भाग 33
इस बार मीनू, राघव, अशोक और साहिल में कोई कुछ नहीं बोल रहा था। सभी मानसी की कहानी में खोए हुए थे। इसलिए मानसी ने अपनी कहानी को जारी रखा।
दादी : मुस्कान जो आ गई हैं, मुस्कुराहट तो रहेगी ही ना ? कुछ दिन तू भी उसके साथ समय बीता ले तेरा यह खड़ूस चेहरा भी मुस्कुराने लगेगा।
विमलेंद्र : कौन मुस्कान ?
दादी : वही जिसे तूने मेरी देखभाल के लिए रखा है।
विमलेंद्र : ओह... दादी मैं उनसे नाम पूछना तो भूल ही गया था। मुझे वह ईमानदार और मेहनती लगी तो मैंने बिना किसी औपचारिकता किये उन्हें जॉब पर रख लिया था।
विमलेंद्र को मुस्कान अच्छी लगने लगी थी। वह अक्सर उसे छुपकर देखा करता। वह मुस्कान से बात करने के लिए किसी न किसी बहाने से दादी के कमरे में आ जाता। मुस्कान भी विमलेंद्र को पसन्द करती थी। विमलेंद्र की उपस्थिति उसे अच्छी लगती।
दादी समझ गई और चिंता की लकीर उनके माथे पर खींच गई। उन्होंने विमलेंद्र को सतर्क करतें हुए कहा- बेटा जिस और तुमने कदम बढ़ा दिए है वहां से लौट आओ।
विमलेंद्र (समझकर भी नासमझ बनता हुआ) : आप क्या कह रहीं हैं मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा।
दादी ने अपनी अलमारी से एक ब्लैक एंड व्हाइट फोटो वाला एलबम निकाला। उसमे एक फोटो दिखाकर विमलेंद्र से कहा- यह हमारी पुश्तैनी हवेली हैं, जो अब वीरान पड़ी है। पहले यहां संयुक्त परिवार रहा करता था। तुम्हारे दादा, उनके छोटे भाई, तुम्हारे मम्मी-पापा सब यहीं एक-साथ रहते थे।
विमलेंद्र : इस आलीशान हवेली को सबने छोड़ क्यों दिया ?
दादी : कहते हैं वहां किसी की आत्मा का वास है। रात को हवेली से डरावनी आवाज आती है।
विमलेंद्र : किसकी आत्मा है दादी ?
दादी : पूरी जानकारी तो मुझे भी नहीं हैं बेटा क्योंकि मैं उन दिनों अपने मायके थी। पर सब लोग ऐसा कहते हैं कि तुम्हारे छोटे दादा को हवेली में काम करने वाली एक लड़की से प्रेम हो गया था जिसका परिवार ने विरोध किया। इसलिए तुम भी मुस्कान की और बढ़ते अपने कदमों को रोक लो।
विमलेंद्र को दादी द्वारा सुनाई गई अधूरी कहानी से संतोष नहीं हुआ। उसने गाँव जाकर हवेली का पूरा सच जानने की ठानी।
दादी के लाख मना करने पर भी वह नहीं माना और अगली सुबह ही पूरनपुर के लिए रवाना हो गया। पूरनपुर पहुंचते हुए शाम हो गईं। गाँव वाले विमलेंद्र को देखकर प्रसन्न हुए। छोटे सरकार आ गए कहते हुए ग्रामीण विमलेंद्र की आवभगत करने लगे।
हवेली के पास ही विमलेंद्र के ठहरने की व्यवस्था कर दी गईं। रात हो या दिन हवेली बहुत ही भयानक लगतीं। रात को तो यहाँ से जो भी निकलता उस पर शामत ही आ जाती। हवेली से आती डरावनी आवाज को सुनकर अच्छे-अच्छों के रौंगटे खड़े हो जाते।
विमलेंद्र को हवेली की कहानी मिथक लगी। वह रात को ही टहलता हुआ हवेली के सामने जाकर खड़ा हो गया। वीरान पड़ी हवेली, सुनसान वातावरण, सायं-सायं करतीं हवा, उल्लुओं की आवाज, चमगादड़ के पंख फड़फड़ाने की ध्वनि सब कुछ दिल में खौफ पैदा करता। तभी अचानक बिजली चमकी और बादल की भयंकर गड़गड़ाहट चारों दिशा में गुंज उठी। विमलेंद्र सहम गया। वह अपने कमरे पर लौट आया।
विमलेंद्र को हवेली से किसी भी प्रकार की कोई आवाज नहीं आई। वह बेफिक्र होकर सो गया।
अगली सुबह वह हवेली गया। उसने अपनी जेब से चाबी निकाली और हवेली का मुख्य द्वार खोल दिया। गाँव वालों की तो मानो साँसे थम गईं। सब भयभीत होकर अपने घरों में भाग गए। विमलेंद्र ने पूरी हवेली का मुआयना किया। हवेली के हर कमरे की दीवारों पर विमलेंद्र के पुर्वजों की बड़ी सी तस्वीर लगीं हुई थी। हवेली मकड़ी के जालों से सज रही थी और कबूतर का घर बन चुकी थी। सुनी हवेली में कबूतरों की गुटरगूँ की आवाज गूँज रहीं थीं। सूर्यास्त से पहले विमलेंद्र ने हवेली छोड़ दीं। और अपने कमरे पर आ गया। वह अपने कमरे में बिस्तर पर लेटा हुआ गूगल पर पुरानी हवेलियों से संबंधित जानकारी देख रहा था। पर उसे अपनी हवेली से संबंधित कोई भी जानकारी नहीं मिली।
रात करीब 11 बजे भोजन करने के बाद वह छत पर टहल रहा था। तभी उसे सायकिल से आते दूध वाले छोटू काका दिखाई दिए। तेज सायकिल चलाने से उनकी सांस फूल रहीं थी।
विमलेंद्र ने उनसे पूछा क्या हुआ काका यूँ भागे-भागें क्यों चले आ रहे हो ?
छोटू काका : छोटे सरकार हम हवेली से आती डरावनी आवाज सुनकर वहां से अपनी जान बचाकर आ रहे हैं।
विमलेंद्र फुर्ती से सीढ़िया उतरता हुआ हवेली की ओर चल दिया। पीछे से छोटू काका आवाज देते रहे- वहाँ न जाओ छोटे सरकार।
विमलेंद्र हवेली से कुछ दूर एक पेड़ के पास खड़ा हो गया। उसे हवेली से किसी लड़की के चिल्लाने की आवाज आई। आवाज जितनी डरावनी थी उतनी ही दर्दभरी भी। विमलेंद्र हवेली के नजदीक चला गया। हवेली से आने वाली आवाज बंद हो गईं। जब विमलेंद्र पलटकर जाने लगा तो उसे किसी लड़की के गुनगुनाने की आवाज आईं...
याद किया दिल ने कहां हो तुम...
झूमती बहार है कहाँ हो तुम.......
प्यार से पुकार लो जहां हों तुम...
अचानक आवाज बदल गई और यहीं पंक्तियां डरावनी मर्दाना आवाज में हवेली की फिजाओ में गूंज उठी। विमलेंद्र डर गया। रात के करीब 12ः30 बज रहे थे। चारों और सन्नाटा पसरा हुआ था। तभी सन्नाटे को चीरती हुई एक आवाज आई- बचाओ, बचाओ... छोड़ दो... जाने दो। फिर एक दम से शांति छा गईं।
विमलेंद्र के सारे तर्क धरे के धरे रह गए कि हवेली की कहानी महज एक मिथक है। बुत बना विमलेंद्र चुपचाप खड़ा था, उसका दिमाग चकरा गया। तभी उसे घुँघरुओं की आवाज आईं। ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसकी ओर चला आ रहा है। चूड़ियों की खनखनाहट व किसी लड़की की हँसी से हवेली गुंज उठी।
विमलेंद्र को हवेली की खिड़की पर एक परछाई दिखीं जो पलभर में ही गायब हो गई। विमलेंद्र वहां से भाग गया। उसे लगा जैसे कोई उसका पीछा कर रहा है। तभी विमलेंद्र को ठोकर लगी और वह सड़क पर गिर पड़ा। विमलेंद्र ने देखा कि सड़क पर एक लंबा साया दिख रहा हैं जिसका कोई अंत ही नहीं था। वह धीरे से उठा, उसने पलटकर देखा तो हक्का-बक्का रह गया। एक नवयुवती खड़ी थी जिसका पहनावा और हेयर स्टाइल 60 के दशक की तरह था। विमलेंद्र ने दादी के साथ 60 के दशक की फिल्म देखी हुई थी। नवयुवती विमलेंद्र को बिल्कुल 60 के दशक की अभिनेत्रियों जैसी लगी।
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