धीरे-धीरे वक़्त गुजरता रहा लेकिन कंगन वापस लाने का इंतज़ाम ना हो पाया। आर्थिक परिस्थिति के कारण उस कंगन के जोड़े को उनके परिवार ने सच में भुला दिया और उन्हें साहूकार को बेच दिया। अब तक ब्याज इतना हो चुका था कि कुछ पैसे भी इन लोगों के हाथ नहीं लगे।
कुशल ने कहा, “माँ मुझे माफ़ कर देना मैं आपके कंगन ना छुड़ा पाया।”
“कुशल यह क्या कह रहा है तू? आगे से ऐसे शब्द कभी मुँह से नहीं निकालना। हम सब साथ-साथ हैं, इतने प्यार से रहते हैं, वही तो हमारी असली पूंजी है। दौलत का क्या है, वह तो आती जाती रहती है। मैं तो खुश हूँ कि वह कंगन हमारे परिवार के काम आ गए और उन्हीं कंगनों के कारण हम सुकून से रह सके वरना यदि कर्ज़ ले लिया होता तो रातों की नींद उड़ जाती।”
इसी बीच कुशल के पिता की तबीयत कुछ ज़्यादा ही खराब रहने लगी। सब ने उनकी बहुत सेवा की लेकिन फिर भी जाने वाले को भला कौन रोक सकता है। लगभग एक माह के बाद उनका स्वर्गवास हो गया। उनकी मृत्यु के कारण घर में शोक का माहौल था। उनके अंतिम संस्कार के बाद सारे विधि विधान, सब कुछ एकदम साधारण तरह से निपटा दिया गया।
कुशल और सोनम ने यह निश्चय कर लिया था कि बहुत लंबा चौड़ा कार्यक्रम नहीं होगा। केवल पांच पंडितों को भोजन करा देंगे। रिश्तेदारों ने इस बात पर नाक मुँह भी चढ़ाया लेकिन कुशल का फ़ैसला अंतिम फ़ैसला था। पूजा पाठ विधि विधान से कर दिया गया लेकिन सामूहिक भोजन नकार दिया गया। यह ठीक भी था कर्ज़ लेकर किसी को खिलाने से अच्छा था कि जितनी चादर है उतने ही पैर पसारे जाएं। वक़्त के साथ लोग सब भूल जाते हैं।
कुशल के पिताजी की मृत्यु के बाद उनकी दवा दारू पर ख़र्च होने वाला पैसा बचने लगा। धीरे-धीरे सारिका भी जवान हो रही थी। स्कूल फिर उसके बाद कॉलेज में आ गई थी। वह पढ़ने लिखने में एकदम साधारण थी तथा बी ए कर रही थी।
जब वह छोटी थी तभी घर में अनामिका, सोनम और कुशल ने मिलकर एक निर्णय ले लिया था कि सारिका की शादी होने से पहले उसके लिए गहनों का बंदोबस्त हो जाना चाहिए। वे जानते थे कि सारिका को बचपन से गहनों का कितना शौक है। हर रोज़ गले में माला, हाथों में कंगन, पाँव में पायल वह पहनती ही थी। नकली ही सही लेकिन उनसे भी शौक तो पूरा होता है ना।
सारिका बहुत ही अच्छी बेटी थी। घर के हालात को बखूबी समझती थी और कभी भी किसी भी महंगी वस्तु की मांग नहीं करती थी। बच्चे जैसा देखते हैं वैसा ही तो सीखते हैं। उसने भी घर में सबको देखा था कि कितना सोच समझ कर बजट बनाया जाता है। उसने भी वही सीखा था। बस जब कभी भी राखी या दीपावली पर मौका मिलता वह नकली गहने खरीद लाती। उन्हें पहनकर आईने के सामने ख़ुद को निहारती और खुश होती।
देखते-देखते सोनम अब 20 साल की हो गई। उसके लिए अनामिका और कुशल ने कुछ गहने भी बनवा कर बैंक के लॉकर में रख लिए।
अब सारिका की शादी के लिए लड़का ढूँढने का सिलसिला भी शुरू हो गया। कुछ लड़के देखने के बाद उन्हें एक लड़का रजत और उसका परिवार दोनों ही पसंद आ गए। संपन्न परिवार होने के साथ-साथ रजत और उसके माता पिता बहुत ही सरल स्वभाव के लग रहे थे। रजत ने भी सारिका को पसंद कर लिया और इस तरह से बात पक्की हो गई।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः