वो बिल्ली - 14 Vaidehi Vaishnav द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वो बिल्ली - 14

(भाग 14)

अब तक आपने पढ़ा कि शोभना उस भटकती हुई क्रोधित आत्मा की वेदना को महसूस करते हुए कुछ प्रश्न करती है, जिन्हें सुनकर डरावने चेहरे वाली उस आत्मा के हावभाव बदलने लगते हैं।

अब आगें...

शोभना ने निडर होकर अपनी बात जारी रखते हुए कहा - " दोस्त की परिभाषा तो यहीं होती है जो आपके साथ हर हाल में अपना रिश्ता निभाए। आप जैसे है वह आपको उसी रूप में स्वीकार करें, यदि आपमें कोई कमी हैं या आप किसी बुरी आदत के शिकार हैं तो वह आपकी उस आदत को छुड़वाए न कि आपको छोड़कर चला जाए। आपके प्रेम से आनंदित रहें और गुस्से को भी हँसकर पी जाएं यहीं सही मायने में एक दोस्त के गुण है। दोस्ती का रिश्ता दोनों तरफ़ से ईमानदारी से निभाया जाता है न तो सुदामा को कृष्ण मिल जाते हैं और कृष्ण भी सुदामा से मिलकर ख़ुद को भूल जाते हैं और प्रेम से अपने मित्र को गले लगा लेते हैं।"

उस क्रोधित महिला पर न जाने शोभना की बातों का ऐसा असर हुआ कि उनके मन में बरसों से पनप रहे नफ़रत के वृक्ष की जड़े हिल गई। उसने सावधानीपूर्वक किटी को नीचे उतार दिया। किटी दौड़कर शोभना से जाकर लिपट गई।

कमरे में उसी औरत की भर्राती हुई आवाज़ गूँजी - " चलें जाओ यहाँ से..इससे पहले की मेरा मन फ़िर से बदल जाए।"

शोभना ने किटी को रघुनाथ की गोद में देते हुए कहा - " मेरे पति व बेटी को यहाँ से सुरक्षित जाने दो। आज मैं यहाँ से तब तक नहीं जाऊंगी जब तक आपके साथ हुए धोखे को जान नहीं लेती।"

शोभना की यह बात सुनकर रघुनाथ चौंककर उसे घूरकर सवालिया निगाहों से देखता है, मानो इशारों ही इशारों में कह रहा हो कि, कहाँ इस प्रपंच में पड़कर जान मुसीबत में डाल रहीं हो..? भला हो ईश्वर का जो इस भयंकर औरत ने हमें बक्श दिया। अब चलों यहाँ से...!

यदि उस औरत का डर न सताता तो रघुनाथ यह सब बातें शोभना को फटकार लगाते हुए कहता ; लेक़िन नजाकत को समझते हुए उसने चुप रहने में ही सबकी भलाई समझी। रघुनाथ भी वहीं शोभना के साथ चलने के इंतजार में किटी को गोद में लिए हुए खड़ा रहा। न जाने शोभना को क्या हो गया था..? वह भी किसी अड़ियल जिद्दी बच्चे सी वहीं तस से मस खड़ी रहीं।

कमरे में शांति पसरी हुई थीं। रघुनाथ का कलेजा डर के मारे फटा जा रहा था। उसे यही चिंता सता रहीं थी कि कहीं वह आत्मा अपना मन न बदल दे और शोभना के कारण सभी मौत के घाट उतार दिए जाएंगे।

वह औरत अब रघुनाथ व शोभना की नजरों से ओझल हो चूंकि थीं।

कपकपाती हुई आवाज़ में रघुनाथ ने कहा - " श..श..शो..शोभना..ज़िद मत करो। वह यहाँ से जा चूंकि है।देखों कही दिखाई भी नहीं दे रही है, न ही कोई आवाज़ सुनाई दे रही है।

शोभना मौन ही रहीं..वह एकटक रॉकिंग चेयर को आशाभरी निगाहों से देख रही थीं।

रघुनाथ को शोभना पर इतना गुस्सा शायद ही कभी आया होगा जितना इस वक्त आ रहा था। उसे शोभना की चुप्पी खल रहीं थी। उसके जिद्दी स्वभाव पर वह भीतर ही भीतर आग बबूला हो रहा था,मगर उजागर नहीं कर पा रहा था। हालातो के आगें मजबूर था। वह नहीं जानता था कि वह डरावनी औरत सचमुच जा चूंकि है या अब भी अदृश्य होकर कमरे में मौजूद हैं।

रघुनाथ ने दोबारा अपनी बात जोर देकर दोहराई - " चलों, यहाँ से शोभना...!"

शोभना बुत बनीं खड़ी रहीं, जैसे उसने रघुनाथ की बात सुनी ही नहीं या सुनकर भी अनसुनी कर दी।

अब तो रघुनाथ का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसके सब्र का बांध टूट गया। उसकी आंख में अंगारे उतर आए। क्रोध की अग्नि में दहकता हुआ वह शोभना की ओर बढ़ा। उसने एक हाथ से किटी को सम्भाला हुआ था और जैसे ही शोभना के नजदीक जाकर दूसरा हाथ उसके कंधे पर रखा। शोभना ने मुड़कर रघुनाथ को देखा...

शोभना को देखकर रघुनाथ का चेहरा डर से पीला पड़ गया। उसके चेहरे की हवाईय्या उड़ गई।

शोभना का चेहरा सफ़ेद झक था। उसकी आँखों की पुतलियां भी सफ़ेद थी, या पुतलियां थी ही नहीं। यह तो बिना पुतलियो की आँखे थीं। होठों पर चौड़ी सी मुस्कान थी औऱ खून से सने हुए लाल सुर्ख दांतो के बीच से बाहर लपलपाती हुई जीभ होठों पर फिराकर शोभना ने तेज़ हुंकार भरी। टॉर्च की सारी रोशनी शोभना के चेहरे पर ठहरी हुई थी उस रौशनी में चमकता हुआ उसका चेहरा बहुत ही ख़ौफ़नाक लग रहा था।

वह घुर्राते हुए बोली - "आज भी पुरुष स्वार्थी ही निकला। कल भी पुरुष स्वार्थी ही था।"

इतना कहने के बाद शोभना जैसे ही रघुनाथ के ऊपर हमला करने दौड़ी,किटी डरकर ज़ोर से चिल्लाई - " मम्माssssssss...."

हमला करती हुई शोभना के पैर ठिठक गए। उसके अंदर की बुरी शक्ति मानो शरीर से फुर्ती से निकल गई।

शोभना सामान्य होकर ज़मीन पर गिर पड़ी।

रघुनाथ ने फौरन किटी को गोद से उतार दिया और शोभना की औऱ कदम बढ़ा दिए। शोभना बेहोश हो गई थी। रघुनाथ ने उसे सावधानीपूर्वक उठाया फ़िर किटी की ओर देखते हुए कहा - " बेटा,आप मेरे आगें-आगें चलों..!"

किटी तुरन्त रघुनाथ के आगें हो गई और चलने लगीं। रघुनाथ किटी औऱ शोभना को सुरक्षित उस कमरे से बाहर ले आए।

शेष अगलें भाग में...

क्या वाक़ई रघुनाथ शोभना को सुरक्षित ला पाया था..? जानने के लिए कहानी के साथ बनें रहें..!