साथिया - 83 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • आखेट महल - 19

    उन्नीस   यह सूचना मिलते ही सारे शहर में हर्ष की लहर दौड़...

  • अपराध ही अपराध - भाग 22

    अध्याय 22   “क्या बोल रहे हैं?” “जिसक...

  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

श्रेणी
शेयर करे

साथिया - 83

" प्लीज अबीर जी फोन उठाइये..!" सुरेंद्र खुद से बोले तभी नशे मे धुत निशांत घर आ पहुंचा और उसका चीखना चिल्लाना शुरू हो गया।

सुरेंद्र ने आसमान की तरफ देखा और फिर नीचे आ गए ताकि निशांत को संभाल सके।


" आव्या दरवाजा खोलो ...!! सांझ को मेरे हवाले कर दो....!! उसे तो इस तरीके से बचा नहीं सकती तुम..?? वहां चौपाल से तुम उसे बचा कर ले आई पर अब नही..!! उसे बाहर निकालो..!" निशांत गुस्से से चिखा।


उसकी आवाज से सांझ की नींद खुल गई और उसने घबरा के आव्या को देखा तो आव्या उसके पास आई।

" प्लीज गेट मत खोलना..!"'सांझ ने दहसत के साथ कहा।

" डोन्ट वरि सांझ दीदी..!" आव्या बोली और खिड़की खोली।

" भैया आप सुबह मिल लीजियेगा उनसे..!! वो अभी बेहोश है..!! उनके सिर पर चोट लगी है..!" आव्या बोली।

" वो मै देख लूंगा तुम दरवाजा खोलो..!" निशांत झूमता हुआ बोला।

" आप अभी होश में नही हो..! जाकर सो जाइये..!!" आव्या बोली।

" खोलो..!! वो मेरी खरीदी हुई है उसे मेरे हवाले करो.!!" निशांत दरवाजे पर लातें मार रहा था।..!!तब तक निशांत की माँ आई और उसे जबरदस्ती ले जाकर कमरे में सुला दिया।

सांझ वही कोने मे बैठी सिसकती रही।

" आप ठीक कह रहे थे जज साहब मुझे आना ही नही था यहाँ। शायद आपको सही अंदाज हो गया था कुछ गलत होने का। बस एक बार यहाँ से निकल जाऊँ तो सीधा आपके पास आऊँगी और फिर कभी मुझे दूर न कीजियेगा।" सांझ अक्षत को याद कर रही थी।

सांझ की सुरक्षा के चलते आव्या ने रात भर दरवाजा न खोला क्योंकि वो चाहती थी कि सौरभ आ जाए ताकि सांझ सुरक्षित हो सके।

तो वही सुरेंद्र लगातार अबीर को कॉल करते रहे पर बात नही हो सकी।
हारकर सुरेंद्र ने कॉल करने का मेसेज डाल दिया।

****

सुबह के दस बज चुके थे पर अब तक न आव्या ने दरवाजा खोला और न निशांत की नींद खुली।


आव्या ने साँझ की तरफ देखा जो अभी भी कोने में सिकुड़ी बैठी थी।

ना ही उसने इस घर में आने के बाद एक दाना खाया था ना ही एक बूंद पानी पिया था। वह उन्ही कपड़ों में थी जिन कपड़ों में यहां आई थी। रात भर में गीले कपड़े फिर से सूख गए थे पर सांझ ने
आव्या के दिए हुए कपड़े नहीं पहने थे और ना ही वहाँ से उठी थी।

आड़े तेड़े कटे बिखरे हुए बाल अभी भी उसकी बर्बादी की गवाही दे रहे थे। खून के धब्बे अभी भी चेहरे और कपड़ों पर थे। और साथ ही साथ बाल भी खून के कारण एक दूसरे में चिपक गए थे।
सांझ को जैसे किसी दर्द का एहसास ही नहीं था। उसकी आँखों में आंसू भी सूख चुके थे। वह खाली-खाली आंखों से बस सामने की दीवार को घूर रही थी।

उसके दिल में क्या चल रहा था कोई नहीं जानता था।


आव्या रेडी हो गई और उसने सांझ की तरफ देखा।

"सांझ दीदी आपके कपड़े गीले थे...!! कल मैंने आपके ऊपर पानी डाला था। पर आपने चेंज क्यों नहीं किया। मैंने सोचा कि आप चेंज कर लोगी।" आव्या बोली पर सांझ ने कोई जवाब नहीं दिया।


"ऐसे तो आप बीमार हो जाओगी सांझ दीदी। उठिए फ्रेश हो जाइए। कपड़े चेंज कर लीजिए मैं आपकी ड्रेसिंग कर देती हूं। देखिए खून फिर से जम गया है।" आव्या ने कहा।

सांझ ने अब भी कोई जवाब नहीं दिया।

आव्या उसके पास आई और उसके कंधे पर हाथ रखा।

" सांझ दीदी..!!" आव्या ने कहा तो सांझ एक झटके से पूरी हिल गई और आव्या को देखा।

"प्लीज मुझे जाने दो...!! मुझे मेरे जज साहब के पास जाना है। प्लीज मुझे जाने दो। मुझे नहीं रहना यहां पर..!!" सांझ ने एकदम से हाथ जोड़ते हुए कहा तो आव्या उसके पास बैठ गई और भरी आंखों से सांझ को देखा।

"प्लीज आव्या मुझे यहां से जाने दो। कैसे भी करके मुझे यहां से जाने दो। मैं जान दे दूंगी निशांत की गुलाम बनकर कभी नहीं रहूंगी। बिल्कुल भी नहीं रहूंगी। मैं नहीं मानती इन सब बातों को। मेरे जज साहब सबको सजा देंगे। देख लेना तुम किसी को नहीं छोड़ेंगे। उन्हें जब पता चलेगा ना कि मेरे साथ इतना सब किया इन लोगों ने वह किसी को नहीं छोड़ेंगे। मेरे जज साहब सबको बर्बाद कर देंगे।" सांझ ने दुख और नाराजगी के साथ कहा।


'आप घबराइए मत सांझ दीदी जब तक आप इस घर में है कोई आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मैं हूं आपके साथ। भले मेरी जान भी क्यों ना ले ले यह लोग पर मैं अब हिम्मत नहीं हारूंगी। मैं आपका साथ दूंगी। हर हालत में।" आव्या ने कहा तो सांझ एकदम से उसके गले लग गई और उसका रोना तेज हो गया।


"मैं सच कह रही हूं मुझे नहीं पता था कि नेहा दीदी भागने वाली है..!! मुझे नहीं पता था कि वह मेरा फोन यूज कर रही है। मुझे कुछ भी नहीं पता था आव्या। कोई मेरा विश्वास क्यों नहीं कर रहा है? मुझे तो यह भी नहीं पता था कि नेहा दीदी की शादी तय हो गई है। मैं तो खुद नेहा दीदी से मिलने आई थी जब मुझे यहां पर पता चला कि उनकी शादी हो रही है।
मुझे किसी ने नहीं बताया नेहा दीदी की शादी के बारे में और ना ही नेहा दीदी ने बताया अपने मुंबई भागने के बारे में या उनका किसी से कोई संबंध है इस बारे में। मुझे सच में कुछ भी नहीं पता है। अगर मुझे पता होता तो मैं खुद भी नहीं चली जाती?? क्यों रूकती यहां पर यह सब सहने के लिए..?? कोई क्यों नहीं सोच रहा है? क्यों नहीं समझ रहा है कि मुझे अगर पता होता तो मैं यहां नहीं रहती। मैं यहां क्यों आती है अगर मुझे पता होता तो..??
कोई नहीं समझ रहा है कोई नहीं सुन रहा है मेरी बात। प्लीज आव्या तुम तो विश्वास करती हो ना..??" सांझ ने दुखी होकर कहा।

" हाँ सांझ दीदी मैं आपकी हर बात पर विश्वास करती हूं। और यहां बात विश्वास करने और विश्वास न करने की नहीं है। यहाँ बात सही और गलत की है। अगर आपको पता भी होता है तब भी आप गलत नहीं थी, क्योंकि यह नेहा दीदी का निर्णय था। और इसमें इसमें आपका कहीं से कोई दोष नहीं है। सच कहूं तो नेहा दीदी का भी दोष नहीं है। हां उनसे एक गलती हुई कि अगर वह जाते समय आपको भी साथ में ले जाती तो कम से कम आपके साथ यह सब ना होता। दूसरी बात वह एक-दो दिन पहले चली जाती तो शायद बात इतनी ना बिगड़ती। और उन्होंने इस तरीके से बारात के समय जाकर गलती कर दी। और सबसे बड़ी बात उन्होंने पीछे किसी के बारे में नहीं सोचा। अगर उन्हें भागना हीं था तो वह थोड़ा पहले जा सकती थी। कम से कम इस तरीके का माहौल तो नहीं होता।"

"पर अगर वह चली भी गई तो इसमें हम लोगों का क्या दोष..?? चाचा चाची की क्या गलती?? और मेरा मेरी क्या गलती..?? वैसे तो मुझे न हीं किसी ने नहीं अपनाया न प्यार किया। चाचा चाची ने भी दिल से नहीं अपनाया, यह सोचकर कि मैं उनकी बेटी नहीं हूं। उनके भाई की बेटी नहीं हूं पर जब बात बलि चढ़ाने की आई तो मुझे आगे कर दिया। मुझे बेच दिया और खुद सजा से बच गए। यह सब तो गलत हो रहा है ना आव्या। मैं कह रही हूं किसी को नहीं छोड़ेंगे मेरे जज साहब। उन्हें अगर जब पता चलेगा ना कि इन लोगों ने मेरे साथ ऐसा किया वह एक-एक को खून के आंसू रुलाएंगे।" सांझ ने दुखी होकर कहा।

" बिल्कुल दीदी बिल्कुल गलत है यह सारी कुप्रथाएं गलत है। यह सारी मान्यताएं गलत है। यह सारी हरकतें गलत है। मैं खुद इन सबको नहीं मानती। सौरभ भैया भी नहीं मानते इसीलिए यहां नहीं रहते। और मैं भी अब नहीं रहूंगी यहाँ। मम्मी पापा जाएं या ना जाए पर इस बार में सौरभ भैया के साथ चली जाऊंगी? मुझे नहीं रहना ऐसे लोगों के बीच जो इंसान को इंसान नहीं समझते। ऐसे ही उन्होंने नियति दीदी के साथ किया ऐसे ही आपके साथ कर रहे हैं। उस समय भी मैं कुछ नहीं कर पाई थी पर अब आप चिंता मत करो जब तक आप इस घर में मेरे साथ हो आपको कोई हाथ भी नहीं लग सकता। भले मुझे किसी की जान लेनी पड़े या खुद की जान देनी पड़े पर यह अन्याय में बर्दाश्त नहीं करूंगी।"


"तुम प्लीज कैसे भी करके मुझे यहां से निकाल दो..!! मैं दिल्ली चली जाऊंगी मेरे जज साहब का घर है वहां पर। मैं उनके घर पर रह लूंगी वहां सब बहुत अच्छे हैं। सब मुझे प्यार करते हैं और जज साहब के रहते कोई मुझे हाथ भी नहीं लगा पाएगा। कोई कुछ भी नहीं कर पाएगा।" सांझ ने दुखी होकर कहा तो आव्या ने उसे वापस अपने सीने से लगा लिया।

"आप दुखी मत हो..!! मैं हूं ना मैं सब सही कर दूंगी। आप उठिए जाकर नहा लीजिए। थोड़ा आपको अच्छा लगेगा। कपड़े चेंज कर लीजिए।" आव्या ने कहा तो सांझ ने आव्या के कपड़े उठाये और बाथरूम में चली गई।

नल चालू किया और उसके नीचे बैठ गई और उसका रोना फिर से चालू हो गया।

आंखों के आगे वह सारे पाल आ गए जो पिछली रात बीते थे और सांझ का दर्द धीरे-धीरे करके बढ़ने लगा। जैसे तैसे उसने स्नान किया और फिर चेंज करके बाहर आ गई।

पूरे सिर में दर्द हो रहा था साथ ही साथ पूरे शरीर में भी बेहद दर्द था पर सांझ को किसी बात की कोई परवाह नहीं थी। उसके दिमाग में सिर्फ एक ही बात चल रही थी कि कैसे भी करके यहां से निकलना है या कैसे भी करके अक्षत से बात करनी है। पर उसके पास इन दोनों में से ही किसी चीज का जरिया नहीं था।

अक्षत का नंबर उसे याद नहीं था और यहां से बाहर निकलना इतना आसान न था।


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव

मित्रो वो डिस्क्लैमर नॉट और क्षमा पत्र इसलिए डाल रही ताकि कुछ लोग जिनका काम सिर्फ हंगामा करना है वो हंगामा न करे।
रचना भले काल्पनिक है पर इसमें दिखाई घटनाएं कभी न कभी कहीं न कहीं देखने सुनने मिल जाती है।
महिलाओ को निर्वस्त्र कर घुमाने का मामला तो अभी कुछ दिनों पहले ही हमने देखा व सुना है।
बाकी ये बेचना खरीदना भी कुछ क्षेत्रों मे देखा गया है। महिलाओ पर हिंसा, उनके साथ जबरदस्ती करना..! उन्हे अप्राकृतिक यौन संबंधों ( एनल/ ओरल से***स ) के लिए मजबूर करना और प्रताणित करना कई बार देखा गया है।
बाकी कहानी है तो नाट्कीयता का समावेश जरूरी है ताकि प्रभावी बने।
और एक बात ये कहानी है और परिणाम मेरे हाथ मे इसलिए न्याय मिलेगा और सांझ को जिंदगी भी।
पर असल मे न जाने कितनी सांझ होंगी जो न्याय के लिए तड़पती इस दुनिया से चली गई होंगी और कुछ को जबरन देह व्यापार में उतार दिया गया होगा..!! न जाने कितनी लड़कियाँ गुलामी का जीवन जीकर हर पल मौत का इंतजार करती होंगी।

न जाने कितनी नियति होंगी जिन्हे ओनार किलिंग के नाम पर मार दिया गया होगा।

🙏🙏🙏
हम कुछ करे न करे पर कम से कम संवेदनशील तो रहे और जागरूक भी। और अगर कभी मौका मिले तो विरोध भी करे।