हॉरर मैराथन - 2 Vaidehi Vaishnav द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हॉरर मैराथन - 2

भाग 2

माधव और खुशी की हाल ही में शादी हुई हैं। दोनों एक ही संस्थान में कार्यरत थे और काम के सिलसिले में हुई एक मीटिंग में दोनों की मुलाकात हुई, जो दोस्ती से शुरू हुई और बाद में जीवन के सफर में हमसफर बन जाने तक मुकम्मल हुई। खुशी के माता-पिता माधव को पसन्द नहीं करते थे इसलिए दोनों ने परिवार के खिलाफ जाकर कोर्ट में शादी कर ली। अब दोनों का एक ही सपना हैं खुद का घर।

खुशी परियों की कहानियां सुनकर बढ़ी हुई, इसलिए आज भी उसकी दुनिया उसके सपने लड़कपन की तरह ही थे। वह अक्सर माधव से अपने सपनो के घर को लेकर बात किया करतीं, ऐसे पर्दे होंगे, ऐसी बालकनी होंगी, एक छोटी सी बगिया होंगी। माधव कभी भी खुशी की बातों को हल्के में नहीं लेता, उसका लक्ष्य भी यही था कि वह खुशी के सपनो का घर बनाएगा।

खुशी बालकनी में ही थीं, पोधों को पानी दे रहीं थीं। तभी माधव की गाड़ी की आवाज आई। खुशी ने मन मे सोचा अभी तो इनके आने का समय नहीं हुआ हैं कोई और होगा। तभी डोरबेल बजी । खुशी ने दरवाजा खोला तो देखा फूलों का गुलदस्ता हाथ में लिए होठों पर मुस्कान के साथ माधव खड़ा हैं। खुशी खिलखिलाकर हँसते हुए बोली- आज क्या खास बात हैं जनाब?

माधव- पहले अंदर तो आने दीजिए मेडम फिर बताएंगे। अंदर आते ही माधव सोफे पर पसरकर बैठ गया और अपनी टाई को ढीला करते हुए खुशी से कहने लगा- आज मैंने हमारे सपनो का घर खरीद लिया हैं, अब तुम जल्दी से तैयार हो जाओ और मेरे साथ अपने सपनो की दुनिया देखने चलो।

आज खुशी को लग रहा था मानो वो आकाश में उड़ रहीं हो, उसकी खुशी का ठिकाना ही नही रहा। आज हर बात, हर चीज उसके दिल को छू रही थीं। गाड़ियों का शोर भी उसे किसी मधुर संगीत सा लग रहा था। कुछ ही देर में खुशी अपने सपनों के महल के सामने खड़ी थीं। घर वाकई वैसा था जैसा वह सोचा करती थी।

माधव ने घर की चाबी खुशी के हाथ में थमाते हुए कहा जा खुशी जा जी ले अपनी जिंदगी। हँसते हुए चाबी लेकर खुशी ने घर की और दौड़ लगा दी। लोहे का बड़ा सा गेट खोलते ही छोटी सी बगिया दिखी, फिर बड़ा सा लकड़ी का मुख्यद्वार दिखा जिस पर ताला लगा हुआ था। खुशी ने ताला खोला और फिर भगवान गणेश का नाम लेकर मुख्यद्वार खोला। सामने गुलाब की पंखुड़ियों से बना एक बड़ा सा दिल था, जिसके अंदर वेलकम लिखा हुआ था। माधव खुशी के पीछे ही था और इन सारे पलो को कैमरे में कैद कर रहा था। खुशी के चेहरे पर इतनी प्रसन्नता, इतना सुकून उसने आज पहली बार देखा था।

चिड़ियों सी चहचहाती खुशी पूरे घर का मुआयना कर रहीं थीं, उसे घर बहुत पसंद आया। माधव को गले से लगाते समय उसकी आँखों में खुशी के आँसू छलक आए, रुंधे गले से कहा - आई लव यू माधव।

शुभ मुहूर्त में गृहप्रवेश किया गया। गृहप्रवेश वाले दिन अचानक ही बहुत तेज हवा चलने लगीं, बड़ी मुश्किल से हवन सम्पन्न हुआ। खुशी के मन में कुछ सन्देह हुआ जिसको माधव ने यह कह कर टाल दिया कि यह तो प्रकृति से जुड़ी बात हैं।

माधव रोज सुबह 9 बजे ऑफिस निकल जाता और रात 8 बजे या लेट होने पर कभी-कभी 9 बजे घर आता। इस बीच खुशी अकेले घर पर रहती। उसे कई बार लगता जैसे घर में कोई और भी हैं। इस बारे में उसने माधव से भी बात की। माधव ने उसे उसका वहम हैं कहकर समझा दिया, और कहा तुम अपनी पसंद के काम मे मन लगा लिया करो, खाली दिमाग शैतान का घर होता हैं फिर ऐसे ही विचार आते हैं।

खुशी रोज पहले माधव के लिए नाश्ता और टिफिन तैयार करती। माधव के जाने के बाद ही अपने सारे काम किया करती। आज जब वो नहा रहीं थीं तो उसे बाहर किसी के गुनगुनाने की आवाज सुनाई दी। आवाज किसी महिला की थीं। खुशी सहम गई। उसकी हिम्मत ही नहीं हुई कि बाथरूम से बाहर निकलकर देख ले। फिर उसे माधव की बात याद आई और उसका डर खत्म हो गया। वो बाथरूम से बाहर आई, पूरे घर को देख लिया, सभी दरवाजे-खिड़की बंद थे। घर बहुत सुंदर था फिर भी खुशी को नकारात्मक ऊर्जा महसूस होतीं। वह हर समय डरी-सहमी सी रहती। अगर फोन की घण्टी भी बजती तो खुशी चौंक जाती थीं।

घर लोन लेकर लिया गया था इसलिए माधव भी डबल शिफ्ट में काम करने लगा। इसलिए अब तो कई बार घर आने में रात के 12 या 1 बज जाते। दिन तो खुशी जैसे-तैसे काट लेती पर रात का समय तो सदियों की तरह लगता। खुशी का डर रात के अंधेरे में और गहरा जाता। अब तो हर दिन खुशी को नई-नई बातें नजर आने लगी थीं। उसका शक भी अब पक्का होता जा रहा था कि घर में कोई आत्मा हैं। उसने माधव से भी यह बात कही जिसे माधव ने यह कहकर हँसी में उड़ा दिया कि पढ़ी लिखी होकर भी ऐसी बात करती हो।

एक दिन खुशी किचन में चाय बना रही थी तभी उसे याद आया चायपत्ती तो अभी राशन के पैकेट से निकाली ही नहीं हैं और राशन माधव ने कल रात को डायनिग टेबल पर रखा था। जैसे ही खुशी ने किचन से डायनिग टेबल की और देखा तो उसके होश उड़ गए उसे वहाँ काली साड़ी, खुले बाल में एक महिला बैठी दिखीं जो खुशी को ही देख रही थीं।

खुशी बेहोश होकर वहीं गिर पड़ी। उसके हाथ में चीनी का कप था जो उसके गिरते ही टूटकर खुशी के हाथ में लग गया । माधव ने रोज की तरह खुशी को कॉल किया और कई बार घण्टी जाने पर भी जब कोई उत्तर नहीं मिला तो माधव तुरन्त घर के लिए निकला। घर आते ही देखा कि खुशी के हाथ में चोट लगी हैं और वह बेहोश फर्श पर पड़ी हुई हैं। माधव उसे हॉस्पिटल ले गया।

डॉक्टर ने कहा घबराने की कोई बात नहीं हैं आपकी वाइफ प्रेग्नेंट हैं और इसी वजह से चक्कर आ गए होंगे। पर अब आप विशेष ध्यान रखिएगा। माधव की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। पर खुशी का चेहरा अब भी उदास था। उसे रह रहकर डायनिग टेबल वाली बात याद आती, जिसे वह अपना वहम समझती तो कभी सच।

खुशी को अब अपनी माँ की बहुत याद आती, उसका मन करता कि माँ से मिलकर उनको सारी बात बताऊँ। पर माँ की नाराजगी का ख्याल कर वह कड़वे घुट पीकर रह जाती। उसे अपने किये पर पछतावा भी होता। पर माधव का प्यार उसे फिर से सांत्वना दे देता। खुशी का चेहरा अब मुरझा सा गया था उसे देखकर यहीं लगता कि उसे कोई गम्भीर बीमारी हैं। वह अब खोई-खोई सी रहने लगी थीं। माधव ने उसे एक कहानी की किताब दी और कहा इसे पढा करो, बहुत अच्छी हैं। कहानी पढ़ते -पढ़ते खुशी की आँख लग गई। जब आँख खुली तो सामने एक महिला बैठी दिखी, चौंकते हुए खुशी ने पूछा आप कौन हैं, यहाँ कैसे आई ?

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