Veera Humari Bahadur Mukhiya - 17 books and stories free download online pdf in Hindi

वीरा हमारी बहादुर मुखिया - 17

निमी चोरी छिपे निराली के घर एंटर होती है और उस दवाई को खाने में मिला देती है...


लेकिन तभी उसके कंधे पर कोई हाथ रखता है ....


.......अब आगे.....

निमि काफी घबराई सी धीरे धीरे पीछे मुड़ती है , तो सामने निराली हाथ में पानी का जग लिए उसके सामने थी , उन्हें देखकर निमि घबराते हुए कहती हैं...." नि..रा.ली..काकी ..."
उसके हकलाते हुए बोली को सुनकर निराली शांत स्वभाव से कहती हैं..." निमी ! तुम इतनी घबराई हुई क्यूं हो..?.. कुछ काम था , तो बेझिझक बोल..."
निराली की बातों से साफ पता चल रहा था की उसने कुछ नहीं देखा जिससे निमि राहत भरी सांस लेती है...
निमि कुछ सोच कर कहती है...." काकी ! क्या मुखिया जी के लिए भोजन बन गया..."
निराली हां कहती हैं , निमि इससे पहले कुछ कह पाती बरखा आकर कहती हैं..." चाची ! वीरा के लिए खाना लगा दो आज वो यही पर आएंगी..."
निराली मुस्कुराते हुए हां में सिर हिला देती है और निमि वहां से चली जाती है.....
थोड़ी देर बाद इशिता नंदिता और सोमेश के साथ निराली के घर पहुंचती है जहां रात का खाना लगा चुका था....
उधर भीमा खबर लेकर रांगा के पास पहुंचता ...." सरदार "
भीमा की खबर लेकर उसका एक आदिवासी सिपाही रांगा के पास जाकर कहता है..." सरदार ! अचलापूर से भीमा है ,..." इतना कहकर वो सिपाही चला गया...
रांगा जो बस उसी का इंतजार कर रहा था, अपना खाना छोड़कर तुरंत बैठक में पहुंचता है...
रांगा रौबदार आवाज में कहता..." बोल क्या खबर लाया है..."
भीमा धीमी आवाज में कहता है..." आपका काम हो गया है , निमि ने वो दवाई वीरा जी के खाने में मिला दिया..."
रांगा हंसते हुए कहता है... " ठीक है , तु जा , मैं बहुत जल्दी वहां होंऊंगा..."
इधर वीरा खाना खा कर अपने घर में आ चुकी थी , उसने सबसे कह तो दिया था कि डॉक्टर के लिए चिंता न करें लेकिन वो खुद भी काफी परेशान थी , उसने पहले काफी अप्लाई कर चुकी थी लेकिन कोई भी डर की वजह से अचलापूर नहीं आना चाहता था , यही चिंता उसे परेशान कर रही थी....जिस वजह से वो अपने कमरे इधर से उधर घूम रही थी.. ...
अभी सिर्फ़ सात ही बजे थे लेकिन पूरे गांव में सन्नाटा छा गया था बस कुछ एक लोग अपने घरों के बाहर बैठ कर बातें कर रहे थे तभी गांव में एक अजीब सी हलचल शुरू हुई....
हवा में फायरिंग की आवाज से जो लोग जग रहे थे वो काफी ज्यादा डर गये, की अचानक डाकूओं ने अपना कहर बरसाना शुरू किया....
अचानक हुई फायरिंग से इशिता तुरंत अपनी गन और कुछ हथियार लेकर बाहर आई तभी सुमित और सोमेश उसके पास आकर कहते हैं...." वीरा जी.! डाकूओं का हमला हुआ है..."
इशिता अपनी जोशिले अंदाज में कहती हैं..." पिछली बार का सबक भूल गए ये , इस बार आर या पार ही होगा , इन्हें मरना ही होगा , तुम सब मेरे हाथों के इशारों पर नजर रखना..."
इतना कहते ही इशिता जैसे ही आगे बढ़ती है उसे हल्का सा चक्कर आता है , जिसे नजर अंदाज करके वो आगे बढ़ती है.....
कुछ ही देर में इशिता उन डाकुओं के सामने होती है और खडगेल को देखकर हंसते हुए कहती हैं...." पिछली बार की बेइज्जती भूल गए क्या.. चलो कोई बात नहीं..."
खड़गेल दांतों को भींचते हुए कहता है...." उसका बदला ही है , तुम्हारी मौत...."
खड़गेल जैसे ही इशिता पर गोली चलाता उससे पहले सुमित खंजर फैंककर उसकी गन को गिरा देता है , ...
तब सब तरफ से फायरिंग शुरू होने लगी इशिता बरगद के पेड़ के पीछे से सबकी फायरिंग का जबाव दे रही थी , बारी बारी से सब ढेर होते जा रहे थे लेकिन अब इशिता ज्यादा देर तक नहीं टिक पाई उसके आंखों के सामने अंधेरा छा चुका था...जिसकी वजह से वो लड़खड़ाने लगी , इसका फायदा उठाकर खड़गेल ने गन से इशिता पर फायर कर दिया , ...
इशिता बेसुध जमीन पर गिर पड़ी.....

...............to be continued............

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