सोने के कंगन - भाग - ८ Ratna Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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सोने के कंगन - भाग - ८

आज सारिका को अपने परिवार की डूबती हुई कश्ती के ऊपर सजी-धजी गहनों का वज़न उठा कर बैठी हुई अपनी सास सोनिया दिखाई दे रही थी। उसे आश्चर्य हो रहा था कि इन हालातों में भी मॉम तो आज भी इतने गहने पहन कर गई हैं। क्या उन्हें उनका वज़न नहीं लग रहा होगा? रजत के हाथ में तीन लाख की घड़ी …? क्या उसे सस्ती घड़ी में समय नहीं दिखेगा? क्या डैड की घड़ी भी इतनी महंगी है …? इसीलिए सही समय दिखाती है। आज उसे अपनी दादी के कंगन जो उसने कभी नहीं देखे थे केवल चर्चा में ही सुने थे, वह याद आ रहे थे कि कैसे उन कंगनों ने उसके परिवार की मदद की थी … किसी और से कर्ज़ लेने नहीं दिया था। वह ख़ुद बिक गए पर परिवार को और उसे बचा लिया। तो हमारे गहने और महंगे उपहार क्या हमें इस संकट से नहीं बचा सकते? क्या हमारे घर की इज़्ज़त को नहीं बचा सकते?

वह पूरा दिन मन में भारी पन बेचैनी लिए सोचती रही। कैसे कहूँ रजत से? क्या वह मेरी बात मानेगा? क्या मॉम-डैड तैयार होंगे? इन्हीं प्रश्नों के इर्द गिर्द उसका मन और दिमाग़ दोनों घूम रहे थे और शाम का इंतज़ार भी हो रहा था। खैर जैसे तैसे लंबा समय कट ही गया। चाँद निकल आया और रजत भी घर आ गया।

रजत को चाय नाश्ता देकर सारिका ने वह लिफाफा उसके हाथों में थमाते हुए कहा, “रजत कुरियर आया था। मैंने खोलकर पढ़ लिया।”

रजत ने हाथ में काग़ज़ निकाल कर देखा तो हड़बड़ा गया और फिर सारिका की तरफ़ देखने लगा। कुछ भी कहने की हिम्मत उसमें नहीं थी।

सारिका ने प्यार से उसके गले में अपना हाथ डालते हुए पूछा, “रजत यही समस्या है ना जो आप सब मुझसे छुपा रहे थे?”

“सारिका आई एम सॉरी, एक वर्ष पहले की बात है डैड को उनके बिज़नेस में बहुत ज़्यादा घाटा हो गया। मशीनों से निकला माल क्वालिटी में उतना परफेक्ट नहीं था, जितना हमेशा होता था। व्यापारियों ने उसे लेने से इनकार कर दिया। डैड ने उसे बनाने के लिए कच्चे माल को खरीदने में बहुत पैसे लगा दिए थे। बिज़नेस तो गिव एंड टेक पर चलता है। पापा को कच्चे माल के पैसे तो लौटाने ही पड़े। उस समय हाथ में इतना कैश नहीं था, इसलिए मकान गिरवी रखना पड़ा। हमने सोचा था इसे जल्दी छुड़ा लेंगे लेकिन हालात अब तक भी सुधर नहीं पाए हैं। शायद यह अब आसान नहीं है।”

“रजत उसके बदले यह सब ज्वेलरी वगैरह बेच दी होती तो इतना तनाव तो नहीं होता। कम से कम अपनी छत तो होती। हम सब खुश रहते।”

लेकिन सारिका समाज में एक रेपुटेशन है, उसे भी तो संभालना पड़ता है ना? मकान गिरवी रखा तो किसी को पता नहीं चलेगा पर बिना ज्वेलरी, बिना कार के कैसे …? सच में बहुत बड़ी गलती हो गई। हमें तुम्हें यह सब विवाह से पहले ही …!”

सारिका ने उसके होठों पर ऊँगली रखकर उसे आगे कुछ कहने ही नहीं दिया और कहा, “रजत यह हमारे परिवार की समस्या है। हम मिलकर उससे निपटेंगे। तुम अब अकेले नहीं हो, मैं भी हूँ तुम्हारे साथ। रजत मेरे घर की एक सच्ची कहानी है, सुनोगे?”

“हाँ सारिका ज़रूर।”

तब सारिका ने दादी के सोने के कंगन की पूरी सच्ची घटना रजत को सुना दी और उसने कहा, “रजत कंगन भले ही चले गए लेकिन हमारे परिवार को सुकून और शांति वाला जीवन दे गए। परिवार में सब खुश थे, रात को चैन से सोते थे। घर में किसी तरह का तनाव नहीं था।”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः