११८
कलियोंने हलकेसे फुलों को कहाँ
बताओ तो जरा, कैसे दिख रही है दुनिया,
तुम्हारे खिल जाने से क्या लोगों के
चेहेरे खिल गए है ?
तुम्हारी सुगंध से उनके आँगन
महक उठे है ?
यह जानकर क्या लोग तुम्हे
सहला रहे है ?
फुलोंने हँसकर उनसे कहाँ
अरे पगली, हम दुनिया के लिए
नही खिलते है
अपना वजुद है खिलना तो
उसके लिये जीते है
किसी ओर की तरफ तुम
अपनी खुषी ढूँढोगी तो
तुम्हारा खिलना व्यर्थ हो जाएगा
तुम सिर्फ अपने लिये खिलो
हवाँ का आनंद लो
भँवरों की गुनगूनाहट सुनो
और शाम को हलकेसे
जमिन पर लेटकर जीवन समाप्त करो
लोग हमारे साथ क्या करेंगे
ये अगर तुम सोचोगी
तो तुम्हे खिलना ही मंजुर ना होगा
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११९
तुम जब मेरे जीवन से
दुर जाना चाहोगे
तो क्या, मेरे रोकने पर
तुम रुक जाओगे ?
या, सामने खुला आसमान
तुम्हे पुकारे, तो उसी
आवाज में तुम्हे मेरी
आवाज सुनाई भी नही देगी
फुलों की महक तुम्हे
पिछे मुडने नही देगी
चहचहाते पंछी तुम्हे
उडने का हौसला देंगे
हवाँ से लहराते पत्ते
तुम्हे खुले जीवन का
आनंद बतलाएंगे
इन सब पलों में
तुम मुझे भुल जाओगे
लेकिन जब बिजली कडकेगी
आसमान में बादल घिर आयेंगे
पंछी अपने घोसलों में वापस
वापस लोट जाएंगे
तेज हवाओं से बहते
वही फुल पत्ते बिखर जाएंगे
तब तुम्हे मेरी आवाज सुनाई देगी
लेकिन तब तक बहोत देर हुई होगी
तुम्हारे जाने से मेरा
अस्तित्व समाप्त हुआ होगा
सिर्फ मेरे अंतरात्मा की पुकार
तुम्हे याद आ गई होगी.
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१२०
एक ऐसा शब्द
जो कभी बोल ना पाए
फुलों की तरलता में
वो बहता चला जाए
है उस में समंदर की गहराई
या बिखरी हुई चाँदनिया
जो कभी हाथ ना आए
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१२१
बीते हुए यादों की
मजधार में तू कब तक बहता रहेगा ?
कल का सुरज तुझे पुकार रहा है,
आज की आगोश में
तू ठहर जा
वहाँ ना तुझे कल का
गम सताएगा
ना कल की रोशनी से
तू चकाचौंध हो जाएगा
आज का, अभी का पल
तेरा अपना है
उसी में तू जीता जा
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१२२
शायर के अपने ख्वाब होते है
उनको बस कोई दिलसे सुननेवाला चाहिये,
दुनिया के रस्मो रिवाज से दुर
भावनाओं की तरलता को
छुनेवाला चाहिये
उसके नज्म को छु लिया तो
अंधेरे में रोशन होता है उसका जहाँ
नही तो उसे, उजाले भी घनघोर
काले बादल जैसे लगने लगते है
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१२३
ऐनक के सामने दादी
खडी हो गई तो,
ऐनक हसने लगा
दादी ने पुछा क्युं हसता है
तो आँख मुंदकर बोलने लगा
वो दिन याद आ गए
जब तुम नई नवेली दुल्हन
बनकर इस घर में आयी थी
कपकपाते बदन से
कितनी बार आईने में
झाँक चुकी थी
वहाँ मैं ही एक
तेरा अपना था
बचपन से दोनों ने
सपना देखा था
जब तेरा राजकुँवर
तुझे लेने आएगा
सोला शृंगार से सजी तू
मैं देखता रह जाएगा
जिंदगी भर मैने
तुझे साथ दिया
अब दोनों की
उम्र ढल चुकी
न जाने कौन, कब
अपने रास्ते से
निकल जाएंगे
एक आत्मा के दो रुप
फिर कब मिल पाएंगे
जीवन का वास्तव
जानकर हँसी आयी
यह सुनकर दादी की
आँखे भी सजल हो गई
दोनो ताकने लगे एक दुसरे को
न जाने किसकी जान
पहले निकल गई
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