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गुलदस्ता - 9

                ५०

तालाब में सफेद बतख विहार कर रहे थे

उपर से कौवा देखकर सोच रहा था

ना मैं विहार करता हूं ,ना मैं सफेद हूं

तालाब से बतख कौवे को देखकर

सोच रहे थे ,उसके जैसे

ना मैं नीले आसमान में उड सकता हूं

ना पेड पर चढकर उँचाई पर से दुनिया देख सकता हूँ  

..........

जंगल की असीम शांती का

अपना एक नाद होता है

कलकल बहती नदी की धारा में

सुरील संगीत का भास होता है

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फिनिक्स पंछी जैसा

रक्षा में से उडान भरने का

क्षण खुषी से जीना चाहिए

 मृत्यू का जश्न नए से

मनाना चाहिए

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            ५१

जंगल में जब आग लगती है

तब पंछी आकाश में उड जाते है

लेकिन वृक्षों को वही रुकना पडता है

अपना सर्वस्व जलते हुए देखना पडता है

.........

पीले पत्ते पेडों से नीचे गिर गए

की, डालियों पर नए पत्तों की क्यारियाँ आने लगी

 और, एक नया जीवन फिरसे प्रारंभ हो गया

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पुराने गिर गए

नए का आरंभ हुआ

फिर से खूषी, गम का प्रारंभ हुआ

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कोई अपनी राह देखने वाला होगा

तो घर आने का भी मन करता है

नही तो अपनेही घर का दरवाजा अनजना लगता है

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राह देखने की अधिरता

खत्म हो जाती है

जब किये हुए वादे

का समय निकल जाता है

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         ५२

ह्थेली पर जो रेषा होती है

उसका सामर्थ्य

उन्ही को समझ आता है

जिनमें जीवन बनाने की ताकत होती है

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आकाश में बरिश के

मेघ गरजते आए

हरियाली का दान

धरती को देते गए

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आसमान में उडते पंछी

बैठ गए डाली पर

दाना चुगने के लिये

उन्हे आना ही पडा भूमि पर

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आकाशने अपने रंग

धरती को दे दिये

पेडों के फूलोंने

वह धरती से माँग लिए

..........

         ५३

भविष्य में कभी उलझना

नही चाहिए

अन्यथा वर्तमान काल की

खुषी निकल जाती है

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काल, समय का गणित

काल पर ही छोडना चाहिए

और ,हमे सिर्फ वास्तव में जीना चाहिए

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समय बदल गया

इसलिये हमे भी बदलना

चाहिए, यह बात जरूरी नही

हम अपने में ही मस्त रहे

तो समय हमें बदल नही सकता

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पत्ते पत्ते पर

चमकती हे बूंदे ओंस की

तरलता से अग्र पर

निखरे सुवर्णरेखासी

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         ५४

फुल पेडों पर खिल गए है

धरती से एकरूप

होने के लिए

..........

पत्ते शांती से बैठे है

वृक्षों के डालियों पर

बहती हवाँ के इंतजार में

..........

पेडों पर फूल तो खिले है

उनके सुगंध का चाहनेवाला

कोई नही होगा तो उनका

खिलना व्यर्थ है

.........

ऐसेही जीवन सिर्फ

खुद के लिए जिए तो

वह जीना भी व्यर्थ है

निष्पर्ण पेड के जैसा

...........

स्मरण पुस्तक पर

कुछ पंक्तियाँ उतर आई, तो

मन कैसे हलका हो जाता है

लहराते पंखों के जैसा

..........

             ५५

जब किताब में लिखी हुई पंक्तियाँ

जैसे अपने लिए ही लिखी हुई है

ऐसे लगने लगता है, तब समझना

चाहिए, हम उसी स्थिति में जी रहे है

.......

पाठशाला खत्म हो गई की

उसका महत्व समझ में आने लगता है

उसी तरह जीवन समाप्त होने लगता है

तब जीवन के प्रति चेतना जागृत होने लगती है

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