एहिवात - भाग 17 नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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एहिवात - भाग 17

चिन्मय एवम नाटक में भाग लेने वाले सभी छात्रों ने अपने शिक्षक के आदेश को शिरोधार्य करते कोल आदिवासी समाज के रहन सहन एव संस्कृति को जानने सीखने की गम्भीरता से कोशिश करना शुरू कर दिया साथ ही साथ इस बात का विशेष ख्याल रखते की उनके किसी आचरण से कोल समुदाय का कोई सदस्य आहत ना हो ।
सुबह विद्यालय के छात्र कोल बस्तीयों में पहुंच जाते और शाम होते ही लौट आते पंद्रह दिन का सीमित समय इसी दौरान बोली भाषा खान पान आदि के विषय मे जानकारी प्राप्त करना एव उंसे आचरण में उतारना मुश्किल कार्य था क्योकि कोल संस्कृति बहुत व्यापक है फिर भी सभी छात्र कड़ी मेहनत लगन के साथ अपने कार्य मे जुटे हुए थे ।
 
पंद्रह दिनों के निर्धारित समय मे तीन दिन बीत चुके थे चौथे दिन चिन्मय मझारी कोल बस्ती से कुछ दूरी पर स्थित दूसरी कोल बस्ती नेवाड़ी पहुंचा उसके साथ अन्य नाटक में भाग लेने वाले दूसरे छात्र भी थे।
 
चिन्मय कि निगाह शेर के साथ खेलती लड़की पर पड़ी दूर से कुछ भी स्प्ष्ट नही हो पा रहा था अतः चिन्मय के मन मे पास जाकर जानने की जिज्ञासा जाग्रत हुई आखिर कौन है ?जो खूंखार शेर के साथ खेल रहा है लेकिन चिन्मय के मन मे भय भी था की कही शेर ने उस पर आक्रमण कर दिया तो क्या होगा ? हिम्मत जुटाते हुये उसने शेर से उतनी दूरी तक जाने का निर्णय किया जिससे कि किसी भयावह स्थिति से अपनी रक्षा कि जा सके एव स्प्ष्ट रूप से शेर के साथ खेलते व्यक्ति को देखा जा सके शेर को देख अन्य छात्र वहा से चले जाना ही उचित समझा ।
 
चिन्मय ज्यो ही शेर कि तरफ बढ़ा शेर स्वंय उधर ही आने लगा चिन्मय पलट कर भागने ही वाला था कि उसके कानों में जानी पहचानी आवाज आई चीनु बाबू रुक जा हम बोलत हई सौभाग्य चिन्मय रुक गया तब तक सौभाग्या वहाँ अपने शेरू शेर के साथ पहुँच गयी बोली डर जिन बाबू ई हमार शेरू ह तोहे कौनो नुकसान नाही पहुंचाई और शेरू को आदेशात्मक लहजे में बोली जो बाबू के पास बोल बाबू डेरा मत शेरू चिन्मय के पास पहुंचा और उसके पैर के पास बैठ गया।
 
चिन्मय के मन मे सौभाग्य के आश्वासन के बाद भी आश्वस्त नहीं था वह सोच रहा था कि खूंखार जानवर पता नही कब हमला कर दे।
 
शेरू चिन्मय के पैर के पास बैठा चिन्मय का चेहरा निहार रहा था सौभाग्य बोली आबो डेरात है कि डर खतम भइल बाबू चिन्मय बोला तोहरे शेरू से काहे क डर सैभाग्य बोली हमार त जिनगी जंगल से लकड़ी बिनल और घर के चूल्हा बरतन तक रही गइल बा तू जौंन पढ़ाए सिखाए रहे वोही के कबो कबो दोहराईगे तोहार याद कर लेत रहनी ई बताओ चीनू बाबू हमरे बस्ती में तू का करत है चिन्मय को समझ मे ही नही आ रहा था कि क्या जबाब दे।
 
चिन्मय ने कहा ऐसे ही ई देखे आए है कि तोहन लोग कैसे रहत खात पियत बोलत बतियात हऊ सौभाग्य अपने चिर परिचित भोलेपन अंदाज़ में बोली चीनू बाबू ई त सुने रही कि झोपड़ी वाले महल के सपना देखत है लेकिन महल वाले झोपड़ी में आवत पहली बार देखा ।
 
चिन्मय और सौभाग्य कि वार्ता को शेरू भी कभी कभी अपनी हरकत से नया अंदाज़ भर देता इधर रमणीक दुबे मझारी बस्ती में चिन्मय को न पाकर सोचने लगे आखिर चिन्मय गया तो गया कहाँ दुबे जी सोच विचार में डूबे चिन्मय के अन्य साथियों से पूछने जा ही रहे थे कि उनके सामने से जुगनू कोल गुजरते बोला साहब आपके साथे क एक जवान त नेवाड़ी में घूमता रमणीक दुबे ने जुगनू से पूछा नेवाड़ी कितनी दूर है जुगनू बोला पलक झपकते पहुंच जाब ।
 
रमणीक दुबे ने जुगनू से कहा तुम मुझे नेवाड़ी तक पहुंचा दो जुगनू बोला चल साहब दुबे और जुगनू साथ साथ चल दिये कुछ ही देर में जुगनू ने इशारे से चिन्मय को दुबे जी को दिखाते हुए बोला साहब ऊ शेर के पास देख दुबे जी ने देखा चिन्मय शेर के पास खड़ा किसी लड़की से बात कर रहा था
 
जुगनू लौट गया रमणीक दुबे चिन्मय के पास निर्भीक होकर शेरू से बिना डरे पहुंचे बोले यहाँ क्या कर रहे हो? यह लड़की कौन है ?चिन्मय बोला सर इसका नाम सौभाग्य है इससे मैं कैसे जानता हूँ बाद में बताऊंगा आप सौभाग्य को नाटक में मुख्य नारी पात्र के रूप में चयनित करे यह कोल समाज से भी है ।
 
दुबे जी ने सौभाग्य को पारखी नजरो से देखा देखते ही रह गए बोले यह शेर इसी लड़की का है चिन्मय कुछ बोलता उससे पहले सौभाग्य बोली हा साहेब शेरू हमार भाई ह दुबे जी ने कहा पढ़े लिखे हुऊ सौभाग्य बोली साहब इहे चीनू बाबू जेतना हमे पढ़ाए है ओतना हम पढ़े हई कबो स्कूल क मुंह ना देखे अब रमणीक दुबे के मन मे एक अलग प्रश्न खड़ा हो गया कि चिन्मय ने कब कैसे और क्यो सौभाग्य को पढ़ाया उन्होंने सौभाग्य से कहा तोहे
 
कब कैसे चिन्मय ने पढ़ाया? सौभाग्य कुछ बोले इससे पहले चिन्मय बोला सर मैं आपको सारी बाते अलग से बता दूंगा अभी आप सौभाग्य के विषय मे निर्णय लेने की कृपा करें कि वह नाटक में नारी चरित्र के योग्य है या नही रमणीक दुबे ने चिन्मय से पूछा कि नाटक के मंचन में मात्र कुछ ही दिन बचे है क्या सौभाग्य अपने पात्र का संवाद बोल सकेगी बहुत पढ़ी लिखी भी नही है चिन्मय ने बोला सर मुझ पर भरोसा हो और आपकी निगाह में सौभाग्या नाटक के लिए उचित पात्र हो तो आप निर्णय ले सकते है ।
 
रमणीक दुबे कुछ सोच विचार करने के उपरांत बोले निश्चित रूप से सौभाग्य नाटक के नारी पात्र हेतु सर्वथा उचित है यदि उसने संवाद बोलना सिख लिया चिन्मय ने कहा सर आप अब निश्चिन्त रहें और नाटक मंचन से दो दिन पूर्व आप स्वंय प्राचार्य जी एव कमेटी के अन्य शिक्षक गण रिहर्सल को देख लीजिएगा रमणीक दुबे ने नाटक के नारी पात्र का स्क्रिप्प्ट चिन्मय को देते हुए कहा अब तुम्हारे विश्वाश पर मैं छोड़ता हूँ रिहर्सल में सौभाग्य और तुहारी दोनों की परीक्षा है और हाँ यह भी ध्यान रखना कि रिहर्सल में सौभाग्य के सफल न होने पर दूसरे नारी पात्र का मिलना सम्भव नही होगा चिन्मय एक बार फिर रमणीक दुबे जी को आश्वस्त करते हुए बोला सर आपका विश्वाश नही टूटेगा रमणीक दुबे चिन्मय के आश्वासन पर आश्वस्त होकर चले गए
 
रमणीक दुबे के जाने के बाद चिन्मय सौभाग्य से बोला सौभाग्य तुम्हे हमरे विद्यलय में हो रहे कोल जनजातीय आधारित नाटक में भाग लेना है बड़ी मुश्किल से मैंने तुम्हें नाटक में भाग लेने की अनुमति ली है सौभाग्य बोली चीनू आप नाटक में हमरे खातिर एतना कहे ह त हम तोहर भोरोसा नाही टूटे देईब चिन्मय ने सैभाग्य से कहा कि तुम्हे दस दिनों में ही नाटक में का बोले क ह रट लेबे के पड़ी सौभाग्य बोली चीनू आप बतावत जाय हम रटत जाब चिन्मय को सौभाग्य पर भरोसा था शेरू बैठा अपनी दुम हिलाता ऐसे हरकते करता रहा जैसे वह सारी बातों को समझ रहा हो।