एहिवात - भाग 9 नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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एहिवात - भाग 9

जुझारु के बहुत समझाने के बाद तीखा ने सौभाग्य को बाज़ार जाने कि अनुमति दी ।
जुझारू बेटी सौभाग्य के साथ नियमित बाजारों कि तरह ही बाज़ार पहुंचे चिन्मय को तो बेकरारी से बाजार के दिन का इंतज़ार था ही ।
वह भी स्कूल से छुट्टी होने से पहले अपने क्लास टीचर से छुट्टी लेकर स्कूल से निकला जुझारू सड़क किनारे बेटी सौभाग्य के साथ अपने दुकान पर बैठे ग्राहकों का इंतज़ार कर रहे थे चिन्मय वहाँ पहुंचा और बोला चाचा पहचाने पिछले बाजार के सुगा ले गए रहे चार रुपया दिए रहा छः रुपया बाकी रहा देबे आए है जुझारू बड़े प्यार विनम्रता से बोले बाबू तोहार परिवार के रिवाज दूसर है आप लोग केहू के दु पईसा देब नाही त लेब कत्तई नाही आज कल दुनियां ऐसी बा कि जे जेतना दुनियां के लूट सके थोखा दे सके बेईमानी कर सके धूर्तई कर सके ऊहे बड़ा आदमी है तोहार बापू कबो केहू के एक पईसा नाजायज अपने पास ना रखे हम लोग एक एक पईसा खातिर जान जोखिम में डारी डारी जंगल से आपे लोगन कि ख़ातिर एक से बढ़कर एक मन पसंद चीज इकठ्ठा कर बज़ारे ले आईत कि दु पईसा हमे भी मिले काम चले बड़ा अच्छा किए बाबू कि पईसा दे दिए।
सौभाग्य बापू जुझारू और चिन्मय कि वार्ता को बड़े ध्यान से सुन एकटक चिन्मय को देखती ही जा रही थी जुझारू को पैसे देने के बाद चिन्मय सौभाग्य कि तरफ मुखातिब होते बोला आप कैसी है ?
सौभाग्य बोली हमहू ठीके है चिन्मय को कोई न कोई बहाना चाहिए था सौभाग्य से बात करने का उसने सौभाग्य से पूछा सौभाग्य पढ़ती हो कौने दर्जा में पढ़ती हऊ सौभाग्य बोली हमरे नसीब में पढ़े लिखे के कहा बदा बा हम लोग के नसीब भगवान तोहरे जईसन थोड़े लिखेंन है हमन के तकदीर लोढ़ा से लिखे हैं तोहार सोने के कलम से लिखे है चिन्मय बोला प्राइमरी स्कूल त सगरो जगह है त का दिक्कत है स्कूल जाए में सौभाग्य बोली हमार जिनगी लकड़ी बिननें से शुरू होत है और लकड़ी में जल जात है ।
सौभाग्य के एक एक शब्द उनके बाल निष्पाप निश्चल अबोध अंर्तमन वेदना को अभिव्यक्त कर रहे थे ।
जुझारू को भी क्या था कोई ग्राहक नही आता दोनों कि बतकही में चिन्मय ने बोला सौभाग्य तोहरे बापू कहे त हम तोहे पढ़ाई सकित है ।
 
जुझारू बोला नाही बाबू एके अपने हालत हालात पर रहे द जब कभी चिन्मय बात चीत का सिलसिला आगे बढ़ाए रखने के लिये कोई रास्ता निकालने की जुगत लगाता जुझारू तुरते खत्म कर देते।
 
चिन्मय ने सौभाग्य से बोला
हम हर बज़ारे के तोहे दस पांच दस मिनट में कुछ पढ़ाए देब कुछ दिन हमरो बात मानी के देखल जुझारू को लगा कि इमा त कौनो खास बात है नाही है बोला बाबू दस मिनट यही जो बताए सक बताए दिह।
 
चिन्मय को लगा जैसे उसने जुझारू की सहमति पाकर बहुत बड़ी समस्या का हल खोज लिया हो चिन्मय को इत्मिनान इस बात का हो गया कि उसे हर मंगल और शनिवार को सौभाग्य से मिलने का अवसर मिलेगा उसका प्रस्ताव भी इसी निमित्त था ।
 
चिन्मय बहुत खुश हुआ और सौभाग्य से बोला सौभाग्य मंगलवार के मुलाकात होई चिन्मय कि खुशी का कोई ठिकाना नही था कल्पना लोक में खोया वह घर पहुंचा और सौभाग्य से मुलाकात बात की यादों में और मुलाकात के खयालों में खो गया।
 
सप्ताह के पहले बाज़ार मंगल का दिन चिन्मय प्रतिदिन् से कुछ अधिक जोश खरोश से स्कूल जाने के लिए तैयार हुआ
स्कूल में भी चिन्मय मेधावी छात्र के रूप में चर्चित था शिक्षक उस पर गर्व करते यदि कोई छात्र या शिक्षक किसी प्रकार की बात चिन्मय के विषय मे शिकायती लहजे में कहते तब भी चिन्मय के शिक्षक चिन्मय के विषय मे सुनने को तैयार नही होते क्योकि स्कूल का नाम हर जगह चिन्मय के कारण गौरवान्वित होता रहता चाहे खेल हो बात विवाद प्रतियोगिता हो सांस्कृतिक कार्यक्रम हो स्वतंत्रता दिवस हो या गणतंत्र दिवस किसी भी आयोजन में चिन्मय कि सहभागिता रहती और आयोजन का शिखर चिन्मय ही रहता।
 
चिन्मय स्कूल पहुंचा और छुट्टी होने के बाद सीधे वह जुझारू कि चिर परिचित दुकान पहुंचा जो बाज़ार के अंतिम छोर पर सड़क के किनारे रहती और जुझारू से बोला चाचा अभी कोई ग्राहक नही है तब तक हम सौभाग्य को कुछ बता देते है जुझारू बोले ठीक है चिन्मय कार्ड बोर्ड पर काट काट कर हिंदी वर्णमाला के दस अक्षर सौभाग्य को देता हुआ दसो को दस मिनट में ही दस दस बार दोहरा दिया जिसे सौभाग्य ने भी दोहराया चिन्मय बोला आज का समय समाप्त बाकी अगले बाज़ार को तब तक तुम इन दस अक्षरों को पहचान कर ऐसे ही जमीन पर बनाने की कोशिश करना चिन्मय बोला जुझारू चाचा अब हम जात हई और गाँव कि तरफ चल दिया।
 
चिन्मय अनुशासन पसंद सांस्कारिक परिवार से था अतः वह परिवार औऱ अपने अनुराग के बीच बेवजह कोई संसय या फसाद नही चाहता था चाहे उसके अपने माता पिता कि तरफ से हो या सौभाग्य के माता पिता कि तरफ से वह निर्धारित समय स्कूल जाता स्कूल से बाजार के दिन अपने बिभिन्न प्रयोगों से मात्र दस मिनट के निर्धारित समय मे सौभाग्य को जो कुछ सम्भव होता पढ़ाने कि कोशिश करता और समय से घर लौट आता ।
 
सौभाग्य भी अब बाज़ार के दिन चिन्मय का इंतजार करती और उसके द्वारा दी गयी शिक्षा को गंभीरता से ग्रहण करती और बाकी दिनों में उसका अभ्यास करती दो वर्ष के चिन्मय के निरंतर प्रयास से सौभाग्य पढ़ना लिखना आदि सिख गयी थी चिन्मय को सौभाग्य से मिलना और पढ़ना अच्छा लगता तो सौभाग्य को चिन्मय से मिलने में इतनी खुशी होती जैसे उंसे दुनियां कि सबसे बड़ी खुशी मिल गयी हो।
 
चिन्मय जब घर पर पढ़ता तो लकी सुगा को साथ पिजरे में सामने रखता और जब कभी अवसर मिल जाता सौभाग्य और अपनी मुलाकात और अपनी संवेदनाओं को व्यक्त करता जब कभी बाज़ार के दिन चहकते हुये स्कूल के लिए चिन्मय निकलता और माँ स्वाति उंसे दरवाजे तक छोड़ने आती तब लकी सुगा बोलता सौभाग्य सौभाग्य स्वाति को लगता कि सुगा शुभ का सौभाग्य चिन्मय के लिए बोल रहा है वह लकी के पास आती और बोलती लकी तू केकरे सौभाग्य के बात करत है लकी अपनी भाषा में स्वाति को समझाने कि कोशिश करता लेकिन स्वाति को कुछ समझ में नहीं आता।।
 
सौभग्या और चिन्मय एक दूसरे के प्रति आकर्षित हो चुके थे लेकिन उनके आकर्षण में अबोध भाव कि पवित्रता बरकरार थी प्रेम का प्रस्फुटन हो चुका था लेकिन वैराग्य भाव था दोनों में स्वार्थ था ही नही अतः दोनों का आकर्षण अनुराग निर्मल निश्छल गंगा यमुना के प्रवाह कि तरह अनवरत बढ़ता जा रहा था ।