हॉरर मैराथन - 9 Vaidehi Vaishnav द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हॉरर मैराथन - 9

भाग 9

लड़का ऊपर चला गया। डमी पंक्तियों में खड़ी हुई थी। लड़के ने बारी-बारी से डमी पर नए कपड़े सजा दिए तभी उसे डमी के बीच एक महिला आँख को झुकाए खड़ी दिखीं। लड़के का माथा ठनका। वह सोचने लगा ये कौन हैं ? कही कोई चोर तो नहीं..

वह रौबदार आवाज में महिला पर अपना प्रभाव झाड़ते हुए बोला- क्यों री कपड़ा चोर यहाँ कैसे आई ?

महिला ने कोई जवाब नहीं दिया। तो लड़के ने उसका हाथ पकड़ कर कहा- चल मालिक के पास, वहीं तेरा हिसाब करेंगे।

महिला ने पलकें उठाई। उसकी भयानक सफेद आँख देखकर लड़का जोर से चिल्लाया।

लड़के के चिल्लाने से सुखराम ऊपर की ओर गए। उन्होंने डरे हुए लड़के से पूछा- क्या हुआ ?

लड़के ने सारी बात बताई। जब सुखराम डमी की पंक्तियों की ओर गए तो वहाँ कोई नहीं था।

अब सुखरामजी को सन्देह हुआ। कल रात मनप्रीत भी डर गया था । और अब लड़के ने किसी डरावनी महिला को देखा। सुखराम दुकान मंगल करके घर आ गए। घर आते ही उन्होंने अपने मित्र वल्लभ को फोन लगाया जो तांत्रिक क्रियाओं के जानकार हैं। मित्र ने दुकान का मुआयना करने की बात कहीं। सुखराम ने उन्हें दोपहर का समय दुकान आने को कहा। सुखराम ने अगले दिन दुकान का अवकाश रखा।

दोपहर को सुखराम व उनके मित्र वल्लभ नियत समय पर दुकान पहुंचे। वल्लभ ने जैसे ही दुकान की पहली सीढ़ी पर पैर रखा, उन्हें बिजली के करंट की तरह एक झटका सा लगा। उन्होंने अपना पैर पीछे कर लिया। वे सुखराम से बोले दुकान में किसी अहितकारी बुरी शक्ति का वास हैं जो किसी ने काला जादू करके यहां भेजीं हैं। जो मनप्रीत के कार्य को ठप्प करना चाहतीं हैं।

सुखराम- इसका कोई उपाय नहीं हैं ?

वल्लभ- भूत-प्रेत जाके निकट न आवे, महावीर जब नाम सुनावै। दुकान पर सुंदरकांड का पाठ करना होगा। बुरी शक्ति पाठ को पूरा नहीं होने देगी। पाठ के पूर्ण होने पर बुरी शक्ति यहाँ से स्वतः ही चलीं जाएगी।

अगले दिन मंगलवार था। सुखराम ने वल्लभ से कहा- मित्र तुम ही यह कार्य सिद्ध कर सकते हों।

वल्लभ राजी हो गए। अगले दिन रात 9 बजे पूजन की सारी सामग्री के साथ वल्लभ दुकान पर आए। वहाँ सुखराम अपने परिवार के साथ पहले से ही मौजूद थे। भगवान श्रीराम दरबार की बड़ी सी तस्वीर की स्थापना की गई व उनके सामने ही सुंदरकांड पाठ के आयोजन की तैयारी शुरू की जाने लगीं। तभी दुकान की सारी लाइट बंद-चालू होने लगीं। वल्लभ ने कहा डरे नहीं बस पाठ शुरू होने से अंत तक ऐसे ही रहें यहाँ से कोई भी उठकर न जाए।

सुंदरकांड का पाठ शुरू हुआ। दुकान पर रखी सारी डमी डबडब की आवाज करतीं हुई हिलने लगीं। खिड़की-दरवाजे धड़धड़ाते हुए खुलने व बंद होने लगीं। अचानक दुकान की शटर गिर गई। पाठ अनवरत चलता रहा।

तभी सुधा को एक महिला दुकान के ऊपरी हिस्से पर जाने वाली सीढ़ी पर खड़ी हुई दिखीं। और एकदम गायब हो गई। सुधा के माथे पर पसीने की बूंदे छलक आई। अचानक से दुकान में लगे सारे बल्ब एक के बाद एक बंद होने लगे। दुकान में घुप्प अंधेरा छा गया। सुंदरकांड का पाठ पूर्ण हुआ और उसी के साथ दुकान में रखीं डमी धमाके की तेज आवाज के साथ दो टुकड़ों में विभाजित हो गईं। दुकान के सारे बल्ब जल उठे व दुकान फिर से बल्ब की सफेद दूधिया रोशनी से जगमगा उठीं। सबने प्रसाद ग्रहण की।

सुखराम ने वल्लभ जी से पूछा यह सब किसने किया होगा ? कौन हैं जो हमारा अहित करना चाहता हैं ?

वल्लभ- जब भी कोई मनुष्य अपनी कड़ी मेहनत से सफलता अर्जित कर लेता हैं तो उसे परास्त कर पाना असंभव होता है। दूसरों की सफलता व सुख से दुःखी होनें वाले लोग फिर काला जादू जैसे हथकंडों का सहारा लेते हैं। पर वे लोग यह भूल जाते हैं कि ईश्वर की शक्ति से बड़ी दूसरी कोई शक्ति नहीं होतीं। ईश्वर सदैव ही सच्चे लोगों की सहायता करते हैं। जिसने भी मनप्रीत का अहित करना चाहा था। आज ही उसका बहुत बड़ा नुकसान होगा। क्योंकि अब उसकी करनी का फल बजरंग बली ही देंगे।

अगली सुबह मनप्रीत ने अखबार में समाचार पढ़ा कि वह पहले जिनकी दुकान पर काम किया करता था वहां शार्ट सर्किट होने से आग लग गई और लाखों रूपये का सामान जलकर राख हो गया।

इसके साथ ही मानसी ने अपनी कहानी पूरी की। कहानी के खत्म होते ही मीनू ने कहा- मानसी तुझे भी ऐसी कहानी आती है। पता है एक समय तो मैं डर गई थी कि डमी के बीच से कोई औरत निकलेगी और मनप्रीत पर हमला कर उसे नुकसान पहुंचा देगी। पर शुक्र है कि वो बच गया।

साहिल ने भी मानसी की तारिफ करते हुए कहा- सच में बहुत अच्छी कहानी थी। मुझे इस कहानी का जो बेस्ट पार्ट लगा वो यह था कि सुंदर कांड के कारण बुरी आत्मा ने मनप्रीत का पीछा छोड़ दिया। मतलब साफ है कि भगवान की शक्ति के आगे कोई शक्ति नहीं ठहर सकती।

हां मुझे भी उम्मीद नहीं थी कि मानसी इस तरह की कोई कहानी सुना सकती है। राघव ने कहा।

यार ये सब अब बंद कर दो ना। देखो रात भी बहुत हो गई है, अब सोने चलते हैं। शीतल ने कहा।

तुझे डर लग रहा है या नींद आ रही है। अगर डर के कारण नींद आ रही है तो फिर खर्च उठाने के लिए तैयार रहना। और अगर सच में नींद आ रही है तो फिर तुझे हम सोने नहीं देंगे। साहिल ने कहा।

मानसी तुझे तो देख लूंगी, यह सब तेरे ही कारण हो रहा है। कभी तू भी मेरे चंगुल में फंसेगी, तब तुझसे इस बात का पूरा बदला लूंगी। शीतल ने कहा।

देख बदला लेना हो तो ले लेना। यहां हम सभी एन्जॉय करने के लिए आए हैं। अगर तुझे सोना ही था तो फिर तू यहां आई ही क्यों हैं। यार जंगल में आकर भी कोई सोता है भला। मानसी ने कहा।

अशोक ने कहा - बहुत मजा आ रहा है, मानसी का आइडिया अच्छा था कि भूतों की कहानी सुनाए। चलो अब अगला नंबर किसका है ?

फिर से पर्ची डाली गई और इस बार राघव का नाम निकलकर आया। अब राघव ने अपनी कहानी शुरू की। राघव ने कहानी शुरू करने से पहले कहा कि मेरी कहानी थोड़ा पुराने जमाने की है, मतलब राजा-महाराजाओं के समय की। इसलिए इस कहानी में किसी तकनीक को तलाशने की कोशिश मत करना। मेरी कहानी बताती है कि एक भूल या गलतफहमी कैसे भारी पड़ सकती है। राघव ने अपनी कहानी सुनाना शुरू की।

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