गुलदस्ता - 2 Madhavi Marathe द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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गुलदस्ता - 2

           

               8

तुफानों के लपेट में आकर

बिखरते बिखराते दौडते जाए

सपन सलोनी परी देश में

बादल संग उडते जाए

मिठी गुलाबी पंखुडियों जैसी

आसमान की सैर रंगीन

नजर आती है कही दूरसे

परीयों की जादुई मंजिल

ठंडे गहिरे पत्तो में से

लहराती सुंदरता दिख जाए

आरसपानी निलयता में

इंद्रधनू के द्वार खुल जाए

चमचमाती चांदनियों की

झिलमिलाहट निखऱाए

वही से गुजरती गलियाँ

परी देश में मिल जाए

मधुर संगीत तलम सूरों पर

सपना हलकासा आए

स्वप्नपरी के चैतन्यभरे

अणु रेणु के धागे बिखराए  

खिले हुए उसी क्षणो में

तनमन रोमांचित हो जाए, न रहे स्वप्न अधुरा,

काल वही पे थम जाए

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               9

 

आदमी सोचता है

मैंने दुसरों के लिए कितना कुछ किया

असल बात यह होती है

वह सिर्फ खुद के लिए जिया

जो कुछ करता है उससे, उसे मिलता है सुकून

दुसरों से आदर भावना, मान सन्मान, शोहरत

इन्ही अपेक्षा में उसकी अटकी है जान

कभी कभी मिल भी जाती  है

केवल कर्तव्य और कृतज्ञता लोगो में

पर प्यार के दो शब्द बोलनेवाले

ढूंढने पडते है संसार में

अगर मिल भी गई वह

ममता भरी आंचल की छाँव

अपनेपन की लडियाँ में

भीगी हुई वह बिखरती शाम

बहोत कम मिलते हे ऐसे क्षण

पुरे जीवनभर में

रिश्तों के, कर्तव्यता से दूर

प्यार के मीठे पलो में

इसी का नाम है जिंदगी

जब वो भी मिल जाए जी लेना

पता नही कब पत्ता गिर जाए

मौत को भी जिंदगी समझकर अपनाना

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              १०

 प्यार के उन पलों में

नही रहती है छाँव दुनिया की

मिठी सी खुशबू में बरसे

बहकती नशा तारों की

हर्ष से भरे कोमलता के स्पर्श

अनबूज लहराते रोमांच से

तनुलता बिखर जाती है

प्यार के उन लम्हों पे

अनजान ख्वाब दे जाते है

ऐसे मन चाहे पल

जिंदगी में कभी कभी मिलते है

आज नही तो कल

एक अधुरे कोने में बैठ

अपनी राह देखता रहता है

कोई मनचाहा दिवाना

दूर से पुकारता है

धीरेसे खोल देना चाहिये

कभी तो ये मन का कोना

प्यार भरी जिंदगी में

यही क्षण है सपन सलोना

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        ११

बेहोश हवाओं को

शब्दों में गुंथा जाए

लाल मिट्टी की सुगंध

मन को छु जाए

चमकती बिजली का

रूप सहा नही जाए

काले बादल रिमझिमते

पानी बरसा जाए

पानी से बेहोश पेडों के

पत्ते उग आये

खिली कली की यौवन से

भँवरे पागल बन जाए

बिखरते बादल से

इंद्रधनु फैलाए

रात चाँदनी को

सपना चंदा का आये

निलयता की रात में

जुगनू झगमगाए

रहस्यभरे इन पलो में

प्रकृती समा जाए

लहराती हवाओं से

सृष्टी जीवन चलता जाए

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           १२

एक छोटे बीज से

निकलता है पोंधा नन्हासा

तीन पत्तियों के नीचे

फैलता है छोटी छाँवसा

नजाकत से भरी हुई

रेशमसी तजेलदार

हरी डंठल को नही सहता है

मुलायम पत्तों का भार  

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      १३

चिलचिलाते धूप में

लहराते कोमल पत्ते

हवासे लेते अंगडईयाँ

विभोर खिलखिलाते

महावृक्ष बनने का सपना

बीज के मन में समाया

जीवन रसपान की साक्षी से

अपने देह को सुनाया

पत्ते डालियाँ बढने लगी

आकाश की ओर

समयचक्र चलते चलते

वह फैलता गया चारों ओर

एक छोटेसे बीज का

देखते देखते वृक्ष बन गया

आकाश की ऊँचाई नापते

बढताही चला गया

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