साथिया - 44 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 44

शाम को गजेंद्र सिंह ने नेहा को कॉल लगाया ।


"हां पापा जी बताइए।" नेहा खुश होकर बोली।

"बेटा बहुत याद आ रही थी तुम्हारी...!! अगर हो सके तो एक-दो दिन के में घर आ जाओ हफ्ते दस दिन की छुट्टियां लेकर।" अवतार सिंह ने कहा।

"जी पापा मैं आने का खुद ही सोच रही थी..! मेरी इंटर्नशिप कंप्लीट हो गई है और मैं पीजी का एंट्रेंस भी दे दिया है और मुझे पूरी उम्मीद है कि मेरा मेरा एग्जाम क्लियर हो जाएगा। तो इस बीच पंद्रह बीस दिन का टाइम है। छुट्टियां है तो मैं वहां आ जाती हूं। कुछ दिनों आपके और मम्मी के साथ बिताऊंगी तो आपको भी अच्छा लगेगा।" नेहा ने कहा।

"चलो यह तो बहुत खुशी की बात है..!! आ जाओ और हां आते-आते सांझ को भी ले आना अगर उसकी छुट्टियां हो तो।" अवतार सिंह ने कहा।

"जी पापा मैं सांझ से बात कर लूंगी। अगर वह फ्री होगी तो उसको ले आऊंगी। नहीं फ्री होगी तो उससे कह दूंगी कि वह कुछ दिनों बाद आ जाएगी। " नेहा ने कहा।

"हां बेटा ठीक है पर जल्द से जल्द आ जाओ यहां पर तुम्हारी बहुत याद आ रही है।" अवतार सिंह ने कहा।

"जी पापा..!" नेहा बोली और कॉल कट कर दिया।


"तो गांव जाने की तैयारी हो रही है..!" पीछे खड़े आनंद ने कहा तो नेहा ने मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखा।

"हां अब जब तक पीजी एंट्रेंस का रिजल्ट आएगा तब तक सोच रही हूं कुछ दिन मम्मी पापा के साथ रहकर आ जाती हूं। और फिर हमारे रिश्ते के बारे में भी उनसे बात करनी है। सोच रही हूं अभी जा रही हूं तो उनसे बात करूंगी और उन्हें मनाने की कोशिश करूंगी।" नेहा ने कहा।


"और अगर वह नहीं माने तो?" आनंद बोला।

"अगर वह नहीं माने तो ..!" आनंद ने कहा।

" नही माने तब भी मैं तुम्हारे साथ जर्मनी चली जाऊंगी क्योंकि मुझे उसे गांव में नहीं रहना। और न हीं उसे गांव की मान्यताएं रीति रिवाज मुझे पसंद है। मुझे अपनी स्वतंत्रता प्यारी है और मैं तुम्हारे साथ जर्मनी चल रही हूं। यह फाइनल है।" नेहा ने कहा


" ठीक है अगर कुछ भी प्रॉब्लम हो तो मुझे बस एक कॉल कर देना ...!! मैं आकर तुम्हें ले जाऊंगा और फिर यहां से हम बाहर चले जाएंगे चले। पर तुम्हें मैं किसी भी हाल में उस गांव में नहीं छोड़ सकता जहां पर इंसानों को इंसान नहीं समझा जाता।" आनंद ने कहा।

थैंक यू आनंद...!! तुमने कम से कम मुझे और मेरी स्थिति को समझा। बस अब मैं घर पहुंच कर मम्मी पापा से बात करने की और समझाने की कोशिश करती हूं। और फिर जैसा होगा तुम्हें बताऊंगी।" नेहा ने कहा।

" ठीक है मैं हर हाल मे तुम्हारे साथ हूँ।" आनंद ने कहा।



थोड़ी देर बाद नेहा ने सांझ को कॉल लगाया।

"हां नेहा दीदी बताइए कैसे हाल-चाल है...!!अब तो आपका एमबीबीएस कंप्लीट हो चुका है ना तो अब आगे का क्या प्लान है?" सांझ ने खुश होकर कहा।


" आगे के प्लान तो बहुत कुछ है। मैंने सोच रखा है कि पीजी करूंगी और वह भी जर्मनी से? बस उसकी तैयारी चल रही है। बाकी कल मैं गांव जा रही हूं तो तुमसे यही पूछना था कि तुम फ्री हो तो तुम्हें लेते हुए चलूँ? " नेहा ने कहा।

"नहीं दीदी मैं तो फ्री नहीं हूं..!! हालांकि मेरे भी एग्जाम हो चुके हैं और मेरा भी नर्सिंग कोर्स कंप्लीट हो चुका है। पर अभी हॉस्पिटल में ड्यूटी चल रही है तो नहीं आ पाऊंगी। पर आप चले जाइए जैसे ही मैं फ्री होती हूं मैं वहां आ जाउंगी आपके पास और दो-चार दिन आपके साथ जरूर रुकूंगी।" सांझ ने कहा।

"ठीक है कल मैं जा रही हूं पंद्रह दिन के लिए। जब भी तुम्हें टाइम मिले तुम भी आ जाना क्योंकि अभी मेरा वहाँ पन्द्रह बीस दिन रुकने का प्लान है। तो कुछ दिन तुम मेरे साथ रुकना तो तुम्हारा हो जाएगा मेरे साथ।"'नेहा बोली।

" जी दीदी मैं कल ही जाकर मैडम से बात करती हूं। और अगर छुट्टी मिल जाती है तो मैं आ जाऊंगी। अभी आप चले जाइए।" सांझ ने कहा।

"ठीक है!" नेहा बोली और फिर कॉल कट कर दिया और अपने जाने की तैयारी में लग गई, इस बात से अनजान की यह सफर उसकी जिंदगी में बहुत कुछ बदलने वाला है। नेहा ने अपना सामान जमाया और गांव के लिए निकल गई।


वो बेहद खुश थी क्योंकि बहुत दिनों बाद अपने घर जा रही थी। दूसरा उसने सोच रखा था कि घर जाकर वह आनंद के बारे में घर में बात करेगी और अपने मम्मी पापा को आनंद के साथ रिश्ते के लिए मनाएगी। नेहा को इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि उसका रिश्ता अवतार सिंह निशांत के साथ पहले ही तय कर चुके हैं।

यह जानते हुए भी कि उसे गांव में अभी हर युवक और युवती की किस्मत उसके माता-पिता लिखते हैं नेहा ने प्यार किया।

यह जानते हुए भी की हर किसी का भाग्य विधाता अभी भी उस गांव के पंच और पंचायत ही है नेहा ने सपने देखने की गलती कर दी थी। और साथ ही साथ अपने सपनों को पंख देने के लिए उसने विद्रोह करने का भी मन ही मन फैसला कर लिया था। इस बात से अनजान कि आगे क्या होगा नेहा ने अपने भविष्य की काफी कुछ प्लानिंग कर ली थी।

अब समय आगे क्या दिखाएगा यह तो नेहा नहीं जानती थी पर अपने भविष्य का निर्णय उसने खुद के हाथों में ले लिया था और गांव की पुरानी मान्यताओं को उसने सिरे से खारिज कर दिया था। पर क्या यह सब इतना आसान है?

जो हम सोचे वह हो जरूरी तो नहीं। कई बार हम सोचते बहुत कुछ है और होता उसके उलट है। और कई बार कुछ ऐसा हो जाता है जो हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा होता।


*****

अवतार की नेहा से बात हो चुकी थी और उसने बता दिया था कि वह अगले दिन शाम तक गांव पहुंच जाएंगी।

अवतार सिंह एक तरफ जहां खुश थे तो वहीं दूसरी तरफ चिंतित भी थे।

वह आंख बंद किये अपने कमरे में बैठे थे। आंखों के आगे कभी नियति और सार्थक की डेड बॉडी आ रही थी तो कभी पंचायत का उनके लिए सुनाया गया निर्णय।

अवतार सिंह के चेहरे पर तनाव आता जा रहा था तभी उनके कानों में गजेंद्र सिंह के कहे शब्द गूंज उठे।

"अगर कहीं नेहा ने भी इस बात से इनकार कर दिया तो फिर एक तूफान आ जाएगा...!! हम तो दोस्ती के खातिर चुप रह जाएंगे पर निशु गर्म खून है वह बर्दाश्त नहीं कर पाएगा..!! आपकी इज्जत भी अब हमारी इज्जत है और आपकी बेज्जती भी अब हमारी बेइज्जती है..!! हम दोनों परिवारों का नाम जुड़ चुका है। आपसे यही कहना चाहूंगा कि नेहा को बिना बताएं यहां बुला लीजिए कहीं ऐसा ना हो जो नियति के साथ हुआ वहीं घटना फिर से दुहराई जाए। जवान खून है बाहर रह रही है क्या पता क्या सोच रही हो मन में। कहीं कुछ ऊँच नीच हा गई तो फिर ...!"
और अवतार सिंह ने एक झटके से आँखे खोली और पत्नी को आवाज दी।


"भावना ...! भावना। " यहां आओ।

अवतार सिंह ने तुरंत अपनी पत्नी को आवाज़ लगाई।

"जी कहिए..!" उनकी पत्नी ने आकर कहा,

"नेहा कल शाम को आ रही है और तुमको मेरी कसम है जो तुमने उसे निशांत से रिश्ते के बारे में कुछ भी कहा तो। सही समय देखकर मैं खुद बात कर लूंगा। नहीं तो जब जब सगाई होगी शुक्रवार को तब उसे खुद ब खुद पता चल जाएगा और उसके बाद हम समझा देंगे उसे। मैं बिल्कुल भी मौका नहीं देना चाहता कि वह कुछ भी गलत कदम उठाए या उसके कारण गांव में हमारी इज्जत नीलाम हो। समझ रही हो ना तुम? " अवतार सिंह बोले।

"अगर आपके मन में इतना ही डर है तो आपको एक बार नेहा से बात कर लेनी चाहिए थी ...!! नेहा बाहर रह रही है ।" भावना ने अभी बोला ही था कि अवतार सिंह ने अपनी हथेली आगे कर दी।

'बाहर रहने का इस गांव से निकलने का मतलब यह नहीं है कि गांव का रीति रिवाज और संस्कार भूल जाए। और हां तुम भी इस बात को बहुत अच्छे से समझ लो और अपने मन में बिठा लो। नेहा की एक गलती और सजा सिर्फ नेहा को नहीं मिलेगी इस पूरे परिवार को मिलेगी। तुमको मुझको सांझ को। समझ रही हो ना तुम ..!! इसलिए कोई भी गलती की कोई गुंजाइश नहीं है। और दूसरी बात नेहा चाहे मुंबई चली जाए चाहे अमेरिका चली जाए पर उसे इस गांव के नियम और कानून मानने ही होंगे। मैं इस गांव के विरुद्ध जाने की इजाजत नेहा को भी नहीं दे सकता।
भले मैं उसे बहुत प्यार प्रेम करता हूं मेरी इकलौती संतान है। उसकी खुशी चाहता हूं पर अपने मान सम्मान और इस गांव के नियम और कायदे कानून से बढ़कर कुछ भी नहीं है। यहां के भाग्य विधाता हम थे हम हैं और हम लोग ही रहेंगे। यहां पर किसी को भी कुछ भी गलत करने की इजाजत नहीं है और ना ही अपनी मर्जी से अपना जीवनसाथी चुनने की और विजातीय विवाह की। समझ रही हो तुम..?" अवतार सिंह ने कहा तो भावना ने गर्दन हिला दी।

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव