हॉरर मैराथन - 8 Vaidehi Vaishnav द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हॉरर मैराथन - 8

भाग 8

मानसी ने अपनी कहानी को आगे बढ़ाते हुए कहा-

सुधा- बेटा, आज जल्दी आ जाना मैंने तेरी पसन्द के छोले-भटूरे बनाये हैं।

मनप्रीत इधर- उधर नजरों को घूमाता हुआ बोला- जी माँ बस आ ही रहा हूं।

वह नीचे की ओर जाने के लिए पलट ही रहा था कि उसे एक परछाई तेजी से भागती हुई दिखीं। उसके कदम उसी दिशा की ओर बढ़ चले। आज मनप्रीत को आसपास खड़ी डमी बहुत ही भयानक लग रही थीं। डमी के बीच से गुजरते हुए मनप्रीत उस समय ठिठक गया जब किसी ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखा। पसीने से तर मनप्रीत ने धीरे से गर्दन घुमाई और कंधे की ओर देखा तो डमी का हाथ था। उसने हाथ झटके से हटा दिया जिससे पूरी डमी हिलने लगीं और हिलती हुई डमी और भी डरावनी दिख रहीं थीं। जिसे पकड़ कर मनप्रीत ने स्थिर कर दिया।

वह अंतिम छोर पर पहुंच गया। वहाँ कोई नहीं था। सामने कांच की खिड़की थी। मनप्रीत झाँककर बाहर देखने लगा। तभी उसे काँच में पीछे का दृश्य दिखा- एक डमी चलती हुई उसकी और आ रहीं थीं। वह तेजी से मुड़ा तो देखा वहाँ कोई नहीं था। अब तो डर के मारे उसके पसीने छूट गए। वह भगवान का नाम जपता हुआ। तेजी से नीचे की ओर आ गया। उसने इस बार फिर शटर उठाने की कोशिश की तो शटर भरभराहट की आवाज करतीं हुई ऊपर चली गई। मनप्रीत जल्दी ही दुकान के बाहर निकल गया और शटर गिरा कर उस पर ताला लगा दिया।

मनप्रीत अपने घर आ गया। दुकान पर घटित सारी बातों से उसका सर चकरा गया। वह उधेड़बुन में चलता जा रहा था, तभी पीछे से सुधा ने आवाज लगाई।

सुधा- मनु कहाँ जा रहा हैं...? उस तरफ तो दीवार हैं, अभी टकरा जाता।

अपने खयालों में खोए मनप्रीत ने चौंकते हुए पहले सामने दीवार को देखा फिर माँ को देखकर कहने लगा..

हाँ माँ देख लिया था दीवार को, मैं बस रुकने ही वाला था।

सुधा ने मनप्रीत को डरा सहमा देखकर उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा- बेटा सब ठीक तो हैं न ?

मनप्रीत- हाँ माँ सब ठीक हैं। कहकर मनप्रीत अपने रूम में चला गया।

करीब 9 बजे सभी लोग भोजन के लिए एक साथ बैठें। मनप्रीत चुपचाप खाना खा रहा था, सुखराम और सुधा आपस में पड़ोसी के बेटे के विषय में चर्चा कर रहे थे।

सुधा - भगवान ही जाने अभिनव को क्या हुआ हैं ? बड़े से बड़े डॉक्टर को दिखा दिया पर किसी भी डॉक्टर को बीमारी समझ नहीं आई।

सुखराम- आजकल नई-नई बीमारियों ने भी तो जन्म ले लिया है। डॉक्टर भी इसमें क्या करें ?

सुधा- अपनी अनिता बाई कह रहीं थीं कि मांजी ये तो काला जादू है इसका इलाज डॉक्टर नहीं कर पाएंगे।

काला जादू की बात सुनकर मनप्रीत ने माँ से पूछा- माँ ये काला जादू क्या होता हैं ?

सुधा- मनु ये एक तांत्रिक क्रिया होतीं है, जिसके द्वारा किसी भी आत्मा को वश में करके उससे मनचाहा कार्य करवाया जाता हैं, जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने स्वार्थ को साधने का प्रयास करता है या किसी को नुकसान पहुंचाने के काम करता है। काले जादू के माध्यम से किसी को मारा भी जा सकता है।

मनप्रीत- माँ, ‘‘क्या सच में ऐसा होता हैं..? या फिर ये सब बातें महज अंधविश्वास हैं‘‘

सुधा- मनु मैंने भी इसके बारे सुना ही है।

सुखराम- अरि भागवान क्यों बच्चें को डरा रहीं हो ? ये सब आजकल के इंसान के बस की बात नहीं है, ये क्रियाएं सिद्ध पुरुष ही कर सकते हैं। हर कोई ऐसी सिद्धि प्राप्त कर ले तो हो गया विश्व का कल्याण।

सुधा- (हँसते हुए ) अजी मैं कौन सा मानती हूं इन बातों को वो तो अपनी काम वाली बाई अनिता बंगाल की हैं तो वहीं बताती रहती हैं कुछ न कुछ।

सभी लोग भोजन के बाद अपने-अपने रूम में चले गए। मनप्रीत भी आज थक गया था उसे जल्दी नींद आ गईं। रात के करीब 3 बजे मनप्रीत की नींद खुल गई। आँख खोलते ही जो मंजर उसके सामने था उसे देखकर मनप्रीत के चेहरे की हवाइयां उड़ गई।

बिस्तर पर बिल्कुल मनप्रीत के समानांतर एक महिला हवा में मनप्रीत के ठीक ऊपर थीं जो मनप्रीत को एकटक बिना पलक झपकाएं देख रहीं थीं । महिला के दोनों हाथ पीछे की और थे व पैर बिल्कुल सीधे। उसके बाल खुले थे जो नीचे की और लहरा रहे थे जिसके कारण महिला के कान और गाल ढक गए थे।

आंखों को मिचता हुआ मनप्रीत जोर से चिल्लाया। आवाज सुनकर सुधा और सुखराम की नींद खुल गई। दोनों मनप्रीत के कमरे की तरफ दौड़े। दरवाजा खोलकर मनप्रीत के कमरे की बत्ती जलाई तो देखा आँख मिचे मनप्रीत थरथर कांप रहा था। सुधा मनप्रीत के सिरहाने बैठकर उसके बालों में उंगलियां फिराते हुए बोली- क्या हुआ मनु बेटा ? कोई डरावना सपना देख लिया क्या ?

सुखराम ने पानी देते हुए मनप्रीत को आवाज दी- मनु बेटा देखों हम हैं मम्मी-पापा।

एक आँख को खोलकर मनु ने देखा कि मम्मी-पापा हैं तो वह उठ बैठा। उसने सुधा को कसकर पकड़ लिया। वह इतना डर गया था कि कुछ बोल न सका। सुधा और सुखराम उसे अपने कमरे में ले गए और उसे अपने बीच में सुला लिया।

सुबह जब मनप्रीत जागा तो सुधा मनप्रीत के लिए चाय लेकर आई। वह उससे कहने लगीं। मनु कल रात कोई डरावना सपना देखा था क्या ?

मनप्रीत - हाँ सपना भी ऐसा जैसे सच हों। सोचकर भी डर लगने लगता हैं।

सुखराम (कमरे में प्रवेश करते हुए )- मैंने कल ही टोका था कि ऐसी बात मत करो जिससे बच्चा डर जाए। मनु आज आराम कर लें। दुकान पर मैं चला जाता हूँ।

सुखराम दुकान रवाना हुए। दोनों लड़के भी समय पर दुकान आ गए। कपड़ो का नया स्टॉक आया था। शाम को सुखराम ने लड़को से कहकर माल की थप्पीया ऊपर रखवा दीं। एक लड़का सुखराम से कहने लगा। नए कपड़े डमी को पहना दूँ ?

सुखराम- हाँ ठीक हैं।

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