कर्मफल Mayank Saxena Honey द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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कर्मफल

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देश के एक बड़े समारोह के आयोजन का उत्तरदायित्व इस बार पंजिम (पणजी) प्रशासन के पास था। देश के एक से एक बड़े-बड़े उद्योगपति उस समारोह का हिस्सा बनने वाले थे। गोवा राज्यीय मीडिया और प्रेस से लेकर राष्ट्रीय मीडिया और प्रेस को उसके कवरेज की अनुमति दी जा चुकी थी। हेनरी फर्नांडीज़ जो पंजिम के स्थानीय समाचार पत्र में एक पत्रकार के पद पर कार्यरत थे उन्हें और उनके परिवार को उस समारोह में आने के लिए निःशुल्क मानार्थ पास उपलब्ध करवाए गए थे। समारोह इसी महीने की दिनांक 25 को होना सुनिश्चित था। पूरे देश के व्यापारी वर्ग में इसके चर्चे थे कि वो दिन आ ही गया। हेनरी का स्वास्थ्य अचानक इतना ख़राब हो गया कि वो समारोह में जाने जैसी स्तिथि में न रहे। हेनरी की पत्नी रोज़ी ने भी न जाने का मन बना लिया किन्तु उनकी एक बेटी साराह ने अपनी एक दोस्त मेल्लिज़ा के साथ जाने का निर्णय लिया। साराह बहुत दिनों से इस समारोह को लेकर उत्साहित थी। साराह एक 28 वर्षीय युवती थी जिसकी सुंदर गौर-वर्णीय त्वचा, मद-वर्णीय सुन्दर नयन, गुलाब की तरह प्यारे ओष्ठ, और आकर्षक वक्ष-स्थल उसके यौवनत्व की पराकाष्ठा को स्वतः स्पष्ट करते थे।

 

समारोह स्थल के प्रवेश द्वार पर एक-एक करके प्रतिष्ठित व्यापारियों का आगमन शुरू हो गया था। प्रेस और मीडिया पत्रकार उनके साक्षात्कार का कोई मौका, कोई क्षण, छोड़ने की मनोदशा में नहीं थे, और होते भी कैसे, ऐसे क्षण विरलय ही प्राप्त होते हैं। इसी बीच एंड्रयू डी'कोस्टा नाम के एक नामचीन व्यापारी की कार के द्वार पर आने की सूचना मिली। प्रेस फोटोग्राफर्स और मीडिया कैमरामैन ने कवरेज के लिए उस ओर अपना पूरा फोकस कर दिया। अचानक से मची इस आपाधापी से साराह और मेल्लिज़ा दोनों स्तब्ध थे। उन्होंने सोचा आखिर ऐसा कौन सा व्यक्ति आ गया जिसके चक्कर में देश के सभी पत्रकार ने अपना कैमरा उसकी ओर घुमा दिया। अतः साराह और मेल्लिज़ा भी प्रवेश द्वार पर उस ओर देखने लगे कि अचानक उस विलासितापूर्ण कार से एक युवक नीचे उतरा। एंड्रयू नाम के इस शख्स की आयु 30 वर्षीय थी, त्वचा का हल्का साँवला रंग, हृष्ट-पुष्ट अंगों वाला, चेहरे पर हल्की दाढ़ी वाला ये शख्स देखने में अत्यंत आकर्षक सा था। किसी अभिनेता की तरह इसका आकर्षक व्यक्तित्व उसकी ओर एक क्षण देखने भर से जान पड़ रहा था। उन फोटोकैमेरा की फ़्लैश-लाइट की चकाचौंध में सभी का अभिवादन करते हुए उस एंड्रयू की अचानक से दृष्टि साराह की ओर पड़ी। पत्रकारों के प्रश्नो का जबाव देता एंड्रयू, तिरछी निगाहों से साराह की ओर देखने का प्रयास करता।

 

समारोह आरम्भ हुआ। पुरूस्कार वितरित हुए। एंड्रयू को देश का सबसे सफ़ल व्यापारी होने के लिए सम्मानित किया गया। उसके उपरान्त रात्रि भोजन आरम्भ हुआ कि एंड्रयू साराह से बात करने के बहाने ढूंढने लगा। साराह के मन में भी उसके प्रति कुछ तो आकर्षण था, लेकिन स्त्री होने का फायदा उठाकर वो अपने विचारों और भावनाओं की अभिव्यक्ति से बचने का प्रयास करके, स्वयं को भावशून्य सी दिखाती रही। खाना परोसते वक़्त एंड्रयू और साराह अचानक से एक ही डोंगे (जिसमें भोजन का भण्डारण और उसके गरम रखने की यांत्रिकी होती है) के पास आकर मिले। साराह ने एंड्रयू की तरफ निगाहें उठाकर देखना तक गंवारा नहीं समझा। शायद वो बातचीत के इस क्रम की शुरुआत एंड्रयू के अंत से चाहती थी कि एकाएक एंड्रयू ने हेलो करके बात शुरू की।

 

एंड्रयू: "आप कौन हैं, क्या नाम है आपका?"

साराह: "साराह"

एंड्रयू: "साराह, अगर बुरा न मानो, तो प्रथम तल पर मेरा कक्ष संख्या 201 है क्या वहाँ कुछ देर बात कर सकते हैं?"

साराह: "कमरे में!!!!"

एंड्रयू: "हाँ, क्योंकि अगर एक मिनट आप और मैं ऐसे ही बात करते रहे तो कल कि मुख्य खबर आप से शुरू होगी।"

साराह: "आपको डर लगता है?"

एंड्रयू: "मुझे आदत है पर क्या आप ये सब झेल पाएंगी।"

इसी बीच मेल्लिज़ा उन दोनों की तरफ प्लेट थामे आगे बढ़ते हुए आवाज़ लगाती है साराह....

मेल्लिज़ा: "हेलो"

एंड्रयू: "हेलो, आपकी तारीफ़।"

मेल्लिज़ा: "मेरा नाम मेल्लिज़ा है और मैं साराह की दोस्त हूँ।"

एंड्रयू: "आपसे मिलकर ख़ुशी हुई है। "

मेल्लिज़ा: "वैसे आपको इस सम्मान के लिए शुभकामनाये। "

एंड्रयू: "धन्यवाद, अच्छा मैं चलता हूँ।"

इतना कहकर भोजन करने के बाद एंड्रयू अपने कक्ष 201 में जाकर साराह के आगमन की प्रतीक्षा करने लगा। उसे पूरा भरोसा था कि साराह किसी आड़ (किसी माध्यम) से उससे मिलने ज़रूर आएगी। कि अचानक एकाएक द्वार पर ढबका (खटखटाहट) हुई। विचारमग्न एंड्रयू साराह आगमन का सोच ख़ुशी से द्वार खोलने पहुँचा कि द्वार पर मेजबान स्थल का एक कर्मचारी खड़ा दिखा।

 

एंड्रयू: "जी बताएं?"

कर्मचारी: "सर, ये आपके लिए किसी ने भिजवाया है"

और इतना कहकर एक कागज़ उस कर्मचारी ने एंड्रयू के सामने कर दिया।

एंड्रयू: "इसमें है क्या?"

कर्मचारी: "हमें इसे खोलने को मना किया गया था आप स्वयं से देख लें।"

एंड्रयू: "अच्छा आप रुकें।"

जैसी ही एंड्रयू ने वो कागज़ खोला, सबसे ऊपर एक नाम लिखा था, "साराह फर्नांडीज़"; एंड्रयू ने बिना आगे पढ़े जेब से अपना एक बिज़नेस कार्ड निकाल कर उसके पीछे कुछ लिखकर उस कर्मचारी से अनुरोध किया कि जिसने ये कागज़ आपको दिया उसे ये कार्ड दे दिया जाए।

कर्मचारी: "जी अच्छा।"

इतना कहकर वो कर्मचारी अभिवादन करके वापस लौट गया।

 

एंड्रयू ने वो कागज़ खोलकर पढ़ना शुरू किया।

"हेलो, मैं साराह फर्नांडीज़। आपसे न मिलने के लिए क्षमा मांगती हूँ क्योंकि कक्ष में मिलना मेरी अन्तरात्मा को गंवारा नहीं लगा और बाहर मिलकर आप पर मेरे लिए प्रश्न चिन्ह लगवाने की मेरी कोई नीयत या मंशा नहीं थी। हो सके तो माफ़ कर देना।

साराह फर्नांडीज़

2/3 अल्बर्ट स्ट्रीट,

पंजिम, गोवा"

 

उधर साराह और मेल्लिज़ा वहां से निकलने की तैयारी में थे कि उस कर्मचारी ने पीछे से ज़ोर से आवाज़ लगाई: बिटिया

साराह ने मुड़कर देखा तो कर्मचारी ने उसे रुकने का इशारा करके उसकी ओर दौड़ लगा कर उसे वो कार्ड थमा दिया। साराह उसे देख ही रही थी कि मेल्लिज़ा ने उसकी ओर एक प्रश्न दागा

मेल्लिज़ा: "क्या है ये"

साराह: "तेरे काम का नहीं"

इतना कहकर उसने वो कार्ड अपने हाथों वाले बैग में रखा और वो दोनों वहां से चल दिए।

 

साराह उस पूरे दिन शांत सी बैठी रही। दिन भर चहकने और बातूनी स्वभाव की उस युवती को पहली बार ऐसा देखा जा रहा था कि वो इतनी शांत कैसे हो गई। उधर एंड्रयू भी जाकर अपने दैनिक कामों में लग गया। कुछ दिन व्यतीत हो जाने के बाद साराह को अचानक याद आया कि उस दिन एंड्रयू ने उसके लिए कुछ भिजवाया था। बैग से निकालकर देखने पर पता चला कि उस पर एंड्रयू के व्यापारिक प्रतिष्ठान का ब्यौरा था कि अचानक से उसे पलटने पर कुछ लिखा हुआ था।

 

"0832-12345678" ये कोई कालिंग नंबर जान पढ़ रहा था। साराह ने उस नंबर पर प्रयास किया।

दूसरी ओर से: "हेलो"

साराह: "हेलो, क्या मेरी बात एंड्रयू से हो रही है।"

दूसरी ओर से: "नहीं मैं उनकी सचिव ईव बात कर रही हूँ, बताइये कैसे आपकी सहायता कर सकती हूँ।"

साराह: "क्या ये संभव है कि मेरी बात एंड्रयू से करवाई जा सके।"

ईव: "बिना पूर्व मीटिंग के असंभव है।"

साराह: "मेरी उनके साथ मीटिंग है।"

ईव: "पर, सर ने मुझे ऐसा कुछ नहीं बताया।"

साराह: "भूल गए होंगे आप अभी पूछ लें।"

ईव: "ठीक है आप लाइन पर रहे।"

ईव एंड्रयू के केबिन में जाकर पूछती है:

ईव: "सर आपकी कोई मीटिंग है अभी, किसी के साथ।"

एंड्रयू: "जी नहीं, होती है तो इसकी सूचना आपको ज़रूर होती हैं मैडम ईव।"

ईव: "जी वही, पता नहीं कौन पागल है कह रही है आपके साथ मीटिंग है।"

एंड्रयू: "अच्छा कोई नाम भी है उस पागल का?"

और इतना कहकर दोनों ठहाके मार कर हंसने लगे।

एंड्रयू: "बताइये, कोई नाम है उसका?"

ईव: साराह, हाँ शायद यही नाम बताया था।"

एंड्रयू स्तब्ध होकर: "साराह फर्नांडीज़??"

ईव: "अंतिम नाम की जानकारी नहीं है मुझे। कहें तो पूछ कर बताऊ?"

एंड्रयू: "आप जल्दी जाइये और फ़ोन कटने से पहले लाइन ट्रांसफर करिये।"

ईव: "जी सर"

 

इतना कह कर ईव अपने केबिन के फ़ोन के पास पहुँची और रिसीवर उठा कर बोली हेलो

साराह: "हेलो, क्या कहा एंड्रयू ने?"

ईव: "क्षमा चाहूँगी...."

साराह (बात काटते हुए): "मैं समझ सकती हूँ। बड़े लोग बात करने का कहकर अक्सर भूल जाते हैं, ठीक है फिर अगर वो बात करना नहीं चाहते.....

ईव: (बात काटते हुए): "मैम, मैंने कहा क्षमा चाहूँगी आपको इतनी देर प्रतीक्षा में रखा। सर आपसे बात करने के इच्छुक हैं मैं आपकी लाइन ट्रांसफर कर रही हूँ।"

साराह: "जी, अच्छा।"

 

इतना कहकर ईव साराह की लाइन को एंड्रयू के साथ ऐसे जोड़ देती है जैसे ईश्वर ने दो लोगों को एक साथ एक परिणय सूत्र में बाँध दिया हो।

 

एंड्रयू: "हेलो"

साराह: "हेलो"

एंड्रयू: "साराह..."

साराह: (बीच में रोकते हुए): "फर्नांडीज़। भूल गए?"

एंड्रयू: "तुम्हे कैसे भूल सकता हूँ।"

साराह: "चलो आप से तुम पर तो आ गए। अपनापन जताने का इससे अच्छा तरीका क्या हो सकता है।"

एंड्रयू: "कहो तो आप तक ही सीमित रह जाए।"

साराह: "मुझे दिखावटी लोग पसंद नहीं।"

एंड्रयू: "साराह, कहीं मिल सकते हैं, अगर तुम्हे या तुम्हारे परिवार को ऐतराज़ न हो तो।"

साराह: "मिल सकते हैं अगर आपके प्रेस-मीडिया वालों को आपके जीवन में दिलचस्पी थोड़ी कम हो जाए तो।"

एंड्रयू: "उसकी चिंता तुम मत करो। कल शाम 5 बजे, रेस्टोरेंट "वाइसराय" विलियम स्ट्रीट मिल सकते हैं?"

साराह: "ठीक है पर क्या मेल्लिज़ा साथ आ सकती है?"

एंड्रयू: "मेल्लिज़ा!!!"

साराह: "आप मना करें तो न लाए?"

एंड्रयू: "ठीक है कल शाम 5 बजे, मैं तुम और मेल्लिज़ा रेस्टोरेंट वाइसराय, याद रखना"

साराह: "याद रहेगा।"

कि केबिन द्वार पर एक खटका लगता है:

"मे आई कमिन सर!"

एंड्रयू: "यस, कमिन"

एंड्रयू: "साराह कल बात करते हैं कोई आये हैं।

साराह: "ठीक है"

 

एंड्रयू ईव को रेस्टोरेंट वाइसराय में एक टेबल अपने (ईव के) नाम से तीन लोगों के लिए बुक करने को कहते हुए उसके और अपने बीच से ये बात बाहर न जाने का अनुरोध करता है क्योंकि वो नहीं चाहता कि बात किसी भी तरह प्रेस तक पहुँचे। साथ ही ईव को साराह को टेबल नंबर सूचित करने का भी अनुरोध कर देता है। उधर साराह मेल्लिज़ा को चलने का अनुरोध करती है और मेल्लिज़ा उस पर अपनी सहमति भी जता देती है।

 

अगले दिन प्रेस मीडिया से बचने के लिए एंड्रयू अलग सा भेष बनाकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट से रेस्टोरेंट पर पहुँच कर बुक की गई मेज की कुर्सी पर जाकर बैठ गया। उधर समय से साराह और मेल्लिज़ा भी वहां पहुँच जाते हैं। सूचित की गई बुक मेज पर किसी अलग व्यक्ति को बैठा देख वो वहां जाकर रुक कर एक-दूसरे की ओर प्रश्नपूर्ण निगाहों से देखने में लग जाते हैं कि एंड्रयू आवाज़ देता है:

एंड्रयू: "मेल्लिज़ा"

मेल्लिज़ा: "आप कौन?"

एंड्रयू: "पहले दोनों बैठिये।"

दोनों जाकर बैठ जाते हैं।

एंड्रयू: "मैं एंड्रयू"

साराह: "एंड्रयू आप!!!"

एंड्रयू: "धोखा खा गए न? ये सब साराह तुम्हारे उस प्रेस मीडिया वालों की मेरे जीवन से दिलचस्पी हटाने का तरीका।"

साराह: "बस-बस। ज़्यादा कटाक्ष न मारो। "

वेटर को बुलाकर कुछ आर्डर देकर बातचीत का क्रम शुरू हो जाता है।

मेल्लिज़ा: "भरोसा ही नहीं होता। इतना बड़ा व्यापारी हमारे साथ।"

एंड्रयू: "व्यापारी इंसान नहीं होते क्या?"

मेल्लिज़ा: "मतलब वो नहीं था। मेरा मतलब...."

साराह: (बात काटते हुए): "अरे मेल्लिज़ा वही हैं ये, भरोसा कर ही लो।"

एंड्रयू: "वैसे तुम दोनों क्या करते हो?"

मेल्लिज़ा: "मैं एक छोटी-मोटी फैशन डिज़ाइनर हूँ और काम की तलाश में हूँ और साराह एक कलाकार है लेकिन बेकार है।"

साराह: "चुप कर बेवक़ूफ़। कहीं भी कुछ भी शुरू कर देती है।"

एंड्रयू: "साराह माफ़ करना लेकिन तुम्हारी ये दोस्त मुझे काफी अच्छी लगी। काफी दिलचस्प इंसान है।"

 

एंड्रयू ने ऐसा सब मेल्लिज़ा से आगे और जानने के लिए कहा था लेकिन ये बात की जलन की ज्वाला लपटों में साराह की पूरी आत्मा झुलसती स्पष्ट देखी जा सकती थी। पुरुष-प्रवृत्ति कुछ ऐसी ही होती है। प्रेमिका की महिला मित्रों से कुछ ज़्यादा ही स्नेह और पुरुष मित्रों से कुछ अलग ही घृणा। और ये प्रवृत्ति भी महज़ इसलिए कि प्रेमिका जलन भरी आग में झुलसती सामने से पुरुष को इज़हार-ऐ-हाल कर दे।

 

एंड्रयू: "हाँ मेल्लिज़ा आगे बताइये। कैसी कलाकार हैं ये और किस-किस कला में पारंगत हैं आपकी ये बेकार दोस्त?"

मेल्लिज़ा: "साराह एक चित्रकार है। कभी आपको इनकी पेंटिंग्स दिखाएंगे आइयेगा। कुछ तो मेरे मोबाइल की गैलरी में भी उपलब्ध हैं, देखना चाहेंगे?"

साराह: "बस बहुत हो गया। क्या बातें कर रहे हो आप दोनों।"

एंड्रयू: "मेल्लिज़ा दिखाइए वो पेंटिंग्स।"

मेल्लिज़ा एक एक करके साराह की अधिकाँश पेंटिंग्स एंड्रयू को दिखा देती है। पेंटिंग्स उतनी अच्छी तो नहीं थी पर प्रेम के चश्में से एंड्रयू उसमें कमियाँ निकालने में भी अक्षम ही था। अतः उसने उन पेंटिंग्स की प्रशंसा कर दी।

एंड्रयू: "मेल्लिज़ा मेरी एक पहचान की कंपनी है जिन्हें एक फैशन डिज़ाइनर चाहिए। उनका कोई प्रोजेक्ट है। अगर बुरा न मानो तो उन्हें तुम्हारी जानकारी साँझा कर दें। 15-20 करोड़ का एक छोटा सा प्रोजेक्ट है उनका फैशन डिजाइनिंग की तरफ। कहो तो कर दें जानकारी साँझा?"

मेल्लिज़ा: "पन्द्रह-बीस करोड़!!!!! हाँ हाँ क्यों नहीं"

एंड्रयू: "और आपकी दोस्त आज्ञा दें तो एक प्रोजेक्ट उनके लिए भी मेरे पास है मेरी अपनी कंपनी में।"

साराह: "जी नहीं। हमें पता है हमारा क्या स्तर है।"

एंड्रयू: "उसकी तुम चिंता न करो। अगर हाँ करो तो प्रदर्शनी करवा दें तुम प्रसिद्द हो जाओगी।"

इतनी देर में मेल्लिज़ा जाने का बोलकर खड़ी हो जाती है।

एंड्रयू: "मेल्लिज़ा मेरा कार्ड रखो। इस पर मेरे कार्यालय का ईमेल आईडी है उस पर अपनी जानकारी और साराह की पेंटिंग्स संलग्न कर देना।"

इतना कह कर एंड्रयू भी बिल चुक्ता करके वहां से निकल जाता है।

 

उस भेंटवार्ता के बाद से मेल्लिज़ा इतनी उत्साहित थी कि रास्ते से ही उसने एंड्रयू को अपनी जानकारी और साराह की पेंटिंग्स मेल कर दी। उस पूरी रात एंड्रयू साराह के लिए विचारमग्न रहा। सुबह होते ही एंड्रयू ने मेल्लिज़ा की जानकारी अपने एक उद्योगपति मित्र के साथ साँझा कर दी और उनको फैशन डिज़ाइनर के लिए व्यक्तिगत तौर पर भी मेल्लिज़ा का चुनाव करने का अनुरोध कर दिया। किन्तु समस्या थी साराह के लिए प्रदर्शनी आयोजन करने की। एंड्रयू अपने जितने भी मित्रों से इस बारे में बात करता उसे निराशा ही हाथ लग रही थी। कोई भी अपना धन निवेश करने को तैयार नहीं था। सच कहा जाए तो साराह की पेंटिंग्स उतनी भी अच्छी नहीं थी। फिर भी एंड्रयू एक सफल व्यापारी, कभी न हार मानने वाला इंसान था। अतः उसने दृण निश्चय किया कि साराह को प्रसिद्धि दिलाने के लिए वो अपना धन निवेश करेगा। उसने तत्काल अपने वित्त अधिकारियों के साथ एक अधिवेशन करने का निश्चय किया। उस सम्मिलन से एंड्रयू को उस प्रदर्शनी के आयोजन में लगने वाले खर्च का अनुमान लगा। एंड्रयू ने बिना पल गंवाए वो पैसा निवेश करने का निश्चय कर लिया। साराह की प्रदर्शनी के लिए एंड्रयू ने मडगाँव का चुनाव किया। प्रदर्शनी के लिए बड़े बड़े चित्रकारों और सम्पादकों को एंड्रयू के अंत से बुलावा भेजा गया। प्रेस और मीडिया को भी बुलावा भेजा गया। एंड्रयू के प्रयासों से साराह की प्रदर्शनी अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर तो आ गई, लेकिन प्रदर्शनी उतनी सफल न हो सकी। सफलता जैसे मील का पत्थर जान पड़ रही थी। एक तो साराह की पेंटिंग्स कुछ ज़्यादा ख़ास न थी, उस पर एंड्रयू को इस क्षेत्र में कोई विशेष जानकारी भी नहीं थी, फलतः विशेष सफलता हाथ लग भी कैसे सकती थी। पर साराह को पंजिम (पणजी) में हर एक व्यक्ति जान गया था। आखिर ये प्रयास एंड्रयू के थे। मेल्लिज़ा का चुनाव भी नए प्रोजेक्ट में कर लिया गया था तो वो भी इन दिनों व्यस्त हो चली थी। साराह और मेल्लिज़ा की इस प्रसन्नता का कारण एंड्रयू था। एंड्रयू के विशेष आग्रह पर साराह ने ललित कला में परास्नातक के लिए स्वयं का नामांकन गोवा के एक नामचीन विश्वविद्यालय में करवा लिया था जिसका खर्च भी एंड्रयू के उद्योग की आय से चुकाया जाता था। समय निकलता गया। दोनों की मित्रता और गहरी होने लगी कि साराह को प्रसिद्द करने की इच्छा से एंड्रयू ने देश स्तर पर प्रदर्शनी का विचार बनाया लेकिन इसके खर्च में एंड्रयू को अपने उद्योग के 15-20 प्रतिशत के शेयर बेचने पड़ रहे थे। प्रेम के अंधत्व में एंड्रयू ने इस पर भी सहमति जाता दी। इस बार प्रदर्शनी काफी ज़्यादा सफल रही और देश के कोने-कोने में साराह की कला के चर्चे होने लगे। अचानक से मिली इस प्रसिद्धि से साराह के नए नए मित्र बनने लगे। अचानक से प्राप्त प्रसिद्धि की इस चकाचौंध में पागल साराह धीरे-धीरे एंड्रयू के प्रयासों को जैसे भूलने लग गई। कहते हैं कि अभावों में रहने वाले लोगों को सफलता का भाव भी जल्दी रास नहीं आता। एंड्रयू इस बात से अनभिज्ञ अपने कामों में लगा रहता, वहीँ दूसरी ओर साराह को बड़े बड़े प्रोजेक्ट मिलने लगे। समाचार पत्रों में उसके बड़े बड़े साक्षात्कार और लेख। साराह जैसे अब ज़मीन पर न थी। वो न अब मेल्लिज़ा से ज़्यादा बात करती थी और न ही उसके पास एंड्रयू के लिए समय था। एंड्रयू जब भी साराह से बात करने का प्रयास करता वो टालमटोली करके फ़ोन कॉल काटने लगी। साराह की भेंट उसके क्षेत्र के ही एक प्रसिद्द चित्रकार सैम्युएल से हुई। सैम्युएल से साराह इतनी अधिक प्रभावित थी कि वो एंड्रयू के एहसानों को भूलकर सैम्युएल की ओर आकर्षित होने लगी थी। साराह के पिता हेनरी एंड्रयू के प्रयासों से अवगत थे। अपनी बेटी में आ रहे इस तरह के परिवर्तन से वो स्तब्ध भी थे किन्तु साराह अब बच्ची तो नहीं थी। हेनरी के साराह को समझाने के समस्त प्रयास विफल हो रहे थे। सैम्युएल स्वभाव से बेहद स्वार्थी प्रवृत्ति का इंसान था। सैम्युएल के आकर्षण में फँसी साराह को सैम्युएल जैसे चाहता अपनी उँगलियों पर नचाने लगा। सैम्युएल को एंड्रयू और साराह के बारे में सब पता था। साराह ने सब कुछ सैम्युएल के साथ स्वयं से सांझा कर दिया था। अतः सैम्युएल के कहने पर साराह ने एंड्रयू से एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रदर्शनी का अनुरोध किया। एंड्रयू साराह के प्रेम में इस तरह डूबा हुआ था कि उसने अविलम्ब अपने उद्योग के 70% शेयर और बाजार में बेच दिए। प्रदर्शनी बहुत ही बड़े स्तर की थी। साराह को इससे विशेष लाभ मिला। लेकिन एंड्रयू की कंपनी अब जैसे डूबने की कगार पर आ चुकी थी। मेल्लिज़ा को जब इस सबका पता चला उसने साराह को समझाने का एक असफल प्रयास किया लेकिन सैम्युएल के मायाजाल में फँसी उस पागल को अच्छे बुरे की समझ तक न रही। अब तो जैसे साराह एंड्रयू से एक भिखारी या किसी सड़क के कुत्ते जैसा व्यवहार करने लगी। एंड्रयू को समझ आने लगा था कि अब ये साराह वो साराह नहीं रही, उसमें प्रसिद्धि और धन का घमण्ड आ गया है। आखिर सफलता और पैसों का घमण्ड अच्छे अच्छों को ज़मीन पर टिकने नहीं देता। साराह के साथ घर बसाने का स्वप्न देखने वाले एंड्रयू को अब वो सब दिवास्वप्न जैसा नज़र आने लगा था। आखिर साराह की अन्तरात्मा ने उसको एक बार भी अपने ज़मीर को बेचने के लिए नहीं धिक्कारा। मुझे साराह से बात करनी चाहिए इस निश्चय के साथ एंड्रयू ने साराह को कॉल लगाया:

 

एंड्रयू: "हेलो"

साराह: "हेलो, कौन?"

एंड्रयू: "मैं एंड्रयू बात कर रहा हूँ।"

साराह: "तुमको कितनी बार समझाया है इतनी रात में मुझे ऐसे कॉल मत किया करो।"

एंड्रयू: "साराह मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और तुम भी तो.."

साराह: (बात काटते हुए): "तुम भी तो का क्या मतलब? मैं और तुमसे प्यार करुँगी। है क्या तुम्हारे पास मुझे देने को? रही बात तुम्हारे प्यार की तो जाने कितने लोग मुझसे प्यार करते हैं इस पूरे विश्व में। आगे से मुझे सीधा कॉल मत करना कुछ ज़रूरी हो तो मेरे सचिव से बात कर लेना..

सैम्युएल: "पीछे से ज़ोर से आवाज़ लगते हुए": "कौन है साराह, इतनी रात तो कम से कम मेरे पास..

एंड्रयू गुस्से से तत्काल फ़ोन कॉल काट देता है। अब एंड्रयू की आँखें इस कदर खुल गई थी जैसे अंधेरे से अचानक उजाले की और आया हो। जो दिया उसका एहसान मानना तो दूर साराह कहती है आगे देने के लिए क्या है और ये आवाज़ तो सैम्युएल की थी। इसका मतलब। छी स्वार्थी गन्दी औरत। लेकिन एंड्रयू को अब अपने या साराह के ऊपर आने वाले गुस्से से ज़्यादा चिंता अपने व्यापार की थी। अपने उद्योगपति मित्रों से कुछ कर्ज़ा लेकर एंड्रयू ने पुनः अपने व्यापार में मन लगाना शुरू कर दिया।

 

 

उधर एंड्रयू की अच्छाईयां याद दिलाने के लिए मेल्लिज़ा ने साराह को कॉल किया तो साराह ने उससे भी अपने घमंड के चलते बदतमीज़ी कर दी। हेनरी और रोज़ी भी साराह के इस व्यवहार से अत्यधिक क्षुब्ध हुए और उन्होंने भी साराह को उसके हाल पर छोड़ने का निर्णय कर लिया। धीरे-धीरे एंड्रयू एक एक करके कंपनी के शेयर वापस खरीदने लगा। एंड्रयू का व्यापार अब एक ऐसी स्तिथि में आने लगा था जहाँ से एंड्रयू उसे पूर्व की भाँति ऊँचाइयों पर ले जा सकता था अतः उसने अपने सभी उद्योगपति मित्रों से प्राप्त कर्ज़े को प्राथमिकता से चुका दिया। वहीं दूसरी ओर साराह के अन्धविश्वास में सैम्युएल ने साराह के धोखे से कागज़ पर हस्ताक्षर लेकर साराह की पूरी संपत्ति हड़प ली। साराह पूर्व से भी ज़्यादा बदतर स्तिथि में आ चुकी थी। वो सैम्युएल के आगे रोई, गिड़गिड़ाई लेकिन सैम्युएल को उससे कभी प्यार था ही नहीं। वो साराह की ज़िन्दगी में आया ही इसलिए था ताकि साराह को एंड्रयू के खजाने की चाबी की तरह प्रयोग में ला सके और आज उसको वो इच्छा पूरी भी हो गई थी। साराह को अब किसी तरफ आश्रय मिलता दिखाई नहीं दे रहा था। उसके कर्म उसका पीछा कर रहे थे। वो मेल्लिज़ा से बात करने का प्रयास करती तो केवल कटाक्ष सुनने को मिलते। हेनरी का देहान्त हो चुका था। साराह ने रोज़ी से मिलने की तमाम चेष्टा की किन्तु रोज़ी कहाँ रहती है उसे पता न चल सका। रोज़ी का साराह पर गुस्सा भी जायज़ था आखिर कोई बेटी अपने घमंड के इतने चरम पर थी कि पिता की मृत्यु तक पर उसके पास अपने पिता के अंतिम दर्शन करने तक का समय नहीं था। आखिर ऐसी उपलब्धि भी किस काम की जो अपनों से विमुख कर दे। साराह को अब एक एक करके सभी पुराने किस्से याद आने लगे थे कैसे एंड्रयू ने एक गरीब का हाथ थामकर अपनी मेहनत का एक एक पैसा उसकी प्रगति में लगाकर उसे कितना शसक्त बनाया था लेकिन कुसंगति में पढ़कर विवेक का नाश हो गया और अपने और परायों में अंतर करने जितनी भी सूझ बाकी न रही। साराह को लगा कि उसे एंड्रयू से एक बार मिलकर माफ़ी ज़रूर मांगनी चाहिए आखिर उसने जितना साराह के लिए किया था कोई अपनों के लिए भी इतना कहाँ कर पाता है। एक पीसीओ से साराह ने एंड्रयू को कॉल लगाया:

साराह: "हेलो"

दूसरी ओर से: "हेलो कौन?"

साराह: "मैं साराह बात कर रही हूँ, आप कौन और क्या मेरी बात एंड्रयू से करवा सकते हैं?"

दूसरी ओर से: "मैं ईव बात कर रही हूँ साराह। सर से बात नहीं हो पाएगी।"

साराह: "क्यों? क्या उन्होंने मुझसे बात करने को मना किया है?"

ईव: "नहीं। आज सर की माँ का जन्मदिन है तो आज वो कार्यालय नहीं आएंगे अपने मडगाँव वाले बंगले पर ही रहेंगे।"

साराह: "मडगाँव वाला बंगला?"

ईव: "आपको जानकारी नहीं?"

साराह: "जानकारी तो थी लेकिन काफी समय से वहां न जा सकने के चलते मैं उसका सही पता भूल गई।"

वास्तव में साराह को उस बंगले का कभी पता ही नहीं था ये तो बस ईव से जानकारी निकलवाने के लिए साराह का एक प्रयास मात्र था।

ईव: "चैपल स्ट्रीट, मडगाँव या मरगाँव, गोवा।"

साराह: "धन्यवाद ईव"

इतना कह कर साराह फ़ोन काट देती है। जो थोड़े बहुत पैसे साराह के पास थे उससे वो एक छोटा सा गिफ्ट लेकर मडगाँव के उस बंगले की तरफ रवाना हुई। बंगले के पास पहुँची तो बंगले की रौनक देखकर साज सज्जा देखकर स्तब्ध रह गई और होती भी क्यों न आखिर एंड्रयू की माँ का आज जन्मदिन था। उसने द्वार प्रहरी के माध्यम से एंड्रयू को बुलावा भेजा। एंड्रयू किसी अतिथि विशेष के आगमन की सोचकर जैसे ही बाहर आया कि उसकी निगाह साराह पर पड़ी।

एंड्रयू: "साराह, तुम यहाँ!!"

साराह: "क्यों, नहीं आ सकती?"

एंड्रयू: "लेकिन यहाँ का पता तुम्हे दिया किसने?"

साराह: "ईव ने"

एंड्रयू: "ईव.. अच्छा"

साराह: "सुना आज आपकी माँ का जन्मदिन है।"

एंड्रयू: "सही सुना है।"

साराह: "एंड्रयू मुझे अपने किये पर पछतावा है। प्रसिद्धि के घमंड ने विवेक को आवरण में ढक लिया और कुसंगियों ने दिमाग में इतना विष भर दिया था कि.."

एंड्रयू: (बीच में बात काटते हुए): "साराह, तुम्हारे जैसे लोग ये एहसास करवाते हैं कि क्यों आखिर किसी पर भरोसा नहीं करना चाहिए। प्यार था न हमारा? और तुमने एक बार भी नहीं सोचा कि तुम्हे अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए किसी ने अपने पैरों के नीचे की ज़मीन तक को हिला कर रख दिया था। पहले 20 प्रतिशत और फिर 70 प्रतिशत और बेच दिया अपने व्यापार को किसके लिए? तुम्हारी जैसी लड़की के लिए। तुम्हे पता क्या है प्यार के बारे में। कल मेरे साथ फिर उस सैम्युएल के साथ। तुमने तो मेल्लिज़ा तक को नहीं छोड़ा और तो और अपने पिता के अंतिम दर्शन तक के लिए आना तुम्हें गँवारा न रहा। चलो मैं तुमसे बात करके अपनी मनोदशा ख़राब करने की स्तिथि में नहीं आना चाहता। आज मेरी माँ का जन्मदिन है तुम भी अवश्य खाना खा कर जाना।"

साराह एंड्रयू के साथ उसके बंगले की तरफ चल दी। बंगले में प्रवेश लेते समय उसकी पहली भेंट मेल्लिज़ा से हुई। साराह ने अपने किये पर पछतावा ज़ाहिर करते हुए मेल्लिज़ा से हाथ जोड़ कर माफ़ी माँगी।

साराह: "मैं अपने किये पर शर्मिंदा हूँ, मेल्लिज़ा तुम तो मेरी बहिन जैसी हो। हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।"

मेल्लिज़ा: "साराह मुझे तुम पर गुस्से से ज़्यादा तरस आता है। जिस दो कौड़ी के सैम्युएल का नशा तुम पर हावी था वो तो धोखा दे गया और जिसकी वजह से तुम प्रसिद्धि की सीढ़ियां चढ़ सकी उस सहारे को तुमने धोखे की कुल्हाड़ी से तोड़ डाला। खैर, तुम्हें बहुत देर से समझ आई।"

साराह की आँखों से आँसू बिना रुके बह रहे थे। कि अचानक से माइक पर घोषणा हुई:

"दोस्तों, आज मेरी माँ का जन्मदिन है। आप सबने मेरे न्यौते को स्वीकार करके मुझ पर जो एहसान किया है इसके लिए मैं सदैव आपका ऋणी रहूँगा। जल्द ही मेरी माँ यहाँ आ रही हैं। तो मेरे साथ स्वागत करिये उनका"

इसी बीच एंड्रयू की माँ आती हैं। मेल्लिज़ा ज़ोर ज़ोर से हैप्पी बर्थडे चिल्लाने लगती है कि अचानक साराह की निगाह व्हील चेयर पर बैठी उस बुज़ुर्ग की और जाती है। आंसुओं के बीच धुंधली निगाहों से हक्का-बक्का होकर साराह आँसू साफ़ करने लगती है। ये और कोई नहीं दिवंगत हेनरी फर्नांडीज़ की धर्मपत्नी और साराह की माँ ‘रोज़ी’ थी। जिसका कहीं अता पता नहीं चल रहा था वो रोज़ी आज साराह के सामने थी। लेकिन एंड्रयू की माँ? आखिर कैसे ये संभव हो सकता था।

 

आँसू पोंछते हुए साराह ने अपनी माँ रोज़ी को गले से लगाने का प्रयास किया लेकिन रोज़ी ने साराह को झिटक कर खुद से दूर कर दिया।

साराह एंड्रयू के पास जाकर उससे कुछ पल बात करने का अनुरोध करती है।

साराह: "एंड्रयू! ये आपकी माँ कैसे?"

एंड्रयू: "साराह, जिस दिन तुमने मुझे कॉल पर ज़लील किया था, मुझे मेरे सत्कर्मों पर अपमान का पुरूस्कार दिया था मैंने निर्णय लिया था कि तुम्हें ये एहसास करवाऊंगा कि तुमने अपने घमंड में क्या क्या नुक्सान किया है। अपने मित्रों से पैसा लेकर अपने उसी उद्योग को पुनर्स्थापित किया जिससे लगभग पूरा पैसा निकालकर मैंने तुम्हें सफलता के पायदान तक पहुँचाया था। प्यार माँगता नहीं, वरन देता है। अतः इसी कहावत का अनुसरण करते हुए तुम्हें सब कुछ दिया। मैं चाहता तो तुम्हें बहुत पहले ही बर्बाद कर सकता था लेकिन नहीं। मैंने सब कुछ समय पर छोड़ दिया। और समय का ज़ोरदार थप्पड़ तुम्हें तुम्हारे नाम के प्रेमी सैम्युएल ने लगाया। जिसका प्रेम तुम नहीं तुम्हारी धन दौलत थी। एक रोज़ मेल्लिज़ा का फ़ोन आया कि साराह की माँ ICU में जीवन और मृत्यु के बीच जूझ रही हैं। मिस्टर हेनरी के जाने के दुःख और उनकी बेटी के विमुख होने के सदमे ने उनको ICU तक पहुँचा दिया है पैसों के अभाव में चिकित्सक ईलाज अधूरा छोड़ कर रोज़ी को मृत्यु के मुख में पूरी तरह झोंक देंगे। मैंने वहीं किया जो मानवता को करना चाहिए था। मैंने मेरी माँ को बचाने के लिए जो मेरे सामर्थ्य में था सब किया। आज मेरी माँ सकुशल मेरे साथ हैं। साराह, एक भारतीय नारी, फिर चाहें वह किसी भी धर्म या सम्प्रदाय से क्यों न हो, अपने साथ हुए अपमान को बर्दाश्त कर सकती है लेकिन अपने पति के सम्मान के लिए वो काल से भी लड़ सकती है। वो बच्ची जिसको पाल पोष कर इतना बड़ा किया, जिस में एक पिता की जान बसती थी, आज उसी पिता की मृत्यु पर अंतिम दर्शन करने आना तो दूर, कॉल पर शोक तक प्रकट नहीं किया था तुमने। वो माँ जिसका साराह और हेनरी के अलावा कोई और नहीं था दुनिया में, हेनरी के जाने के बाद कैसी हैं, किस हाल में हैं, क्या कभी तुमने जानने का प्रयास किया? चली जाओ मुझे तुमसे दोस्ती का रिश्ता क्या, दुश्मनी का रिश्ता भी नहीं रखना। जो अपनों की न हो सकी वो आखिर मेरी कैसे हो सकती थी।"

साराह: (फूँट-फूँट कर रोते हुए): "मैं आप सबकी गुनहगार हूँ। यदि संभव हो तो मुझे क्षमा कर देना।"

इसी बीच एंड्रयू आकर अपनी माँ को अपने गले से लगाकर उन्हें जन्मदिन की बधाईया देता है। माँ भी अपने बेटे एंड्रयू को हमेशा सफ़ल उद्योगपति रहने का आशीर्वाद बारम्बार देती हैं। आँखों में पश्चाताप के आँसुओं की गंगा-जमुना लिए साराह एंड्रयू के मडगाँव वाले बँगले से चुपचाप निकल जाती है...।

 

लेखक

मयंक सक्सैना 'हनी'

आगरा, उत्तर प्रदेश

(दिनांक 15/नवम्बर/2023 को लिखी गई एक कहानी)