सोने के कंगन - भाग - ७ Ratna Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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सोने के कंगन - भाग - ७

एक दिन सारिका रजत के साथ घूमने जा रही थी। वे दोनों तैयार होकर जैसे ही नीचे आए सारिका के कदम कार पार्किंग की तरफ़ मुड़ गए। परंतु ये क्या …? पार्किंग से कार नदारद थी।

उसने चौंकते हुए रजत को आवाज़ लगाई, “रजत देखो अपनी कार यहाँ नहीं है।”

रजत ने कहा, “अरे हाँ कार सर्विसिंग के लिए गई है। मैं तुम्हें बताना भूल गया।”

रजत की आवाज़ में विश्वास कम और डर ज़्यादा झलक रहा था।

उसने कहा, “चलो हम स्कूटर से चलते हैं।”

“हाँ ठीक है चलो। वैसे कार कब तक वापस आएगी?”

“पता नहीं सारिका तीन-चार दिन लगेंगे।”

“क्यों इतना समय …?”

“अरे एक पार्ट खराब हो गया है। वह मिल नहीं रहा है।”

“ठीक है,” कहते हुए सारिका स्कूटर पर बैठ गई।

जाते वक़्त भी सारिका ने रजत से पूछा, “रजत सच बताओ क्या परेशानी है? शायद हम मिलकर कुछ रास्ता निकाल लें।”

“कुछ भी तो नहीं सारिका तुम बेवजह ही चिंता कर रही हो।”

दिन बीतते जा रहे थे। घर में मायूसी बढ़ती ही जा रही थी। घर में अब भी कानाफूसी जारी थी। चेहरे की उदासी छुपाने पर भी उन सबके चेहरों पर झलक ही जाती थी।

आज सोनिया सज धज कर गहने पहनकर अपनी किटी पार्टी में जा रही थी।

उन्हें इतना तैयार होता देख सारिका ने कहा, “मॉम आप बहुत सुंदर लग रही हो। कहाँ जाना है मॉम?”

“बेटा किटी पार्टी है, आने में लेट होगा। आज मेरा डिनर नहीं है।”

“मॉम क्या वहाँ सभी इतना तैयार होकर आएंगे? मेरा मतलब इतनी सारी ज्वेलरी पहनकर?”

“हाँ बेटा बिल्कुल … सब एक दूसरे से ज़्यादा बढ़-चढ़ कर दिखाना चाहती हैं। रुतबे की बात है ना? हमारे पास इतने सारे गहने हैं, इतनी महंगी साड़ी है, ड्रेसेस हैं, इसलिए अपने को भी मेंटेन करना ही पड़ता है, है ना सही बात?”

अपनी मॉम के इस सवाल का जवाब सारिका देना चाहती थी पर मौका नहीं था। उसने इसलिए बात को टालते हुए कहा, पर मॉम आप सच में बहुत ही खूबसूरत लग रही हो, ” कहते हुए वह कमरे में चली गई।

अब सारिका घर में अकेली थी। तभी डोर बेल बजी। सारिका ने जाकर दरवाज़ा खोला, सामने कुरियर वाला खड़ा था।

उसने सारिका से कहा, “मैडम जी यहाँ अपने हस्ताक्षर कर दीजिए और यह लिफाफा ले लीजिए।”

“ठीक है,” कहते हुए सारिका ने हस्ताक्षर किए और दरवाज़ा बंद करके अंदर जाकर उसने वह लिफाफा खोला।

जैसे ही उसने लिफाफे के अंदर के काग़ज़ को पढ़ा तो उसके पाँव के नीचे से ज़मीन खिसक गई क्योंकि जिस ज़मीन पर इस समय वह खड़ी थी, वह इस समय उनकी थी ही नहीं। वह ज़मीन तो इस समय किसी और के कब्जे में थी, गिरवी रखी हुई थी। उसी के लिए यह नोटिस आया था।

इतने दिनों से घर में हो रही कानाफूसी और चेहरों की उदासी का राज़ इस लिफाफे में बंद होकर आया था; जो सारिका ने खोल लिया था। आज उसे समझ आ गया था कि उसका यह परिवार मुश्किल में है। संकट के बादल सामने मंडरा रहे हैं, सबको डरा रहे हैं, इसीलिए हर तरफ़ उदासी छाई है।

इस समय वह अपने हाथों में सजे उन कीमती कंगनों को निहार रही थी, जो बड़े ही प्यार से रजत ने उसे सुहाग रात के मिलन पर दिए थे। यह कंगन, सोने की चैन, झुमकी इतने सुंदर गहने, सजा-धजा बंगला, घर के सामने खड़ी कार, इन सबकी रूह में छुपी दर्द की पूरी कहानी, आज सारिका को समझ में आ रही थी।

झूठी शान और दिखावा किस तरह घर को ओर घर वालों को कमजोर कर रहा है, दिख रहा था। उसके शरीर पर जो गहने थे भले ही उनमें कितना ही प्यार क्यों ना हो, सारिका को आज वह उसके बदन पर बोझ की तरह लग रहे थे। मानो उनके वज़न से वह दब रही थी। उसे ऐसा लग रहा था उन गहनों के रूप में उसने कर्ज़ की चादर ओढ़ रखी है। वह सोच रही थी कि यहाँ तो सबके सब एक जैसे हैं। काश मेरी दादी जैसा समझाने वाला कोई यहाँ भी होता। समझाता कि चादर से बाहर पैर मत निकालो तो शायद खैर …! यहाँ उसे ही दादी के जैसे बनकर सब कुछ संभालना होगा मगर प्यार से।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः