साथिया - 45 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 45

भले मैं उसे बहुत प्यार प्रेम करता हूं मेरी इकलौती संतान है। उसकी खुशी चाहता हूं पर अपने मान सम्मान और इस गांव के नियम और कायदे कानून से बढ़कर कुछ भी नहीं है। यहां के भाग्य विधाता हम थे हम हैं और हम लोग ही रहेंगे। यहां पर किसी को भी कुछ भी गलत करने की इजाजत नहीं है और ना ही अपनी मर्जी से अपना जीवनसाथी चुनने की और विजातीय विवाह की। समझ रही हो तुम..?" अवतार सिंह ने कहा तो भावना ने गर्दन हिला दी।

"तुम्हे याद रहे मेरे लिए सम्मान खोने से और बेज्जती होने से बेहतर है जिंदगी देना। और अगर नेहा की किसी गलती के कारण मेरी इस गांव में और समाज में बेज्जती हुई तो मैं खुद ही अपने गले में फंदा डालूं लूंगा अपने। और अब तुम्हारे हाथों में है कि तुम क्या चाहती हो?" अवतार सिंह बोले।

भावना ने भरी आंखों से उनकी तरफ देखा और फिर गर्दन हिला दी।

"मेरी इकलौती बच्ची है ना जाने क्या लिखा है उसकी किस्मत में? कभी नहीं सोचा था कि इस तरीके का समय भी सामने आ जाएगा। अगर मुझे जरा भी अंदाजा होता तो नेहा को कभी बाहर नहीं जाने देती। कम से कम मेरी बेटी की जिंदगी तो सलामत रहती। हालांकि मैं जानती हूं कि ऐसा कुछ भी नहीं होगा? नेहा बहुत अच्छे से अपने गांव के माहौल को और अपने पापा को समझती है। वह जानती है कि यहां इस गांव में इस तरह की कोई भी हरकत या कोई भी घटना स्वीकार नहीं की जाएगी और मुझे विश्वास है मेरी बेटी पर । वह ऐसा कुछ भी नहीं करेंगी। पर फिर भी न जाने क्यों डर लग रहा है।" भावना ने खुद मन ही मन सोचा और फिर नेहा के आने की तैयारी में लग गई।

साथ ही साथ अब उसे इस बात का भी डर था कि नेहा को वह अगर बताती है तो कहीं कुछ गलत ना हो जाए और अगर नहीं बताती तो नेहा कहीं उसे भी गलत ना समझ ले।


अवतार सिंह उसके थोड़ी देर बाद गजेंद्र सिंह के घर पहुंच गए।

" आइये अवतार जी। कहिए बात हो गई नहीं बिटिया से?" गजेंद्र सिंह बोले।

"हां नेहा से बात हो गई है वह कल शाम को यहां पर आ रही है...!! और हमने पंडित जी से भी बात कर ली है इसी हफ्ते के शुक्रवार को सगाई का अच्छा मुहूर्त है। अब जब विवाह करना ही है तो सभी रीति रिवाज के साथ कर लेते हैं। मैं सोच रहा हूं इस शुक्रवार सगाई कर लेते हैं और फिर अगले शुक्रवार शादी का मुहूर्त है। तब तक सांझ भी आ जाएगी तो फिर उसी मुहूर्त में शादी हो जाएगी। " अवतार सिंह बोले।

"चलिए यह तो आपने बहुत ही अच्छी बात बताई..!! हम लोग सगाई की तैयारी कर लेते हैं।" गजेंद्र सिंह बोले।

"ठीक है अब आज्ञा दीजिए !" अवतार सिंह बोले और उठ खड़े हुए।

"आपने नेहा को बता दिया ना की उसका और निशांत का रिश्ता है हो गया है? " गजेंद्र सिंह ने अवतार सिंह के मन को जांचना चाहा


" जी बता दिया है और उसे इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं है।"अवतार सिंह साफ झूठ बोल गये क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि गजेंद्र सिंह के सामने उनकी नाक नीचे हो। और गजेंद्र सिंह को लगे की अवतार सिंह की को भी अपनी बेटी पर विश्वास नहीं है इसलिए उन्होंने नहीं बताया।

"चलिए यह तो और भी खुशी की बात है अगर नेहा तैयार है तो फिर तो कोई बात ही नहीं है...!" गजेंद्र ने खुश होकर कहा।


वही छत पर खड़ा निशांत उन दोनों की बातें सुन रहा था और सुनते ही उसके चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गई। आखिर में अब वह दिन आ ही जाएगा जब नेहा मेरी होगी सिर्फ मेरी। ना जाने कब से उसे अपने बनाने का ख्वाब देखा है और अब

जल्दी ही वो सिर्फ मेरी होगी। मेरी बाहों में होगी और सबसे बड़ी खुशी की बात की नेहा ने खुद भी हां कर दी है। यह बात मेरे लिए बहुत मायने रखती है कि नेहा खुद मेरे साथ शादी करना चाहती है।" निशांत ना जाने क्या-क्या मन में सोच जा रहा था और मन ही मन खुश हो रहा था। नेहा के साथ अपनी शादी और उसके साथ जिंदगी बिताने के अनागिनित ख्वाब निशांत ने भी देख लिए थे। बिना इस बात को जाने की नेहा क्या चाहती है? और ना ही उसने इस बात की जरूरत समझी कि एक बार नेहा से बात करें और उसके मन को समझे। उसे सिर्फ और सिर्फ परवाह थी तो अपने मन की और अपनी खुशियों की। इन सब में वह यह भी भूल गया था कि वह नेहा के योग्य कहीं भी नहीं है। सिर्फ पैसा रूपया और जमीन जायदाद महत्व नहीं रखती। जब विवाह बंधन जुड़ता है तो लड़का और लड़की का मेल भी होना जरूरी होता है।

और नेहा के आगे निशांत कुछ भी नहीं था। नेहा पढ़ी-लिखी डॉक्टर लड़की थी तो वही निशांत मैट्रिक पास। पर निशांत ने अपनी कमी को जानकर भी अनदेखा कर दिया था और उसे उसे सिर्फ यही लगता था कि गजेंद्र सिंह की पूरी धरोहर का वह इकलौता वारिस है इस हिसाब से वह कहीं से भी नेहा से कम नहीं है।


नेहा की तरफ से हां है यह बात सुनकर गजेंद्र सिंह के परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई।

अव्या ने भी राहत की सांस ली तो वही सुरेंद्र के मन में भी राहत आ गई। क्योंकि उन दोनों के मन में भी यही डर था कि अगर नेहा ने इनकार कर दिया तो आगे न जाने क्या होगा?


अव्या ने सुरेंद्र की तरफ देखा तो सुरेंद्र ने पलकें झपकाइ और फिर उसके पास जाकर उसके सर पर हाथ रखा।

"अब तो खुश है ना तू बेटा..?! नेहा तैयार है रिश्ते के लिए और जब नेहा और निशु दोनों तैयार है तो फिर कोई प्रॉब्लम आएगी कि नहीं। और बाकी खुद के लिए तु निश्चित रह। तुझे मैं यहां रहने नहीं दूंगा। जल्दी ही सौरभ से बात करूंगा। वैसे भी तुम्हारे ट्वेल्थ का एग्जाम हो गया है और बस रिजल्ट आने ही वाला है। एक बार रिजल्ट आ जाए तो तुम्हें सौरभ के साथ दिल्ली भेज दूंगा। तुम वही रहना बेटा और हां तुम्हारा निर्णय इस तरीके से नहीं लिया जाएगा बिना तुम्हें पूछे बिना तुम्हें बताएं। तुम्हें निर्णय लेने का पूरा अधिकार होगा। और हां बेटा मैं हमेशा यही चाहूंगा कि तुम और सौरभ अपनी जिंदगी में हमेशा खुश रहो।" सुरेंद्र ने कहा तो आव्या उनके गले लग गई?

"थैंक यू पापा ...!! आपने इतना बोल दिया यही मेरे लिए काफी है। बाकी ऐसा मैं कुछ भी नहीं करूंगी जिससे आपको शर्मिंदा होना पड़े।" आव्या ने कहा तो सुरेंद्र ने उसके सिर पर प्यार से हाथ रखा दिया।


अगले दिन शाम को नेहा गांव आ पहुंची। सांझ एक हफ्ते बाद आने वाली थी ।

सांझ ने नेहा को बता दिया था कि वो आयेगी। वैसे भी नेहा के अलावा और किसी को उसके आने ना आने से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। अवतार सिंह ने तो सिर्फ इसलिए उसे बुलाया था कि नेहा क्या की शादी है और इस समय उसकी बहन यहां ना हो तो अच्छा नहीं लगता। बाकी भावना को सांझ से न पहले कभी मतलब था अभी मतलब था। उसे फिक्र थी तो सिर्फ और सिर्फ अपनी नेहा की और उसे डर भी था तो सिर्फ नेहा के लिए। उसे लगता था कि कहीं कुछ भी ऐसा ना हो जाए जो नेहा को तकलीफ दे जाए और नेहा के साथ-साथ अवतार सिंह और भावना को भी।


"कैसे हैं पापा कैसी है मम्मी!" नेहा घर आते से अवतार और भावना के गले लग गई।

"हम दोनों पूरी तरीके से ठीक है और अब जब तुम आ गई हो तो अब और भी ठीक हो गए हैं।" अवतार ने प्यार से उसके सिर पर हाथ रखकर कहा।

"हां तो मुझे तो आना ही था...!; मैं आने का सोच ही रही थी उससे पहले ही आपका फोन आ गया। वैसे भी मेरी इंटर्नशिप कंप्लीट हो गई थी। आपकी बैठी एमबीबीएस डॉक्टर बन चुकी है पापा और बस अब पीजी की तैयारी है। एंट्रेंस दे दिया है मैंने और मुझे पूरा विश्वास है कि मेरा सिलेक्शन हो जाएगा।" नेहा ने कहा।

"हां ठीक है बेटा सिलेक्शन हो जाएगा तो ठीक है नहीं हो जाएगा तो भी कोई बात नहीं है..! तुम डॉक्टर बन गई यही हमारे लिए काफी है।" अवतार बोले।

"पर पापा मेरा सपना है कि मैं एमएस करूं और आगे बहुत बड़ी डॉक्टर बन अपना खुद का अस्पताल खोलुं किसी अच्छे शहर में। और फिर वहीं पर आपको और मम्मी को लेकर चली जाऊंगी।" नेहा बोली।

"अच्छा ठीक है अभी बातें बहुत हो गई। चलो हाथ मुँह धो लो जब तक मैं खाना लगाती हूं। थकान हो रही होगी ना तुमको।" भावना ने आकर बीच में ही नेहा की बात को रोक दिया।

वह नहीं चाहती थी कि नेहा अभी कुछ ऐसा वैसा बोले और बदले में अवतार सिंह भी कुछ उसे बोल दे और घर का माहौल तनाव वाला हो जाए। उसने भी सोच लिया था कि नेहा से आराम से तसल्ली से बात करेगी और उसे समझायेगी।

"और सांझ से बात हुई बेटा? वह आने वाली है कि नहीं ? अवतार सिंह ने नेहा से कहा।

"जी पापा मेरी बात हो गई है...!; वह अगले हफ्ते शनिवार इतवार तक यहां आ जाएगी। अभी उसको छुट्टी नहीं मिली थी। बाकी उसका मेरे साथ रहने का मन था इसलिए उसने कहा है कि वह अपने हॉस्पिटल की मैडम से बात कर लेगी और अगले हफ्ते आ जाएगी। " नेहा बोली।।

"अच्छा है ..!" अवतार सिंह ने कहा और फिर सब खाना खाने लग गए।

हालांकि अवतार सिंह और भावना नॉर्मल तरीके से बात कर रहे थे पर नेहा को न जाने क्यों ऐसा लग रहा था जैसे कि उससे कुछ छुपाया जा रहा है। घर का माहौल भी कुछ तनावपूर्ण था।क्या बात है यह नेहा समझ नहीं पा रही थी।

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव