एडीओ साहब
एडीओ साहब इनका नाम नहीं बल्कि एक पद है सरकारी पद है। जिसे इन्होंने अपने मेहनत, काबिलियत और बलबूते के कारण इसे हासिल किए थे। इनका नाम स्वामीनाथ राम था। इनका जन्म 12 अगस्त 1938 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में एक छोटे से गांव चक उसरैला में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री जमुना राम था। और वे कोलकाता में रेल्वे में ड्राइवर थे। इनकी माता इनको बचपन में ही छोड़कर स्वर्ग सिधार गई थी। ये दो भाई और दो बहन थीं। दोनों बहने बड़ी थी। अपने दोनों भाइयों को बड़े लाड प्यार से पाला पोशा । एडीओ साहब बचपन से ही पढ़ने में होनहार थे। इन्होंने आठवीं तक अपने गाँव में रहकर पढ़ाई की। और नवीं से लेकर बारहवीं की पढ़ाई अपने पिताजी के यहां कोलकाता चले गए। वहां से उन्होंने बारहवीं पूरा किये। फिर घर पर कुछ समस्याओं के कारण इनको वापस घर आना पड़ा। और इन्होंने बलिया से ही बीएससी मैथ्स से डिग्री प्राप्त किए। इन्होंने अपने जीवन मे बहुत यात्राएं झेली। ये किस्मत के इतने धनी थे कि डिग्री प्राप्त करते ही ब्लाक से एक नौकरी का फॉर्म निकला और उन्होंने भर दिया। नौकरी भी जल्दी मिल गई। नौकरी ये थी कि गाँव गाँव घूमकर घर घर पर तारीख लिखना था। नौकरी करने लगे। लेकिन इनके पिताजी नाराज हुए कि मेरे रहते मेरा बेटा ये छोटी नौकरी कर रहा है। इनके पिता जी इनको मना भी किए कि ये सब छोटी नौकरी मत करो। अभी पढ़ाई करो मैं हूँ न तुम्हारा खर्च उठाने वाला। लेकिन इन्होंने नहीं मानी और नौकरी करने का फैसला कर लिए। क्योंकि ये जानते थे कि मेरा प्रोमोशन हो जाएगा और मैं किसी से कुछ मांगने के बजाय अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊंगा। इन्होंने अपने पिताजी से कुछ पैसे लिए और 1960 में इन्होंने एक साइकिल खरीदी। जो उस ज़माने में एक बड़ी बात हुआ करती थीं। उस ज़माने में लोग इनकी साइकिल देखने मिलों दूर से आते थे। और साइकिल देखकर आश्चर्यचकित होते की यह कौन सा वाहन है। फिर इन्होंने उस साइकिल से ही नौकरी करना शुरू कर दिए। एक महिना पूरा होते ही इनकी पहली तनख्वाह मात्र पच्चास रुपये आयें। जो उस ज़माने में बहुत हुआ करते थे । इन्होंने अपनी पहली कमाई से अपने पिताजी के लिए एक धोती कुर्ता दिए। और अपने भाई बहन के लिए भी एक एक कपड़ा दिलाए। इनके पिताजी बहुत खुश थे। और उनके आंख में आँसू थे। इन्होंने अपने पिताजी को सांत्वना दिए। 1962 में इनकी शादी आसन गाँव के एक ग्राम प्रधान के लड़की से हुआ। जो इनके हैसियत में थोड़े से कम थे। इनके शादी के बाद इनका सेक्रेटरी पद पर प्रोमोशन हो गया। अब ये सेक्रेटरी हो गए। इनका जीवन सफल हो गया। लेकिन इनको बहुत से दर्द झेलने थे। कुछ साल बाद इनके छोटे भाई प्रभु नाथ जी को अचानक पेट में दर्द के कारण मौत हो गई। इनका परिवार को बहुत बड़ा झटका लगा। इन्होंने अपने जवान भाई को कंधा दिए। अभी आगे भी इनको और कंधे देने थे। इनके पांच लड़के पैदा हुए। उसके बाद इनकी पत्नी भी इनको छोड़कर चलीं गई। ये और टूट गए। ये घर मे अकेले हो गए थे। पिताजी कोलकाता मे नौकरी करते थे। और घर इनके अलावा कोई था नहीं कि इनके बच्चों को कोई सम्भाले। अंत में इन्होंने फिर अपने बहनों को बुलाए। और अपने बच्चों को देखभाल करने के लिए लगा दिए। इनकी बहने भी इनको बहुत मानतीं थीं। इनके बच्चों को भी पाला पोशा । इनका बड़ा बेटा हरि जवान हुआ। और उसने घर घर की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली। तब जाकर एडीओ को कुछ राहत हुआ। और ये आराम से नौकरी करने लगे। खेतीबाड़ी तो सम्भल जाती थी लेकिन घर पर देखभाल करने की समस्या होने लगी। तब एडीओ साहब अपने बड़े बेटे की शादी करने का फैसला किए। और 04 जून 1982 को अपने बड़े बेटे की शादी की। अब सारा तनाव दूर हो गया। एडीओ साहब बड़े स्वाभिमानी किस्म के इंसान थे। इन्होंने कभी अपने स्वभाव से समझौता नहीं की। इनमे एक आदत थी कि भले ही ये अकेले रहेंगे। लेकिन किसी के तलवे नहीं चाटेंगे और नहीं अपने घर किसी गलत इन्सान को पनाह देंगे। इन्होंने मरते दम तक किसी के घर के एक गिलास पानी तक नहीं पीए। इनके दुश्मन भी हजार पैदा हो गए। इनकी तरक्की से जलना शुरू कर दिए। लेकिन इनमे एक आदत थी कि चाहें दोस्त हो या दुश्मन जो दरवाजे पर आ जाए। उनको खाली हाथ नहीं जाने देते थे। इन्होंने अपने गांव के लोगों को हर तरह से मदद की है। लेकिन उनमे कुछ इनको भगवान मानकर इनकी भक्ति करने लगे तो कुछ इनके तरक्की से जलने लगे और इनको पिछे खिंचने की बहुत कोशिश की। जब कोशिश पूर्ण नहीं हुआ। तो इनको जान से मारने तक का भी प्रयास किया गया। लेकिन कहते हैं न कि जब आपका कर्म अच्छा है तो भगवान भी आपका साथ देता है। इसी बीच इन्होंने राजदूत गाड़ी खरीद लिये। उस समय वह भी एक बहुत बड़ी बात हुयी। इनके जीवन में एक बहुत बड़ी घटना घटी जो इनको और प्रसिद्धि दिलाई। वो थी 1995 की घटना। 1995 में ये मनियर ब्लॉक में थे। और ये प्रोमोशन से एडीओ बन गए थे। उस समय मनियर में ग्राम प्रधान का चुनाव हुआ। दो क्षत्रिय थे जो चुनाव में खड़े हुए थे। चुनाव तो हो गया। जब मतगणना की बात आई इनको बहुत लालच दिया गया कि आप मेरे पक्ष में गिनती कर हमको जीता दीजिएगा चाहें आप जितना पैसा लेना चाहते हैं तो ले लीजिए। लेकिन इन्होंने ईमानदारी से काम करना मुनासिब समझा। इन्होंने किसी से भी एक रुपये नहीं लिए। गणना हो गया। एक पार्टी जीत गया। और दूसरा पार्टी हार गया। और हारने के बाद एडीओ साहब को धमकी दिया कि आपको जान से मार दूँगा। मगर ये भी डरे नहीं। बल्कि कलेक्टर ऑफिस में शिकायत करना मुनासिब समझे। इनको पुलिस की गाड़ी में एसपी के साथ बलिया कलेक्टर ऑफिस पूरे सिक्युरिटी के साथ ले गया गया। ये बलिया कलेक्टर ऑफिस पहुंचते ही शिकायत दर्ज करायी। कलेक्टर साहब मामला शांत करने के लिए इनको कलेक्टर ऑफिस में ही एक महीने के लिये रख लिये। और इनको बाहर आने जाने की पूरी सिक्युरिटी प्रदान की गई। ये जहां भी जाते तो दो चार गाड़ियां और पुलिस इनके साथ जाती। फिर उन कलेक्टर साहब की कहीं और ट्रांसफर हो गया। वो चले गए। और जब तक कोई दूसरा डीएम नहीं आ जाते तब तक स्वामीनाथ राम एडीओ साहब जी को कलेक्टर का चार्ज इनके काबिलियत और बुद्धि के दम पर सौंपा गया। इन्होंने लगभग 6 महीने तक डीएम की कुर्सी सम्भाले। फिर कोई नया डीएम आते ही इनको चार्ज से हटाकर D P R O बनाया गया। और D P R O के पद से ही इनको रिटायर्मेंट मिल गया। इन्होंने अपने सालों की कैरियर में कभी अपने ऊपर दाग नहीं लगने दिए। ईमानदारी पूर्वक अपना सेवा देने के बाद सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्त होने के ठीक दो साल बाद 2006 में इनका भयानक एक्सीडेंट हो गया। ये बाइक से गिर गए। और इनका पैर बुरी तरह से चोटिल हो गया और इनको बनारस रिफर कर दिया गया था। इनका पैर का एक नस दब जाने के कारण इनका पैर खराब होने लगा। डॉक्टर ने पैर काटने तक को बोल दिया था। इनके घर वाले रोने लगे। तब ईश्वर की कृपा हुयी। और उसी दिन अमेरिका से एक डॉक्टर आया और उसने पैर देखा और पैर को बचा लिया। इस तरह से एक बड़ी चुनौती से गुज़रे। उसके बाद अभी समस्याएं समस्याएं खत्म नहीं हुयी इनको कुछ और समस्याओं से जुझना था। अभी इनको अपने दो जवान बेटों को कंधा देना था। और यही हुआ। इनके सामने इनके दो जवान बेटे गुजर गए। इनको बहुत कष्ट हुआ। इन्होंने अपने जीवन मे अपने परिवार के आठ लोगों के अर्थी को कंधा दिए जिसमें इनके माता-पिता, भाई, दो बहने, पत्नी, दो बेटे। बस इसी कष्ट से उन्हें दिल का दौरा पड़ गया। और वे 18 जुलाई 2021 रविवार के दिन इस दुनियाँ से हमेशा हमेशा के लिये अलविदा हो गए। लेकिन जितना भी दिन जिए शान से जिए। स्वाभिमान से जिए। इनको भावपूर्ण श्रद्धांजलि।
- Er Vishal Kumar Dhusiya