साथिया - 80 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 80

स्पेशल नॉट- प्रिय पाठकों और मित्रो। पहले भी कहा है और अब भी कह रही हूँ कहानी पूर्ण रूप से काल्पनिक है। सभी घटनाएं पात्र व दृश्य काल्पनिक है। किसी घटना या व्यक्ति के साथ मिलना महज संजोग है।
मैं इस तरह की मान्यताओं प्रथाओ और कुरुतियों का विरोध करती हूँ।

लेखक का उद्देश्य किसी धर्म जाती या समुदाय पर आरोप लगाना नही है। मै हर धर्म जाति और समुदाय का सम्मान करती हूँ। कहानी का एकमात्र उद्देश्य मनोरंजन है।
कुछ कुरुतियाँ समूल रूप से खत्म हो चुकी है हमारे देश में तो कुछ के कभी कभी संकेत मिल जाते है।
महिलाओ पर अत्याचार हमेशा से होते रहे है और आज भी हो रहे है। फिर चाहे वह भ्रूण हत्या हो या उन्हें शिक्षा के अधिकार से वंचित करना हो। बाल विवाह हो या पुरुष और महिला में असमानता हो। दहेज हत्या हो या फिर घरेलू हिंसा। छेड़खानी हो या बलात्कार। एसिड अटैक हो या मॉलेस्टेशन..!! सभी कुछ हमें अपने आसपास देखने को मिल जाता है।
इस कहानी में जो मैंने एक और मुद्दा दिखाया था वह था ऑनर किलिंग का। यह भी अक्सर ही हमें अपने आसपास देखने को सुनने को मिल जाता है। कुछ क्षेत्रों में आज भी ऑनर किलिंक का मामले आते रहते हैं। बाकी यहाँ जो मैंने दिखाया है महिलाओं के खरीद और फरोख्त का मामला यह भी आजकल देखने को मिल जाता है। औरतों और बच्चियों को अगवा करना और उन्हें खरीदना और उन्हें बेचना। देह व्यापार के धंधे में उतारना यह भी कई बार देखने को मिल जाते है

दास प्रथा हमारे देश से पूर्व पूर्ण रूप में खत्म हो चुकी है और मैं इस प्रथा का पूरी तरीके से विरोध करती हूं। पर अगर आप नजर दौड़ाएंगे ध्यान से तो दूर दराज कहीं ना कहीं आपको इस प्रथा की झलक अभी भी मिल जाएगी। जहां पैसों के लालच में तो कभी मजबूरी में कभी पैसों की जरूरत के लिए लोग अपने घर की महिलाओं को बच्चो कभी कभी पुरुषो को भी बेच देते है।

फिर भी किसी की भावना आहात हुई हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ 🙏🙏🙏
मै शराब जूआ शिगरेट। महिलाओ पर अत्याचार उन्हे खरीदने बेचने और ओनार् किलिंग का विरोध करती हूँ।
ये महज एक काल्पनिक रचना है।

आप लोग कन्फ्यूज क्यों हो रहे है। शुरू से बताया है मैंने कि सांझ को अवतार के भाई ने गोद लिया था इसी कारण अवतार और उसकी पत्नी सांझ को अपना नही मानते और उस पर एहसान जताते है कि दूसरे का खून होकर भी उसे पाला पोषा।
और दूसरी बात अबीर उसके पिता कैसे है और उनकी क्या कहानी है आगे के भागों मे पता चल जायेगी तो थोड़ा इंतजार कीजिये।
अब आगे।

*फ्लेश बैक नेहा की शादी वाला दिन*

सब लोग चौपाल पर इकट्ठे थे और वहां पर पंचायत लगी हुई थी।

अवतार सिंह सामने नजर झुकाए खड़े हुए थे और उनके सामने बैठे थे गजेंद्र सिंह और निशांत।

बाकी पंच भी वही कुर्सियों पर बैठे हुए थे ।

भावना और सांझ घर के दरवाजे पर खड़े हुए बाहर देख रहे थे। पर उन्हें न ही कुछ सुनाई दे रहा था और ना ही समझ में आ रहा था। पर इतना समझ में आ रहा था उन्हें कि जो भी होना है वह अब ठीक नहीं होना है।

"हे भगवान दिल बहुत घबरा रहा है..!! पता नहीं क्या होगा? मेरा फोन भी चला गया वरना जज साहब से बात करती। वह जरूर कोई ना कोई उपाय बता देते या मुझे यहां से निकालने के लिए कुछ करते। अब करूं भी तो क्या करूं..??" सांझ ने मन ही मन सोचा और भगवान से प्रार्थना करने लगी। पर उसका दिल अजीब से डर और घबराहट से बैठ जा रहा था।

"मैं सच कह रहा हूं मुझे भी इस बारे में कुछ भी नहीं पता था...!! फिर भी अगर नेहा से गलती हुई है तो हम हर्जाना देने के लिए तैयार है। किसी भी तरीके का आर्थिक जुर्माना हमें स्वीकार है इसके बदले में।" अवतार सिंह ने कहा।

" आर्थिक जुर्माना तो आपको देना ही होगा अवतार सिंह..!! साथ ही जो हमारी इज्जत आपने गांव में नीलाम की है उसकी भरपाई भी तो करनी होगी..!!"गजेंद्र सिंह बोले।

"हम दोस्त रहे हैं सालों से गजेंद्र..!! इस तरह की बातें तो ना करो। हम दोनों एक है और यह हमारे घर का मामला है। हम मिल बैठकर समझ लेंगे ना..!! क्यों पंचायत में बातों को उछालना ..??" अवतार बोले।

"कोई घर का मामला नहीं है...!! घर का मामला तब भी था जब बात मेरी नियति की थी। तब तो आप पांचों में से किसी ने नहीं कहा कि घर में मिल बैठकर समझ लो। तब भी निर्णय इसी चौपाल पर हुआ था और पंचायत ने किया था और आज भी निर्णय यहीं पर होगा और पंच करेंगे और वह भी जैसा मैं कहूंगा वैसा करेंगे, क्योंकि यहां गलत मेरे साथ हुआ है..!! धोखा मेरे साथ हुआ है। विश्वासघात मेरे साथ हुआ है, और आपकी बेटी नेहा ने और आपने मिलकर इज्जत मेरी और मेरे पापा की उछाली है।" निशांत ने गुस्से से ताव में आकर कहा।

"निशांत बेटा शांति से बात करो...!!" सुरेंद्र ने कहा।।

"आप बीच में मत बोलिए चाचा जी..!! जब आपके बेटे सौरभ की बात हो तब आप बोलियेगा अभी नहीं। अभी निर्णय मैं और पापा करेंगे क्योंकि हम बहुत अच्छे से जानते हैं कि आप उल्टा हमें ही चुप करने की कोशिश करेंगे।" निशांत बोला तो सुरेंद्र खामोश हो गए।

"भैया मैं क्या कह रहा था..??" सुरेंद्र ने गजेंद्र की तरफ देखकर कहा तो गजेंद्र ने अपनी हथेली सामने कर दी।

"निशांत बिल्कुल ठीक कह रहा है..! हँ मैं मानता हूं कि हम एक परिवार जैसे हैं। एक घर जैसे हैं और इसी नाते हमने रिश्ता तय किया था। पर आपने और आपकी बेटी ने यह सब चीजे खत्म की है।" गजेंद्र कठोरता से बोले तो सबने उनकी तरफ देखा।

"जब आपको पता था कि आपकी बेटी इस रिश्ते से खुश नहीं है तो आपने मना क्यों नहीं कर दिया..?? क्यों बारात आने तक इंतजार किया और सबसे बड़ी बात आपने अपनी बेटी को समझाया सिखाया क्यों नहीं कि यहां पर निर्णय बच्चे नहीं करते उनके माता-पिता करते हैं। यहां के भाग्यविधाता हम है ना कि हमारी औलाद ..?? फिर आपने उसे क्यों नहीं समझाया..?? और अगर समझाया था तो फिर भी उसने नहीं माना तो आपने उसे घर में बंद क्यों नहीं कर दिया? ऐसे कैसे भाग गई वह हमारे मुँह पर तमाचा मार के..!!"गजेंद्र ने गुस्से से चीखकर कहा तो अवतार ने हाथ जोड़ लिए।

"सच कह रहा हूं गजेंद्र भाई...!! पहले मुझे नहीं पता था और जब पता चला तब तक बहुत देर हो चुकी थी। शादी की तैयारी हो गई थी और मैंने नेहा को समझा दिया था। और नेहा मान गई थी। पता नहीं अचानक से ऐसा क्या हो गया कि वह चली गई। और अगर मुझे बिल्कुल भी अंदाजा होता तो मैं खुद उसे गोली मार देता। उसकी जान ले लेता पर उसे ऐसा नहीं करने देता।

आप जानते हो इस गांव की मर्यादाएं नियम जितना आपके लिए है उतना ही मेरे लिए भी है। मैं भी कभी किसी प्रथा के विरोध में नहीं गया और ना ही मैं जानकर अपने बच्चों को जाने दे सकता हूं।" अवतार ने सफाई पेश की।

"जब इतना जानते हैं तो फिर यह भी जानते होंगे कि जब भी इस तरह की कोई घटना होती है तो सजा मिलती है..!! अब नेहा और उसका प्रेमी अगर पकड़ में आ जाता तो सजा उन लोगों को मिलती। पर किस्मत उनकी कि वह दोनों भाग गए। दूर-दूर तक उनका कहीं कोई नामो निशान नहीं है और मैं जानता हूं कि अब वह मिलेंगे भी नहीं। क्योंकि जब तक हम मुंबई पहुंचेंगे वह मुंबई से भी निकल जाएंगे। आप जानते हो की सजा तो किसी न किसी को मिलेगी। नेहा को ना सही तो नेहा के माता-पिता को सही।" निशांत ने कहा।

"ठीक है निशांत बेटा...!! तुम जैसा चाहे जैसा करो। मैं हर सजा झेलने को तैयार हूं।" अवतार ने हाथ जोड़े जोड़े कहा।

"सजा के तौर पर आर्थिक जुर्माने में आपको अपनी जमीन का आधा हिस्सा हमें देना होगा। अभी के अभी कागज साइन करने होंगे।" निशांत बोला।

" मंजूर है।" अवतार ने राहत की सांस ली।

"यह तो हुआ आर्थिक जुर्माना और जो नेहा ने हमारी इज्जत उछाली है उसके बदले में हमें आपकी इज्जत चाहिए।" निशांत ने कठोर आवाज में कहा तो अवतार कांप गए।

"मतलब? " अवतार ने कहा।

"आपकी पत्नी भावना को इस चौपाल पर निर्वस्त्र किया जाएगा। उनका मुंह काला करके पूरे गांव में घुमाया जाएगा। यही सजा है आपके लिए जो आपने और आपकी बेटी ने हमारी इज्जत के साथ खेल कर किया है उसके बदले में।" निशांत ने ढीठता के साथ कहा तो अवतार एकदम उसके पैरों में गिर गए।

"नहीं निशांत बेटा ऐसा मत करो। हम लोग जीते जी मर जाएंगे। प्लीज अब बेटा रहम करो। मैं तुम्हारे चाचा के जैसा हूं। बचपन से तुम लोग हमारे घर खेलते रहे हो इस तरीके का मत करो।" अवतार ने दुखी होकर कहा।

"आप लोग भी कुछ बोलिए ना ..?? पंच लोगों मैंने हमेशा आप लोगों का साथ दिया है। हर समय आप लोगों के साथ खड़ा रहा हूं। पर कभी भी इस तरीके का निर्णय हमने नहीं लिया है। आप लोग इतनी बड़ी बात कैसे मान सकते हो..?? मेरी पत्नी के साथ ऐसा नहीं कर सकते आप लोग.? मैं भी आप पांचों में से ही एक हूं। कुछ तो लिहाज कीजिए।" अवतार ने बाकी पंचों के सामने हाथ जोड़ दिये।

"निशांत बेटा यह ठीक कह रहे हैं..!! हमें तुम्हारे साथ सहानुभूति है और हम तुम्हारे साथ हैं। पर इसके बदले में कुछ और मांग लो। भावना इस इस गांव की महिला है तो हम तुम्हारी भी माँ के समान है।" पंच बोले।

"बदले में है क्या इनके पास जो यह देंगे मुझे..??" निशांत बोला।

"मैं तुम्हें अपनी जितनी भी जमीन है उसमें से आधा देने के लिए तैयार हूं। उसी के साथ-साथ जो सांझ के हिस्से की जमीन है यानी कि मेरे भाई की जमीन है वह भी मैं तुम्हें देने के लिए तैयार हूं। हमारी सजा माफ कर दो।" अवतार ने हाथ जोड़कर कहा।

"नहीं इतने से काफी नहीं है..!! कहा है ना इज्जत के बदले इज्जत। आप आपकी लड़की बारात को दरवाजे पर छोड़कर भागी है। इतनी आसानी से तो हम यह चीजे नहीं भूल सकते।" निशांत ने गुस्से से दांत पीसकर कहा।

"तो मेरे घर में दूसरी बेटी है ना सांझ। उसकी शादी तुम्हारे साथ करवा देते हैं तुम उसे जैसे चाहे वैसे रखना। अपने घर की नौकरानी बनाकर रखना हम कुछ भी नहीं कहेंगे। और इस तरीके से दोनों परिवारों की इज्जत भी रह जाएगी।" अवतार को रास्ता सुझा।

" उस लड़की के चेहरे से ही मुझे नफरत है। उससे मैं शादी करूंगा.? क्या समझ रखा है आपने मुझे.? हीरा दिखाकर पत्थर पकड़ा दोगे और मैं बहल जाऊंगा। बात नेहा के साथ शादी की हुई थी और आप सांझ को मेरे गले मढ़ना चाहते हैं।" निशांत फिर से गुस्सा हो उठा।

" शादी नहीं भी करनी तो भी कोई दिक्कत नहीं है...!! तुम उसे गुलाम बन कर रखो। अपने घर में बंधुआ मजदूर बनाकर रखो क्या फर्क है।" गजेंद्र शातिर मुस्कान के साथ बोले।

" क्या बोलते हो अवतार..??" पंच बोले।

" शादी.. कर लेते।" अवतार बोले।

" कहा न शादी नही करूँगा..!! मंजूर है तो ठीक..!!" निशांत ने कठोरता से कहा।

"मुझे कोई भी आपत्ति नहीं है...!! पर इस बात को अब यहीं पर खत्म कर दीजिए।" अवतार सिंह ने दुखी होकर कहा।

"ठीक है..!!" निशांत कुछ देर तक सोचता रहा।

" इस बात को पूरे होशो हवाश में कह रहे हो कि सांझ के साथ हम जो चाहे वह करें तुम्हें कोई आपत्ति नहीं होगी...?? उस पर हमारा हक होगा मतलब कि निशांत का?? " गजेंद्र ने कहा तो अवतार ने गर्दन हिला दी।

निशांत ने तुरंत अपने दोस्त को इशारा किया और वह कागज लेकर आ गया।

"लिखो इस पर कि " मैं अवतार सिंह अपनी आधी जमीन और सांझ के पिता की पूरी जमीन निशांत के नाम कर रहा हूँ...!" निशांत ने कहा तो उसके दोस्त ने वैसा ही लिख दिया और उन्होंने अवतार के साइन उस कागज पर ले लिए।

"अब दूसरा कागज निकालो...!! लिखो इस पर कि तुम अपनी इच्छा से अपनी स्वीकृति से बिना किसी के दबाव में आकर अपनी भतीजी सांझ को मुझे बेच रहे हो। मैं उसके साथ जो चाहूं जैसा चाहूं वैसा करूँ...तुम कभी कुछ भी नहीं कहोगे और ना ही कोई पुलिस कंप्लेन करोगे। ना ही किसी से शिकायत करोगे और अभी के अभी यह गांव छोड़कर चले जाओगे।" निशांत ने कहा तो अवतार की आंखों में आंसू भर आये।

" मुझे माफ कर देना भाई साहब पर मैं मजबूर हूं।" अवतार ने कहा और कागज पर साइन कर दिये।

"ठीक है तो सांझ को हमारे हवाले कर दो और उसके बाद तुरंत ही यह गांव छोड़कर चले जाओ बाद में आकर अपनी बची हुई जमीन बेचकर पैसा ले जाना पर यहां पर दोबारा अपनी सूरत मत दिखाना।" निशांत बोला तो अवतार ने भरी आँखों से उसे देखा और थके कदमों से घर की तरफ चल दिया।

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव

इस पार्ट को पढ़िये कमेंट्स कीजिये।
दोपहर को दूसरा पार्ट देती हूँ।