओगे। रोज काम करते-करते आठ दिन में क्रीम, लोशन के नाम, उनका लगाने का तरीका, क्रम सब समझ में आ जाएगा। आज तुम्हे जैसा बता रही हूँ वैसे करते जाना।” मैंने हाँ कर दी ओैर हमारा काम शुरू हो गया। राजू, पपलू सामने कुर्सी में बैठ गए।

    जयंती बताने लगी “ व्यावसायिक कलाकार ऑइल बेस के मेकप लगाते है, उस कारण मेकप जलदी खराब नही होता है। पसीना आ गया तो भी चेहेरे पर की चमक वैसी ही रहती है। लाइट्स के इफेक्टस से त्वचा ओैर भी निखरी, सुंदर दिखती है। पहले यह टोनल फाउंडेशन लगाना है।” हाथ में एक डिब्बी देकर, क्रीम राजू के चेहरे पर लगाने के लिए कहा ओैर वह पपलू के चेहरे पर क्रीम लगाने लगी। वह कैसा कर रही है यह देखते-देखते काम करने में मुझे जरा देर हो रही थी पर उसने ऐसा कुछ जताया नही। पहले पुरे चेहरे पर लोशन के डॉटस लगाते हुए एक स्पंज से उसे फैलाने लगी। पुरे चेहरे पर फाउंडेशन लगाने के बाद, उसके उपर सफेद रंग का स्कीन पेंट लगाया। होंठ ओैर हनुवटी को लाल रंग से रंगाया। गालों पर लाल गुब्बारे, काले रंग में आँखों के उपर का हिस्सा ओैर नीचे वाला हिस्सा गोलाकार में रंगाया। उसके उपर भोए रँगवाकर नाक पर लाल गोल बनाया। होठ लाल लिपस्टिक से रंगाए। चेहरे पर लाल रंग का बहुत इस्तमाल किया था तो भी उसमें विविध छटाए थी। ब्राइट रेड, वॉटर बेस रेड कलर, ब्राऊन रेड यह सब बाद में धीरे-धीरे समझ आने लगे। सिर पर विग पहना दिया। दोनों जोकर का ड्रेस पहनकर ही आए थे, उपर से एप्रन डालकर मेकप के लिए बैठ गए थे। दोनों का मेकप पुरा हो गया। मुझे जैसा समझ में आया वैसे करता गया, जहाँ कही लाइट डार्क पॅच हो गए थे वहाँ जयंती ने ठीक कर दिया। कमरे में अब भीड हो गई, शोरगुल में कोई किसी की बात नही सुन पा रहा था। जयंती के असिस्टंट ने बाकी लोगों का मेकप शुरू कर दिया था। कुछ लडके-लडकियों ने अपना खुद का मेकप करना शुरू किया।

      जयंती ने कहा “ कुछ ऐसे खेल है जिनको मेकप की जादा जरूरी नही होती। जोकर के को ही समय लगता है।” दो लोग मेरे ओैर जयंती के सामने बैठ गए। उनको टोनल

फाउंडेशन लगाना शुरू कर दिया। काम करते-करते वह बताने लगी “ क्रीम फूड कलरींग कॉर्नस्टार्च, सॉफ्ट वेक्स, व्हॅसलिन यह सब पानी में एकत्रित करते हुए रखना है ओैर दो खेलों के बीच में इससे सबका टचअप करवाना है।” सामने बैठे चेहेरे पर फाउंडेशन के बिंदू उगलीयों से फैलाकर एक-दुसरे में मिक्स कर दिए ओैर गला, गर्दन, चेहरा पुरा किया, मुझसे जितना होता है उतना करने के बाद आखरी में सब ठीक करने लगी। मुझे भी दो-चार लोगों के चेहेरे पर प्रॅक्टिस होने के बाद थोडा बहुत कैसे करना है यह समझ में आने लगा। फिर मन लगाकर मैंने भी काम शुरू रखा।

      बॅंड शुरू हो गया। बाहर चारों ओर कोलाहल मच गया था। जबलपूर में सर्कस का पहला दिन था तो यहाँ के महापौर श्री. मेहता जी के हाथ से समारोह का उद्घाटन होनेवाला था। मैंने फिरसे मेकप की ओर अपना लक्ष केंद्रित किया। बच्चों को टोनल फाउंडेशन ओैर कॉम्पॅक्ट पावडर पफ से लगाना था, भोवों पर डार्क क्रीम लगाकर उसे हायलाइट किया जाता। हेअर क्रिम लगाने के बाद हर एक अपने-अपने हेअर स्टाइल बना लेता था। आदमी लोगों के कपडे पुरे शरीर ढकने वाले थे तो सिर्फ गला, गर्दन, चेहरा, हाथ के तलवे ही खुले दिखते थे, सिर्फ वही पर बेस फाउंडेशन लगाया जाता। लडकियों को भी स्टॉकींग्ज के कपडे से पुरा शरीर ढकना पडता फिर उपर लाल रंग के दो कपडे पहनने पडते थे। दूर से देखनेवाले समझते की उस लडकी ने सिर्फ दो कपडे पहने है। लिपस्टिक यह लडकियों का मेकप था। कुत्ते, तोते या पंछियों का खेल करनेवाली लडकियों का जिप्सी ड्रेस था। अरेबियन लोगों जैसा ड्रेस, फॅशनेबल झुमके, पाँव में रंगबिरंगी जोडा, आकर्षक लंबे बालों की नजाकत, फुल मेकप मतलब आय मेकप, रूज, चीक बो, चीन ऐसा रहता था। यह तो सब बाद में धीरे-धीरे पता चला।

      थोडी देर के बाद मन्या पहुंचा ओैर मुझे भी मेकप कर के तैयार होने के लिए कहा। उसके हाथ में जो ड्रेस था वह देखकर मैं तो चोंक गया। शादी के बारात में बॅंड वाले जैसा ड्रेस पहनते है वैसा लाल रंग का गोल्डन पॅच वाला टाईट पॅन्ट शर्ट था। काले गम शू ओैर सफेद हाथमोजे। वैसे तो सब लडकों के ऐसे ही ड्रेस थे लेकिन मेरे शरीर पर ऐसा ड्रेस होगा यह मैंने कल्पना भी नही की थी। चमकिले ड्रेस पहनने की कभी आदत नही थी लेकिन अब सोच लिया जो भी स्थिती सामने आएगी उस से पार निकल जाना है। ड्रेस रूम में ड्रेस पहन कर आ गया। पॅन्ट तो छोटी भी थी ओैर टाईट भी, लेकिन गमबुट में वह छुप गया। बाकी तो ठीक ही था। जयंती बोली “ शरद को समझ आ जाता है हर एक का मेजरमेन्ट। बाद में तुम उससे मिलना ओैर अपना नाप देकर तीन जोडी सिलवा लेना। टाईट कपडे मत पहनना, बाद में तकलीफ होती है।” जयंती के सामने मेकप के लिए बैठ गया। मुझे किसी लडकी के हाथ की या महिला के स्पर्श की आदत नही थी, इस वजह से कुछ अटपटा सा लग रहा था। जयंती को वह बात समझ आ गई “ श्रवण, अपने बडी बहन जैसे समझना, मुझसे ऑकवर्ड मत रहना। धीरे-धीरे सबकी आदत हो जाएगी। पहले यहाँ आदमी लोग भी काम करते थे लेकिन लफडा ही जादा होने लगा इसलिए अरुणसर ने मेकप का काम लडकिया करेंगी ओैर सिलाई का काम लडके, ऐसे विभाजन कर दिया। फिर भी जो होना होता है वह तो होकर ही रहता है फिलहाल काम शुरू है। अब ये दो लडकियों से तुम्हारी पहचान करवा देती हूँ। ये है सिंड्रेला, झुले के कसरत करती है। जिप्सी डाँस, चक्कू के खेल भी करती है। शो के आखरी में इसका अॅक्ट रहता है इसलिए मेकप का विभाग वह सँभाल सकती है।” बातो-बातों में मेरा मेकप खतम हो गया। जयंती ने आईने में देखने के लिए कहा, देखा तो कुछ अलग रुप ही दिखाई दे रहा था। मेरे आकर्षक व्यक्तिमत्व को चार चाँद लग गए, ऐसा लग रहा था। वह देख के मुझ में एक तरह का आत्मविश्वास महसुस हो गया। जयंती के ध्यान में ये बात आते ही वह मुस्कुराने लगी, तो मैं भी मुस्कुराया। मन्या मुझे लेने के लिए आ गया, मुझे देखते ही बोला “ अरे, कितना हॅंडसम लग रहा है तू। आज तो सब सर्कस, प्रेक्षक भी तुझपे फिदा हो जाएँगे।” मन्या की बात सुनकर हम सब ठहाके लगाकर हँसने लगे। सिंड्रेला का राधा के जैसा हँसना कही छु गया।

     मन्या के साथ खेल के तंबू में आया। जिनका खेल अभी शुरू होनेवाला था वह स्टेज के द्वार पर खडे हो गए थे, उनके बाद हमारा खेल था। अरुणसर का यह कडा अनुशासन था कि एक के बाद एक खेल शुरू रहने चाहिये कोई ठहराव बीच में आना उनको कतही पसंद नही था। उनका यह भी कहना था की इससे कलाकारों के मन में भी वातावरण निर्मिती होती है। हमारे सामने का ग्रुप स्टेज पर गया, तो हम भी अपने डॉगी ओैर बाकी सामान लेकर तैयार खडे रहे। चिंकी के पास बॅंड ओैर उसका बॉबी, मन्या के हाथ में बडी सी रिंग ओैर चार पामेलियन कुत्ते, पक्या के गर्दन पर उसका छोटा डॉगी बैठा हुआ था। मेरे बाजू में लुसी आराम से खडी थी। वह जितनी आराम से खडी थी उतना ही मैं टेंशन में था। पक्या बता रहा था, स्टेज पर के कलाकारों को देख, वह कैसे कर रहे है उसका निरीक्षण कर ले। प्रेक्षक लोगों की तरफ जादा मत देखना आराम से काम करना। पहले का खेल समाप्त हो गया वह सब हाथ हिलाते, प्रेक्षकों को अभिवादन करते हुए दुसरे बाजू से निकल गए। अब हमारे टीम के साथी, एक-एक प्रदर्शन करते हुए आगे बढने लगे। चिंकी का नखरा, मैं तो देखता ही रह गया। पक्या, मन्या का रुबाब से किया हुआ खेल मन को भा गया। मैंने भी तय कर लिया बिना डरे काम करूँगा। मेरा नंबर आते ही स्टेज पर जाकर हँसते हुए प्रेक्षकों को अभिवादन किया। मन में तो डर के हजारों बॉम्ब फुट रहे थे पर चेहरे पर कुछ न दिखाई दिया। लुसी का हाथ पकडकर स्टेज के चक्कर काटने लगा, फिर रंगीन छाता पकडकर लुसी ने अपना करतब दिखाने के बाद लोगों को अभिवादन करते हुए दुसरे विंग से हम दोनो बाहर निकल गए। पक्या,चिंकी चिल्लाते हुए मेरे पास आए, अरे, कितना अच्छा किया तुम ने। ऐसे ही डर रहे थे। मुझे भी एकदम से हल्का-हल्का महसुस होने लगा। वैसे देखा जाय तो मैंने कोई कलाकारी नही दिखायी थी, लेकिन एक नया अनुभव मेरे तन-मन पर जादू कर गया। अब एक तरह का आत्मविश्वास मुझमें जग गया था। आगे के खेल का टेंशन अब समाप्त हो गया। मैं कमरे की ओर गया, चाचाजी ने जो बताया था वह चीजे करने की मैने ठान ली थी। कमरे में पलंग पर पडते ही निंद ने मुझे घेर लिया।

       कुछ जादा देर तो मैं सोया नही था। धीरज के आवाज से मेरी नींद खुल गई। वह चाय पीने के लिए चलने कह रहा था। दोनों एक-दुसरे के खेल के बारे में बात करते-करते ही रसोईघर की तरफ बढे। बटाटेवडा ओैर चाय लेकर अपने अड्डे पर बैठ गए। हम दोनों को जल्दी ही काम पर जाना था। धीरज जानवरों को पानी पिलाने गया ओैर मैं मेकप रूम में। जाते-जाते किसी से दो शब्द बोलना या उसकी तरफ हाथ हिलाते चल रहा था। इतने में चंदूभैय्या ने आवाज दी “ श्रवण, आज तुमने स्टेज पर खेल दिखाया, जच रहा है यह पहनावा  तुम पर।” मुसकुराते हुए उनके पास गया ओैर कहा “ विक्रमभाईने आदेश दिया तो करना अनिवार्य हो गया। मेरी तो हालत ही खराब हो गई थी। अभी भी इस पहनावे में कुछ अजीब सा महसुस कर रहा हूँ। मेरे पाठशाला के दोस्तों ने इन कपडों में मुझे देखा तो वह हँसते-हँसते बेहाल हो जाएँगे। पर अब थोडा ठीक लग रहा है। खेल करने की हिंम्मत आ गई है।”

     “ हाँ श्रवण, एसे ही होता है, कल्पना में ही आदमी जादा डर जाता है, फिर छोटी सी बात भी पहाड बन जाती है। सोचते बैठोगे तो नकारात्मक विचार ही मँडराने लगते है। जो क्रिया अनिवार्य है वह कर डालना ही बेहतर होता है। इससे हमारा जीवन, एक प्रवाहधारा बनते हुए तेजी से आगे निकल जाता है।”

     थोडी देर गपशप करते हुए हम फिर काम में लग गए। मेकपरूम में सिंड्रेला, श्वेता ओैर जयंती का काम शुरू हो गया था। मुझे देखते ही जयंती ने कॉम्पॅक्ट पावडर का पफ मेरे हाथ में थमा दिया ओैर सबके चेहरे पर लगाने के लिए कहा। जो भी मेरे सामने आता उसे पावडर लगाकर फिर आईब्रो डार्क कर देता ओैर लिपस्टिक का एक लेअर लगा देता। टचअप करने के बाद एक-एक करते हुए लोग बाहर जाने लगे। दुसरा शो शुरू हो गया था। मैं भी टचअप लगाकर तैयार हो गया। मेकप करते समय गपशप, खेल के बारें में कुछ महत्वपूर्ण जानकारिया, विनोदपूर्ण घटनाए एसी बाते हो रही थी। मेरे खेल के बारें में कुछ चिढाने का माहोल बन गया था, उसमें उपहास नही था क्युँ की सब लोग इसी अवस्था से गुजरे थे। दुसरे शो के वक्त मेरा खेल का पार्ट ओैर आत्मविश्वास से निभाया। फिर समय का पहिया घुमता रहा, आखरी शो खतम हो गया फिरसे मेकपरूम में जाना था सबके चेहेरे क्लीन्जिग मिल्क से पोंछ दिए जाते फिर अपनी-अपनी साफ सफाई करते हुए सब रसोईघर के तरफ बढते। अपना काम खतम करने के बाद मैं भी रसोईघर गया। अब थकान महसुस हो रही थी।

     रात का खाना परिपूर्ण था। गोदाक्का के हाथ के बने व्यंजन हमेशा स्वादपूर्ण होते है यह अब तक मैं समझ चुका था। सॅलेड, आचार, रोटी, दाल-चावल, छाछ सब अपने थाली में परोसकर लिया, हफ्ते में दो बार चिकन या मटन रहता हैं पक्या ने बताया। हमारी गँग थाली लेकर अपने जगह पर बैठ गई। भुखे, थके-हारे हम पहले खाने पर टुट पडे। फिर गपशप में लग गए। जबलपूर की पब्लिक, पहला शो, इसपर चर्चा चलती रही। खाना खाने के बाद सब लोग इधर-उधर निकल गए। धीरज ने कहा चलो थोडा घुमके आते है। आकाश में  बादल जमा हो गए थे। ठंडी हवा आल्हाददायक महसुस हो रही थी। थोडी देर शांती से घुमते रहे। सुबह की आधी-अधुरी बात याद आतेही धीरज को पुछा “ धीरज, सुबह तुम जयंती के बारे में बताने वाले थे ना?”

      “ हा, जयंती कर्नाटक की जिम्नॅस्टिक, स्टेट लेव्हल तक खेली है। इंग्लिश पर प्रभुत्व, जैसे-जैसे मेडल्स मिलते गए वैसे-वैसे उसका अहंकार बढता गया। कोच के साथ भी झगडना उसने शुरू किया। जयंती जिस स्पर्धा में जाएगी वहाँ बिना झगडा हुए स्पर्धा होना भी मुश्किल हो गया। दिखने में अच्छी थी तो लडके भी उसके आगे-पीछे घुमते रहते थे। बाद में उसके झगडालू स्वभाव के कारण कई स्पर्धावालोंने उसे प्रतिबंध लगाने शुरू किए तो वह ओैर भी झगडने लगी, व्यवस्थापन पर आरोप लगाने लगी। बाकी लोगों का तो कुछ बिगडा नही जयंती की ही बदनामी हो गई ओैर वह डिप्रेशन में चली गई। जिस डॉक्टर से वह ट्रीटमेंट ले रही थी उसी डॉक्टर से शादी कर ली। कुछ दिन तो अच्छे गए, उसे बच्चे नही हुए ओैर सास से भी झगडे शुरू हुए, ऐसे हालात में वह फिरसे डिप्रेशन में चली गई। बुढी माँ ओैर पत्नी दोनों के बीच में डॉक्टर की हालत भी खराब होने लगी। कोई भी किसी को मानसिक आधार देने में असमर्थ हो गया। एसे में डॉक्टर की माँ चल बसी। डॉक्टर को इस बात का गहरा सदमा पहुँचा ओैर वह कोमा में गए। जयंती को अब एहसास हुआ की झगडे से मैने अपना करिअर, सास, पती सब गवाया। दो साल तक घर में रोते हुए निकाले, उसके स्वभाव के कारण कोई भी उसे मदत करने आगे नही आया। मायका पास होते हुए भी उन्होंने भी दुरियाँ बनाए रखी। डॉक्टर कोमा में थे तो अब घर में कोई कमानेवाला नही था। जमापुँजी कब तक काम आती, उनके ट्रीटमेंट पर भी भारी खर्चा हो रहा था। वास्तव ने उसकी आँखे खोल दी। किस बलबुते पर मैंने ऐसा बरताव किया, इसका अभी अहसास होने लगा। जीवन सुधारने के लिए उसकी कोशिश चालू हो गई। बढती उम्र के कारण अब खेलना तो मुश्किल था तो कोच के रुप में काम शुरू करने का इरादा बना लिया, लेकिन वह जहाँ भी जाती उसकी बदनामी पहले पहुँच जाती तो किसी ने भी काम देने से मना कर दिया। बाद में एक सहेली उसके संपर्क मे आ गई तो उसने सर्कस में जिम्नॅस्टिक के तोर पर काम मिल सकता है ऐसी बात बता दी। कुछ ओैर सहारा नही था तो आखरी में यही काम ढुंढना शुरू किया ऐसे में अरुणसर के संपर्क में वह आ गई ओैर सर्कस जॉइन की। उसके शरीर में बहुत लवचिकता थी। गोरी चिट्टी, चित्तवेधक खेल, ओैर सबसे महत्वपूर्ण बात तो उसके स्वभाव में आया परिवर्तन इस कारण वह सबकी चहेती बन गई। अपने पती की देखभाल भी अच्छी तरह से करने लगी। अरुणसर ने उसकी बहुत मदद की। चार-पाँच साल तो ऐसेही निकल गए। सब ठीक चल रहा था, लेकिन डॉक्टर कोमा से बाहर नही निकल पा रहे थे ओैर कब तक यह चलेगा ये तो एक सवाल बनने लगा। उनकी तबियत थोडी उपर-नीचे हो गई की जयंती की मानसिक स्थिती बिघडने लगी. डॉक्टर के एसे हालात को जिम्मेदार मानकर खुदको कोसने लगी। इस हालत में जॉनभाई ने भी उसकी बहुत मदद की। उनकी पत्नी उनके बिमारी के कारण छोडकर चली गई थी, यह समान धागे ने दोनों के रिश्तों को बांध दिया। शारीरिक, मानसिक रुप में दोनों एक-दुसरे के पास आ गए ओैर दोनो अब स्थिर हो गए है। जयंती का पती कोमा से बाहर आना मुश्किल है यह बात इलाज कर रहे डॉक्टर ने बता दी थी तो जितना कर सकते है उतना सब किया ऐसी मानसिक धारणा मन में रखते हुए अब वह उस स्थिती से बाहर निकल चुकी है। सबको उन दोनों के रिश्ते के बारे में सब पता है लेकिन कोई उनका मजाक नही उडाता क्युं की दोनों जीवन के कौनसी परिस्थिती से गुजरे है इससे वाकीब है। यहाँ हर किसी को कोई ना कोई समस्या तो है इसलिए सब एक-दुसरे की मदत करते है। झगडे तो होते रहते है लेकिन जलद ही खतम भी हो जाते है। कभी कोई बडा हादसा हुआ तो अरुणसर उसे सुलझा देते है। एक-दो ही घटनाए एसी घटी की उन लोगों का अपराध अक्षम्य था तो सर्कस छोडकर जाना पडा। पिछले साल जयंती खेल करते समय उपर से गिर गई तब से उसने जिम्नॅस्टिक करना बंद कर दिया। मेकप का प्रशिक्षण लेकर वह काम शुरू किया ओैर व्यवस्थापन में भी वह अरुणसर का हाथ बटाती है। इंग्लिश अच्छा होने के कारण काम एकदम परफेक्ट कर देती है। इमानदार ओैर सब से संबंध अच्छे बनाए रखती है। यहाँ के लडके-लडकियों का समुपदेशन भी वही करती है, सिर्फ हॉस्पिटल से फोन आया तो बिखर जाती है। अब जो उसने दुनिया खडी की है कही उसको नजर ना लग जाए। यह विचार मन में हैं। अब उसे डर लगता है की कही पती ठीक हो गया तो फिर घर जाना पडेगा जो वह अब नही चाहती।”

     बापरे, यह सब सुनकर मैं तो सुन्न रह गया। कितने कठिन परिस्थितीयों से लोग गुजरते है, मुश्किलों से लडते-झगडते है, ओैर उस संकट से बाहर भी निकल आते है। सब अनाकलनीय था। इसमें अरुणसर कितना बडा योगदान देते है इसका भी एहसास हो गया। खेल-खेल में लिया हुआ मेरा निर्णय केवल अकेले का उद्दिष्ट पुरा नही करेगा वह तो सब के भावविश्व से जुडा रहेगा। यह तो सिर्फ पहली मंजिल थी।

      धीरे-धीरे मैं वहाँ सेटल होने लगा। छोटे-बडे खेल अब स्टेज पर करने में माहीर हो गया। मिठे स्वभाव के कारण मेरे इर्द-गिर्द हमेशा लोग मँडराते रहते। जयंती तो छोटे भाई जैसा मुझसे प्यार करती। मैंने तीन महिनों में मेकप के नानाविध पाठ सीख लिए। सामान का ऑर्डर देना, माल लेकर आना, हिसाब रखना इसमें अब होशियार हो गया। तीन महिने के बाद अरुणसर से खास मुलाकात का दिन तय हो गया। अब मुझे दुसरे विभाग में काम करना था। जयंती, श्वेता, सिंड्रेला सबको थोडा बुरा लग रहा था, हमारी चारों की टीम अच्छी जम गई थी। मैं यही था फिर भी मेकप करते वक्त हमारा जो हँसी-मजाक चलता उसे अब खोना पडेगा। नयी मंजिल की ओर अब कदम बढाने का समय आ गया था।

                                                     .......................................................................................