Hotel Haunted - 43 books and stories free download online pdf in Hindi

हॉंटेल होन्टेड - भाग - 43

मैं घर जाने के लिए कॉलेज के Campus से बाहर निकल ही रहा था कि तभी आंशिका मेरी आंखें के सामने आ गई "कहां जा रहे हो?"आंशिका ने अपने बालों को खोल के बांधते हुए कहा।
"बस घर की ओर ही निकला रहा था" मैंने अपनी बात बेहद आराम आराम से कही।
"अच्छा बिना गिफ्ट के लिए ऐसे ही चले जाओगे?"
"आंशिका मैंने कहा था ना की में...." इतना ही कह पाया कि उसने अपनी बात कहनी शुरू कर दी।
"हा...हा जानती हूं तुम गिफ्ट नहीं लेते लेकिन ट्रिश का गिफ्ट Accept कर लिया तुमने ओर करोगे भी क्यों नहीं वो तुम्हारी Best Friend जो है,उनके आगे हमारी क्या मजाल।"
" अच्छा अच्छा ठीक है।" मैंने इतना ही कहा कि उसका चेहरा खिल उठा।
"पर तुम्हारे birthday की वजह से एक special जगह पर जाना पड़ेगा।" आंशिका ने कहा और मेरा हाथ पकड़ के चलने लगी, में उसके साथ साथ जाने लगा कुछ ही पल में आंशिका की कार आ गई, उसने मुझे बैठने को कहा तो में बिना सवाल किए मैं कार में बैठ गया।वो बिना कुछ बताए ड्राईव किए जा रही थी आखिर curious होकर मैने पूछा।


"हम कहां जा रहे हैं आंशिका?" तो उसने सामने की तरफ देखते हुए ही मुझे जवाब दिया,"श्रेयस आखिर तुम इतना डर क्यों रहे हो? चिंता मत करो मैं तुम्हारा kidnap नहीं करूंगी।"उसने इस अंदाज में कहा की में उसकी बात सुन के हँसने लगा मुझे हँसता देखकर उसके चेहरे पर भी मुस्कान आ गई। कुछ देर में बस ऐसे ही सोच मैं बैठा रहा,कार पे ब्रेक लगने पर मेरा ध्यान टूटा।
"चलो श्रेयस...हम पहोच गए।" आंशिका ने सीट बेल्ट खोलते हुए कहा लेकिन मैं कार की window के बाहर देख रह था। "क्या हुआ? क्या सोच रहे हो,चलो।" उसके कहने पर मैंने अपनी नज़रें window से हटाई।
"नहीं आंशिका, तुम जाओ।" मैंने थोड़े रूखेपन से कहा।
"लेकिन क्यों?कुछ प्रॉबलम है क्या इस जगह में?"
"नहीं problem इस जगह से नहीं, उससे है जिसे तुम मिलने जा रही हो।" जैसे ही मैंने अपनी बात कही आंशिका को समझे देर नहीं लगेगी की में क्या कहना चाहता हूं।
"पर भगवान से तुम्हे ऐसी क्या शिकायत है,जो मंदिर मैं भी नही आना चाहते?"
"आंशिका मैं नहीं मानता इन मूर्तियों मैं, मेरे लिए चार दीवार के अंदर कैद उन मूर्तियों की कोई मायने नहीं जो हर वक्त बस पत्थर बनकर देखती रहती है, मैं नहीं मानता 'भगवान' को।" इतना कहकर मैंने आंशिका से अपनी नजरे हटा ली।
"हम्म....मतलब इतने साफ मन के लड़के को भगवान पर विश्वास नहीं है।" कहते हैं हुए आंशिका सीधी होके बैठ गई, जब वो इतना कहकर चुप हो गई तो मैंने अपनी नजरें उठाकर उसकी तरफ देखा ये सोचकर की कहीं वो मेरी बात का बुरा तो नहीं मान गई लेकिन वो बिल्कुल शांत बैठी थी।

"श्रेयस, भगवान का मतलब वो चार दीवार में रखी मूर्ति नहीं है, उनका मतलब है विश्वास,एक विश्वास जो हमारे अंदर होता है।"इतना कह के वो मेरी तरफ देखने लगी।
"तुम सबकी इतनी फिक्र करते हो सबको इतना प्यार देते हो पर तुमने कभी प्यार को नही देखा है लेकिन तुम फिर भी प्यार से हर इंसान को जितने का ख्याल रखते हो क्योंकि यह तुम्हारा विश्वास है जो हर पल तुम्हें अपने अंदर महसुस होता है, यहां पर भी हम उस विश्वास को मानते हैं, जिसकी वजह से हमे उसके होने का एहसास महसूस होता है।" आंशिका ने आज हल्के मन और शांत दिल से अपनी बात बात समझाई थी लेकिन मन फिर भी इस बात को नहीं मान पा रहा था।उसने मेरे चेहरे के भाव पढ़ लिए जिसकी वजह से उसने कहा।

"जब तक तुम्हारा मन इस बात को accept नहीं करेगा तब तक तुम उसके एहसास को महसुस नहीं कर पाओगे, जिस दिन तुम्हे अपने या किसी और के लिए उसकी जरूरत महसूस होगी तब तुम उन्हे याद करना,वो तुम्हे भी अपनी मौजूदगी का एहसास करवा देंगे तब तक तुम मेरा यहां wait करो मैं दर्शन करके आती हूं।"आंशिका की इस बात को सुनकर मुझे कुछ हल्का महसूस हुआ,उसने कार के backside से एक चुनरी निकली और Mahadev के मंदिर की ओर बढ़ गई।अभी-अभी कुछ देर पहले उसने मुझे कुछ ऐसा बताया था जिसे मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था, कुछ देर यूं ही बैठा रहा, फिर कार से बाहर आकर वहीं खड़ा हो गया और आंशिका का इंतज़ार करने लगेगा, दिमाग में अभी भी वही उसकी कहीं हुई बातें चल रही थी और दिल मैं शायद एक चुभन सी हो रही थी क्योंकि कहीं ना कहीं आंशिका की बातें सही थी,मेरी नज़र सामने से आ रही आंशिका पे पड़ी,जो सीढ़िया उतरती हुई मेरी ही तरफ आ रही थी, उसके चेहरे पर एक अलग ही खुशी थी, एक अलग ही शांति और चेहरे पर मुस्कान थी। सर पर लाल टीका और सफेद चुनरी मैं देखकर मन के सारे ख्याल ओजल से हो गए आंखो के सामने कुछ था तो सिर्फ एक मुस्कुराता हुआ चेहरा। सीढ़िया उतरते हुए नीचे आई और उसने आखिरी सीढ़ी को अपने हाथ से छूटकर माथे पे लगाया और जैसे वो मुड़ी उससे एक छोटा बच्चा टकरा गया, उसने उसके बालों को सहलाते हुए प्रसाद दिया और मेरे पास आकर कहा,"चलो अब मेरे गिफ्ट की बारी।"इतना कहकर उसने प्रसाद गाड़ी मैं रखा और कार स्टार्ट करके हम दोनो चल पड़े,करीब एक घंटे बाद हम अपनी मंजिल पर पहुंचे,मैने आस पास देखा तो मुझे कुछ समझ नही आया।


"आंशिका, हम कहाँ आये हैं?" मैने इधर-उधर देखते हुए कहा।
"चलो तो सब पता चल जाएगा" आंशिका ने कहा तोह में उसके पीछे चलने लगा, मन में घबराहट के साथ हलचल मची हुई थी, कुछ देर चलने के बाद आंशिका रुक गयी।
"ये है मेरा गिफ्ट" उसने मुझसे कहा तो मैं सामने वाली shop को देखने लगा,जिसे देखते ही मुझे समझते देर नहीं लगेगी कि आंशिका क्या चाहती है।
"चलो अंदर चलते हैं।" खुशी से बोलती हुई आंशिका शॉप के अंदर जाने लगी लेकिन " नहीं आंशिका " मेरी बात सुनते ही आंशिका रुक गई और मेरी तरफ देखने लगेगी, उसके चेहरे पे आई मुस्कान ढल गई।
"क्या हुआ श्रेयस,अब इस बार तुम्हारी क्या शिकायत है?" उसने असमंजस जैसा चेहरा बनाते हुए कहा।
"मेरी कोई शिकायत नहीं है पर मुझे इन सबकी ज़रूरत नहीं है बाकी मुझे तुम्हारे गिफ्ट से कोई problem नहीं है।"
"लेकिन क्यों श्रेयस? इससे तुम सिर्फ बहार से बदलोगे पर अंदर से वही पुराने श्रेयस ही रहोगे। “आंशिका ने मेरे करीब आते हुए कहा।
"सॉरी आंशिका पर मुझे अपने आप को बदलने की कोई वजह समझ नही आ रही है तो फिर मैं अपने आप को किसके लिए बदलू? "कुछ देर चुप रहने के बाद मैंने कहा और मुड के वापिस तभी मेरे कानों में आवाज पड़ी, जिसे सुनते ही मेरे कदम रुक गए।
"क्या अपनी मां के लिए भी नही बदलोगे श्रेयस? बेशक आज जन्मदिन तुम्हारा है पर आज में तुमको आंटी को गिफ्ट के रूप मैं देना चाहती हूं,बस तुम्हारे इसी look को थोड़ा बेहतर करके मैं करके उनके सामने रखना चाहती हूं ताकि आंटी के साथ सबको भी तो पता चले की यह श्रेयस कितना Handsome है।"इतना कहकर उसने मेरे हाथ से चश्मा ले लिया जो पिछली बार अभिनव के साथ हुई लड़ाई के वक्त थोड़ा सा टूट गया था जिसकी वजह से वो बार बार मेरे चेहरे से फिसलकर गिर जाता था "शायद इन Spects की अब तुम्हे जरूरत नहीं पड़ेगी।" इतना कहकर वो मुझे उस shop के अंदर ले गई।



दुसरी तरफ (शाम 5:30 बजे)


"कहां रह गया ये लड़का?" शिल्पा ने घड़ी में टाइम देखते हुए कहा, घर में हल्ला गुल्ला मचा हुआ था, श्रेयस और हर्ष के दोस्तों ने डेरा जमाया हुआ था।
"माँ कहाँ रह गया ये आपका बेटा?" हर्ष ने गुस्से में कहा।
"बस रास्ते मैं होगा बेटा बस थोड़ा wait कर लो।" शिल्पा ने हर्ष को समझाते हुए कहा।
"क्या यार.....पता नहीं कहां रह गया?" हर्ष ने थोड़ा चिढ़ते हुए कहा और बार-बार अपनी नजर हॉल के गेट पर घुमा रहा था, तभी हॉल का दरवाजा खुला और जैसे ही हर्ष की नजर सामने गई तो आंशिका अंदर आई जिसे देखकर उसका चेहरा खिल उठा पर अभी वो कुछ बोलने ही वाला था की तभी उसकी नज़र उसके साथ खड़े हुए शख्स पर पड़ी जिसे देखकर वो पलक झपकना भूल गया, यहीं हाल सबका भी था, सब आंखें फाड़े सामने की ओर देख रहे थे, मानो उन्हे अपनी आंखो पर यकीन नही हो रहा हो। शिल्पा का भी यही हाल था, वो भी मुँह पे हाथ रखकर सामने का नजारा देख रही थी। दिखावे की इस दुनिया मैं जहां सब लोग किसी साफ दिल से बढ़कर बाहरी दिखाव को Importance देते है,बस उन्ही पलो मैं आंशिका ने श्रेयस के उस रूप को सामने लाकर रख दिया था जो किसी ने सपने भी ना सोचा हो। Blue Jeans, White Half sleeve Tshirt, Quiff Hairstyle,आंखो मैं Eye Lences और हाथ मै दी गई ट्रिश की Watch।

हर्ष तो आंखें फाड़े श्रेयस को देख रहा था, वहीं शिल्पा के कदम श्रेयस की तरफ़ बढ़ चले, वो धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए उसके पास पहुंचे और उसके बदले हुए चेहरे को देखने लगी, वो मुझे ऐसे देख रही थी मानो मेरा चेहरा नहीं बल्कि किसी और का चेहरा हो, जबकी मेरी आंखें वही थी, नाक कान,होंठ सब वही थे बस फ़र्क ये था कि आज उस पर कुछ नयापन था।



“ऐसे क्या देख रही हो, मैं ही हूं" मेने हल्का सा हंसते हुए कहा तो मां की आंखें भीग गई।
"ये क्या माँ, आप ऐसे रोएगी तो मैं पहले जैसा बन जाऊँगा।" मैंने जब माँ को कहा तो उनका चेहरा खिल उठा उन्होंने अपने आखों को पोछते हुए कहा"पागल कहीं का" मां ने मेरे माथे पे अपने होंठ रख दिये
"आज मेरा बेटा बहुत स्मार्ट लग रहा है "कहते हुए उसकी नज़र मेरे साथ मैं खड़ी आंशिका पर गई।
"नमस्ते आंटी" आंशिका ने शिल्पा की तरफ मुस्कुराते हुए कहा "खुश रहो बेटा...तो तुम हो आंशिका'' शिल्पा ने आंशिका के बालों पर हाथ फेरते हुए कहा।
"जी...आपको कैसा पता चला?"आंशिका ने वैसे ही मुस्कुराते हुए पूछा।


"बस जैसा श्रेयस ने बताया था तुम बिलकुल वैसी ही हो इसलिए पता चल गया।" शिल्पा ने आंशिका से कहा तो आंशिका श्रेयस की तरफ देखने लगी श्रेयस कुछ कहता है उससे पहले
"मां केक कटिंग में लेट हो रहा है।" पीछे खड़े हर्ष ने आवाज़ लगाते हुए कहा,जिसे सुनते ही शिल्पा और श्रेयस का ध्यान हर्ष पे गया "हां बेटा चलो" कहते हुए सब एक जगह इक्कठा हो गए, उसके बाद केक कटिंग हुई, सब ने दोनों को Wishes दी खूब मस्ती हुई उस वक्त सब लोग एक दूसरे को केक लगा रहे थे। कुछ देर ऐसे ही मस्ती करने के बाद सब आपस में बाते करने में लग गए।


"सच यार श्रेयस आज तो तू बहुत ही अलग लग रहा है।"
"अलग क्या....स्मार्टी बॉय लग रहा है श्रेयस।" श्रुति ने हंसते हुए कहा।
"हां यार मैं भी अपने Spects हटवाने की सोच रहा हूं, पर मेरे पापा नहीं मानते।"कहते हुए मिलन ने थोड़ा मायूस सा चेहरा बनाया।
"Don't worry तुम Spects में भी अच्छे लगते हो।" मैं चुप-चाप मिलन और श्रुति की बातें सुन रहा था तभी मुझे कुछ याद आया "sorry guys तुम लोग enjoy करो में अभी आया" इतना कह के में माँ को ढूंढते हुए वहां से निकल गया।दूसरी ओर हर्ष और उसके सारे दोस्त मस्ती कर रहे थे, उनसे कुछ दूर आंशिका खड़ी सभी को देखते हुए मुस्कुरा रही थी, तभी शिल्पा आई और उसके साथ आके खड़ी हो गई।
"Thank you very much बेटा" शिल्पा की आवाज़ सुन आंशिका ने उसकी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए बोली। "यह क्या बात हुई आंटी एक ओर बेटा कहती है और Thank you भी कहती हो।" आंशिका की बात सुनकर शिल्पा मुस्कुराने लगी।
"पर मेरे श्रेयस के लिए इतना सोचने के लिए really very Thanks."
"आंटी मैंने कुछ नहीं किया,मैने तो सिर्फ उसके दूसरे रूप को उसके सामने रखा है जिसके बारे मैं उसे खुद भी नही पता था।" आंशिका ने बड़ी शांति से जवाब दिया।
“जानती हूं कई बार हम किसी के लिए ना चाहते हुए भी बहुत कुछ कर जाते हैं।'' शिल्पा ने अपना हाथ आंशिका के सर पर रख दिया जिससे आंशिका ने अपनी नज़रें झुका ली।
"अगर तुम बुरा ना मानो तो मैं तुमसे एक बात पूछूं?" शिल्पा की बात सुनकर आंशिका ने अपनी नजरें उपर उठाई।
"जी आंटी बिलकुल.....भला आपकी बात का मैं क्यूं बुरा मानूँगी" आंशिका की ये बात सुन शिल्पा कुछ पल उसके चेहरे को देखने लगेगी, मानो आंशिका के चेहरे मैं किसी की झलक ढूंढ रही हो। "तुमने श्रेयस को यही गिफ्ट देने के बारे मैं कैसे सोचा?"


"आंटी,श्रेयस को मैं तो क्या कोई नहीं बदल सकता, उसकी हर एक बात मैं आपकी ममता जलकती है तो फिर ऐसे इंसान को बदलने की क्या जरूरत है? infact वो ऐसा ही बहुत - बहुत अच्छा इंसान है, इतने साल से हम एक ही क्लास में हैं पर हमने कभी बात तक नहीं की लेकिन जिस दिन से उसे जाना तो समझ आया की उसकी simplicity ही उसकी पहचान है।" आंशिका इतना कह के सोचने लगी , मानो वो चीज़ कहने के लिए बेचैन हो रही हो।
"He Is A Gifted Child आंशिका इस Nature ही ने खुद ऐसा बनाया है" आंशिका की परेशानी को देखते हुए शिल्पा ने बेहद सरल लफ्जों में मुस्कुराते हुए कहा।

"Right Aunty.....बिल्कुल सही कहा आपने, श्रेयस गलत नहीं कहता आपके बारे में सिर्फ आप ही हैं जो उसे अच्छी तरह से समझ सकती है He Is Very Lucky To Have You."
"लकी...मैं हूं वैसे अभी तक तुमने ये नहीं बताया कि तुमने उसके लिए यही क्यूँ सोचा?" शिल्पा ने हंसते हुए कहा।
"आंटी बॅस, मैं जब से उसे जाना है पता नहीं क्यों मुझे वो कभी भी Spects मैं comfortable नही लगा,ऐसा लगता है जैसे उन spects की वजह से उसे हमें कुछ न कुछ प्रोबेल्स रहती हो तो मैंने सोचा की उसकी इस तकलीफ को ही उसने अलग कर दूं तो बस मेने उसे वही गिफ्ट दे दिया। '' आंशिका ने हंसते हुए कहा तो शिल्पा उसकी बातें सुन के हंसने लगी।


"श्रेयस सही कहता है तुम्हारे बारे में..." हंसते हुए जैसे ही शिल्पा ने आंशिका से ये बात कही, “अच्छा क्या कहता है आंटी?वैसे पता है में आपसे मिलने के लिए कब से इंतजार कर रही थी “आंशिका ने भी बिलकुल बच्चों की तरह जवाब किया।
"अच्छा वो क्यों?"
"वो आंटी, जब से मैं श्रेयस से मिली हूं तबसे वो मुझे" आंशिका ने इतना ही कहाँ की पीछे से श्रेयस ने शिल्पा को आवाज लगाते हुए कहा।
"मां....मां" श्रेयस आवाज सुनते ही आंशिका रुक गई और दोनों उसी तरफ देखने लगे।
"हां बेटा...बोल कुछ चाहिए?"
"नहीं नहीं....वो माँ में तो बस ये पूछने आया था कि पापा कहाँ रह गए,अभी तक नही आए?"
"ओह हां....अच्छा याद दिलाया, भूल गई थी में...अभी फोन करती हूं, पता नहीं कहां रह गए? अपने बेटे का बर्थडे है फिर भी अभी तक नही आएं,आने दो ध्रुव को बताती हूं उसे.....तुम दोनों बातें करो में आती हूं। " माँ बड़बड़ाते हुए वहां से चली गई, उसके जाते ही मेने लम्बी सांस छोड़ी और फिर आंशिका की तरफ देखने लगा जो माँ की तरफ देख हंस रही थी।
"क्या कहते आंटी से थे तुम मेरे बारे में ?" मां के जाते ही उसने सवाल किया।

" नहीं....नहीं कुछ भी तो नहीं। "
"अच्छा, मत बताओ कोई नहीं....मैं आंटी से ही पूछ लूंगी।"आंशिका ने आंखें घूरते हुए कहा तो उसकी बात सुन में घबरा गया, लेकिन मैं कुछ कहता था उससे पहले ही प्राची ने आते हुए कहा।

"अरे Aashu.....come on yaar...let's have some fun, चल चल।" प्राची ने आंशिका का हाथ पकड़ा और अपने साथ खिचते हुए ले जाने लगी, वो मना करती रही लेकिन वो फिर भी नही मानी। मैं वहीं खड़ा सबको इतना खुश देख मुस्कुरा रहा था तभी ट्रिश और मिलन आए ओर मेरा कॉलर पकड़कर मुझे डांस करने ले गए,सब लोग music की मस्ती मैं खोकर पागलों की तरह नाच रहे थे,सब लोग बारी-बारी से बीच मैं आकर अपने Dance moves के जलवे दिखा रहे थे,हर्ष और आंशिका ने भी एक साथ आकर Dance किया सब लोग उन्हे cheer करते हुए शोर कर रहे थे।ऐसा लग रहा था जैसे हम घर पर नही बल्कि किसी club मैं आ गए हो,अपनी सारी tension और दुनियादारी से दूर सब मस्ती मैं झूम रहे थे।आज श्रेयस के लिए यह बर्थडे उसका सबसे यादगार दिन रहा।
हर इंसान अपनी जिंदगी में यहीं पल चाहता है, अपने प्यार करने वाले सभी को खुश देखना चाहता है, यहीं चाहता है कि ये खुशी का वक्त हमेशा उसके साथ चलता रहे लेकिन वक्त कभी एक पल को हमेशा के लिए थामे नही रहता वो हमेशा अपनी एक अलग ही चल चलता है जो इंसानी दिमाग के पर रहती है, जल्द ही इन पन्नो में भी बदलाव आएंगे।


कुछ दिन बाद


"जब कोई चीज़ हमें इस दुनिया में सबसे प्यारी लगती है तो हम उसे संभाल कर,छुपा कर,सब की नजरों से बचा कर रखते हैं ताकि वो चीज हमसे कोई छीनकर ना ले जाए लेकिन प्यार....वो तो सिर्फ एक ही जगह संभाल के रखा जा सकता है, "दिल में" क्योंकि वो वहीं से जुड़ा होता है, पर क्या हम उसे छुपा सकते हैं, शायद नहीं,क्योंकि वो उस इंसान की आंखो मैं जलकता है।माँ कहती है की प्यार तो हमें ये कुदरत देती है पर उसका एहसास हमें हमारा दिल ही देता है, पर जब भी ये सोचता हूं कि अगर ये जिंदगी ही नहीं होती तो कुदरत प्यार जैसा किमती तोफा किसको देती?" कॉलेज के गार्डन मैं बैठा श्रेयस अपने ही ख्यालों में खोया हुआ, खाली पानों को सिहाई से शब्दों का रूप दे रहा था तभी श्रेयस का फोन बजा उसने स्क्रीन पर देखा तो घर से फोन आ रहा था उसने फौरन पिक किया सामने से घर Servent रमण की आवाज आई,"साहब मालकिन अचानक से बेहोश हो गई है,जायदा परेशानी की तो कोई बात नही है पर हो सके तो आप घर आ जाईए।यह बात सुनकर श्रेयस फौरन घर जाने के लिए निकल पड़ा उसने शिल्पा की तबियत के चलते रमण को कह रखा था कि अगर मां को कोई प्रोब्लम हो तो उसे फौरन फोन करे और यह बात शिल्पा को भी नही पता थी।



मैंने डोरबेल बजाईं तो रमण ने गेट खोला,जैसे ही गेट खुला मैं सीधा मां के कमरे की ओर बढ़ गया कमरे में पहुंचकर देखा तो माँ बिस्तर पर लेटी हुई थी मैंने उनके पास बैठते हुए कहा,"माँ... क्या हुआ?"मेरी आवाज़ सुनते ही उन्होंने अपनी आँखें खोली और मेरी तरफ देखते हुए हल्का सा मुस्कुराते हुए बोली "कुछ नहीं बस थोड़ा सा चक्कर आ गया था।"
"क्या कुछ नहीं, आपने आज अपनी दवाई ली थी की नहीं?"मेरी बात सुनकर उन्होंने कुछ नही कहा, मैंने टेबल पर देखा तो वहां दवाई वैसी की वैसी ही रखी थी, मेने टेबल से दवाई उठाई और माँ के पास वापस आया और उनको सहारा देकर बिस्तर पर बैठा दिया।"ये क्या है माँ, दवाई क्यूँ नहीं ली आपने?"
"वो काम की वजह से शायद भूल गई थी।"


"भूल गई.....यह कोई Reason है,आज कल आप बहुत लापरवाह होती जा रही हो, कितनी बार कहा है कि टाइम पर दवाई ले लेना। "थोड़ी ऊंची आवाज में कहते हुए मेरे उनके हाथ में गिलास थमाया।
"अच्छा बस सॉरी.....डांट क्यूं रहा है?" उन्होंने बेहद मासूमियत से कहा, यह देख मन मैं प्यार तो इतना आया कि बस मां की गोद में लेट जाऊं और इस प्यार को महसुस करता रहूँ लेकिन "हां डाटूंगा और ये इमोशनल होकर मुझे इमोशनल करने की कोशिश मत करो, मैं आज इमोशनल नहीं होने वाला, मुझे सच में गुस्सा आ रहा है।"
"अपनी माँ को कोई ऐसा डांटता है क्या?" माँ ने फिर से हल्के लफ़्ज़ों से कहा और दवाई खा ली।
"हां तो...मेरी मां को कोई भी तकलीफ नहीं दे सकता, आप भी नहीं....समझी?" मां के हाथ से ग्लास लेकर टेबल पर रख दिया और उनकी तरफ गुस्से भरी नजरों से देखने लगा।मुझे यूं गुस्से करते देख माँ ने अपने दोनो हाथ अपने कान पे रख लिए," अच्छा बेटा, सॉरी माफ कर दो, गलती हो गई आगे से ध्यान रखूंगी "उसकी इस हरकत को देख में अपने चेहरे के गुस्से को ज्यादा देर नहीं रख पाया और मेरे चेहरे पे हंसी आ गई, मुझे हंसता देख मां भी हंसने लगी।
"बदमाश अपनी मां को डांटता है।" कहकर मां ने मेरे कान खींच लिए।


"ouch....मां,क्या करूं आपको पता है ना आप मेरे लिए कितनी important हो और आपको कुछ भी होता है तो मुझे बहुत तकलीफ़ होती है।" मेरे कहते ही उन्होंने मेरे कान छोड़ दिये तो मैंने उनके हाथ को पकड़कर अपने चेहरे से लगा लिया, "इसलिए आपको मुझसे भी ज्यादा अपना ख्याल रखना होगा क्योंकि मैं अपनी जिंदगी खो सकता हूं पर आपको नहीं।'' इतना कहकर मैंने मां की तरफ देखा तो वो मुझे गुस्से भरी नजरों से देख रही थी," मारुंगी एक, आगर फिर से ऐसी बात कहीं तो"
"अच्छा मार लेना.. लेकिन अभी सो जाओ, नहीं तो फिर मेरा गुस्सा बढ़ जाएगा।"
"मैं ठीक हूं, वैसे भी जब भी तुझे देखती हूं ठीक हो जाती है.. तू मेरी इतनी ज्यादा फिकर मत कर, तू बैठ मैं तेरे लिए कुछ लाती हूं।"इतना कह के मां उठने लगी।
"नहीं कोई जरूरत नहीं है, अब आप कुछ दिन कोई काम नहीं करेंगी, बस आराम करेंगी, चलिए लेट जाईए "वो मना करती रही पर मैने उन्हे बेड पर लेटा दिया।


"अब से कुछ दिन तक आप जब तक ठीक नहीं हो जाती,मैं कॉलेज भी नहीं जाऊंगा क्यूँकी मैं जानता हूँ, जब घर पर कोई नहीं होगा तो आप फिर से लापरवाह हो जाएंगी।" मेरे कमरे की लाइट बंद की माँ के सर पर हाथ रखा और कमरे से बाहर आ गया।शाम को मैं हॉल मैं बिठा हुआ था रमण ने मेरे पास आकर कहा,"साहब, चलकर कुछ खा लीजिए आप सुबह से ऐसे ही बैठे हुए है।"पर मैं उसे मना कर दिया तभी गेट खुला सामने देखा तो पापा खड़े हुए थे,उन्होंने मेरे पास बैठते हुए कहा,"क्यों श्रेयस आज excercise करने के लिए नही जाना है क्या?" पर मैने उदास मन से आज जो कुछ भी हुआ वो सब पापा को बता दिया।


"पापा मां की condition मैं ज्यादा improvement नहीं है मुझे डर है कि ऐसा ही चलता रहा तो उन्हे...."मैने इतना ही कहा तो पापा ने मुझे रोक दिया,"कुछ नही होगा उसे,तुम्हारे जैसे बेटे के होते हुए उसे कैसे कुछ हो सकता है?" यह बात सुनकर भाई ने गुस्से से कहा,"वो मेरी भी मां है अगर ऐसा कुछ फिर होता है तो अपनी यह हीरोगिरी साइड मैं रखकर मुझे भी बता देना कही ऐसा ना हो की इसी के चक्कर मैं मां को कुछ हो जाए।"हर्ष की बात सुनकर ध्रुव अभी कुछ कहता उससे पहले वो कमरे मैं चला गया।मैने कुछ नही कहा बस खिड़की से बाहर ढलते हुए सूरज को देख रहा था।



2 दिन बीत गए, श्रेयस ने शिल्पा को अकेला नहीं छोड़ा, उसे कुछ याद था तो सिर्फ अपनी मां की चिंता, इन दो मैं उसने शिल्पा को एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ा था। हॉल में सफाई चल रही थी इसकी वजह से श्रेयस हॉल के साइड में बने कमरे में बैठा कुछ काम कर रहा था तभी उसे बहार से कुछ आवाज सुनाई दी, "लगता है माँ फिर कुछ काम" करने लग गई...ये भी ना..'' कहते हुए उसने जिसे ही गेट खोला उसके कदम वहीं रुक गए।

"Hi...Shreyas"हाथो मैं flowers,fruits और चेहरे पे एक मुस्कान लिए आंशिका श्रेयस के सामने खड़ी थी।मैने यह बिल्कुल expect नही किया था इसलिए मैं एक पल के लिए उसे हैरानी से देखता ही रह गया।

"मुझे अंदर आने के लिए नही कहोगे?"यह बात सुनकर मैं होश मैं आया और मैंने उससे अंदर आने के लिए जगह दे दी और हॉल के पास वाले कमरे मैं बैठने के लिए ले गया।उसके हाथो मैं यह सब देखकर मैं समझ गया को वो मां से ही मिलने के लिए आई है।

"वैसे आंशिका मां के बारे मैं तुम्हे कैसे पता चला?"

"2 दिन से तुम और हर्ष मैं से कोई दिखाई नही दे रहा था तो कल मेरी हर्ष से बात होने पर मुझे पता चला इसलिए मैं फ़ौरन मिलने चली आई।"

"हां भाई भी मां की वजह से नहीं गया, अभी वो कुछ काम से बाहर गया है।"

"वैसे तुम दोनो ही आंटी से बहुत प्यार करते हो ना?"

"कौन नही करता....पर हमारे लिए जैसे वो हमारी लाइफ की सबसे बड़ी achievement की तरह है उसके बाद इंसान को अपनी जिंदगी मैं कोई और चीज की जरूरत महसूस नहीं होती।''

"वैसे तुम्हें आंटी की कौनसी बात सबसे ज्यादा पसंद है?"

"मां की तो हर चीज प्यारी होती है,उसमे अच्छा बुरा क्या ढूंढना।"

"फिर भी कुछ तो होगा जो तुम्हें बहुत पसंद होगा।" आंशिका की बात को सुनकर मैं सोच में डूब गया।


मैं और आंशिका आपस में बात कर रहे थे कि तभी रूम का गेट खुला और माँ हमारे लिए नाश्ता लेकर अंदर आई।

"आंटी अपने क्यों....." आंशिका ने इतना ही कहा कि मैं बोल पड़ा, "मां क्या आप भी....आपको कहा था ना आराम करने के लिए तो फिर ये सब...."

"चुप कर....मैं बिल्कुल ठीक हूँ।" माँ ने मुझसे डांटकर चुप करा दिया।

"exactly आंटी, श्रेयस ठीक कह रहा है, you really need to take some rest."

"देखो अब आंशिका भी कह रही है, लेकिन मेरी किसको सुननी है, मैं होता कौन हूं आपको कहने वाला?"मेने रूठे हुए अपनी नजरे मां से हटा ली और सोफे के साइड पर बैठ गया।

"ohh God यह लड़का भी....okay मैं rest करने जा रही हूं अब खुश। " माँ ने हाथ जोड़ते हुए कहा," तुझसे आज तक कभी जीत पाई हूं, चल अब ये अपना इमोशनल ड्रामा बंद कर और आंशिका को भी बोर मत कर।“पर मैं अभी भी अपना मुंह घुमाए दूसरी ओर देख रहा था।

"आंशिका बेटा किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो बता देना...इसे नहीं मुझे।" माँ ने आंशिका के सर पे हाथ रखते हुए कहा। "Of Course Aunty" आंशिका ने मुस्कुराते हुए कहा तो माँ मेरे पास आई और मेरे सर पे हल्का सा मारकर बोली " पागल कहीं का..." इतना कहकर वो अपने कमरे से चली गई, उसके जाते ही मेने अपनी नज़र उप्पर उठाई और हंसते हुए आंशिका की ओर देखने लगा।

"श्रेयस really मैं तुम भी कभी बच्चे बन जाते हो।"हंसते हुए उसने फिर वही सवाल किया "वैसे तुमने मेरे सवाल का जवाब नही दिया।"


आंशिका की बात सुनकर अचानक से मैं अपनी जगह से अचानक खड़ा हुआ तो आंशिका हल्का सा चौंक गई, मैं रूम के दरवाजे के पास गया और दरवाजे के पास आने का इशारा किया,जिसकी वजह से वो मेरे पीछे आकर खड़ी हो गई ये देखने के लिए मैंने क्या कर रहा हुं?मैं उसे दरवाजे के बाहर देखने को कहा तो बाहर देखकर उसके चेहरे पर भी मुस्कान छा गई,उसको हँसता देख मेरा चेहरा भी खिल उठा। सामने शिल्पा अभी भी नौकरों के साथ कुछ ना कुछ काम में लगी हुई थी। "देख रही हो ना....ये है मेरी माँ, दूसरो के लिए उसकी यह फिकर और ये भोलापन ही मुझे उनसे इतना प्यार करने पर मजबूर कर देता है।"


"आज समझ आया कि तुम इतने सिंपल क्यों रहते हो और हमारी हर मुलाकात से कुछ ऐसा सीखा देते हो जिससे मैं तुम्हारी ओर भी बड़ी फैन बन जाती हूं।"आंशिका के कहते ही में हल्का सा मुस्कुरा पड़ा और जाके सोफे पर बैठ गया।

"श्रेयस हर्ष को भी आंटी क्या ऐसी ही पसंद है?" आंशिका के सवाल करते ही मैंने उसकी तरफ देखकर पूछा "तुम्हें माँ कैसी अच्छी लगी?"

"बहुत ज्यादा" उसने तुरंत जवाब दिया, "तो सोचो हम तीनो को कितनी पसंद होगी?यही तो उनकी खास बात है की जो कोई भी उन्हे एक बार जान लेता है तो वो भी उन्हे ऐसे ही पसंद करता है।बस भाई का nature थोड़ा अलग है वो ज्यादा कुछ नहीं कहता बस जो जैसा है उससे वैसे ही accept कर लेता है।" मेरी बात सुनकर वो हंसते हुए कुछ सोचने लगी तभी उसका ध्यान wrist पर बंधी watch पर गया तो उसने कहा,"श्रेयस मैं अब चलती हूं मां मेरा घर पर इंतजार कर रही होंगी।" इतना कहकर वो मां के पास गई और उनके गले लगकर गेट पर पहुंचकर कहा,"कल कॉलेज मैं मिलते है और हर्ष से कहना मैं आई थी।"मैने हा कहा और वो अपनी घर की ओर चली गई।


To be Continued......


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