Hotel Haunted - 46 books and stories free download online pdf in Hindi

हॉंटेल होन्टेड - भाग - 46

पापा की बात सुनकर मैने उन्हे हल्का सा धक्का देकर नीचे की तरफ भागा, नीचे पहुंचकर मैं कमरे के बाहर जाकर रुका और हांफते हुए जब सामने का मंज़र देखा तो आंखो के आगे अंधेरा छाने लगा, सामने बेड पर माँ लेटी हुई इतनी गहरी गहरी सांसें ले रही थी की उनके सांसों की आवाज पूरे कमरे मैं गूंज रही थी, जिससे उनका पूरा शरीर ऊपर खींच रहा था उन्हे देखकर यह अंदाजा यह लगाया जा सकता था की उनको सांस लेने मैं कितनी दिक्कत हो रही है, उन तेज़ चलती सांसों की आवाज़ सुनकर मेरे दिल की धड़कने पल पल बढ़ रही थी।


"माँ....." मैं चिल्लाते हुए मैं सीधे उनके पास जाकर बैठ गया और उनका हाथ पकड़ लिया,"माँ......माँ..." मेरी आवाज सुनते ही उसने अपनी आंखें खोली और मेरी तरफ देखती हुई हल्का सा मुस्कुराई,"माँ..." इसके आगे कहता उसके पहले ही माँ ने अपना हाथ छुड़ाकर के मेरे चेहरे पर रख दिया।
"श्रेयस...... " उनकी भरी चलती हुई सांसों के साथ उन्होंने मेरा नाम पुकारा। "मुझे तुझसे बात करनी है।"मां ने अपनी सांसों को थामते हुए धीरे से कहा।


"नहीं माँ, अभी आपको डॉक्टर की ज़रूरत है....पापा.....पापा" मैं ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने पर पापा मेरे पास आकर बैठ गए।शिल्पा की ऐसी हालत देखकर वो तो जैसे अपनी हिम्मत ही हार गए थे,आंखो के गिरते एक आंसु के साथ उन्होंने शिल्पा का हाथ पकड़ लिया।
“पापा अपने आप को संभालिए, हमें मां को अभी के अभी हॉस्पिटल लेकर जाना होगा।"
"मैने Mr.Varma को कॉल कर दिया है वो बस पहोचते ही होंगे।" दरअसल Mr.Varma इस शहर के Heart Surgeon और Pulmonologist के साथ साथ ध्रुव के एक अच्छे दोस्त भी थे।
"पापा उन्हे यह पहुंचते हुए देर हो जाएगी इससे अच्छा हम ही वहां चले जाएं क्योंकि मां की हालत बिगड़ती जा रही है।"
"ठीक है तू शिल्पा को लेके जल्दी नीचे आ।" पापा अभी कमरे से बाहर निकल ही रहे थे तभी शिल्पा ने उन्हे रोक दिया।
"नहीं ध्रुव.....रुक जाओ,.इसकी कोई ज़रूरत नही है।" पापा की बात सुनते ही माँ बोल पड़ी, माँ की आवाज़ सुनते ही पापा मुड़े और माँ को देखने लगे।


"शिल्पा please तुम ज्यादा बोलने की कोशिश मत करो, श्रेयस जल्दी कर अपनी माँ को उठाओ हम और देर नहीं कर सकते हैं।"पापा की बात सुनते ही मैं माँ को उठाने के लिए झुका लेकिन...
''श्रेयस अगर तू अपनी मां से प्यार करता है तो मुझसे नहीं उठाएगा.,मैं जानती हूं की मेरे पास कितना वक्त है।' मां के कहते ही मेरे हाथ रुक गए और मैने उन्हे भीगी आंखों से देखा, जैसे मैं पूछ रहा हूं कि क्यों मां?ऐसा क्यों कर रही हो?
"ये क्या बचपना है शिल्पा, प्लीज़ ज़िद छोड़ो तुम्हें अभी हॉस्पिटल जाने की जरूरत है....प्लीज़....." पापा ने कमरे मैं वापस आते हुए कहा पर उनके गले ने उनका साथ छोड़ दिया,उनकी आंखो से निकलते आंसु जमीन पर गिर रहे थे।
"नहीं ध्रुव, अब और नहीं..... मुझे मेरे आखिरी पल मेरे बेटे के साथ बिताने दो प्लीज, तुम्हें मेरी कसम तुम मुझे नहीं रोकोगे..."मां ने पापा की तरफ देखते हुई अपनी बात तो कह दी लेकिन उनकी बात सुन मेरा कलेजा मेरे मुँह से बहार आने को हो गया।
"माँ ये क्या बोल रही हो?? आपको कुछ नहीं होगा।" मैने माँ के हाथ को कसकर पकड़कर अपने गालों से लगा लिया पर वो कुछ नहीं बोली और सिर्फ पापा को ही देखती रही, आखिर में पापा की तरफ देखा और ज़ोर से चिल्लाया,"कुछ करो पापा....please कुछ करो....." मेरी आंखो से बहते हुए मां के हाथ पर गिर रहे थे क्योंकि आज मैं पहली बार अपने आप को इतना बेबस मेहसूस कर रह था,इस मोड़ पर मैं चाहते हुए भी कुछ नही कर सकता था।



"श्रेयस......" माँ की आवाज़ सुनते ही शरीर से निकल रहा सारा गुस्सा शांत हो गया और मैं मां की तरफ देखने लगा, "हां मां में यहीं हूं।" आज मैं पहली बार उस उपर वाले से यही प्रार्थना कर रह था की बस इस पल को जल्दी से गुजार दे क्योंकि यह पल मेरे उन सभी बुरी यादों से बढ़कर था जिसे मैं कभी बर्दास्त नही कर सकता था।
"मैं,Varma को फोन लगता हूं।"कहते हुए ध्रुव कमरे से बहार निकल गया।
"बेटा तू जानता है मेरी लाइफ का सबसे अच्छा पल कौन सा था, जब तू मेरे पास आया, उस दिन मुझे मां का असली मतलब समझ आया,जब तुझे पहली बार अपनी गोद मै उठाया तब समझ आया उस मां के प्यार का एहसास क्या होता है।" गहरी गहरी सांसें लेते हुए बोल रही थी और मैं उसके हाथों को पकड़े अपने होठों से लगाय बैठा रहा।


"पर अपनी इस मां को माफ करदे बेटा मैं तेरे प्यार को समझ नही पाई "कहती हुई माँ की आँखें से आंसू निकल आये,उनकी यह बात सुनकर मेरी आंखे बड़ी हो गई, मैं एक पल के लिए शांत होकर उनके चेहरे को देखने लगा।
"तुम्हारी बनाई गई वो sketch देखकर मै समझ गई की तुम आंशिका से कितना प्यार कर करता है,पर जिस वक्त मुझे तुम्हारे साथ होना चाहिए उसके बदले मैं तुम्हें छोड़कर जा रहीं हूं।"
"आप ऐसा नहीं कर सकती मां,आप मुझे ऐसे अकेले छोड़कर नही जा सकती This is wrong." तभी मेरी आंखो के सामने वो पल आ गया जब मैंने उनसे बद्तमीजी से बात की थी,"मां अगर आपको मेरी बात का बुरा लगा हो तो मुझे मारो, सजा दो,मुझसे बात मत करो पर ऐसे छोड़ के मत जाओ, मैने सब गुस्से मै सब कहा था पर मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था।"आप मुझे अपने आप से नफरत सी हो गई थी क्योंकि मैंने भी उसके दिल को तकलीफ पहोचाई थी,दिल मैं यह बात एक खंजर सी चुभ रहीं थी कि मैं उस वक्त मां की हालत को समझ नही पाया,इसलिए मैं गुस्से मै जोर से चिल्लाया,"प्लीज़......प्लीज़...कोई तो मदद करो... प्लीज़..." पर मेरी बात को उस कमरे मैं चार दिवालो के अलावा सुनने के लिए कोई नहीं था।आज दिल बहुत घबरा रहा था क्योंकि मैं उस इंसान को खोने का रहा था जो मेरे लिए भगवान से भी बढ़कर था इसलिए मैने रोते हुए उनके हाथ के पास सर रख दिया।



"श्रेयस....बेटा शांत हो जा तू ऐसे रोएगा तो मुझे ओर तकलीफ होगी, क्या तू चाहता है कि तेरी माँ को और तकलीफ़ हो??हर मां-बाप चाहते है की उनका बेटा हमेशा खुश रहे तो फिर मेरी वजह से तुम्हारी आंखो से आंसु निकले तो मुझे कितनी तकलीफ होती है यह मेरा दिल ही जानता है।"
"नहीं माँ...मुझे माफ करदो,पर आप जानती हो आपका बेटा हर दुख को हंसते हुए सह लेगा लेकिन आपके के बिना नहीं।"
"मैं जानती हूं, तभी तो कह रही हूं कि इन आखरी पलो मैं तेरा चेहरा जी भर के देख लेने दे...बस एक बार हंस के दिखा"मां के कहते ही मेरा चेहरा कांपने लगा, कोई कैसे अपनी मां के खो जाने के वक्त पर ऐसा मुस्कुरा सकता है, लेकिन मैंने फिर भी कोशिश करके भीगी आंखों साथ एक फिकी मुस्कान दी।



"एक ओर वादा करो मुझसे....हर्ष नादान है बातो को नही समझता पर तुम अपने भाई का हमेशा ध्यान रखोगे पर उसे कुछ नही होने दोगे।" मैं माँ को देख बस हां में गर्दन हिलाने लगा, मैं जानता था कि उन्हें बहुत तकलीफ हो रही होगी, धीरे-धीरे वक्त मेरे हाथो से फिसलता जा रहा था।
उन्होंने अपना हाथ गाल के पास रखकर एक लॉकेट निकाला और श्रेयस के हाथ मै रखकर कहा,"इसे हमेशा अपने पास रखना,तुम्हारी मां ने मेरी शादी के वक्त मुझे दिया था,यह एक ऐसी निशानी है जो मेरे लिए बेहद किमती है, इसे कभी अपने से अलग मत होने देना।" इतना कहने के बाद वो जोरो से सांसे लेने लगी,अपने पैरो के वो बेड पर रगड़ रही थी पर सांस नही आ रही थी।यह देखकर मैने उन्हें अपनी पूरी ताकत से अपनी बाहों मैं दबा दिया,कुछ पल ऐसे ही रहने के बाद वो बिल्कुल शांत हो गई,कुछ देर तक मैं ऐसे ही बैठा रहा, कमरे मैं पूरी तरह से सन्नाटा छाया हुआ,मुझे कुछ अजीब लगा इसलिए मैने उनके चेहरे को हिलाया पर कोई रिस्पॉन्स नही दिया,उनका पूरा शरीर ठंडा पड़ चुका था,"माँ.....माँ....."चिल्लाते हुए मैं उनको हिलाए जा रहा था पर कोई जवाब ना आया क्योंकि वो मेरी जिंदगी से बहुत दूर जा चुकी थी।


यह देखकर मेरे कदम बेड से दूर होते गए क्योंकि मेरे सामने आए पल का सामना करने की मुझे हिम्मत नही बची थी,मैं पीछे चलते हुए दरवाजे तक पहुंच गया तभी मुझे धक्का देते हुए हर्ष कमरे के अंदर घुसा,उसके साथ बाहर Mr. Varma भी खड़े थे,हर्ष अपनी मां को हिलाते हुए चीखने लगा, "माँ....माँ....आँखें खोलो....आँखें खोलो माँ...अपने बेटे को माफ करदो मां" कहते हुए उसका गला रूआंसा होता जा रहा था,मैं बिना पलक झपकाए वही खड़ा हुआ था।शरीर था,सांसें थी,दिल भी था धड़कने के लिए पर अब जिंदगी जीने के लिए कोई वजह नहीं बची थी,मैं अपनी नाक से निकलते पानी को पोछा और सामने के मंजर को बस देखे जा रहा था,मेरे पास जो भी कुछ था,वो सब आज छीन चूका था।दरवाजे के बाहर खड़ा ध्रुव वही बैठ गया, वो चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पाया,आज के बाद वो शिल्पा की प्यारी सी हंसी वो चेहरा नही देख पाएगा क्योंकि कुछ ही पल के बाद आग के साथ यह शरीर मिट्टी मैं मिल जाएगा,वो अपने आप को संभाल नहीं पाया और दरवाज़े पे सर लगाए रोने लगा,Mr. Varma उसके पास बैठकर उसे सहारा देने लगे।



कहने के लिए जिंदगी एक इंसान की जाती हैं पर उस इंसान के साथ उससे जुड़े कई लोगो की ज़िंदगी बिखर जाती है,गुजरते हुए हर पल के साथ उसकी कमी और अहमियत हमे मेहसूस होती है।जिंदगी हमसे वफ़ाई तो करती है पर कभी कभी वक़्त उस वफ़ाई को बेवफाई मैं बदल देता है,आज ऐसा ही कुछ हुआ था मेरे साथ भी। हर्ष पापा के साथ खड़ा हुआ था,उसने मां की चिता को अग्नि दी और आकर पापा के गले लग गया,आंशिका खड़ी होकर उसे संभाल रही थी। सामने जलती हुई आग के साथ वो भी अनंत आसमान मैं खो चुकी थी,सभी दोस्तो और relatives से दूर खड़े हुए मैं उन्हे अलविदा कह रहा था।कुछ देर बाद आंशिका चलती हुई मेरे पास आई और मेरे गले लग गई,पर मैने कोई रिएक्शन नहीं दिया। पता नही कब तक वो मेरे हाथ को थामे ऐसे ही खड़ी रही।मैने जब आसमान मैं देखा तो घने काले बादल इक्कठा हो रहे थे और उस चिता से उठती राख उन हवाओ मैं मिल रही थी।"माँ..." कहते हुए मैने अपने आंखो को बंध किया।कुछ देर बाद सभी लोगो के जाने के बाद मैं अपने कमरे मैं शीशे के सामने खड़ा था,आंखो से लेंस हटाया,खड़े बालो को नीचे किया और वही अपने पुराने रूप मैं वापिस आ गया।बुरे पलो को वक्त इतना धीमा बना देता है कि हमे उन बुरे लम्हों को याद करने की जरूरत नहीं पड़ती वो बार बार हमारे सामने आ जाते है,पता नही कब तक मैने अपने आप को उस कमरे मैं कैद रखा।




अगले दिन


मैं chair पर बैठा खिड़की से बाहर आसमान मैं चलते बादलों की तरफ देख रहा था,कमरे मैं बहुत ही कम रोशनी थी तभी गेट खुलने की आवाज़ से मैं अपनी दुनिया मैं वापस आ गया और जैसा ही मैं पलटा तो मेरी नज़रों की सामने ट्रिश आ गई, कुछ पल हम दोनों एक दूसरे की आंखों में देखते रहे,मेरी आंखो मैं छाए सूखेपन वो उसने देख लिया, वो चलती हुई धीरे धीरे मेरे पास आई और मेरे गले लग गई।
"I'm sorry Shreyas..... Really very very sorry, मुझे जैसे ही पता चला कि...." ट्रिश ने कहा और उसकी आंखों से आंसू उतर आया।में कुछ नहीं बोला बस उसके बालों को सहलाता रहा, कुछ देर तक वो यूं ही खड़ी रही और मुझसे अलग हुई तो उसके चेहरे पर आंख से निकलते उन आंसूओ को मैने उसके चेहरे से अलग कर दिया,जिसकी वजह से वो एक तक मेरी ओर देखती रही।
'श्रेयस' उसने मेरा नाम पुकारा तो मैं उसकी बात अनसुनी करके chair पर बैठ गया,उसके पास आकर मेरे चेहरे को पाने हाथों मैं रखकर कहा,"कुछ तो बोलो.....क्यों अपने दुःख को ऐसी ही अंदर दबा रहे हो।"


"ऐसी बात नही है ट्रिश पर तुम आई उसके लिए Thanks" मेरी बात सुनकर उसकी आंख से एक आंसु निकला पर उसके बाद उसने एक लंबी सांस छोड़ी जैसे अपने आप को रोक रही हो,"कब तक ऐसे ही अपनी तकलीफ़ को बढ़ाते रहोगे?"
उसकी बात सुनकर मैने खिड़की के पास जाकर कहा,"किसने कहा मैं तकलीफ मैं हूं ट्रिश?कोई नहीं है अब मेरे पास मेरे सपने, ख्वाहिशें और मेरी दुनिया सब कुछ उनके साथ चला गया।"इतना कहकर उसने ट्रिश के पास आकर उसकी आंखो मैं देखकर कहा,"जरा देखो मेरी आंखो मैं,क्या तुम्हे इसमें तकलीफ दिखाई देती है?"ट्रिश ने श्रेयस की आंखे देखी तो ऐसा लगा जैसे उसमे कोई feeling ही नही बची है,जिसे देखकर वो घबरा गई।
"तो फिर यह बदलाव क्यों श्रेयस?"


"बदलाव??.....मैं इसे बदलाव नहीं कहूंगा,मैं तो फिर से अपनी पुरानी जिंदगी मैं लौट आया हूं,जो पहले किया था वो बदलाव था एक दिखावा था जो उनके साथ ही चला गया।"इतना कहकर श्रेयस शांत हो गया।
"मैं यह सब नही जानती जैसे ही यह सब खत्म हो जाएगा उसके बाद तुम कॉलेज आना start कर दोगे क्योंकि मैं अपने दोस्त को ऐसे अकेले तड़पता हुआ नही देख सकती।"उसकी बात सुनकर मैने कुछ नही कहा कुछ देर ऐसे ही बैठी रही और थोड़ी देर बाद उठकर वो कमरे से बाहर जाने लगी,जाते हुए उसने कहा,"हालत और वक्त इंसान को बदलने पर मजबूर करते है उसी तरह तुम्हे भी इस बात को accept करके जीना सीखना होगा,आंटी तुम्हारी लिए जितनी important थी, क्या पता तुम भी किसी की ज़िंदगी मैं उतनी ही एहमियत रखते हो।" इतना कहने के बाद वो चली गई और मैं ऐसे ही उसकी बात के बारे मैं सोचता रहा।



To be Continued......


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