सोने के कंगन - भाग - ४ Ratna Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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सोने के कंगन - भाग - ४

सारिका का रिश्ता पक्का होने से इस समय घर में ख़ुशी का माहौल था, सब बेहद खुश थे।

सोनम ने अपनी बहू अनामिका से कहा, “अनामिका अब हमें वह गहने जो हमने सारिका के लिए बनवाए हैं, बैंक के लॉकर से निकाल कर सारिका को दिखा देना चाहिए।”

“हाँ माँ वह तो इन गहनों के बारे में जानती ही नहीं है। उसके लिए तो यह बहुत बड़ा सरप्राइज होगा।”

“हाँ वह बहुत ख़ुश हो जाएगी।”

सारिका अपनी शादी को लेकर बहुत ख़ुश थी। अनामिका ने गहने लाकर सारिका को दिखाते हुए उसकी ख़ुशी को दुगना कर दिया।

गहने देखते से ही सारिका चौंक गई, अचरज भरी आँखों से उसने पूछा, “मम्मी यह क्या … इतने सारे गहने …?”

“हाँ बेटा हमने यह सब गहने तुम्हारे लिए धीरे-धीरे पैसे जोड़-जोड़ कर बनवाए हैं। तुम छोटी थीं तभी से यह काम शुरू कर दिया था। थोड़ा-थोड़ा करके इतना हो गया है। वह कहते हैं ना की बूंद-बूंद से घट भरे।”

सारिका उन गहनों को बड़े ही ध्यान से देख रही थी। इस समय उसकी आँखों से सुख और दुख, ख़ुशी और ग़म के आँसुओं का संगम हो रहा था। उसकी आँखों से आँसू बहते ही जा रहे थे।

अनामिका ने कहा, “क्या हुआ सारिका तुम्हारी आँखों में आँसू?”

यूं तो सारिका नकली गहनों से खुश थी परंतु असली गहनों की चाह किसे नहीं होती। सारिका के भी रग-रग में यह चाह बसी थी लेकिन आज असली गहने देखकर उसे उतनी ख़ुशी नहीं हो रही थी। उसे उन गहनों के बीच उसके पापा के शरीर से बहता पसीना दिखाई दे रहा था। सारिका जानती थी कि उसके माता-पिता ने इतने गहने जोड़ने के लिए कितना त्याग किया है। उसने बचपन से अब तक देख रखा था कि मेहनत के हवन कुंड में उसके पापा मम्मी ने न जाने कितने सपनों की आहुति दी है। उनके सारे सपने किस तरह जल कर भस्म हो गए हैं।

उसके आँसुओं को पोछते हुए अनामिका ने कहा, “बेटा तुम बिल्कुल चिंता मत करो। तुम्हारे पापा ने कभी किसी से कर्ज़ नहीं लिया। जहाँ भी कटौती कर सकते थे, वहाँ कटौती करके यह सब जोड़ा है। सारिका बेटा यह तो वह पूंजी है जो केवल तुम्हारा शौक ही पूरा नहीं करेगी बल्कि बुरे वक़्त में काम भी आएगी।”

सोनम ने कहा, “हाँ बिटिया तुम्हारी मम्मी बिल्कुल ठीक कह रही हैं।”

“लेकिन दादी पापा मम्मा ने ख़ुद के लिए कभी कुछ किया ही नहीं …!”

“सारिका जब तुम माँ बनोगी ना, तब इन भावनाओं को अपने आप ही समझ जाओगी। उन्हीं में जियोगी और उन्हीं में खुश भी रहोगी। हर माँ-बाप अपनी औलाद के लिए वह सब करता है, जो ख़ुद के लिए नहीं कर पाता। यही सच्चाई है बेटा। खुश रहो और ख़ुशी से इन गहनों को स्वीकार करो।”

“ठीक है दादी,” कहते हुए सारिका उनके सीने से लग गई।

आज सारिका बहुत ख़ुश थी। आईने के सामने खड़े होकर वह ख़ुद को निहार रही थी। कभी झुमकी कानों से लगाती, कभी सोने का हार गले में पहनकर ख़ुश होती और कभी सोने की चूड़ियाँ पहन कर उन्हें खनखनाती।

अपनी बेटी को इस तरह से ख़ुश होता देखकर अनामिका उस सुख का अनुभव कर रही थी जो वह ख़ुद के लिए कभी ना कर पाई थी।

रात को कुशल को यह सब बताते हुए अनामिका ने कहा, “कुशल अपनी बेटी के लिए इतने गहने बनवा कर उसे देने में स्वर्गीय सुख का एहसास हो रहा है। बचपन से उसे गहनों का कितना शौक था।”

“हाँ अनामिका तुम बिल्कुल सच कह रही हो लेकिन इस बात का दुःख मुझे हमेशा रहेगा कि मैं तुम्हें कुछ भी बना कर ना दे सका।”

“कुशल तुम ऐसा मत सोचो, हम दोनों ने मिलकर सारिका के लिए जो गहने बनवाए हैं उनके कारण अब हम अपनी बेटी को शान से विदा कर सकेंगे।”

इस तरह से बातें करते हुए उन दोनों की आँख लग गई।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः