रिश्ते… दिल से दिल के - 28 Hemant Sharma “Harshul” द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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रिश्ते… दिल से दिल के - 28

रिश्ते… दिल से दिल के
एपिसोड 28
[ए दिल लाया है बहार]

हॉस्पिटल से गरिमा जी को डिस्चार्ज मिल गया था। उन्हें लेकर सभी लोग सहगल मेंशन आ गए थे। आज कितने ही सालों बाद विनीत जी ने अपने घर में कदम रखा था। एक बार के लिए तो उनके कदम ठिठक गए पर एक तरफ से दामिनी जी और दूसरी तरफ से गरिमा जी ने उनका हाथ पकड़कर उन्हें अंदर चलने के लिए कहा तो वो मुस्कुराकर अंदर चल दिए।

अंदर जाने पर एक अलग ही सुख मिला उन्हें। सच में इंसान चाहे जहां भी रह ले लेकिन जैसा सुकून अपने घर ने होता है वो कहीं नहीं होता, आज वैसी ही आनंददायक स्थिति विनीत जी की थी।

प्रदिति भी यूं तो पहले सहगल मेंशन में आ चुकी थी लेकिन अब वो सिर्फ प्रदिति बनकर नहीं बल्कि सहगल मेंशन की एक सदस्य, प्रदिति सहगल के हक से यहां आई थी।

एक बार फिर प्रदिति और आकृति के बीच वही प्रेम उमड़ आया जो कुछ दिन पहले उनमें था। हां, एक गलतफहमी ने उनके बीच एक दरार पैदा कर दी थी पर रिश्तों की मिठास ने और उस सच ने उस दरार को फिर से भर दिया।

हर किसी के पास कोई ना कोई था बस एक ही शख्स था जो उस घर में खुद को अकेला महसूस कर रहा था और वो थीं रश्मि जी। अपने परिवार को समेटने में बाकी सबको याद ही नहीं रहा कि रश्मि जी को भी किसी के साथ की ज़रूरत है। भले ही वो सबकी खुशियों में खुश थीं पर अब उन्हें कुछ अजीब लग रहा था। अब तक वो प्रदिति की मां की हैसियत से प्रदिति और विनीत जी के साथ रह रही थी पर अब जब सारा सच सबके सामने आ गया है तो किस हक से वो इस घर में रहेंगी।

यही सोचकर उन्होंने घर के अंदर कदम नहीं रखा। सभी लोग अंदर आ गए। एक सोफे पर विनीत जी, दामिनी जी और गरिमा जी और दूसरे सोफे पर प्रदिति और आकृति बैठ गईं।

अचानक से गरिमा जी को रश्मि जी का ख्याल आया। उन्होंने चारों तरफ उन्हें देखा पर वो कहीं नहीं दिखीं। उन्हें इस तरह परेशान देखकर विनीत जी ने उनसे पूछा, "गरिमा! क्या हुआ?"

विनीत जी के सवाल पर सभी ने उनकी तरफ देखा। गरिमा जी ने चिंतित स्वर में कहा, "विनीत जी! रश्मि कहीं दिखाई नहीं दे रही है। कहां गई वो?"

उनकी बात सुनकर सभी ने अपने आसपास देखा तो रश्मि जी सच में वहां नहीं थी। अब हर कोई चिंतित हो गया। सभी ने उन्हें इधर–उधर ढूंढना शुरू कर दिया।

उधर रश्मि जी ने अपनी नज़रें झुकायीं और सहगल मेंशन की तरफ बाहर से देखते हुए बोलीं, "वैरी गुड, रश्मि! आज तूने गरिमा के किए हुए एहसान को चुका दिया, उसके टूटे हुए परिवार को जोड़ दिया। अब चल, अपनी दुनिया में।"

रश्मि जी ने जैसे ही ये कहा उनकी आंखों में नमी आ गई और मन में एक डर भी। वो खुद से ही नम आंखों से बोलीं, "लेकिन मैं जाऊंगी कहां? किस दुनिया में जाऊंगी? विनीत जी और प्रदिति के अलावा मैंने कभी किसी दूसरी दुनिया के बारे में सोचा ही नहीं। अब, अब कहां और कैसे जाऊं… कुछ समझ नहीं आ रहा।"

वो अपनी ही उधेड़बुन में लगी हुई थीं। फिर उन्होंने अपने मन को दृढ़ किया और बोलीं, "कुछ ना कुछ कर ही लूंगी मैं पर अब मुझे यहां से जाना ही पड़ेगा क्योंकि मैं इस परिवार पर बोझ नहीं बनना चाहती।" कहकर वो पलटकर जाने लगीं कि गरिमा जी की आवाज़ पर रुक गईं, "रश्मि!"

रश्मि जी ने मुड़कर देखा तो सारे घरवाले घर के बाहर आकर खड़े हो गए थे। सभी की नज़रों में कई सवाल थे। रश्मि जी ने अपनी नज़रें झुका लीं। गरिमा जी उनके पास आईं और बोलीं, "कहां जा रही थी तुम?"

रश्मि जी ने एक गहरी सांस ली और बोलीं, "गरिमा! अब तक प्रदिति को संभालना और उसकी परवरिश में विनीत जी का साथ देना मेरी ज़िम्मेदारी थी… और उसके साथ ही तुम्हें और विनीत जी को फिर से एक करना भी मेरे जीवन का एक मकसद था। आज जाकर मैंने अपनी सारी ज़िम्मेदारियां पूरी कर ली हैं। आज दिल को एक सुकून मिल गया है कि मेरी वजह से जो परिवार टूटा था वो जुड़ गया। अब बस तुम सबको एक करके जा रही हूं अपनी दुनिया में।"

रश्मि जी ने ये कहा तो गरिमा जी ने उन्हें कसकर गले से लगा लिया और बोलीं, "वाह, रश्मि! मेरे परिवार को जोड़ने में अपनी दुनिया भुला दी तुमने और अब जब ये परिवार जुड़ गया है तो तुम वहां जाना चाहती हो जहां तुम हो ही नहीं। कौन सी दुनिया में जाने की बात कर रही हो तुम? रश्मि! अपनी पूरी ज़िंदगी तुमने हम सबको दे दी, हम इतने एहसान फरामोश नहीं हो सकते जो तुम्हारा त्याग भूल जाएं। तुमने हमें हमारा परिवार दिया है तो हमें कोई हक नहीं बनता कि तुमसे तुम्हारा परिवार छीनें।"

फिर गरिमा जी उनसे अलग हुईं और बोलीं, "रश्मि! तुमने यशोदा की तरह प्रदिति को पाला है, जब से उसका जन्म हुआ उस दिन से उसे मां का सारा प्यार दिया है तुमने तो मैं कौन होती हूं तुमसे तुम्हारी बेटी छीनने वाली।"

"और आप कौन होती हैं मुझसे मेरी मम्मा छीनने वाली!", प्रदिति ने भी आगे आकर रश्मि जी से कहा तो उन्होंने हैरानी से उसकी तरफ देखा।

प्रदिति ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा, "हां, मम्मा! मुझे मेरी मां चाहिए थीं इसका मतलब ये नहीं कि मुझे आपको खोना पड़े। भले ही आपने मुझे जन्म नहीं दिया पर एक मां की सारी जिम्मेदारियां निभाई हैं आपने। मुझे मेरी देवकी मां और यशोदा मां दोनों चाहिए।"

प्रदिति ने कहा तो रश्मि जी ने रोते हुए उसे गले लगा लिया। सभी की आंखों में एक बार फिर नमी तैर गई। विनीत जी रश्मि जी के पास आए और हाथ जोड़कर बोले, "रश्मि! हमें माफ कर दो। वो… इतनी सालों बाद ये परिवार फिर से जुड़ा है तो इस खुशी में हम तुम्हें भूल ही गए। उसके लिए फिर से हम तुमसे माफी चाहते हैं।" उन्होंने हाथ जोड़कर कहा तो रश्मि जी ने ना ने गर्दन हिलाकर उनके हाथ नीचे किए।

आकृति की भी आंखें नम हो गई थीं पर अपनी आंखों को साफ करके माहौल को बदलते हुए बोली, "अरे, यार! अब क्या ये सब चलता ही रहेगा। ये बार बार इमोशनल होना मुझसे ना हो पाएगा। अब बस भी कीजिए।"

फिर वो रश्मि जी के पास आई और उन्हें खींचते हुए बोली, "चलिए, आप घर के अंदर। अब और कुछ नहीं सुनना मुझे। अब इस घर में ये इमोशनल ड्रामा बिलकुल नहीं होगा। चलिए सब।"

आकृति ज़बरदस्ती उसे खींचकर अंदर ले गई और बाकी सब भी उसके पीछे चले गए। आकृति की इस हरकत पर सभी को हँसी आ गई।

वो उन्हें लेकर अंदर पहुंची ही थी कि एक तरफ से गिटार के बजने की आवाज़ आई। जब सभी ने उस तरफ देखा तो वहां प्रदिति मुस्कुराते हुए गिटार लेकर खड़ी थी उसे देखकर सभी के चहरे पर मुस्कान आ गई। उसने सभी के पास आकर गाना शुरू किया…

ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ
ऐ दिल
लाया है बहार अपनों का प्यार क्या कहना
मिलें हम
छलक उठा खुशी का खुमार क्या कहना

खिले खिले चेहरों से आज
घर है मेरा
गुले गुलज़ार क्या कहना

सभी ने एक दूसरे का हाथ पकड़ा और झूमते हुए नाचने और साथ गाने लगे…

खिले खिले चेहरों से आज (खिले खिले चेहरों से आज)
घर है मेरा (घर है मेरा)
गुले गुलज़ार क्या कहना (गुले गुलज़ार क्या कहना)

ऐ दिल
लाया है बहार अपनों का प्यार क्या कहना
मिलें हम
छलक उठा खुशी का खुमार क्या कहना

विनीत जी ने अपने कमरे में गरिमा जी के साथ आकर चारों तरफ देखा। उसका लुक पूरी तरह से बदल चुका था जहां विनीत जी के घर से जाने के पहले दीवारों पर हल्का और शांति देने वाला रंग था वहीं आज चटकीले रंग से सजी दीवारें साफ साफ दर्शा रही थीं कि गरिमा जी ने उनके जाने के बाद ना सिर्फ खुद को बदला था बल्कि पूरे कमरे की भी काया पलटकर रख दी थी, अपने आसपास की हर चीज़ में उन्होंने अपने पहले के स्वभाव के अनुरूप कुछ रहने ही नहीं दिया था।

विनीत जी कमरे को निहारे जा रहे थे। गरिमा जी ने जब उन्हें देखा तो उनके पास आकर बोलीं, "क्या हुआ? आप ऐसे क्या देख रहे हैं?"

विनीत जी ने गरिमा जी की तरफ देखे बिना ही कहा, "देख रहा हूं कि मेरे जाने के बाद मेरी गरिमा ने खुद को और अपने आसपास की सारी चीजों को किस कदर बदलकर रख दिया है।"

उनकी बात सुनकर गरिमा जी ने नज़रें झुकाकर कहा, "जिस पल मैंने आपको रश्मि और प्रदिति के साथ देखा था तभी से मेरे अंदर बहुत सारा गुस्सा भर गया था। समझ ही नहीं आ रहा था कि उसे कैसे अपने अंदर से बाहर निकालूं… उस गुस्से जी वजह से मेरा पूरा स्वभाव ही बदल गया, वो गुस्सा उस गरिमा को खा गया जिसे आप प्यार करते थे और मैंने कभी उस गरिमा को वापस ढूंढने की कोशिश भी नहीं की क्योंकि मुझे लगता था कि आपने मुझे सिर्फ इसलिए धोखा दिया क्योंकि मैंने आप पर हमेशा भरोसा किया, मुझे लगता था कि मेरे ही स्वभाव की वजह से मेरे साथ वो सब हुआ इसलिए मैंने पूरी तरह से नई गरिका को स्वीकार कर लिया। उसी गरिमा ने अपने आसपास की हर पुरानी चीज़ को धीरे धीरे हटाना शुरू कर दिया… फिर चाहे वो कमरे के परदे हों, दीवारों का रंग हो, ये सारा फर्नीचर हो या आपकी यादें हों।" कहते–कहते उनका गला रूंध गया।

उनकी आवाज़ में तकलीफ को महसूस कर विनीत जी ने उन्हें देखा तो पाया कि गरिमा जी की आंखें नम हो चुकी थीं। विनीत जी ने अपने दोनों हाथों के अंगूठों से उनके आंखों को साफ किया और बोले, "ओहो, मेरी प्यारी धर्मपत्नी जी! एक्चुअली एक बात में तो मुझे वो नई वाली गरिमा बहुत अच्छी लगती थी कि वो तुम्हारी तरह बात–बात पर रोती नहीं थी।"

उन्होंने कहा तो गरिमा जी ने हल्के से उनके कंधे पर एक मुक्का मारा। विनीत जी ने उन्हें खींचकर अपने सीने से लगा लिया और बोले, "गरिमा! तुम्हें गले लगाकर जो सुकून मुझे चाहिए था वो आज मिला है, आज मेरी सालों की तमन्ना पूरी हुई है।"

"मेरी भी।", विनीत जी के सीने में अपने चहरे को छिपाकर गरिमा जी आंखें बंद करके बोलीं तो दोनों ही मुस्कुरा दिए।

आज सभी की ज़िन्दगी में वो पल आया था जिसका सबको बेसब्री से इंतज़ार था। आज सभी चैन की नींद सोए थे।

क्रमशः