साथिया - 70 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 70

आज तक कभी भी उसने नील और रिया को इस तरीके से नहीं देखा था कि उसे लगे की इन दोनों के बीच गहरा रिश्ता है। जो कुछ भी था वह सिर्फ रिया के मुंह से सुना था और जब आज अक्षत कह रहा था कि ऐसा कुछ भी नहीं है तो मनु भी सोचने पर मजबूर हो गई।


"क्या अक्षत सही कह रहा था मेरे रिश्ते में ही विश्वास नहीं था...? प्यार की पहली सीढ़ी होती है विश्वास और मैंने कभी भी नील पर विश्वास नहीं किया। मैंने कभी भी अपने प्यार पर विश्वास नहीं किया..?? नील ने तो कभी नही कहा कि वो रिया को चाहता है फिर मैंने कैसे रिया पर विश्वास कर लिया?" मनु खुद से बोली।

"अगर विश्वास करके एक बार उससे पूछा होता और अपने दिल का हाल कहा होता तो शायद आज इतना कुछ नहीं हुआ होता। अगर नील गलत है तो गलत मै भी हूँ।" मनु बोली और फिर आंखें बंद कर ली और अपने नील और रिया के बारे में सोचते हुए उसे भी नींद आ गई।

*********


*उधर अमेरिका मे*

अबीर अभी तक इंडिया से नहीं आए थे तो शालू माही को लेकर उसके डॉक्टर के पास गई।

डॉक्टर ने पूरा चेकअप किया और माही की थोड़ी काउंसलिंग की।

उसके बाद माही को सिस्टर के साथ भेज दिया इंजेक्शन रूम में।


"अब कैसी है इसकी तबीयत कुछ इंप्रूवमेंट लग रहा है?" शालू ने पूछा।

"बिल्कुल इंप्रूवमेंट लग रहा है और सच कहूं ना मुझे पूरा विश्वास है कि जल्दी ही इन्हें सब कुछ याद आने वाला है, जिस हिसाब से आपने बताया कि इन्हे बार-बार सपने आते हैं और यह सपनों में कुछ पुराना याद करती है तो मुझे लगता है कि जल्दी ही इन्हें सारा सच याद आने वाला है। हालांकि जैसा आप लोगों ने बताया और जैसा मैंने जाना है इनकी पुरानी यादें बहुत ही दर्दनाक है जो की इन्हे तकलीफ भी देंगी पर आप लोगों का साथ और प्यार इन्हे ओवरकम करने में मदद करेगा।" डॉक्टर बोले।

"जी डॉक्टर हम हमेशा इसके साथ है...! मेरी बहिन है माही और दुनियाँ इधर से उधर हो जाए पर इसका साथ नही छोड़ूंगी मैं...!" शालू बोली और उठकर जाने लगी।


" वैसे यह जज साहब कौन है?" अचानक से डॉक्टर ने कहा तो शालू ने पलट कर देखा और फिर डॉक्टर के पास जाकर वापस बैठ गई और उनसे बात करने लगी।


उधर इंजेक्शन रूम में माही बैठी अपनी बारी का इंतजार कर रही थी और सिस्टर उसके लिए इंजेक्शन रेडी कर रही थी। तो वही दूसरे चेयर पर एक बच्चा बैठा हुआ था जो कि लगातार रोए जा रहा था और उसकी मम्मी उसे चुप करने में लगी हुई थी तो वही सिस्टर उसके लिए भी इंजेक्शन रेडी करने में।

"प्लीज बेटा चुप हो जा..!! इंजेक्शन लगवाना जरूरी है न..!! आपको आयरन से चोट लगी है ना टिटनेस का इंजेक्शन कंपलसरी है।" उसकी मां ने समझाया।

सिस्टर ने भी उसे बच्चे को समझाया।


" नहीं मुझे इंजेक्शन नहीं लगवाना..!! मुझे डर लगता है।" बच्चा और भी ज्यादा मचलने लगा और सिस्टर को हाथ भी नहीं लगाने दे रहा था।

माही उठकर उस बच्चे के पास आई और उसे अपने गोद में उठा लिया।

"और क्यों नहीं लगवाना है मेरे बाबू को इंजेक्शन?"

" दर्द होता है।" बच्चे ने कहा।

"और अगर मैं कहूं कि दर्द नहीं होगा तब लगवाओगे आप..?" माही ने बच्चे को उसकी माँ की गोद मे देते हुए कहा।
"सच? " बच्चे ने आंखें टिमटिमाते हुए उसे देखा।

"पर इंजेक्शन में तो दर्द होता है ना...!! मैं नहीं लगवाउंगा।" बच्चे ने कहा।

"बिल्कुल भी नहीं होगा विश्वास करो मुझ पर..!!बिल्कुल भी दर्द नहीं होगा और अगर आपको दर्द हुआ तो आप उन सिस्टर को बोल देना वह मुझे एक की जगह तीन इंजेक्शन लगाएंगी तब तो ठीक है ना।" माही बोली तो बच्चे ने गर्दन हिला दी।


माही ने सिस्टर के हाथ से सिरिंज लिया।

"आप नहीं? " सिस्टर बोली तो माही ने उसे शांत रहने का इशारा किया।


" आप बताओ आपका फेवरेट कार्टून कौन सा है?" माही ने बच्चे की आँखों मे देखते हुए कहा।
तो बच्चे ने अपने कार्टून का नाम बता दिया...!

"और आपकी फेवरेट चॉकलेट कौन सी है??"

बच्चे ने चॉकलेट का नाम लिया


" अरे यह वाली...! यह तो मुझे भी बहुत पसंद है। पता है आपको जब भी पापा बाहर जाते हैं तो मेरे और मेरी दी शालू हम दोनों के लिए ये वाली चॉकलेट लाते हैं। अब यह मत कहना कि हम लोग इतने बड़े हो गए तब भी चॉकलेट खाते हैं। चॉकलेट खाने के लिए कोई एज नहीं होती बच्चे सब लोग खाते हैं।" माही बोलती जा रही थी और धीमे से उसे इंजेक्शन लगा दिया।

बच्चे को पता भी नहीं चला।

" हो गया।" माही ने कहा तो बच्चे ने आंखें बड़ी कर उसे देखा।

"दर्द हुआ क्या?" माही बोली तो बच्चे ने ना में गर्दन हिला दी।

"थैंक गॉड बच गई मैं...!! वरना अगर तुम्हें दर्द हो जाता तो तुम तो सिस्टर से बोलकर मुझे तीन इंजेक्शन लगवा देते...!!" माही ने कहा तो बच्चा झट से उसके गले लग गया।


"थैंक यू दीदी आप ना बहुत स्वीट हो..!" बच्चा बोला और फिर अपनी मम्मी के साथ चला गया।

" आपने इंजेक्शन कैसे लगा दिया?? आई मीन.?" सिस्टर बोलते बोलते रुक गई?

" पता नहीं ..!!" माही ने कहा और फिर सिस्टर से अपना इंजेक्शन लगवाया और वापस से डॉक्टर की केबिन की तरफ चल दी।

डॉक्टर के केबिन के बाहर पहुंची थी कि तब तक शालू भी बाहर आ गई।


"चलें? " शालू बोली।

"हां चलो..!!" माही बोली और उसके साथ चल दी।

" अच्छा शालू दी एक बात बताओ..!!" माही ने चलते-चलते पूछा।

" पूछो ना?" शालू बोली।


"मुझे इंजेक्शन लगाना कैसे आता है? आई मीन मैंने सीखा है? क्या मैं डॉक्टर थी या नर्स?? या क्या थी मैं हेल्थ वर्कर थी??" माही बोली।


"कहा है ना धीमे-धीमे सब याद आ जाएगा, फिर क्यों इतना स्ट्रेस लेती हो। चलो अभी घर चलो दवाइयां भी लेनी है रास्ते से तुम्हारी फिर घर चलते हैं। मम्मी परेशान हो रही होगी। वैसे भी जब मैं और तुम अकेले आते हैं तो टेंशन हो जाती है उन्हें। पर क्या करें आज का अपॉइंटमेंट था और पापा की भी मीटिंग अर्जेंटली आ गई तो पापा को इंडिया जाना पड़ा तो हम दोनों को अकेले ही आना पड़ा।" शालू बोली।

" इंडिया? " अचानक से माही के मुंह से निकला।

"हां इंडिया गए इंडिया ही तो गए पापा..!!"

"शालू दी क्या हम इंडिया में रहते थे पहले?"अचानक से माही ने फिर से सवाल कर दिया।

शालू ने उसकी तरफ देखा और फिर उसके चेहरे से हाथ लगाया।

" आजकल बहुत सवाल आने लगे हैं तुम्हारे दिमाग में..?? चलो कोई बात नहीं बता देती हूं। हम लोग इंडिया में ही रहते थे और पापा का वहां अभी भी अच्छा खासा बिजनेस है। इसलिए वह हर एक दो महीने में इंडिया जाते हैं ताकि बिजनेस की भी देखभाल कर सके।" शालू बोली।


"फिर हम यहां शिफ्ट क्यों हो गए ? मतलब हम इंडिया क्यों नहीं रहते अब? " माही बोली।

"तुम्हारा एक्सीडेंट हुआ था और तुम्हें बेहतर इलाज की जरूरत थी..!; इसलिए हम सब लोग तुम्हें लेकर यहां आ गए। "

"मेरे लिए आप लोगों ने सब कुछ छोड़ दिया? मतलब जहां हमेशा से रहे वह घर...!! वह शहर वह देश? " माही बोली।

" तुम मेरी बहन हो पापा और मम्मी की बेटी हो...!! तुम्हारे लिए हम कुछ भी कर सकते है माही तो फिर अपने देश को और उस देश के लोगों को छोड़ना कौन सी बड़ी बात है..!" शालू ने कहा और आकर गाड़ी में बैठ गई।

माही भी दूसरी साइड से आकर बैठ गई और ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी।


"अब ज्यादा मत सोचो...!! थकान हो रही होगी। आंखें बंद करो थोड़ा रेस्ट कर लो। वैसे भी घर पहुंचने में टाइम लगेगा।" शालू ने कहा।

माही ने आंखें बंद कर ली पर दिमाग में हलचल मची हुई थी।

कई सारे सवाल अब आजकल उसके दिमाग में उठने लगे थे सवाल अपने अस्तित्व के सवाल अपनी पहचान के और सवाल इस अलग देश में आकर बसने को लेकर...!! वह जानती थी कि उसके सवालों के जवाब से तभी मिलेंगे जब उसकी याददाश्त वापस आएगी क्योंकि जितना उसने अब तक समझा था यह लोग जितने उसके दिमाग में सवाल आते थे उनका जवाब देते थे, पर इसके अलावा एक्स्ट्रा कुछ भी नहीं बताते थे। शायद डॉक्टर के मना करने के कारण।


" जानती हूं मैं माही कि तुम्हारे दिमाग में बहुत सवाल है..!! पर हम भी मजबूर हैं। अपनी तरफ से तुम्हें कुछ भी बता कर तुम्हारे ऊपर प्रेशर नहीं डाल सकते। अगर हम तुम्हें बताएंगे तो तुम फिर सोचने की और याद करने की कोशिश करोगी, जोकि तुम्हारे लिए ठीक नहीं है। धीमे-धीमे तुम्हें सब कुछ खुद ही याद आ जायेगा। और जैसा कि आज डॉक्टर ने कहा कि जल्द ही याद आएगा। बस मैं भी उसे दिन का इंतजार कर रही हूं। हालांकि मैं जानती हूं कि तुम्हारी याददाश्त आना मतलब तुम्हारे लिए बहुत ही तकलीफ देने वाला है। पर कभी ना कभी तो तुम्हें सच का सामना करना ही होगा और शायद हमें भी।" शालू ने खुद से ही कहा और फिर विंडो से बाहर देखने लगी।


आंखों के आगे दिल्ली कॉलेज और ईशान का चेहरा आ गया और कानों में ईशान की आवाज और मस्ती भरी बातें गूंजने लगी

शालू के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई।

"जिंदगी हर कदम एक नया इम्तिहान हमारे सामने रखती है ईशान.!! और हम चाहे या ना चाहे हमें वह इम्तिहान देना ही होता है। अब इस इम्तिहान में मैं एक बहन के रूप में तो शायद पास हो गई हूं पर एक प्रेमिका के रूप में फेल हो गई हूं जानती हूं मैं..!! पर मजबूर हूं। बात जब खून के रिश्ते की आती है तो इंसान हमेशा अपने खून की तरफ ही झुकता है। यह बात अब तक सुनी थी पर अब जान भी ली है।

पिछले दो सालों से माही के अलावा मुझे ना कुछ दिखाई देता है ना कुछ समझ आता है। और जानती हूँ इंडिया आकर भी एक इम्तिहान देना है। मोहब्बत का इम्तिहान।" शालू ने खुद से ही कहा और फिर उसने भी आंखें बंद कर ली और इशान के साथ बीताएं पलों याद करने लगी जो कि कभी आंखों में नमी तो कभी होठों पर मुस्कुराहट ला रही थी।


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव