हॉरर मैराथन - 26 Vaidehi Vaishnav द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • नज़रिया

    “माँ किधर जा रही हो” 38 साल के युवा ने अपनी 60 वर्षीय वृद्ध...

  • मनस्वी - भाग 1

    पुरोवाक्'मनस्वी' एक शोकगाथा है एक करुण उपन्यासिका (E...

  • गोमती, तुम बहती रहना - 6

                     ज़िंदगी क्या है ? पानी का बुलबुला ?लेखक द्वा...

  • खुशी का सिर्फ अहसास

    1. लालची कुत्ताएक गाँव में एक कुत्ता था । वह बहुत लालची था ।...

  • सनातन - 1

    (1)हम लोग एक व्हाट्सएप समूह के मार्फत आभासी मित्र थे। वह लगभ...

श्रेणी
शेयर करे

हॉरर मैराथन - 26

भाग 26

वाह यार कहानी तो मस्त लग रही है। मैंने भी भानगढ़ के किले के बारे में काफी बातें सुनी है। लोग कहते हैं कि वो किला शापित है। मीनू ने कहा।

हां सुना तो मैंने भी है, परंतु जितना मानसी ने अपनी कहानी में बताया है उतना मुझे नहीं पता था। लाइक वो तांत्रिका और राजकुमारी वाली कहानी। अशोक ने कहा।

यार जब कहानी अच्छी है तो पहले पूरी सुन लो फिर कमेंट करते रहना। साहिल ने कहा।

हां, बात करके कहानी का रिदम मत तोड़ों। राघव ने भी साहिल की बात का समर्थन किया।

ठीक है बाबा, माफ कर दो। चल मानसी आगे बता क्या हुआ। मीनू ने कहा।

इसके बाद मानसी ने फिर से कहानी शुरू की।

राघव का मोबाईल टूट गया। सरगुन ने दिनभर मोबाईल से ही वीडियो- फोटो लिए थे इसलिए उसके फोन की बैटरी तो पहले से ही डाउन थी। दोनों ने एक-दूसरे को हाथ की मदद से छूकर ढूंढा। सरगुन ने राघव का हाथ कस कर पकड़ लिया था।

सरगुन : राघव हवा के झोंके सा वह क्या था ?

राघव : लगता हैं जंगली बैल था। अब समझ आया कि सीमा में प्रवेश निषेध क्यों है ? यहाँ जंगली जानवर घूमते है। पास में ही सरिस्का वन्यजीव उद्यान है।

सरगुन : यहां रुककर हमने बहुत बड़ी गलती कर दी।

राघव : डोंट वरी स्वीटहार्ट... मैं हूँ न।

तभी दो तलवारों के आपस में टकराने की तेज आवाज आई... दोनों सहम गए।

राघव : लगता हैं ए.एस.आई. ने यहाँ रिकॉर्डेड साउंड का कोई सिस्टम लगा रखा हैं जो जंगली जानवरों को डराने के काम आता होगा।

सरगुन : रात को जंगली जानवर किसे मार डालेंगे, जब यहाँ कोई आता ही नहीं... इतना ताम-झाम करने की क्या जरूरत थी ?

राघव : जरूरत हैं, दिन को तो यहां चहल-पहल रहतीं है तो जानवरों से यह किला सुरक्षित रहता हैं। रात को इतनी बड़ी जगह की सुरक्षा के लिए ज्यादा गार्ड तैनात करने पड़ते, फिर ज्यादा सैलेरी देनी पड़ती। इसलिए कम खर्च में यह तरीका अपनाया होगा।

बातचीत करते हुए दोनों तालाब किनारे पहुंच गए। दोनों एक दूसरे की बाँहो में खो गए। तभी सरगुन चीख पड़ी। उसे राघव के पीछे एक डरावनी आत्मा खड़ी दिखाई दी।

राघव : क्या हुआ सरगुन ?

सरगुन के चेहरे की रौनक उड़ गई। डर के कारण उसका चेहरा फीका पड़ गया।

राघव ने सरगुन को झकझोरते हुए कहा- कुछ तो बोलों सरगुन...

सरगुन की आँखे ऊपर चढ़ गई, वह अचानक ही बेसुध हो गई।

राघव तालाब की ओर दौड़ा और अंजुली में पानी भरकर ले आया। उसने पानी सरगुन के मुंह पर डाल दिया।

सरगुन ने एकदम से आँखे खोली। उसका चेहरा अब बदला हुआ सा लग रहा था। सरगुन बिना झुके सीधी खड़ी हो गई। मानो किसी ने पुतले को खड़ा किया हो। राघव के हाथ-पैर फूल गए। वह जान छुड़ाकर भागने लगा। भागने से राघव की जेब मे रखीं गाड़ी की चाबी व सिक्को की आवाज डरावनी लग रहीं थी।

राघव ने देखा कि सरगुन पंक्तियों से खड़े पेड़ों पर एक से दूसरे पेड़ पर छलांग लगा कर उसकी ओर ही आ रही थी। राघव के कदमों की गति तेज हो गई। उसे सामने हनुमान जी का मंदिर दिखा वह दौड़कर मंदिर में चला गया। राघव को अब सब समझ आ गया। भानगढ़ का राज उसकी आँखों के सामने था। उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती सरगुन को आत्मा के प्रभाव से मुक्त कराना थी।

रात करीब 3 बजे भानगढ़ में आत्माओं की भीड़ लगने लगीं। मंदिर के सिवाय हर जगह महिला, पुरूष व बच्चों की आत्मा दिखाई दे रही थी। आत्मा की बस्ती को देखकर राघव की रूह कांप गई। अब वह समझ गया कि इनके चंगुल से बचना मुश्किल है। सुबह के 5 बज रहे थे। सरगुन मंदिर की सीढ़ी के पास खड़ी राघव को पुकार रही थी।

राघव उसे मंदिर में बुलाता। इस पर सरगुन के अंदर की आत्मा बोली- क्या हुआ..? तुम्हारा विज्ञान कोई सहायता नहीं कर पा रहा। भगवान की छत्रछाया में क्यों चले गये ? विज्ञान पर यकीन करने वाले हिम्मत है तो बाहर निकलकर बता।

आत्मा सरगुन के शरीर को कठोर यातनाएं देने लगीं। सरगुन पीड़ा से कराहती हुई चीख पड़ती और कहती- राघव मुझे बचा लो। राघव तड़प उठा। उसे ग्लानि होने लगी। क्या यहीं हैं मेरा प्रेम...? खुद को सुरक्षित करके मैं सरगुन को अपनी आँखों के सामने मरता, तड़पता देखता रहूँगा। नहीं... नहीं... यहां हम दोंनों साथ रुके थे अब साथ ही मरेंगे। राघव तुरन्त मंदिर के बाहर निकला और फुर्ती से सीढ़िया उतरता हुआ सरगुन के पास चला गया।

तभी पीछे से किसी ने कहा- प्रेम ने सुरक्षा घेरे को तुड़वा दिया। राघव ने पलटकर देखा- तो काले वस्त्र धारण किये हुए एक युवा पुरूष खड़ा था। जिसके मस्तक पर काला टीका था, उसके गले में काले रंग के मोतियों की माला थी व काले घने लंबे घुघराले बाल थे। उसके हुलिए से लग रहा था कि वह तांत्रिक हैं।

राघव : मैं इस लड़की से प्रेम करता हूँ। इसकी खातिर अपनी जान भी दे दूंगा।

तांत्रिक : इस स्थान पर प्रेम करना अपराध है। यहां प्रेम करने वाले कि सजा सिर्फ मृत्युदंड है।

हाहाहा.....उसकी भयानक हँसी से चारों दिशाएँ गूंज उठीं।

उस भयंकर तांत्रिक ने जैसे ही राघव पर वार करना चाहा अचानक एक खूबसूरत सी नवयुवती राघव व तांत्रिक के बीच में आ गई।

वह राजकुमारी रत्नावती थी। तांत्रिक को ललकारते हुए बोलीं- रे दुष्ट तू क्या जाने प्रेम की परिभाषा ? प्रेम में प्रेमी प्राण देना जानता हैं प्राण लेना नहीं। तू जिसे प्रेम कहता हैं वह सिर्फ वासना के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। तूने न सिर्फ मेरी मृत्यु का जिम्मेदार हैं वरन तूने भानगढ़ की भोली-भाली जनता को भी अपने शाप से काल का ग्रास बना दिया और आजतक सभी भानगढ़वासी भटक रहें हैं।

तू कितना भी सिद्ध तांत्रिक हो एक सती स्त्रीं का बाल भी बांका न कर पाएगा। साहस है तो मुझ पर वार करके दिखा। तेरे सारे तंत्र-मंत्र मेरे सतीत्व रूपी अस्त्र के आगे शक्तिहीन ही रहेगे।

तांत्रिक पीछे हट गया। सुबह की 6ः30 बज रहे थे। सूर्योदय होने वाला था। जैसे ही उगते सूरज ने दस्तक दी। अचानक से राजकुमारी, तांत्रिक व अन्य सभी आत्माएं अदृश्य हो गईं। सरगुन अचेत जमीन पर पड़ी हुई थी। राघव ने उसके सिर को अपनी गोद में रख लिया। वह प्यार से उसके बालों में अपनी उंगलियों को चलाते हुए उसे आवाज दे रहा था।

भानगढ़ का मुख्य द्वार पर्यटकों के लिए खोल दिया गया। मोंटी व शैली ने भी पर्यटकों के साथ किले में प्रवेश किया। राघव व मूर्छित सरगुन को वहां देखकर सभी आश्चर्य से एक दूसरे का मुंह ताकने लगे। मोंटी व शैली दौड़कर राघव के पास गए। सरगुन की मूर्छा टूटी। वह अब भी डरी हुई थी।

शैली - आर यू मेड ? व्हाई यू स्टे हिअर...?

राघव : यस आई एम..

राघव ने पर्यटकों की भीड़ को एकत्रित देखकर कहा- यहाँ आए सभी टूरिस्ट ए.एस.आई. (आर्कियोलॉजीकल सर्वे ऑफ इंडिया) की गाइडलाइंस का पालन करे। बेशक विज्ञान ने बहुत तरक्की की हैं और वह सिर्फ तथ्यों पर ही आधारित होता है, फिर भी विज्ञान पेरानॉर्मल एक्टिविटी पर शोध कर चुका हैं और सुपर नेचुरल पॉवर के अस्तित्व पर यकीन करता है। अतः हमारे बड़े-बुजुर्ग जब कभी किसी बात को न करने का कहते हैं, तब हमें उनसे तर्क-वितर्क नहीं करना चाहिए। उनकी बात को मान लेने में ही हमारी भलाई होंगी।

राघव भानगढ़ की रात के एडवेंचर को कभी नहीं भुला...।

---------------------------