साथिया - 46 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

साथिया - 46

देखते ही देखते हैं शुक्रवार का दिन आ गया और आज ही के दिन नेहा की सगाई होनी थी।

घर में पकवान बन रहे थे। हलवाई लगे हुए थे और तैयारी हो रही थी।

नेहा ने देखा तो अवतार सिंह और भावना के पास आ गई।

"क्या हुआ? कुछ प्रोग्राम है क्या कोई पूजा रखी है क्या आप लोगों ने? इतना सारा खाना पीना बन रहा है और सब डेकोरेशन भी हो रही है।" नेहा ने कहा।

"बेटा तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है आओ बैठो मेरे पास..!" अवतार सिंह ने कहा तो नेहा उनके पास चारपाई पर जाकर बैठ गई।

भावना वही सामने अपने दोनों हाथों को एक दूसरे में उलझाए खड़ी थी और उन दोनों की बातें सुन रही।

देखो बेटा तुम तो जानती हो हमारे गांव का माहौल। यहां से लड़कियों को बाहर जाने की और पढ़ने की इजाजत नहीं है।तुम पहली लड़की हो जिसने मुंबई में जाकर अपनी पढ़ाई की है और दूसरी नियति थी जिसे कॉलेज जाने की परमिशन मिली थी।

पर नियति ने अपनी स्वतंत्रता का गलत फायदा उठाया और नतीजा उसे अपनी जान देकर चुकाना पड़ा, क्योंकि इस गांव के सभी फैसले पंच और पंचायत करती है। और बेटा तुम जानती ही हो कि यहां हमारे गांव के नियम और कानून।" अवतार सिंह ने नेहा को समझाते हुए कहा।

नेहा के चेहरे का रंग उड़ने लगा था और उसके हाथ पाँव कांप उठे क्योंकि वह समझ रही थी कि अवतार सिंह क्या कहना चाहते हैं? और साथ ही साथ उसे कुछ गलत होने का अंदाजा भी होने लगा था।

"आप क्या कहना चाहते हैं पापा साफ-साफ कहिए ना! " नेहा ने कहा तो अवतार सिंह ने उसके सिर पर हाथ रखा।

" तुम मेरी इकलौती बेटी हो तो तुम्हारे लिए हम अच्छा ही सोचेंगे।
इस गांव की कई सारे नियम है बेटा और उनमें से दो मुख्य नियम है जो कि यहां की युवा पीढ़ी के लिए है। उनमें से एक है कि यहां पर प्रेम विवाह को मान्यता नहीं दी जाती और दूसरा विजातीय विवाह भी हमारे यहां मान्य नहीं है।" अवतार सिंह ने जैसे ही कहा नेहा की आंखों में आंसू भर आए पर उसने जैसे तैसे खुद को कंट्रोल कर लिया।

"तो पापा आप मुझे यह सब बातें क्यों बता रहे हैं?" नेहा बोली।


" तुम्हें इसलिए बता रहे हैं क्योंकि इस गांव और यहां के गांव आसपास के गांव में हमारे परिवार के योग्य हमारे परिवार के समान और हमारी ही जाति का कोई दूसरा परिवार है तो वह है गजेंद्र ठाकुर का परिवार और यही सोचते हुए मैंने तुम्हारा विवाह निशांत के साथ तय कर दिया है। और आज तुम्हारी और निशांत की सगाई है।" अवतार सिंह ने जैसे ही कहा नेहा को लगा जैसे उसका सिर घूम रहा है और वह अभी के अभी बेहोश हो जाएगी।


उसकी आँखों के भरे हुए आंसू गालों पर आ गए और उसके हाथ पांव बहुत तेजी से कांप उठे।

"क्या मेरी शादी और मुझे पूछे बिना? " नेहा के मुंह से धीरे से निकला।

"अब तक गांव में यही प्रथा चली आ रही है। ना अब तक यहां पर कभी बच्चों से पूछ कर निर्णय लिए जाते हैं ना आगे लिए जाएंगे। और इस गांव में हर परिवार के बच्चों का निर्णय उनके माता-पिता करते हैं। हमारी संतानों के भाग्य विधाता हम खुद हैं और इसलिए मैंने और गजेंद्र सिंह ने मिलकर तुम दोनों के लिए निर्णय लिया है। वैसे भी बेटा तुम्हारे योग्य निशांत के अलावा यहां कोई दूसरा नहीं है।" अवतार सिंह ने कह।


"पर पापा निशांत मेरी योग्य कैसे हैं? वह तो पढ़ा लिखा भी नहीं है और मैं डॉक्टर हूं।" नेहा की डरी हुई आवाज निकली।

नेहा की आवाज सुनकर जहां अवतार सिंह की आंखें बड़ी हो गई तो वहीं भावना की आंखों में भी आंसू भर आए।

" सिर्फ पढ़ाई लिखाई में और योग्यता में बराबर होना मायने नहीं रखता है। हमारे बराबर इज्जत और सिर्फ इस परिवार की है। हमारे जैसी धन संपत्ति और जमीन जायदाद केवल उसी एक परिवार की है। और दूसरी बात जो मैं तुम्हें पहले ही बता चुका हूं हमारे यहां विवाह सजातीय होते हैं। समान परिवार में और सजातीय होते हैं। इसलिए तुम्हारे हिसाब से हमें निशांत के अलावा और कोई समझ में नहीं आया।" अवतार सिंह बोले।

"लेकिन पापा मुझे यह शादी मंजूर नहीं है!" नेहा ने हिम्मत करके कहा।


" मंजूर नहीं है तब भी स्वीकार करना और अपने दिल को मजबूत कर लो क्योंकि तुम जानती हो इनकार का परिणाम क्या हो सकता है? तुम्हारे साथ-साथ हमें भी चौपाल के पेड़ पर लटका दिया जाएगा। समझ रही हो तुम..?" अवतार सिंह ने गुस्से में आकर कहा।

"पर पापा यह गलत है...!" नेहा बोली।

"तुम हमारे निर्णय पर सवाल उठा रही हो?" अवतार सिंह गुस्से से नेहा को देखते हुए बोले तो भावना एकदम से बीच में आ गई।

"नहीं नहीं आपके ऊपर सवाल उठाए या आपके निर्णय के विरुद्ध जाए इतनी इसकी औकात नहीं। मैंने पहले ही कहा था बच्ची है बाहर रह रही है पढ़ी लिखी है तो एक बार बात कर लीजिए। समझा बुझाकर फिर हम रिश्ता कर देंगे। पर कोई बात नहीं है इसका वह मतलब नहीं था । मैं समझाती हूं।" भावना बोली

" समझा दो तो ही बेहतर है वरना तुम भी जानती हो और मैं भी जानता हूं कि इसके इस तरीके के विद्रोह का परिणाम क्या होगा? हम पहले ही नियति का किस्सा देख चुके हैं।" अवतार सिंह बोले।

"लेकिन पापा...?" नेहा ने कहना चाह पर भावना ने उसे रोक दिया और उसका हाथ पकड़ कर उसे अंदर कमरे में लेकर चली गई और दरवाजा बंद कर लिया।

"मम्मी मैं यह शादी नहीं करूंगी...! मुझे नहीं एक्सेप्ट ये रिश्ता....!! मुझे नहीं एक्सेप्ट ...!! नेहा बोल।

"कैसी बातें कर रही है? जानती हो ना इस गांव के नियम और यहां की मान्यताओं को...?? तुम्हारी किसी भी बात का यहां कोई मतलब नहीं है। सारा सच जानते हुए भी तुम इस तरीके से विरोध कैसे कर सकती हो जबकि तुम बचपन से देखती आई हो। " भावना ने नेहा को समझाना चाहा।

"बचपन से देखती आई हूं तो क्या गलत बात को मान लुं मम्मी ? मैंने बचपन से सब गलत होते देखा हैं और इसीलिए मेरा मन था यहां से बाहर जाने का। और अब मैं वापस इसी सब में नही फंस सकती। नही पसंद मुझे यहाँ के ये सारे नियम...!! और उस निशु की तो शक्ल से भी मुझे नफरत है। एकदम ठेठ गँवार है। मगरूर... बद्तमीज और लौंडियाबाज है। सब जानते है कि उसके ट्यूब वेल पर जो कमरा बना है दिन रात वहाँ दारू की महफ़िल लगती है और लड़कियाँ मंगाई जाती है कभी पैसे से तो कभी जबरन।" नेहा उबल पड़ी।



" अरे तो सुधर जायेगा तुमसे ब्याह के बाद।" भावना बोली।

" और वो तो न पढ़ा है ना लिखा है। कहीं से मेरे लायक नहीं है। मैं कैसे उसके साथ शादी कर लूं।" नेहा बोली।

इस समय उसके लिए जरूरी था कि वह निशांत से रिश्ता तोड दे नाकि अपने राज इसलिए उसने अपने और आनंद के बारे में कुछ भी नहीं बताया। वरना बात और भी ज्यादा बिगड़ जाती। इस समय वह बस इतना चाहती थी कि कैसे भी करके निशांत के साथ उसका रिश्ता टूट जाए बाकी बात वह बाद में करेगी।

"कुछ खराबी नहीं है निशांत में...!! अभी तुम्हारे पापा ने यही समझाया ना कि सिर्फ पढ़ाई लिखाई में बराबर ही होना जरूरी नहीं होता है। पढ़ाई की बात छोड़ दो तो हर एक लिहाज से निशांत और उसका परिवार हमसे इक्कीस बैठता है। जमीन जायदाद उनकी हमसे ज्यादा है। रुतबा उनका इस गांव में हमसे ज्यादा है। वह सरपंच है जबकि तुम्हारे पापा पंच। आसपास के कई गांव में उनकी पहचान है एक रुतबा है। एक दबदबा है और फिर नाम दौलत शोहरत सब कुछ तो है। और इन सब चीजों के बीच में अगर निशांत कम पढ़ा लिखा है बस इतनी सी बात कोई मायने नहीं रखती इसलिए नेहा तुमसे कह रही हूं बिना किसी नाटक करके रिश्ते के लिए तैयार हो जाओ वरना तुम जानती हो कि अंजाम क्या हो सकता है?" भावना ने नेहा को कई बहुत देर तक समझाया और नेहा उनकी बातें सुनकर खामोश हो गई।
क्योंकि वह जानती थी कि इस समय और यहां पर विरोध करने का कोई फायदा नहीं है उसकी आवाज को भी दबा दिया जाएगा और शायद उसके उसके पंखों को भी काट दिया जाएगा।

"ठीक है मम्मी अगर आपने पापा ने तय कर ही लिया है तो मुझे मंजूर है।" नेहा ने कहा।

"बड़ी कृपा है ईश्वर की जो बात बिगड़ने बिगड़ने रह गई।" भावना ने आकर अवतार सिंह को बताया और साथ यह भी कह दिया कि नेहा रिश्ते के लिए तैयार है।

शाम के समय गजेंद्र का पूरा परिवार सगाई के लिए आ पहुंचा।

निशांत भी उन लोगों के साथ भी आया था क्योंकि सगाई के समय अंगूठी उसे ही पहनानी थी।

उसके चेहरे पर गजब की चमक थी। निशांत को खिड़की से देखते ही नेहा का चेहरा बन गया।

"क्या करूं निशु को बोलूं कि मुझे रिश्ता मंजूर नहीं है। नहीं नहीं बात और बिगड़ जाएगी और वैसे भी वह शुरू से ही गंवार है। कम बुद्धि बैल है । मैं उसे कुछ भी नहीं कह सकती अब मुझे जो कुछ करना है वह चुपचाप ही करना होगा।" नेहा ने खुद से कहा।

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव