साथिया - 82 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

साथिया - 82

"नहीं नहीं..!! मैं शादी नहीं कर सकती। मैं निशांत के साथ शादी नहीं कर सकती।" सांझ ने कहा तो सब ने उसकी तरफ देखा तो वहीं सुरेंद्र की आंखें भी छोटी हो गई।

"तो मैं कौन सा मरा जा रहा हूं तेरे साथ शादी करने के लिए..!! और वैसे भी गुलाम के साथ शादी नहीं की जाती। तेरे चाचा ने बेच दिया है तुझे मेरे हाथो और अब तू मेरी गुलाम है समझी..!!" निशांत ने वापस से उसके बाल पकड़ लिए।

"तुम फालतू की बकवास बंद करो..!! यह सब बेकार है समझे..!! हम आजाद हैं कोई किसी का गुलाम नहीं है। यह सब चीजें खत्म हो गई है कोई इंसान किसी दूसरे इंसान को नहीं बेच सकता समझे तुम..!! जाने दो मुझे।" सांझ ने गुस्से से उसे घूर के देखा।

" तुम्हें शायद सीधी बात समझ नहीं आती..!! इस गांव का कानून पूरे देश के कानून से अलग चलता है, और यहां वही होगा जो हम पंच और पंचायत डिसाइड करेंगे। और हम लोग डिसाइड कर चुके हैं और तुमने जो इतनी बहस की उसकी सजा तो अब तुम्हें मिलेगी।" निशांत ने कहा और अपने साथियों को इशारा कर दिया।

वह तुरंत वहां आ गए।

काट दो इसके बाल और कर दो इसका मुंह काला उतार फेंको इसके कपड़े और घुमाओ इसे गांव मे..!!" निशांत ने दुष्टता से कहा।

"नहीं नहीं प्लीज ऐसा मत करो...!! प्लीज जाने दो मुझे सांझ।" रोते हुए बोली।


"निशु जाने दो ना...!! खत्म करो प्लीज बेटा। मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है। विनती करता हूँ।" सुरेंद्र ने दुखी होकर कहा।

" नहीं बर्दाश्त हो रहा तो खड़े क्यों है यहां पर..?? जाइए यहां से।" निशांत ने कहा।

वह लोग सांझ के बाल काटने के लिए आगे बड़े तो सुरेंद्र बीच में आ गए।

"नहीं बेटा प्लीज तुम लोग तो मेरी बात मानो..!! यह सब चीजे मत करो। अन्याय है यह.!! गलत है ईश्वर से डरो।" सुरेंद्र ने एक आखिरी कोशिश की और कैची उनसे लेकर फेंक दी।


सांझ पीछे हटने लगी तो निशांत ने आकर उसके बालों को फिर से पकड़ लिया और वही लगे पिलर पर उसका सर जोर से दे मारा। खून बहने लगा और सांझ का सिर घूम गया।

उन लोगों ने आकर सांझ के लंबे-लंबे बालों को काटने शुरू कर दिया।

सांझ एकदम से शून्य हो गई थी। अब उसने विरोध करना बंद कर दिया था। आंखों से आंसू निकल रहे थे पर मुंह से आवाज निकलनी बंद हो गई थी, शायद वो समझ गई थी कि इन जानवरों के आगे रहम की भीख मांगने का कोई फायदा नहीं है। पर सुरेंद्र अभी नहीं रुके थे। उनकी कोशिशें लगातार जारी थी।

वह लोग कालिख लेकर सांझ के मुंह पर लगाने को आगे बड़े कि तभी आगे आकर आव्या सांझ के सामने खड़ी हो गई ।

"बस कीजिए भैया और कितना नीचे गिरेंगे? भूलिए मत आप खुद एक बहन के भाई हैं।" आव्या ने कहा तो निशांत ने उसे घूर कर देखा।

"तुम यहां क्यों आई हो? जाओ घर पर.!!" निशांत बोला।

"नहीं जाऊंगी मैं बिल्कुल नहीं जाऊंगी..!! और अगर आपने अभी इनके साथ और भी कुछ भी गलत किया तो मैं कह दे रही हूं जान ले लुंगी
खुद की या आप लोगों में से किसी की।" आव्या ने वहां पड़ी कैंची उठाकर गुस्से से कहा और सांझ को घर ले जाने लगी।

आव्या के चौपाल पर आते ही उस लड़के ने वीडियो बनाना बंद कर दिया था क्योंकि गांव की किसी और लड़की का नाम खासकर नीशु की बहिन इस वीडियो में आए या किसी भी तरह की हरकत हो तो निशांत उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा वह लड़का जानता था। इसलिए अक्षत को उसके आगे के बारे में कुछ भी नहीं पता था।

" सांझ दीदी चलिए!" आव्या ने सांझ को उठाया और जैसे ही जाने को बढ़ी निशांत सामने आ गया।

"छोड़ दो उसे यहीं पर और जाओ यहां से..?" निशांत बोला

" मैं कह रही हूं आपकी ही बहन हूं..!! अगर आपने अभी ये तमाशा पर बंद नहीं किया तो अब जो कुछ भी आप सांझ के साथ करेंगे वही सब में खुद अपने साथ करूंगी। इनके बाल काटे तो मैं अपने बाल काट लूंगी। इनका चेहरा काला किया तो मैं अपना चेहरा काला कर लूंगी और इनके कपड़े उतारे तो मैं.. खुद के कपड़े..!"" आव्या ने दुपट्टा कन्धे से उतार दिया

" आव्या..!!" नीशु चिखा।

" क्यों आपकी बहिन हूँ तो दर्द हुआ आपको..?? इनका कोई नही तो सबने इन्हे बर्बाद करने का सोच लिया। इनके दर्द की परवाह नही कोई..!! वो इनके चाचा बेच गए और आप??? खरीद लिया है ना आपने...?? गुलाम बना लिया है ना तो बस घर के काम कराया कीजिये। घर पर रखिए पर इस तरीके से जानवरों जैसा सुलूक मत कीजिए हाथ जोड़ती हूं मैं आपके आगे..!!" आव्या ने दुखी होकर कहा तो निशांत रास्ते से हट गया।

" चलो सांझ दीदी। " आव्या ने सांझ को उठाया और घर लेकर चली गई।

निशांत ने गुस्से से मुट्ठी भींच ली और अपने दोस्तो के साथ ट्युबवेल पर बने अपने अड्डे पर चला गया।

" अब मौका मिला है नियति की मौत का बदला लेने का।" निशांत शराब पीते हुए बोला।

"तो अब क्या तुम उस से शादी कर लोगे निशु..?" निशांत के दूसरे दोस्त ने कहा।

"शादी और उस से..?? कभी भी नहीं करूंगा उसकी सूरत से भी नफरत है मुझे।
गुलाम बना कर रखूंगा अपने घर पर नही तो कल बेच दुंगा पप्पू को..!! उतार देगा वो किसी कोठे पर। उसकी सूरत मुझे हर पल हार याद दिलायेगी। कल बुला रहा पप्पू को मैं..!!" निशांत बोला और पप्पू को कॉल कर सांझ का सौदा कर दिया।

" कल शाम आता हूँ।" पप्पू ने कहा और कॉल कट कर दिया।

"अरे ठीक है नहीं करनी शादी तो ना सही पर मजे लेने के लिए तो कोई मना नहीं है ना?? और वैसे भी तुम्हारी गुलाम है। और मैं तो कहता हूं लगे हाथों हमें भी मजे दिलवा ही दो उसे पप्पू को देने से पहले। " तीसरा दोस्त बोला तो निशांत के चेहरे पर शैतानी मुस्कुराहट आ गई।

"ठीक है लाता हूं कल उसे यहीं पर..!! तुम लोग भी क्या याद करोगे क्या दिलदार दोस्त पाया है तुमने..!! पप्पू को देने से पहले तुम भी कर लो मजे।"'निशांत बोला और वापस शराब पीने लगा।

*उधर आव्या के कमरे में *

सांझ अब भी सुन्न थी।
सिर से निकल के खून चेहरे पर बिखर सूख गया था..!!

"सांझ दीदी..!! नहा लीजिये आप!" आव्या ने सांझ को ले जाकर बाथरूम मे खड़ा किया पर सांझ ने कोई रिस्पोंस नही दिया तो आव्या ने ही उसे चौकी पर बिठाया और सिर पर ठंडा पानी डाला।

जमा हुआ खून बहने लगा और उसी के साथ सांझ की चेतना लौटी और वो फुट फुटकर रोने लगी।

आव्या ने जैसे तेसै उसे सम्भाला और अपने कमरे मे लाई।

" मुझे जाना है आव्या..!! प्लीज मेरी हेल्प करो..!! मुझे यहाँ से निकालो..!! प्लीज आव्या मुझे दिल्ली जाना है। मुझे जाने दो। मैं जान दे दुंगी पर यहाँ नही रहूँगी।
मुझे दिल्ली जाना है प्लीज मुझे जाने दो।" सांझ रोये जा रही थी।
आव्या ने जैसे तेसै उसे सम्भाला और अपने बेड पर लिटा दिया।

रोते रोते सांझ गहरी नींद मे चली गई।

आव्या के दरवाजे के बाहर खड़े सुरेंद्र भी सांझ की बातें सुन रहे थे वो तुरंत अपने कमरे मे चले गए

"मुझे सांझ की मदद करनी होगी..!! कैसे भी करके मुझे बच्ची को बचाना होगा।" सुरेंद्र खुद से बोले।

"पर कैसे..?? क्या करूँ..?? प्लीज भगवान राह दिखाइये..! कोई तो हो इसका अपना जो मदद कर सके..!!" सुरेंद्र ने आँखे बन्द कर ली और दिमाग तेजी से घूमने लगा।

" अबीर..!! अबीर राठौर..!! हाँ यही नाम बताया था अविनाश ने। सांझ अविनाश के दोस्त अबीर राठौर की बेटी है । बताया था अविनाश ने की अबीर दिल्ली में बिजनेसमैन है। हां और अभी कुछ दिन पहले न्यूज़ पेपर में भी तो मैंने खबर पड़ी थी। दिल्ली के बहुत बड़े बिजनेसमैन है अबीर राठौर। अक्सर उनकी फोटो और उनके बारे में खबर अखबार में छपती रहती है। मुझे अबीर राठौर को खबर करनी होगी। अबीर राठौर ही सांझ को बचा सकते हैं इन सब से। वैसे भी बहुत पावरफुल है वह।" सुरेंद्र ने खुद से ही कहा और फिर तुरंत ही अपना फोन निकाल उसमें अबीर के बारे में सब कुछ पता करने में लग गए।

आधे घंटे की मेहनत में वह अबीर का नाम पता बिजनेस और यहां तक के उनका कांटेक्ट नंबर भी निकलने में कामयाब हो गए।

सुरेंद्र ने अपना फोन लिया और तुरंत छत पर निकल गए।

सीढ़ियों का दरवाजा बंद किया ताकि कोई भी ना सुन सके और उन्होंने अबीर के नंबर पर कॉल लगा दिया।

अबीर भी उस समय यूपी के एक एरिया में अपने मित्र के यहां शादी में आए थे। शालू और मालिनी भी उनके साथ थी।

अननोन नंबर से फोन आते देख पहले तो अभी ने अवार्ड किया पर जब फोन लगातार बजता रहा तो अभी ने कॉल पिक कर लिया।
"हैलो..!!" अबीर बोले।
सामने से कुछ कहा गया और अबीर के चेहरे पर तनाव आ गया।
और वो तुरंत मालिनी और शालू को वहाँ से लेकर निकल गए।

अबीर की कार सड़क पर दौड़ रही थी और फोन पर बात अब भी जारी थी।

उधर सुरेंद्र लगातार कोल कर रहे थे पर फोन बिजी जाता रहा।

" प्लीज अबीर जी फोन उठाइये..!" सुरेंद्र खुद से बोले तभी नशे मे धुत निशांत घर आ पहुंचा और उसका चीखना चिल्लाना शुरू हो गया।

सुरेंद्र ने आसमान की तरफ देखा और फिर नीचे आ गए ताकि निशांत को संभाल सके।


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव

स्पेशल नॉट- प्रिय पाठकों और मित्रो। पहले भी कहा है और अब भी कह रही हूँ कहानी पूर्ण रूप से काल्पनिक है। सभी घटनाएं पात्र व दृश्य काल्पनिक है। किसी घटना या व्यक्ति के साथ मिलना महज संजोग है।
मैं इस तरह की मान्यताओं प्रथाओ और कुरुतियों का विरोध करती हूँ।

लेखक का उद्देश्य किसी धर्म जाती या समुदाय पर आरोप लगाना नही है। मै हर धर्म जाति और समुदाय का सम्मान करती हूँ। कहानी का एकमात्र उद्देश्य मनोरंजन है।
कुछ कुरुतियाँ समूल रूप से खत्म हो चुकी है हमारे देश में तो कुछ के कभी कभी संकेत मिल जाते है।
महिलाओ पर अत्याचार हमेशा से होते रहे है और आज भी हो रहे है। फिर चाहे वह भ्रूण हत्या हो या उन्हें शिक्षा के अधिकार से वंचित करना हो। बाल विवाह हो या पुरुष और महिला में असमानता हो। दहेज हत्या हो या फिर घरेलू हिंसा। छेड़खानी हो या बलात्कार। एसिड अटैक हो या मॉलेस्टेशन..!! सभी कुछ हमें अपने आसपास देखने को मिल जाता है।
इस कहानी में जो मैंने एक और मुद्दा दिखाया था वह था ऑनर किलिंग का। यह भी अक्सर ही हमें अपने आसपास देखने को सुनने को मिल जाता है। कुछ क्षेत्रों में आज भी ऑनर किलिंक का मामले आते रहते हैं। बाकी यहाँ जो मैंने दिखाया है महिलाओं के खरीद और फरोख्त का मामला यह भी आजकल देखने को मिल जाता है। औरतों और बच्चियों को अगवा करना और उन्हें खरीदना और उन्हें बेचना। देह व्यापार के धंधे में उतारना यह भी कई बार देखने को मिल जाते है

दास प्रथा हमारे देश से पूर्व पूर्ण रूप में खत्म हो चुकी है और मैं इस प्रथा का पूरी तरीके से विरोध करती हूं। पर अगर आप नजर दौड़ाएंगे ध्यान से तो दूर दराज कहीं ना कहीं आपको इस प्रथा की झलक अभी भी मिल जाएगी। जहां पैसों के लालच में तो कभी मजबूरी में कभी पैसों की जरूरत के लिए लोग अपने घर की महिलाओं को बच्चो कभी कभी पुरुषो को भी बेच देते है।


फिर भी किसी की भावना आहात हुई हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ 🙏🙏🙏
मै शराब जूआ शिगरेट। महिलाओ पर अत्याचार उन्हे खरीदने बेचने और ओनार् किलिंग का विरोध करती हूँ।
ये महज एक काल्पनिक रचना है।