कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(१९) Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(१९)

चारुचित्रा को मौन देखकर मनोज्ञा बोली...
"क्या हुआ रानी चारुचित्रा! आप मौन क्यों हो गईं,महाराज द्वारा छले जाने पर आप उनसे प्रतिशोध नहीं लेगीं",
तब चारुचित्रा बोली...
"नहीं! मनोज्ञा! मेरी ऐसी प्रकृति नहीं है कि मैं उनसे प्रतिशोध लूँ,वे मेरे स्वामी हैं,अपने माता पिता की सर्वसम्मति से ही मैंने उनसे विवाह किया था और ईश्वर साक्षी है कि मैं उनसे कितना प्रेम करती हूँ,यदि इतनी सी बात पर मैं उनसे प्रतिशोध लेने लग जाऊँ तो इसका तात्पर्य है कि हम दोनों का सम्बन्ध कच्चा है और जब सम्बन्ध कच्चा हो जाता है तो कोई भी तीसरा व्यक्ति उनके मध्य घुसकर उस सम्बन्ध को खण्डित कर सकता है,जो कि मैं ये होने नहीं दूँगी"
"ओह...तो आपकी सोच का स्तर तो अत्यधिक ऊँचा है,परन्तु आप चाहे कुछ भी कर लीजिए,यदि महाराज को मैंने अपने वश में ना कर लिया तो मैं भी कालबाह्यी नहीं",मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोली...
"ओह...तो तुम्हारा असल नाम कालबाह्यी है",चारुचित्रा बोली...
"हाँ! मैं कालबाह्यी हूँ",मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोली...
तब चारुचित्रा बोली...
"तो सुनो कालबाह्यी! तुम अपनी किसी भी शक्ति का प्रयोग कर लेना,मैं भी तुम्हें चुनौती देती हूँ कि तुम कभी भी महाराज के हृदय में अपना स्थान नहीं बना सकोगी,वो कभी भी तुमसे प्रेम नहीं कर सकते,तुम्हारी शक्तियों के आगें मेरे प्रेम की जीत निश्चित है",
"वो तो समय ही बताएगा रानी चारुचित्रा कि कौन जीतता है",कालबाह्यी बोली....
"प्रेम वही कर सकता है जिसमें त्याग की भावना होती है,मैं महाराज के लिए सबकुछ त्याग सकती हूँ लेकिन तुम नहीं,क्योंकि तुम्हारी तृष्णा तुम्हें कुछ भी त्यागने ही नहीं देगी",चारुचित्रा बोली....
"बस...रानी चारुचित्रा! मुझे आपका व्यर्थ का वार्तालाप नहीं सुनना,अब राजमहल चलते हैं",मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोली....
"बस...इतने शीघ्र हार मान ली कि मेरा वार्तालाप भी तुम्हें नहीं भा रहा",चारुचित्रा बोली...
"मैं चाहूँ तो अभी आपकी जीवनलीला समाप्त कर सकती हूँ,क्योंकि इतनी बात मैं किसी की भी नहीं सुनती,किन्तु मैं ऐसा नहीं करूँगी,क्योंकि मुझे आपको हारते हुए देखना है",मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोली...
"तुम्हारा ये स्वप्न कभी पूरा नहीं होगा कालबाह्यी!",चारुचित्रा बोली....
"आपको मुझसे भय नहीं लगता,जो आप ऐसीं बातें कर रहीं हैं"कालबाह्यी बोली....
"तुमसे और भय,भय तो उसे होता है जिसने कोई पाप किया हो,जिसने किसी के संग कोई छल कपट किया हो,मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया तो मैं भला किसी से क्यों भयभीत हूँगी,भयभीत तो तुम्हें होना चाहिए,जो तुम हर किसी के संग छल कर रही हो",चारुचित्रा बोली...
"इतना आत्मविश्वास....मानना पड़ेगा कि आप अत्यधिक साहसी हैं",मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोली....
"हाँ...मैं एक वीर राजा की पुत्री और एक वीर राजा की पत्नी जो ठहरी,इतना साहस तो होगा ही मुझ में" चारुचित्रा बोली...
"अब राजमहल चलें,कहीं महाराज राज्य भ्रमण से वापस ना आ गए हों,राजमहल में हम दोनों के अनुपस्थित होने पर वे कोई ऐसा प्रश्न ना पूछ बैठें जिसका उत्तर हम दोनों के पास ना हो ",मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोली...
"उनके प्रश्नों के उत्तर की चिन्ता तुम्हें करनी चाहिए,मेरे पास तो उनके हर प्रश्न का उत्तर है",चारुचित्रा बोली...
"हाँ!ठीक है रानी चारुचित्रा!,अब चलें",मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोली...
"हाँ! चलो"चारुचित्रा बोली...
इसके पश्चात् मार्ग में वार्तालाप करतीं हुईं, दोनों राजमहल वापस आ गईं,उस समय महाराज विराटज्योति राजमहल में प्रवेश कर चुके थे,उन्होंने दोनों को साथ में देखा तो बोले...
"आप दोनों कहाँ गईं थीं"?
"जी! रानी चारुचित्रा का मन तनिक विचलित था,इसलिए मैं उन्हें राजमहल से बाहर ले गईं थी",मनोज्ञा बोली...
"ये तुमने ठीक किया मनोज्ञा! तुम्हें रानी चारुचित्रा की इतनी चिन्ता है ये देखकर मुझे अत्यधिक प्रसन्नता हुई", विराटज्योति बोला...
"महाराज! मैं ही इनकी एकमात्र सखी हूँ तो ये अपना दुःख मुझसे साँझा नहीं करेगीं तो किससे करेगीं", मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोली....
"चारुचित्रा! अब तुम्हें कैंसा लग रहा है,अब तो ठीक हो ना तुम",विराटज्योति ने पूछा...
"जी! महाराज! अब मैं विश्राम करने हेतु अपने कक्ष में जा रही हूँ",
और ऐसा कहकर चारुचित्रा अपने कक्ष में चली गई,विराटज्योति ने मनोज्ञा से भी विश्राम करने को कहा और वो भी वहाँ से चली गई,तब विराटज्योति ने सोचा कदाचित चारुचित्रा का मन प्रातःकाल की बात को लेकर अभी भी विचलित है,मुझे उसके पास जाकर इस विषय पर बात करके उससे क्षमा माँगनी होगी, क्योंकि भूल तो मुझसे हो ही चुकी है इसलिए उसका पश्चाताप भी आवश्यक है और यही सब सोचकर विराटज्योति चारुचित्रा के पास पहुँचा और उससे बोला....
"प्रिऐ! मुझे क्षमा कर दो,जो अपराध अतीत में मुझसे हो चुका है उस क्षति को तो मैं नहीं भर सकता,किन्तु तुम्हें ये विश्वास अवश्य दिला सकता हूँ कि पुनः ऐसा कुछ भी नहीं होगा,मुझे राजा अवश्य बनना था किन्तु मैं तुमसे प्रेम भी करता था,अभी भी करता हूँ और भविष्य में भी करता रहूँगा,कृपया मुझसे मत रुठो,तुम मुझे इस भूल के लिए जो भी दण्ड देना चाहती हो तो दे सकती हो",
तब चारुचित्रा ने अपनी दृष्टि फेरी और उसने देखा कि विराटज्योति की आँखों में पश्चाताप के आँसू हैं,उसकी आँखें सच कह रहीं थीं,अभी भी विराटज्योति के हृदय में उसके लिए प्रेम था,जो उससे अतीत में हो चुका था वो अज्ञानतावश हुआ था,वो आयु ही ऐसी होती है, इसलिए कदाचित विराटज्योति बुराई और भलाई में अन्तर नहीं समझ पाया,यदि उसने इस समय उसे क्षमा नहीं किया तो कालबाह्यी को उनके मध्य आने का मार्ग मिल जाएगा एवं वो कभी भी ऐसा नहीं होने देगी और यही सब सोचकर उसने विराटज्योति से कहा....
"महाराज! मैं आपको क्षमा कर चुकी हूँ,युवावस्था में अज्ञानतावश ऐसी भूल हो जाया करती है,जो आपसे भी हो गई,मुझे आपसे कोई ग्लानि नहीं है,कृपया आप स्वयं को अपराधी ना समझें"
"सच! तुमने मुझे क्षमा कर दिया चारुचित्रा!",विराटज्योति ने पूछा...
"हाँ! महाराज! हम दोनों का प्रेम इतना कच्चा नहीं है,जो तनिक सी बात से टूट जाएँ",चारुचित्रा बोली...
"कदाचित! तुम सच कहती हो,मुझे एक बात और कहनी थी तुमसे"विराटज्योति बोला...
"हाँ! कहें महाराज!",चारुचित्रा बोली...
"जो मैंने यशवर्धन को लेकर तुम्हारे ऊपर कलंक लगाया था,उसके लिए भी क्षमा कर दो",विराटज्योति बोला...
"मैं आपकी कही सभी बातें भुला चुकीं हूँ महाराज! आप नाहक ही चिन्ता में डूबे हैं",चारुचित्रा बोली....
"तुम कितनी अच्छी हो प्रिऐ!",
और ऐसा कहकर विराटज्योति ने चारुचित्रा को अपने हृदय से लगा लिया,चारुचित्रा ने भी विराटज्योति को अपने अंकपाश में भर लिया,दोनों अपने मन की कटुता भुलाकर उस क्षण को जी लेना चाहते थे,दोनों अब पूर्णतः प्रेमानन्द में डूब चुके थे,प्रातःकाल जब रानी चारुचित्रा अपने कक्ष से बाहर आई तो उसके मुँख की कान्ति देखकर मनोज्ञा बनी कालबाह्यी ईर्ष्या से जल उठी और चारुचित्रा के पास आकर मद्धम स्वर में बोली....
"ऐसा प्रतीत होता है कि आपने महाराज को क्षमा कर दिया",
"मैंने कहा था ना कि मैं किसी तीसरे व्यक्ति को अपने और महाराज के मध्य नहीं आने दूँगी",चारुचित्रा बोली...
"ओह....तो आपको ऐसा लगता है कि आप इस कार्य में सफल हो चुकीं हैं",मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोला..
"हाँ! कदाचित! महाराज अब भी मुझसे उतना ही प्रेम करते हैं ,वो मुझे कल रात्रि ज्ञात हो चुका है", चारुचित्रा बोली...
"मैं आपकी ये प्रसन्नता अधिक दिनों तक रहने नहीं दूँगीं",मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोली....
"वो तो समय ही बताएगा मनोज्ञा! तुम कितना भी प्रयास कर लो,परन्तु तुम महाराज को अपने वश में नहीं कर सकती",चारुचित्रा बोली...
"मैं ऐसा करके ही रहूँगीं"
और ऐसा कहकर मनोज्ञा बनी कालबाह्यी वहाँ से चली गई....

क्रमशः...
सरोज वर्मा...