हम भारतीयों की नाक हर क्षण कट कर पुनरुदभव हो जाती है ठीक वैसे ही जैसे किसी छिपकली की पूंछ। आखिर कटे भी क्यों न, विश्व में हमारा मान ही इतना है। लेकिन गर्द तो हमें अपने समाज का है। समाज में नाक नहीं कटनी चाहिए चाहें बाकि शरीर का एक एक अंग कट जाए। शूर्पणखा की नाक भी एक बार कटी थी पर हमारी नाक हर क्षण कट रही है जैसे नाक न होकर कोई तरकारी हो। नाक पर मक्खी न बैठने देने वालों का तो ये विशेष रोना है कि बस नाक बचा लेना प्रभु। इतनी लम्बी तो कभी महानुभाव की नाक आज तक नहीं हुई जितना कट चुकी है। अजी नाक नाक की बात है। आपकी मेरी नाक में भी ज़मीन आसमान का फ़र्क़ है क्योंकि मुझे झूठे समाज से सम्मान अपेक्षित ही नहीं रहा। इसलिए नहीं कि मैंने कभी सम्मान पाने वाला काम नहीं किया; निःसंदेह किया है, किन्तु ऐसे लोगों से क्या सम्मान की अपेक्षा करना जो स्वयं में अपमानित हैं। तब ही तो विषय नाक का है। किसी की बेटी ने भागकर शादी कर ली, तो नाक किसी और की कट गई। किसी के बेटे की नौकरी में व्यवधान आया, नाक किसी और की कट गई। काम गलत मैंने किया और नाक मेरे पडोसी की कट गई। अच्छे ढकोसले हैं। बात बात पर नाक कटवाने वाले समय से अपने बाल तक तो कटवाते नहीं हैं। नाखून से निशाचरी लक्ष्मण की उपस्तिथि मात्र से नाक कटने का आरोपण कर रहे हैं। दोष किसका? हमारी ऊर्जा एक नाक के अधीन हो चली है। हमारा वक़्त एक दूसरे की नाक काटने और कटवाने में जाता है क्योंकि हमारे पास समय अथाह है लेकिन कामों की कमी है। संभवतः लोगों को ब्रह्मा का वरदान है कि नाक कितनी बार भी कट जाए, नाक कटेगी नहीं ठीक वैसे ही जैसे गंगा स्नान में पाप धोने वालों को अनुज्ञा पत्र मिल गया हो पुनः पाप करने का। अपने बच्चों के कुकर्मों पर पर्दा डाल कर अपनी नाक का माल्यार्पण करने वाले भारतीय दूसरे के बच्चों द्वारा कोई कुकर्म किए जाने का नज़रे लगाए ऐसे प्रतीक्षा करते हैं जैसे नाक काट कर कौन सी भारत रत्न प्राप्ति जैसी आत्मीय संतुष्टि प्राप्त कर लेंगे। लेकिन दोष नाक का नहीं, दोष तो दृष्टि का है, दोष तो विचारधारा का है। अजी नाक कटती है तो कट जाने दो, क्योंकि नाक तो तब भी कट रही है जब आप नाक केंद्रित होकर कुछ भी गलत नहीं कर रहे। ये दुनिया है यहाँ लोग अपनी नाक ऊँची करते ही हैं दूसरों की नाक काट काट कर के। निन्दारस भी सोमरस से ज़्यादा प्रबल और सदा से माँग में रहा है और शायद यही एक मात्र तरीका है जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपनी नाक कटने से बचा रहा है। अतः नाक केंद्रित न होकर कर्म केन्द्रित होना हम भारतीयों के लिए इस युग में बेहतर उपाय है नाक कटने से बचाने का। फिर भी यदि किसी की नाक कटती है तो कट जाए क्योंकि झूठा अहंकार ही इस नाक का पुनरुदभव कर रहा है और अहंकार जिसने त्याग दिया यकीन मानिए उसने अपनी नाक युगों युगों तक कटने से बचा ली। इसके बाद भी अगर आपकी नाक कट जाए तो ‘नंग बड़ा परमेश्वर से’ वक्तव्य सोच कर निन्दक की मेहनत के आगे इज़्जत से अपना शीष झुका देना क्योंकि उसके बाद नाक बचाने के आपके समस्त प्रयास विफ़ल होना स्वाभाविक होगा। आखिर नाक कट ही गई...
लेखक
मयंक सक्सैना 'हनी'
पुरानी विजय नगर कॉलोनी,
आगरा, उत्तर प्रदेश – 282004
(दिनांक 17/अगस्त/2021 को लिखा एक प्रेरक हास्य व्यंग्य)