हॉरर मैराथन - 27 Vaidehi Vaishnav द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हॉरर मैराथन - 27

भाग 27

मुझे तो बहुत अच्छी लगी कहानी। मीनू ने कहा।

मीनू की बात का समर्थन करते हुए अशोक ने कहा। हां मुझे भी बहुत मजा आया।

शुक्र मनाओ कि राघव और सरगुन वहां से बचकर निकल आए। वरना वहां का इतिहास रहा है कि जिसने भी भानगढ़ के किले में रात गुजारी है वो कभी जिंदा नहीं मिला है। वो तो उन दोनों की किस्मत अच्छी थी कि वे बच गए। साहिल ने कहा।

राघव तू भी कभी भानगढ़ के किले में जाए तो इस कहानी को याद रखना। हनुमान जी के मंदिर में पहुंच जाना और मंदिर से बाहर ही मत आना। अशोक ने हंसते हुए कहा।

वो क्यों आएगा, वो किसी से प्यार थोड़े ही करता है, जो अपने प्यार को बचाने के लिए मंदिर से बाहर आएगा। मानसी ने भी अशोक की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा।

अशोक और मानसी की बात सुनकर राघव ने कहा- पर दोस्तों जब मुझे पता है कि किले में रात को नहीं रूकना है तो फिर रूकुंगा ही क्यों ? राघव ने भी हंसते हुए कहा।

कितना मजा आ रहा है और एक और वो शीतल है जो जाकर सो गई है। मानसी ने कहा।

ठीक है यार। उसे भूतों की कहानी में मजा नहीं आ रहा, वो तो वैसे भी डर रही थी। सो गई उसकी मर्जी। हम इन्जॉय कर रहे हैं ना। अशोक ने कहा।

चलो ठीक है अब ये बताओ अगली कहानी कौन सुनाएगा। मानसी ने कहा।

ठीक है मैं सुनाता हूं एक कहानी। राघव ने अपना हाथ उठाते हुए कहा। इसके साथ ही उसने अपनी कहानी शुरू की।

भैरोंसिंह एक हट्टा-कट्टा नौजवान हैं, जिसकी रूचि कुश्ती में है। उसका एक ही सपना हैं कि वह ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीत कर अपने गांव व देश का नाम रोशन करें। भैरोंसिंह को कुश्ती के अभ्यास के लिए रोजाना शहर जाना पड़ता था। प्रशिक्षण केंद्र से लौटते समय सूर्यास्त हो जाता था। गाँव की सीमा रेलवे पुलिया के नीचे बनी सड़क से शुरू होतीं। पुलिया के नीचे शिवना नदी के तट पर एक शिव मंदिर था। मंदिर के सामने एक पुराना कबीट का पेड़ था जिस पर रंग-बिरंगे धागे बंधे हुए थे। वर्षों से प्रचलित एक किवदंती प्रसिद्ध थी कि कबीट के पेड़ पर भूत का वास हैं। जो देर रात को भटकता हैं और पुलिया से गुजरने वाले राहगीरों को मार देता हैं। भयभीत गांव वाले रात को इस तरफ भूले से भी नहीं आते।

एक्के-दुक्के लोग ही किसी अत्यंत आवश्यक कार्य से देर रात को इस मार्ग से जाते थे। गाँव में प्रवेश करने का एक मात्र यही मार्ग था जो गाँव को शहर की ओर ले जाता था। एक समय की बात हैं दुलाराम शहर से दूध बेचकर गाँव की ओर आ रहा था। रेल की पुलिया के ठीक पहले उसकी गाड़ी खराब हो गई। गाड़ी को हाथ से घसीटते हुए जब वह कबीट के पेड़ के पास से गुजरा तो किसी ने उसकी गाड़ी पकड़ ली। दुलाराम की तो घिग्गी बंध गई। डर के मारे उसके हाथ-पाँव फूल गए। वह गाड़ी छोड़कर सरपट वहां से राम-राम-राम-राम की रट लगाएं भाग गया।

दुलाराम के कदम सीधे उसके घर पर जाकर रूके। हांफता हुआ पसीने से तरबतर वह अपने कमरे में जाकर बिस्तर में दुबक गया। घरवाले चिंतित होकर उसके चारों और खड़े हो गए। दुलाराम की माँ कहने लगीं। दुला क्या बात हैं, ऐसा दौड़ा हुआ क्यों चला आया? तू इतना कांप क्यों रहा है ?

माँ के सवालों कि झड़ी का दुलाराम ने एक ही जवाब दिया- क... क... कबीट वाले भूत ने पकड़ लिया था।

दुलाराम की माँ- हे शंभु इस नाशमिटे कबीट के भूत ने अब इस समय भी आना शुरू कर दिया। अभी तो 8 ही बजे हैं।

दुलाराम : हाँ माँ अब मैं शहर दूध लेकर नहीं जाऊँगा। आज तो बाल-बाल बच गया।

गाँव में यह बात जंगल की आग की तरह फैल गई कि दुलाराम को कबीट के भूत ने 8 बजे ही पकड़ लिया था। अतः अब रात 8 बजे से पूर्व ही सब लोग गांव की सीमा में प्रवेश कर ले। भैरोंसिंह तो रोजाना 8 या 8ः30 बजे तक गाँव आता। उसके लिए इससे पहले आना सम्भव नहीं था। एक दिन वह अपनी धुन में चला जा रहा था। जब वह कबीट के पेड़ के पास से गुजरा तो उसे वहाँ दो चमकती हुई आँखे दिखीं। वह ठहर गया।

चमकती आँखे गायब हो गई। यह क्या बला थी, सोचता हुआ भैरोंसिंह जब वहां से जाने लगा तो कबीट के पेड़ के पीछे से मास्क वाला खौफनाक चेहरा झाँकता हुआ दिखा। भैरोंसिंह ने गाड़ी स्टार्ट की और स्पीड बढ़ा दी। वह खौफनाक चेहरा अब भीं भैरोसिंह की आँखों के आगे घूम रहा था। भैरोसिंह ने इस बात का जिक्र किसी से नहीं किया। क्योंकि अगर वह अपने घरवालों से यह कह देता तो उसके घर वाले प्रशिक्षण केंद्र जाने की अनुमति नहीं देते।

भैरोसिंह ने तो यह रहस्य अपने घरवालों से छुपा लिया, किन्तु गाँव वालों से न छुप सका। गाँव के दो लड़कों को भी मास्क वाला खौफनाक चेहरा दिखा था। जिसके कारण अब सभी गाँव वाले भयभीत हो गए। उन दोंनों लड़को से गाँव वाले जानकारी लेने लगे कि वह चेहरा आखिर दिखता कैसा हैं..? लड़के खौफनाक चेहरे के बारे में विस्तृत रूप से बताने लगे- वह चेहरा ऐसा था मानो उसकी चमड़ी नहीं कोई प्लास्टिक हों, आँखे ऐसी जैसे बिजली के बल्ब हो और बाहर निकलते भयानक बड़े-बड़े दाँत। चेहरे को याद करके लड़के थरथर कांपने लगे। वह आगे कुछ न कह सके।

गाँव वाले शिव जी से प्रार्थना करने लगे कि- शिव-शंभु भूतगण से हमारी रक्षा करना।

मास्क वाले खौफनाक चेहरे का आतंक फैल गया। गाँव वाले दहशत में रहते। अब तो खौफ का दूसरा नाम मास्क वाला खौफनाक चेहरा बन गया। सूर्यास्त के बाद ही गाँव वालों ने पुलिया वाले रास्ते से निकलना छोड़ दिया।

एक दिन रेलवे क्रोसिंग के कारण रेल बहुत देर तक पुलिया पर रुकी रही। रेल में सफर कर रहे किशन ने सोचा यूं भी जाना तो गाँव ही हैं फिर स्टेशन जाकर क्या करूंगा। उल्टा वहां से गाँव तक आने के लिए साधन ढूंढना पड़ेगा। कुछ देर और इंतजार करने पर भी जब रेल नहीं चली तो किशन रेल से उतर गया। और पुलिया उतर कर शिव मंदिर के पास खड़ा हो गया। 8 बज रहे थे पर पुलिया के यहां तो ऐसा सन्नाटा पसरा हुआ था मानो रात के 1 या 2 बज रहे हो। आस पास के खेतों से आती झींगुर की तेज आवाज बड़ी भयंकर लग रहीं थीं। जब कोई भी आता न दिखा तो किशन पैदल ही अपने घर की ओर चल दिया।

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