साथिया - 81 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 81






स्पेशल नॉट- प्रिय पाठकों और मित्रो। पहले भी कहा है और अब भी कह रही हूँ कहानी पूर्ण रूप से काल्पनिक है। सभी घटनाएं पात्र व दृश्य काल्पनिक है। किसी घटना या व्यक्ति के साथ मिलना महज संजोग है।
मैं इस तरह की मान्यताओं प्रथाओ और कुरुतियों का विरोध करती हूँ।

लेखक का उद्देश्य किसी धर्म जाती या समुदाय पर आरोप लगाना नही है। मै हर धर्म जाति और समुदाय का सम्मान करती हूँ। कहानी का एकमात्र उद्देश्य मनोरंजन है।
कुछ कुरुतियाँ समूल रूप से खत्म हो चुकी है हमारे देश में तो कुछ के कभी कभी संकेत मिल जाते है।
महिलाओ पर अत्याचार हमेशा से होते रहे है और आज भी हो रहे है। फिर चाहे वह भ्रूण हत्या हो या उन्हें शिक्षा के अधिकार से वंचित करना हो। बाल विवाह हो या पुरुष और महिला में असमानता हो। दहेज हत्या हो या फिर घरेलू हिंसा। छेड़खानी हो या बलात्कार। एसिड अटैक हो या मॉलेस्टेशन..!! सभी कुछ हमें अपने आसपास देखने को मिल जाता है।
इस कहानी में जो मैंने एक और मुद्दा दिखाया था वह था ऑनर किलिंग का। यह भी अक्सर ही हमें अपने आसपास देखने को सुनने को मिल जाता है। कुछ क्षेत्रों में आज भी ऑनर किलिंक का मामले आते रहते हैं। बाकी यहाँ जो मैंने दिखाया है महिलाओं के खरीद और फरोख्त का मामला यह भी आजकल देखने को मिल जाता है। औरतों और बच्चियों को अगवा करना और उन्हें खरीदना और उन्हें बेचना। देह व्यापार के धंधे में उतारना यह भी कई बार देखने को मिल जाते है

दास प्रथा हमारे देश से पूर्व पूर्ण रूप में खत्म हो चुकी है और मैं इस प्रथा का पूरी तरीके से विरोध करती हूं। पर अगर आप नजर दौड़ाएंगे ध्यान से तो दूर दराज कहीं ना कहीं आपको इस प्रथा की झलक अभी भी मिल जाएगी। जहां पैसों के लालच में तो कभी मजबूरी में कभी पैसों की जरूरत के लिए लोग अपने घर की महिलाओं को बच्चो कभी कभी पुरुषो को भी बेच देते है।


फिर भी किसी की भावना आहात हुई हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ 🙏🙏🙏
मै शराब जूआ शिगरेट। महिलाओ पर अत्याचार उन्हे खरीदने बेचने और ओनार् किलिंग का विरोध करती हूँ।
ये महज एक काल्पनिक रचना है।



अवतार सिंह घर के अंदर आए तो भावना ने उनकी तरफ देखा।


" क्या हुआ क्या क्या निर्णय लिया है पंचायत ने?" भावना ने कहा।।

" इज्जत के बदले इज्जत मांगी निशांत ने!" अवतार सिंह ने धीमे से कहा।


" मतलब...?" भावना घबरा के बोली।


"जब लड़की इस तरह इज्जत उछाल के भाग जाती है तो सजा उसके परिवार को मिलती है।" अवतार बोले।

"तो क्या करना होगा? ' भावना ने घबरा के कहा।


"नेहा की माँ यानी तुम्हे निर्वस्त्र कर पूरे गाँव मे घुमाने का निर्णय लिया था" अवतार बोले।

" मैं जान दे दूंगी पर ये नही हो सकता। " भावना चीखी और अंदर की तरफ दौड़ी तो अवतार ने उसे पकड़ लिया।

" पर मैंने हमारी इज्जत के बदले कुछ और सजा देने को कहा तो...!" अवतार बोले।

" तो...?" सांझ की घुटी सी आवाज निकली..!

अवतार ने कोई जवाब नहीं दिया और भरी आंखों से साँझ की तरफ देखा...।

साँझ का दिल बैठ गया।।

अवतार सिँह ने साँझ के आगे हाथ जोड़ दिए।


"मुझे माफ कर देना बेटा पर वो लोग मानने वाले नहीं है तो मजबूर होकर मैंने तुम्हारा सौदा कर दिया।" अवतार ने भरे गले से कहा तो वही सांझ ने रोते हुए के इंकार में गर्दन हिला दी।


" तुम्हारी चाची को जीते जी मार देंगे।" अवतार बोले


" आप मुझे मार दीजिये पर ये नही होगा मुझसे चाचा जी। मुझे मत सौंपिये उनके हाथो।" सांझ बिखर गई।


" परिवार के लिए हमारे लिए।" अवतार बोले।


" जान ले लीजिये आपके लिए न नही कहूंगी पर यूँ जीते जी न मारिये।" सांझ चीख के रो पड़ी।

"हमारे के उपकारों के बदले तुम इतना भी नहीं कर सकतीं? और फिर मैंने कहा है ना निशांत तुमसे शादी कर लेगा। आज नहीं तो कल शादी कर लेगा और सम्मान से तुम उसके घर पर रहोगी।" अवतार ने उसे बहलाना चाहा।

" मैं नहीं कर सकती शादी उससे..!! मैं किसी से शादी नहीं कर सकती क्योंकि मैंने शादी कर ली है। मैं शादीशुदा हूं चाचा जी प्लीज मुझे जाने दीजिए।" सांझ रोते हुए बोली।

पर अवतार और भावना ने उसे मजबूर कर दिया और उसकी एक न सुनी।


" क्या अपने पिता जैसे चाचा के लिए इतना भी नहीं कर सकती.!" अवतार बोले तो साँझ जमीन पर गिर रोने लगी।

"जाने दीजिये मुझे जज साहब के पास!" सांझ की आँखों के आगे अंधेरा छा गया।


" जज साहब... प्लीज बचा लीजिये मुझे !" उसकी बेहोश होते हुए घुटी सी आवाज निकली।

"यह शादीशुदा है..!! अगर यह बात अभी निशांत और गांव वालों को पता चल गया तो हम लोगों को जीते जी मार डालेंगे। इससे पहले की यह होश में आए इस वहाँ छोड़कर चलिए वरना नेहा के किए की सजा हम भुगत ही रहे हैं अब सांझ के किये की सजा भी हमें मिलेगी।" भावना ने कहा तो अवतार ने भरी आंखों से बेहोश होती सांझ को देखा और फिर उसे गोद में उठा लिया और चौपाल की तरफ चल दिए।

वहां जाकर उन्होंने सांझ को जमीन पर लेटा दिया जो कि अभी बेहोश थी।

"यह लो निशांत..!! मैंने अपना वादा पूरा कर दिया पर फिर भी तुमसे विनती कर रहा हूं इसके साथ कुछ भी गलत मत करना। तुमने सिर्फ इसे अपने घर का नौकर बनाने का कहा है तो वही करना। कुछ और गलत मत करना और अगर हो सके तो इससे ब्याह कर लेना।" अवतार ने कहा।।

"यह सब कहने का अब तुमको कोई अधिकार नहीं है..!! तुम इसे बेच चुके हो। कागजों पर साइन कर चुके हो और बेची हुई चीज के साथ क्या करना है क्या नहीं करना है यह उसका खरीदार तय करता है ना कि बेचने वाला..!! तुमने अपने परिवार और अपनी बीवी की इज्जत के बदले सांझ को मुझे दे दिया है। अब मुझे जो सही लगेगा वह मैं करूंगा। अब तुम लोग यहां से जा सकते हो।

"बस एक ही विनती है जो भावना के लिए सजा निर्धारित की थी वह भी सांझ को मत दीजिएगा, क्योंकि हमारे परिवार की इज्जत का सवाल है। सांझ भी मेरे परिवार का हिस्सा है। मेरे घर की बच्ची है। मैं नहीं चाहता कि इसके साथ ऐसा हो बस क्योंकि इसी के बदले मैंने सांझ को सौपी है कि हमारे परिवार की इज्जत चौराहे पर नीलाम न हो।" अवतार ने कहा।

"ठीक है अवतार ऐसा कुछ भी नहीं होगा..!! तुम बेफिक्र रहो। " दूसरे पंच बोले।

अवतार ने भरी आंखों से सांझ को देखा जो अब धीमे-धीमे आंखें खोलने लगी थी और भावना को इशारा किया और तुरंत वहां से जाने लगे।

तब तक सांझ की आंखें खुल गई और वह एकदम से दौड़कर अवतार के पैरों से लिपट गई।


"मुझे मत छोड़िए चाचा जी..!! प्लीज मुझे ले चलिए। आप मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते। आप मुझे इस तरीके से मजबूर नहीं कर सकते। मैं इंसान हूं कोई चीज नहीं जो आप मेरा सौदा कर दें..?? आप मुझे ऐसे नहीं बेच सकते।" सांझ ने चीखते हुए कहा।

अवतार ने अपना पैर उसके हाथों से छुड़ा लिया।

"नहीं मानती मैं आपके नियम..!! नहीं मानती मैं यह मान्यताएं। और आप मेरे बारे में निर्णय नहीं ले सकते। मैं वालिग हूं। मेरे बारे में कोई भी निर्णय नहीं ले सकता। मुझे नहीं मंजूर आपका यह फैसला। आप मुझे नहीं बेच सकते चाचा जी क्योंकि मैं आपकी प्रॉपर्टी नहीं हूं।" सांझ दर्द और गुस्से के साथ बोली।

अवतार ने निशांत की तरफ देखा तो निशांत ने आकर उसकी बाँह पकड़ ली और उसे पीछे खीच लिया।

" तुम मुझे नहीं खरीद सकते निशांत..!! क्योंकि मैं तो उनकी बेटी नहीं हूं। मैं उनके घर का हिस्सा नहीं हूं। मैं तो किसी और की बच्ची हूं। तुम लोग मुझे नहीं खरीद बेच सकते। मैं कोई प्रॉपर्टी नहीं हूं। मुझे जाने दो यहां से..!! मेरा इस गांव से और इस परिवार से कोई लेना-देना नहीं है। जाने दो मुझे।"' सांझ ने रोते चीखते हुए कहा।

वही एक लड़का वीडियो बना रहा था छुपकर।


" चाचा जी रोक लीजिये इन्हे..!! ये नहीं हो सकता। ऐसा आप नहीं कर सकते। आपको जो चाहिए वह ले लीजिए। मेरी पूरी प्रॉपर्टी ले लीजिए। मैं जिंदगी भर आपका अहसान मानूंगी मुझे छोड़ दीजिये। आप इस तरीके से मेरे साथ नहीं कर सकते। आपकी बेटी के जैसी हूं मैं..!! आपको हमेशा पापा की तरह सम्मान दिया है।" सांझ ने रोते हुए कहा। अवतार की आंखों में भी आंसू भर आए।

उन्होंने एक नजर सांझ को देखा और तुरंत वहां से निकल गए।


"जाने दो मुझे..!! नहीं मानती मैं यह सब बातें। जाने दो मुझे..!! मुझे नहीं रहना यहां पर।" सांझ ने निशांत की तरफ देखकर कहा तो निशांत ने एक जोरदार तमाचा सांझ को मारा और सांझ वहीं जमीन पर गिर गई।

"प्लीज जाने दो मुझे...!! हाथ जोड़ती हूं तुम्हारे..! पांव पड़ती हूं। जाने दो मुझे..!! इस तरीके से इंसानों की खरीद फरोख्त नहीं की जाती। इंसानों को बेचा और खरीदा नहीं जाता है। यह सब बातें पुरानी हो चुकी है। दास प्रथा खत्म हो चुकी है हमारे देश में। प्लीज जाने दो मुझे।" सांझ ने हाथ जोड़कर कहा।

"पूरे देश में क्या हो रहा है क्या नहीं हो रहा है हमें उससे कुछ लेना देना नहीं..!; इस गांव का कानून भी हम है और यहां का के नियम भी हम बनाते हैं। पूरे देश में क्या खत्म हो चुका है क्या चल रहा है इसका यहां से कोई लेना देना नहीं है। और तेरे चाचा ने तुझे बेच दिया है मेरे हाथों।" निशांत ने उसके बाल पड़कर खींचते हुए कहा।


"भाई साहब यह गलत है..!! रोके ना निशांत को ऐसा ना करें। हमारे घर की बच्ची है।।बचपन से देखते आए हैं हम। इस तरीके का अत्याचार मत कीजिए। हाथ जोड़ता हूं आपके आगे।" सुरेंद्र ने हाथ जोड़कर कहा तो गजेंद्र ने उन्हें घूर कर देखा।

"इसी की बड़ी बहन ने हमारी इज्जत नीलाम कर दी..! बारात दरवाजे पर लेकर गए और लड़की भाग गई और तुम सोचते हो कि इसके लिए रियायत बरती जाए। इसके साथ सहानुभूति रखें हम..??" गजेंद्र ने नाराजगी से कहा तो वही घर की छत पर खड़ी आव्या यह सब देख रही थी।

उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें तो उसने तुरंत दौड़कर अपना फोन लाया और सौरभ को कॉल लगा दिया।

"हेलो..!!" सौरभ की आवाज आई।

"हां भैया प्लीज जल्दी आ जाओ..!! फिर से गलत होने जा रहा है यहां पर।" आव्या ने रोते हुए कहा।

"क्या हुआ?" सौरभ ने पूछा तो आव्या ने सारी बात बता दी।

"आ रहा हूं मैं..!!" सौरभ ने फोन काटा और वहां से निकल गया। पर वह समय देहरादून था और देहरादून से गांव पहुंचना इतना भी जल्दी नहीं हो सकता था।

आव्या अपनी मां और बड़ी मां के पास आकर रोने लगी।

"प्लीज बड़ी मां आप रोको ना, यह सब गलत हो रहा है। एक बार सोच कर तो देखो आपके घर में भी बेटी है।" आव्या रोते हुए कहा तो उन दोनों की आंखों में भी आंसू भर आए पर उनके हाथ में कुछ भी नहीं था जो तो उन्होंने आव्या को अपने सीने से लगा लिया।


उधर चौपाल पर सांझ हर एक इंसान के आगे गिड़गिड़ा रही थी। रो रही थी और अपनी रिहाई की भीख मांग रही थी।

"जाने दो ना मुझे गजेंद्र चाचा..!! आपकी बेटी के जैसी हूँ। आव्या के जैसी ही तो मैं हूं। जाने दो ना ऐसा मेरे साथ आप कैसे कर सकते हो..?? नेहा दीदी के किए की सजा आप मुझे कैसे दे सकते हो..?? प्लीज चाचा जी जाने दो मुझे। मैं कभी यहां पर नहीं आऊंगी। छोड़ दीजिए मुझे मत कीजिए ऐसा। " सांझ ने गजेंद्र के पैर पकड़ लिए।

"यह तो तुझे तब सोचना चाहिए था जब तूने अपनी बहन को घर से भागने में मदद की..!!" गजेंद्र ने नाराजगी से कहा।

"नहीं नहीं मैंने मदद नहीं की। मुझे नहीं पता था सच कह रही हूं।। भगवान की सौगंध मुझे कुछ भी नहीं पता था! " सांझ ने का तो निशांत ने फिर से जाकर पीछे से उसके बाल पकड़ लिए और उसका चेहरा ऊपर किया।

"तेरे ही फोन से उसने कॉल और मैसेज किए हैं अपने यार को..!! और बिना तेरी जानकारी के तो ऐसा हो नहीं सकता। तू भी बराबर से मिली हुई है और इसीलिए तुझे किसी भी तरह की रिहायत नहीं मिलेगी समझी।" निशांत ने वापस से उसे जमीन पर पटकते हुए कहा।

सांझ ने सुरेंद्र के आगे हाथ जोड़ लिए।

"चाचा जी जाने दीजिए..!! समझाइए न इन लोगों को। जाने दीजिए मुझे। मेरी कहीं से कोई गलती नहीं है। आप लोग मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं..??" सांझ ने रोते हुए कहा तो सुरेंद्र की आंखों में भरे आंसू भी बाहर आ गए ।

"मुझे माफ कर दे बच्ची पर तेरे अपनों ने ही तेरे साथ गलत कर दिया..!!" सुरेंद्र ने कहा।


"निशांत बेटा मैं तुम्हारे हाथ जोड़ रहा हूं..!! तुम्हारा चाचा हूं इस नाते कह रहा हूं। मत करो इसके साथ गलत। इसके साथ शादी कर लो अपने घर ले चलो। यह बेचना खरीदना है यह सब चीजे सही नहीं है। उन्होंने तुम्हें सौंप दिया अब तुम शादी कर लो। भूल जाओ सारी बातें।" सुरेंद्र बोले।

"नहीं नहीं..!! मैं शादी नहीं कर सकती। मैं निशांत के साथ शादी नहीं कर सकती।" सांझ ने कहा तो सब ने उसकी तरफ देखा तो वहीं सुरेंद्र की आंखें भी छोटी हो गई।

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव