कहां गए वो बचपन के दिन..... Purnima Kaushik द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कहां गए वो बचपन के दिन.....

वो हसीं ठिठोली के दिन, वो खेलने कूदने के दिन, वो मस्ती भरे हुए दिन न जाने कहा खो गए। जब व्यर्थ की कोई चिंता नहीं थी, जब हमेशा सपनों के ऊंचे ऊंचे महल बनाए जाते थे। जब किसी भी समस्या का कुछ ही पलों में निकल आता था, जब माँ की डांट भी प्यारी लगती थी। आज बहुत याद आते हैं वो मस्ती भरे हुए दिन जब हर समस्या को यूं ही खेल खेल में भूला देते थे। मन चाहता है कि एक बार फिर उन दिनों को जीया जाए। उन क्षणों को फिर से एक बार अपने वर्तमान में उतारा जाए।

बड़े होने पर बचपन के इन दिनों को बहुत ही ज्यादा याद किया जाता है। इच्छा होती है कि समय की गति को फिर वापस मोड़कर वो बचपन के दिनों पुनः जीया जाए। वो बचपन की सुनहरी यादें, खेल खेल में खूब उछल कूद करना, मस्ती मजाक करना, सभी भाईयो और बहनों का अटूट प्यार, एक दूसरे के लिए बाहर सब से लड़ जाना, नए नए मित्र बनाना, अपने मित्रों और सहयोगियों के साथ खूब मस्ती करना और दादा जी, दादी जी, नाना जी और नानी जी से बड़े बड़े वीर महापुरुषों की कहानियों को सुनना आज बड़े होने पर बहुत याद आता है।

बड़े होने पर, अपने जीवन में नए लक्ष्यों को प्राप्त करने में हम अपने को भूल सा जाते हैं। जीवन में आगे बढ़ जाते हैं लेकिन, अपने जीवन के उन सुनहरे पलो को हम पीछे छोड़ आते हैं। यह सत्य है कि हमे सदैव वर्तमान में ही रहना चाहिए। लेकिन जीवन के सुनहरे पलो को नही भूलना चाहिए, जिन्हें हम अपना सबसे महत्वपूर्ण समय कह सकते हैं। बचपन के वो दिन सबसे सुंदर होते हैं, इन दिनों को याद कर जीने का बार बार मन मन होता है। इन पलों को कभी नही भुलाया जा सकता।

बचपन में हमेशा बड़े बड़े सपने भी देखे जाता है। कभी बड़ा अफसर बनने के, कभी देश की रक्षा करने के लिए फौज में सपना, कभी बच्चों को एक शिक्षक बन आगे बढ़ने का हौसला देना, कभी एक लेखक की तरह किताबो में अपनी कलाओं को स्थान देना, कभी एक वैज्ञानिक बनकर अंतरिक्ष तक जाने का सपना इसी तरह से अनेक सपने सिर्फ बचपन में ही देखे जाते हैं। इन्हें सपनों को पूरा करने की हिम्मत भी बचपन से ही मिलती हैं। बचपन में न तो कभी कोई व्यर्थ का भय होता है और न ही कोई चिंता। बस अपने पर एक विश्वास, "कि हम एक दिन छू लेंगे आसमान"

आसमान को छूने की इच्छा बचपन में ही आती हैं। बचपन में जब स्कूल से थक कर आते हैं तो हमेशा मां की प्यार भरी गोद में सिर रखने को मन होता है। मां की डांट तब बिलकुल भी बुरी नही लगती। लेकिन बड़े होने पर हम मां की डांट को गलत समझ बैठते हैं। बचपन में हम भले ही हम नासमझ होते हैं लेकिन यही दिन हमारे जीवन के सबसे खूबसूरत दिन कहे जाते हैं। इन दिनों को याद कर बड़े होने पर आंखों से आंसू आ जाते हैं, ये सोचकर कि हम कितने भोले थे और कितनी मस्ती किया करते थे। अब वो मस्ती भरे दिन कहीं गुम हो गए, अब खेल कूदने के दिन बीत गए, अब खुलकर हसी ठिठोली के दिन नही रहे। लेकिन आज भी इन दिनों को सभी को समय निकालकर जीना चाहिए। एक दिन अपने पुराने मित्रों से भी मिलना चाहिए और साथ ही अपने भाइयों और बहनों के साथ बैठकर खुलकर उन पलों को याद करना चाहिए। उन पलों को जरूर जीना चाहिए सभी व्यक्तियो को।

आज बहुत याद आते हैं वो बचपन के बीते दिन .......