वो बिल्ली - 11 Vaidehi Vaishnav द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वो बिल्ली - 11

(भाग 11)

अब तक आपने पढ़ा कि रघुनाथ नए घर की तलाश में घर से बाहर चले जाते हैं। शोभना बच्चो के पास आती है। किटी की ड्रॉइंग देखकर वह चोंक जाती है।

अब आगें..

किटी ने अपनी ड्रॉइंग शीट पर एक औरत बनाई हुई थीं जिसके पास बिल्ली बैठी हुई थीं। औरत के बाल बिखरें हुए थे। बिल्ली की आँखे बड़ी और चमकीली थीं।"

शोभना ने किटी से ड्रॉइंग शीट ले ली और कहा "बेटा आपने तो बहुत अच्छी ड्रॉइंग बनाई है। मैं इसे अपने रूम में लगाउंगी।

इतना कहकर शोभना ने किटी औऱ गोलू का हाथ पकड़ लिया और उन्हें अपने कमरे में ले गई।

कमरे में पहुंचकर सबसे पहले शोभना ने वह ड्रॉइंग अपने बेड के गद्दों के नीचे छुपा दी।

*****

रात के करीब तीन बज रहें थे। शोभना और रघुनाथ अपने कमरे में सो रहें थे। किटी और गोलू भी आज उन दोनों के बीच में सोए हुए थे। कमरें के बाहर कदमों की आहट से शोभना की नींद खुल गई। उसने उठकर अपने बगल में देखा तो वह जगह खाली पड़ी हुई थीं। रघुनाथ और गोलू गहरी नींद में सोएं हुए थे। किटी को अपनी जगह न पाकर शोभना डर गई। उसने तुरन्त रघुनाथ को जगाया। आँखे मलते हुए उबासी लेकर रघुनाथ ने पूछा - " क्या हुआ, शोभना ?"

शोभना ने रुआँसी आवाज़ में कहा - " किटी यहाँ नहीं है।"

इतना सुनकर रघुनाथ के होश उड़ गए। उनकी आंखों की बची-खुची भी नींद फुर्र हो गई।

शोभना और रघुनाथ फ़ौरन बिस्तर छोड़कर बाहर की ओर भागते हैं। सबसे पहले वह दोनों किटी को ढूंढते हुए उसके रूम में पहुंचते हैं। जब वहां किटी नहीं मिलती है तो वह किचन और छत तक भी किटी को ढूंढ आते हैं। अंत में वह आँगन में जाते हैं। बाहर बहुत अंधेरा था। किटी आँगन में भी नहीं थी। अब घर की एकमात्र जगह वह गलियारा ही बचीं थी। शोभना और रघुनाथ इतनी रात को वहाँ करोड़ो रूपये दिए जाने पर भी जाना मंजुर नहीं करते, लेक़िन यहाँ तो करोड़ो से भी ज़्यादा अनमोल उनकी बिटिया की बात थी सो दोनों ने डरते-सहमते हुए उस ओर अपने कदम बढ़ा दिए।

उस गहरे सन्नाटे में आँगन में जहाँ-तहाँ बिखरें पड़े हुए सूखे पत्तो की सरसराहट सुनाई दे रहीं थीं। शोभना औऱ रघुनाथ को गलियारे में एक परछाई सी दिखी। वह परछाई किटी की थीं। किटी सामने एकटक गलियारे में बनें स्टोर रूम की ओर देख रही थीं। उस कमरें के बाहर अजीब सी शांति पसरी हुई थी। इतने में स्टोर रूम का दरवाज़ा अपने आप खुला। लकड़ी के दरवाज़े के खुलने से उस सन्नाटे में चर्र की आवाज़ भी बड़ी ख़ौफ़नाक जान पड़ती थीं।

रात काफ़ी होने की वजह से कमरे के अंदर गहरा अंधेरा छाया हुआ था। किटी धीरे-धीरे उस कमरें की तरफ़ बढ़ने लगती है मानों कोई अनजान, अदृश्य शक्ति उसे अपनी ओर बुला रही थीं। शोभना औऱ रघुनाथ कुछ समझ पाते इसके पहले ही किटी कमरें में प्रवेश कर कई और कमरें का दरवाजा अपने आप बन्द हो गया।

उस सुनसान बरसों से बन्द पड़े हुए कमरें के अंदर से एक महिला के हँसने की आवाज़ गूँजने लगीं। उसकी हँसी बहुत देर तक सुनसान फिजा में गूंजती रहीं।

शोभना के अंदर की ममता यह देखकर तड़प उठी। वह बिना देरी किये दौड़कर उस कमरें के नज़दीक जाती है। वह रो-रोकर दरवाज़ा खटखटाने लगतीं है। अपनी बच्ची को लौटा देने की गुहार लगाती है। उस डरावनी सी औरत से ऐसे मिन्नतें करती हैं मानो वह भगवान हो और उसकी करुण पुकार सुनकर उसकी मनोकामना पूर्ण कर देंगे। रघुनाथ भी कमरे के दरवाज़े को खोलने की भरसक कोशिश करते हैं। जब दरवाजा नहीं खुलता है तो वह उसे तोड़ने का निश्चय करते हैं। रघुनाथ पीछे होते हैं फिर जय बजरंगबली का जयकारा लगाते हुए दरवाजे पर तेज़ प्रहार करते हैं। पहले प्रहार में वह नाकामयाब हो जाते हैं ; लेक़िन दूसरी बार प्रहार करने पर दरवाज़ा खुल जाता हैं।

शेष अगलें भाग में....

क्या होगा उस कमरें में..? क्या अब गुस्से में आकर वह आत्मा पूरे परिवार का खात्मा कर देंगी..? जानने के लिए कहानी के साथ बनें रहें।