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वो माया है.... - 94



(94)

पिछली चार हत्याओं की जांच कर रहे अधिकारियों के साथ साइमन की मीटिंग हुई थी। शाहखुर्द की तरह दो हत्याएं एक ही पुलिस स्टेशन के दायरे में हुई थीं। बाकी दो हत्याएं अलग अलग पुलिस स्टेशन के क्षेत्र में हुई थीं। साइमन ने तीनों जांच अधिकारियों से बात की थी। मीटिंग में वही बातें सामने आईं जो फाइल में लिखी थीं। साइमन ने उन लोगों को इन हत्याओं के पीछे तंत्र मंत्र का कोण रखकर सोचने के लिए कहा। उसने कहा कि जांच के दौरान क्या उन लोगों को कुछ ऐसा समझ आया जिसे उसके दृष्टिकोण से जोड़ा जा सकता हो। सभी ने कहा कि उन लोगों ने इस लिहाज़ से इस केस के बारे में सोचा ही नहीं था।‌ उन लोगों ने अपनी तरफ से कातिल को तलाशने की पूरी कोशिश की थी। पर कातिल ने ऐसा कोई निशान नहीं छोड़ा था जिससे उस तक पहुँचा जा सके। सभी मृतक गरीब परिवारों से थे। उन लोगों ने भी हत्यारे को पकड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। उन अधिकारियों ने अपनी पूरी कोशिश करने के बाद केस बंद कर दिया।
साइमन ने उन्हें खोपड़ी वाले स्टिकर के बारे में भी बताया। सबने स्टिकर के बारे में कुछ भी नहीं कहा।‌ उसके बाद साइमन ने उन्हें ललित और पुनीत के पास से मिली मूर्ति की तस्वीर दिखाई। बाकी दो लोगों ने तो कुछ भी नहीं जानने की बात की पर इंस्पेक्टर रवींद्र नाथ ने मूर्ति की तस्वीर को कुछ देर अच्छी तरह देखा। उसने कहा कि कुछ साल पहले वह अपने एक दोस्त के साथ किसी केस के संबंध में कहीं गया था। वहाँ उसने एक समुदाय को नदी किनारे ऐसी ही दिखने वाली मूर्ति को विसर्जित करते देखा था। नदी किनारे बहुत से लोग जमा थे। उसे पता चला था कि यह उस समुदाय का कोई उत्सव है। फर्क इतना है कि इस मूर्ति का आधा शरीर ही है। पर उस मूर्ति का निचला हिस्सा भी था। पर अभी उसे उस जगह का नाम याद नहीं आ रहा है। अगर याद आ जाएगा तो वह फोन करके बता देगा।
मीटिंग से वापस आकर साइमन सोच रहा था कि वह मूर्ति किसकी हो सकती है। ललित ने कहा था कि मूर्ति उनके समुदाय के एक देवता की है। साइमन के मन में आ रहा था कि क्या इंस्पेक्टर रवींद्र नाथ ने जो मूर्ति देखी थी वह इसी देवता की थी ? लेकिन जो मूर्ति ललित और पुनीत के पास से मिली वह अधूरी थी। जबकी इंस्पेक्टर रवींद्र ने जो मूर्ति देखी थी उसका निचला हिस्सा भी था। साइमन ने सोचा कि ललित और पुनीत से उनके देवता के बारे में पूछताछ करता है। फिर उसने सोचा कि पहले वह खुद जानने की कोशिश करता है। इंस्पेक्टर रवींद्र का कहना था कि विसर्जन के समय बहुत भीड़ थी। अतः यह कोई तंत्र मंत्र से संबंधित क्रिया नहीं हो सकती थी।
जिस मकान से ललित और पुनीत को गिरफ्तार किया गया था वहाँ उस मूर्ति के अलावा ऐसा कुछ भी नहीं मिला था जिससे यह साबित हो सके कि वह तंत्र मंत्र जैसा कुछ करते हैं। सिर्फ उनके पास मिली मूर्ति के आधार पर ऐसा कुछ नहीं कहा जा सकता था। जब तक कि यह साबित ना हो कि वह मूर्ति किसी तांत्रिक क्रिया से संबंधित है। अतः साइमन ने पहले उस मूर्ति की सच्चाई का पता लगाने का निश्चय किया। उसने इंटरनेट पर खोजने का प्रयास किया तो कोई सफलता नहीं मिली। उसने देवता की मूर्ति की तस्वीर भी सर्क्युलेट करवा दी।

कुलभूषण को भी अभी तक कोई खास सफलता नहीं मिली थी। उसने अपनी पड़ताल उस मकान के आसपास शुरू की जहाँ से ललित और पुनीत को गिरफ्तार किया गया था। उस मकान से पहले वाला मकान दो सालों से खाली था। उसके बाद एक मैदान था। सामने एक प्लास्टिक फैक्ट्री के पिछले हिस्से की दीवार थी। गली में सिर्फ एक ऐसा मकान था जहाँ बूढ़े वर्मा दंपति रहते थे। कुलभूषण उनसे मिला। पत्नी की तबीयत पिछले कुछ महीनों से बहुत खराब थी। वह बिस्तर पर थीं। बातचीत नहीं कर सकती थीं। वर्मा जी ज़ोर देने पर बात करने को मान गए। कुलभूषण के सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी बिस्तर पर ही रहती है। वह थोड़ा बहुत शरीर चला पा रहे हैं। पर ज़रूरत का सामान लेने ही घर से बाहर निकलते हैं।‌ इसलिए उन्हें बाहर की अधिक जानकारी नहीं रहती है। उस दिन उनकी नींद खुली तो बाहर कुछ हलचल सी लगी। उन्होंने गेट के बाहर देखा तो पुलिस थी। ललित और उसके साथी को ले जा रही थी।‌ उनका कहना था कि ललित तो कई सालों से यहाँ रह रहा था। यह उसके पिता का मकान था। उन्होंने बताया कि वह कूरियर कंपनी में डिलीवरी का काम करता है। वह सट्टा खेलने का आदी है। इसलिए उसके पिता और उसके बीच बनती नहीं थी। पिता की मौत के बाद वह अकेला रह गया। वर्मा जी की पत्नी बीमार हो गईं। वह उसमें व्यस्त हो गए। उन्हें ललित के बारे में इससे अधिक जानकारी नहीं है। हाँ इतना पता चला था कि कुछ महीनों से उसके साथ कोई और भी रह रहा था। उन्हें तो उस दूसरे आदमी का नाम भी गिरफ्तार होने के बाद पता चला।
कुलभूषण के पूछने पर कि क्या उन्हें ऐसा लगता है कि ललित और उसका साथी तंत्र मंत्र या कुछ गलत काम करते थे वर्मा जी ने कहा कि उन्हें इस विषय में कुछ नहीं पता। वर्मा जी के घर से निकल कर कुलभूषण ने आसपास की कुछ दुकानों में पूछताछ की। ललित के बारे में वही पता चला जो वर्मा जी ने बताया था। पुनीत के बारे में किसी को कुछ भी नहीं पता था। सबने बस यही कहा कि कुछ महीनों से ललित के मकान में रह रहा था। उन दोनों के तंत्र मंत्र से संबंधित होने के बारे में उन्होंने कुछ भी जानने से मना कर दिया। सबको आश्चर्य था कि पुलिस उन दोनों को पकड़ कर क्यों ले गई ?
उसके बाद कुलभूषण जांच के लिए उस भोजनालय में गया जहाँ पहली बार उसने पुनीत को देखा था। वहाँ से उसे इतना ही पता चल सका कि वह बीते कुछ महीनों से अक्सर वहाँ खाना खाने आता था। अधिक बातचीत नहीं करता था। खाना खाकर पैसे देकर चुपचाप चला जाता था। कुलभूषण को कोई बहुत उपयोगी जानकारी नहीं मिली थी। उसे जो कुछ भी पता चला उसने साइमन को बता दिया। साइमन ने उससे कहा कि वह अपनी कोशिश जारी रखे। उसने देवता की तस्वीर उसे भेजकर उसके बारे में भी पता करने को कहा।

चार दिन से अधिक हो गए थे पर पुलिस को ललित और पुनीत के खिलाफ ऐसा कुछ नहीं मिला था जिसके आधार पर उन्हें किसी तांत्रिक गतिविधि से जोड़कर हत्या का इल्ज़ाम लगाया जा सके। साइमन और उसके साथी निराश थे। उन्हें लग रहा था कि कहीं इतनी दूर आकर उन्हें खाली हाथ ना रहना पड़े।
साइमन और इंस्पेक्टर हरीश इसी विषय में बात कर रहे थे। दोनों ही अबतक कुछ हाथ ना लगने से परेशान थे। साइमन का कहना था कि जैसे भी हो उस मूर्ति के विषय में पता किया जाना आवश्यक है। यदि पता चल जाए कि मूर्ति किस देवता की है तो बात आसान हो जाएगी। उसकी बात सुनकर इंस्पेक्टर हरीश के दिमाग में एक सुझाव आया। उसने कहा,
"सर मूर्ति हाथ से गढ़ी गई है। अक्सर जनजातियों में इस तरह की मूर्तियां बनाई जाती हैं। मुझे लगता है कि हमें प्रदेश के विभिन्न जनजातीय कबीलों में जाकर उस विचित्र मूर्ति के बारे में पता करना चाहिए।"
इंस्पेक्टर हरीश का यह सुझाव साइमन को अच्छा लगा। उसने कहा,
"इंस्पेक्टर रवींद्र नाथ ने भी किसी विशेष समुदाय की बात कही थी। ऐसा करो कि प्रदेश की विभिन्न जनजातियों और उनके कबीलों की एक लिस्ट तैयार करो और उसके आधार पर पता करो।"
"ठीक है सर अभी यह काम शुरू कर देते हैं।"
"हरीश हमें जल्दी करना होगा। अभी मीडिया को उन दोनों की गिरफ्तारी के बारे में पता नहीं है। उन्हें भनक लगे उससे पहले हमें कुछ ठोस पता करना है।"
उसी समय सब इंस्पेक्टर कमाल केबिन में आया। खबर रोज़ाना की एक प्रति साइमन की टेबल पर रखकर बोला,
"अदीबा हमारी मुश्किलें बढ़ाती रहती है।"
इंस्पेक्टर हरीश ने अखबार उठाकर खबर पढ़ी। उसने साइमन से कहा,
"सर आपका डर सच साबित हो गया। खबर रोज़ाना में ललित और पुनीत की गिरफ्तारी की खबर छपी है।"
यह सुनकर साइमन गंभीर हो गया। उसने कहा,
"इंस्पेक्टर नासिर से कहा था कि इस गिरफ्तारी की खबर बाहर नहीं जानी चाहिए। फिर भी यह खबर अखबार को लग गई।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"सर रिपोर्ट में हुसैनपुर के एसओ सुंदरलाल का नाम भी लिखा है। मुझे लगता है कि अपना नाम कमाने के लिए उसने ही खबर लीक की है। उस दिन जब आप इंस्पेक्टर नासिर और उनकी टीम की तारीफ कर रहे थे तब वह बार बार उस टीम को बनाने का क्रेडिट खुद को दे रहा था।"
साइमन ने गुस्से से कहा,
"क्या कहा जाए ? अपनी वाहवाही के चक्कर में यह भी नहीं सोचा कि मामला कितना संवेदनशील है। अब हमसे सवाल किए जाएंगे। अभी हमारे पास कोई जवाब नहीं हैं।"
साइमन बहुत हताश लग रहा था। इंस्पेक्टर हरीश और सब इंस्पेक्टर कमाल ने एक दूसरे की तरफ देखा। उनके पास तसल्ली देने के लिए कुछ नहीं था। साइमन ने आगे कहा,
"पर अब कर क्या सकते हैं ? फिलहाल जो तय किया है उसके हिसाब से काम करो। मीडिया सवाल करेगी तो देखेंगे।"
इंस्पेक्टर हरीश ने आश्वासन दिया कि वह बिना देर किए अपने काम में लग जाता है। वह सब इंस्पेक्टर कमाल को साथ लेकर चला गया। उन दोनों ने मिलकर कुछ ही घंटों में पूरी लिस्ट तैयार कर ली। साइमन उनकी इस चुस्ती से खुश हुआ। उसने प्लान बनाया कि अब किस तरह जांच शुरू करनी है।

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