द्रोहकाल जाग उठा शैतान - 43 Jaydeep Jhomte द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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द्रोहकाल जाग उठा शैतान - 43

एपिसोड ४३


"मल्किनबाई..! तुम्हारे पास जितने गहने हैं।"

अपनी लड़की के गले में समद डाल दो..! "रामू सावकारा ने स्लीपर रोका और धामाबाई की ओर देखकर कहा।" तुम चाहो तो नया कर्ज ले लो।" रामू सावकारा ने अपनी एक भौंहें ऊपर उठाईं। "जितनी जरूरत हो उतने पैसे खर्च करो।

"आप इसकी चिंता क्यों नहीं करते!"

धामाबाई ने अपने लाल दांत दिखाते हुए मुस्कुराते हुए कहा। रामू ने बस सिर हिलाया और जारी रखा।

"संतुयौ - लंका, मेरे पास तुम्हारे लिए एक काम है!"

“जी अब्बा!”

"कि भाटसा ने मालिक का पता ढूंढ लिया, और कावा बी दारासिंह से मिलेंगे और उन्हें सब बताया। सैनिकों को ले कर वे तहखाने में पहुंचे। और दिन के दौरान मालिक की नींद का फायदा उठाते हुए, उन्हें मौका नहीं मिला भट्ट को छोड़ो! इसलिए मैंने मास्टर को अब यहां लाने का फैसला किया!

"ठीक है हाय अबा, बताओ मालिक कहाँ है, मैं अपने चाचा को मालिक के पास ले आऊँगा!"

लंकेश ने संत्या की ओर देखा और वह तैयार था।

"ठीक है, सुनो तो? राहजगढ़ के जंगल में कलजल नदी के दूसरे छोर पर पेड़ों से सजी एक गुफा है। उस गुफा में हमारे पूर्वजों ने एक तहखाना बनाया था और उस तहखाने में हमारे भगवान एक कब्र में सोए थे !""ठीक है अबा येतु हम!" लंकेश ने कहा और तुरंत अपने चाचा संत्या के साथ जाने लगा।

''रुको!'' साहूकार का सारा ध्यान आगे की ओर था।

"एक बात याद है?" सवाकर बिस्तर से उठ गया। उसने अपनी चीनी गोटी जितनी बड़ी आँखों से उन दोनों पर धैर्य और गंभीरता से नज़र डाली और जारी रखा।

"क्या हुआ? लेकिन मालिक की कब्र को अँधेरे में मत खोलना! अगर नहीं!"

रामू सवकारा ने निगल लिया - सुबह के सूरज में उसके माथे से बहती तरल बूंद ने पूर्वाभास दिया कि क्या होने वाला था - मौत..!"

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महाराज उन भयानक घटनाओं से अंधे नहीं हुए जो घटित हुईं। क्योंकि जो भी अमायावी, जो दूसरे आयाम से हमारे आयाम में आई थी, अब गाँव में प्रवेश कर रही थी। उसकी शक्ति और उसकी क्रूरता का खेल महाराजा ने अपनी आँखों से देखा था। जैसे ही उन तीनों लाशों ने पल-पल अपनी आंखें बंद कीं, हदया की धड़कनें तेजी से चलने लगीं।

महल के बाहर बीच में एक गोल मेज थी और बगीचे में हरी घास पर लकड़ी की चार सफेद कुर्सियाँ रखी हुई थीं। उस पर एक सफेद कांच का जग रखा हुआ था, उसके बगल में कप और तश्तरियाँ रखी हुई थीं।

महाराज एक कुर्सी पर बैठे थे, उनके बगल में महारानी अपने हाथों में एक जग थामे कुर्सी पर बैठी थीं और कप में गर्म-गर्म चाय डाल रही थीं।

"महाराज, आप इतनी चिंता न करें! देखिए सब ठीक हो जाएगा।"

महारानी वाफाल्टा ने प्याला महाराज की ओर आगे बढ़ाते हुए कहा।

"नहीं महारानी! अब कुछ भी ठीक नहीं होगा! जिस डर को हम इतने दिनों से दबाकर बैठे थे। वह अब सच हो गया है.. वह बुरी और जटिल शक्ति जो गेट के बाहर छिपी हुई थी, अब गाँव में प्रवेश कर गई है। जानें।"
"महारानी, क्षमा करें! हमारी चर्चा में विघ्न डालने के लिए! लेकिन हम एक महत्वपूर्ण सन्देश लेकर आये हैं।"

यरवशी प्रधान महाराज-रानी के सामने खड़ा हो गया और फिर से कमर झुकाते हुए बोला

"कैसी विदाई! त्रिकाल गुफा!" महारानी ने थोड़ा खुश होते हुए कहा.

"क्षमा करें महारानी अभी भी त्रिकाल गुफा से हमारा जासूस संदेश है

नहीं लाया! "

"तो फिर, यह और कौन सा महत्वपूर्ण संदेश है?" महारानी ने कहा..महाराज कुर्सी पर पीठ करके बैठे थे और उनकी आँखें बंद थीं। लेकिन उनके कान सब कुछ सुन रहे थे..

"रघुभट्ट नाम का एक जंगली आदिवासी महारानी वेशी के पास आया है! वह तत्काल महाराजा से मिलना चाहता है!"

जैसे ही यह वाक्य प्रधानजी के मुँह से निकला, महाराज ने गहरी साँस लेकर आँखें खोल दीं।

"योग पुरुष!" महाराज ने कहा.



हमेशा इंतज़ार.. रोशनी का..

अँधेरे का इंतज़ार शुरू हो गया है..

...



क्रमश:

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अगला भाग देखें...

1] शलाका को महारानी ताराबाई ने महल में क्यों बुलाया?

2] लंकेश संत्य अपने गुरु को घर कैसे लाएंगे? या फिर रघु बाबा उनसे पहले बेसमेंट में पहुंच जायेंगे?

3] अंबो के मसना में गद्दारों के डंक से सनी तीन लाशें हैं! क्या वह जीवित होकर अम्बो और मेघावती के लिए ख़तरनाक नहीं बन जायेगी?”

4] अगले एपिसोड में त्रिकाल गुफा अलविदा कह देगी.?