रिश्ते… दिल से दिल के - 4 Hemant Sharma “Harshul” द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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रिश्ते… दिल से दिल के - 4

रिश्ते… दिल से दिल के
एपिसोड 4
[गरिमा जी छीनेंगी अपना हक]

"दादी!", आकृति दामिनी जी को आवाज़ लगाते हुए घर के अंदर आई। दामिनी जी सोफे पर हाथ बांधे बैठी हुई उसी को घूर रही थीं।

आकृति उनके पास आई और गले लग गई, "दादी! देखो, मैं आ गई।"

"तुम किसी की कोई बात सुनती क्यों नहीं हो?", दामिनी जी ने उसे घूरते हुए ही कहा तो वो बोली, "मैंने किसकी बात नहीं सुनी?"

"तुम ये बताओ कि तुम सुनती कब हो? गरिमा ने तुम्हें कितनी बार कहा है कि उस लड़के से दूर रहा करो फिर भी तुम हमेशा उसके पास पहुंच ही जाती हो।", दामिनी जी ने उसकी तरफ घूमकर कहा तो आकृति नासमझ बनते हुए बोली, "दादी! मैं तो सिर्फ कॉलेज जाती हूं। मैं किसी भी लड़के से नहीं मिलती।"

दामिनी जी उसे समझाते हुए बोलीं, "बेटा! मां है वो तुम्हारी, उसे तुम्हारी चिंता है… डर लगता है उसे कि कहीं तुम्हारा दिल ना टूट जाए।"

आकृति दामिनी जी के हाथों पर अपने हाथ रखकर बोली, "दादी! वो सच में एक बहुत अच्छा लड़का है। ट्रस्ट मी, वो कभी मुझे चीट नहीं कर सकता।"

"पर, बेटा! एक मां का दिल है वो, हमेशा अपने बच्चों के बुरे को भांप लेता है।"

"अरे, दादी! आप भी कौन सी बातों में लग गईं! छोड़िए ना, ये बताइए कि आज खाने में क्या बना है?", आकृति ने बात बदलते हुए कहा तो दामिनी जी बोलीं, "तुम्हारे फेवरेट आलू के पराठे!"

"रियली? मैं अभी जल्दी से फ्रेश होकर आती हूं और साथ में खाना खाते हैं।", कहकर आकृति अपने कमरे की तरफ भाग गई।

दामिनी जी उसकी जाने की दिशा में देखकर बोलीं, "ये लड़की भी ना, कभी नहीं सुधरेगी।"

"अक्कू! आज तो तेरे फेवरेट आलू के पराठे बने हैं। जल्दी से चल।", आकृति कमरे में अपने बालों को संवारते हुए खुद से ही कह रही थी।

फिर शीशे में खुद को देखकर बोली, "वैसे कुछ भी हो, सुंदर तो मैं बहुत हूं। अगर मैंने मिस यूनिवर्स में पार्टिसिपेट किया तो मुझे जीतने से कोई रोक ही नहीं सकता। आखिर आकृति सहगल को हराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है फिर चाहे कॉम्पिटिशन कोई भी हो।"

फिर शीशे की तरफ फ्लाइंग किस देकर बोली, "लव यू!" कहकर वो कमरे से बाहर निकल गई।

"बेटा! सारी पैकिंग हो गई?", विनीत जी प्रदिति के कमरे में आकर उससे बोले तो प्रदिति ने मुस्कुराते हुए अपने बैग की चेन बंद करके कहा, "हां, पापा! हो गई।"

विनीत जी ने प्रदिति के सिर पर हाथ फेरा और कहा, "बहुत याद आयेगी तुम्हारी बेटा!"

विनीत जी की बात सुनकर प्रदिति उनके गले लग गई और बोली, "मुझे भी आपकी और मम्मा की बहुत याद आयेगी।"

फिर प्रदिति अपने मन में बोली, "म्यूजिक टीचर बनकर जाना तो एक बहाना है, मैं तो आपको और मां को फिर से एक करने और अपने परिवार को फिर से पूरा करने जा रही हूं। अगर महादेव की कृपा रही तो बहुत ही जल्द हम सब एक साथ अपने घर, सहगल मेंशन में होंगे।"

प्रदिति विनीत जी से अलग होकर बोली, "पापा! ट्रेन का टाइम हो गया है। अब मैं चलती हूं।"

प्रदिति ने कहा ही था कि दरवाज़े से रश्मि जी अंदर आईं और बोलीं, "वाह, बाप–बेटी तो एक दूसरे से मिल लिए और मम्मा को छोड़ दिया।"

उनकी बात सुनकर प्रदिति भागकर उनके पास गई और उनके गले से लग गई, "मम्मा! क्या हम सब वहां नहीं जा सकते?"

रश्मि जी ने प्रदिति को खुद से अलग किया और बोलीं, "अगर पॉसिबल होता तो ज़रूर चलते पर तुम जानती हो कि ऐसा नहीं हो सकता।"

कुछ देर तक प्रदिति से बातें करने के बाद भारी दिल से विनीत जी और रश्मि जी ने उसे विदा किया।

"भगवान करे, उस शहर में हमारी बच्ची को कोई तकलीफ ना हो।", विनीत जी प्रार्थना करते हुए बोले तो रश्मि जी ने कहा, "आप चिंता मत कीजिए। हमारी प्रदिति के साथ उसके महादेव हैं। हर पल उसकी रक्षा करेंगे।"

उधर गरिमा जी अपने ऑफिस में बैठी हुई कंपनी की सारी फाइल्स को चेक कर रही थीं ताकि किसी काम में कोई गड़बड़ ना हो। अचानक से उन्होंने एक फाइल में कुछ देखा और गुस्से से उसे टेबल पर पटक दिया जिससे उनके सामने खड़ा शख्स डर गया।

वो गुस्से में ही उस शख्स से बोलीं, "गुप्ता जी! मैंने कहा था ना कि इस प्रोजेक्ट में कोई गड़बड़ी नहीं होनी चाहिए फिर भी इसमें इतनी सारी दिक्कतें क्यों आ रही हैं? आप इतने केयरलेस कैसे हो सकते हैं!"

गुप्ता जी अपने सिर को झुकाए बोले, "सॉरी, मैम! वो इस साल रावत जी की कंपनी भी इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही है इसलिए इसमें इतनी सारी परेशानियां आ रही हैं।"

"व्हॉट?", गरिमा जी गुस्से और हैरानी के मिले जुले भावों को अपने चहरे पर लाकर अपनी जगह से खड़ी हो गईं और बोलीं, "मिस्टर रावत? वो भी इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं?"

गुप्ता जी ने हां में गर्दन हिलाकर कहा, "जी"

"ओह गॉड! एक तो वैसे ही मिस्टर रावत ने हमारी कंपनी में काम करके ही हमारे साथ इतना बड़ा धोखा किया, हमारी सारी इनफॉर्मेशन लेकर हमें चीट किया… ऊपर से अब हमारे ही प्रोजेक्ट पर उनकी नज़र है। नहीं, मैं इस प्रोजेक्ट को अपने हाथ से बिलकुल नहीं जाने दूंगी… कभी नहीं।"

फिर गरिमा जी गुप्ता जी से बोलीं, "गुप्ता जी! ये प्रोजेक्ट सिर्फ हमें मिलना चाहिए। इसके लिए आपको जो भी करना पड़े वो कीजिए लेकिन ये मिस्टर रावत के हाथ में नहीं जाना चाहिए।"

"जी, मैम! मैं सबको इस बारे में इन्फॉर्म कर देता हूं। सभी इसी प्रोजेक्ट पर अभी से काम शुरू कर देंगे।", गुप्ता जी ने कहा तो गरिमा जी ने हां में गर्दन हिला दी। गुप्ता जी गरिमा जी का अभिवादन करके उनके केबिन से बाहर निकल गए।

गरिमा जी खुद से ही बोलीं, "पहले मुझे लगता था कि हमें हमारा हक मांगने से ही मिल सकता है पर जब जिंदगी ने मुझे थप्पड़ मारकर सबक सिखाया तो मुझे पता चला कि अपना हक मांगा नहीं जाता बल्कि छीना जाता है। पहले तो मैंने अपना हक किसी और को दे दिया लेकिन अब नहीं, जो मेरा है वो मेरा ही होगा… एंड दैट इज़ गरिमा सहगल्ज़ प्रोमिस!"

"गरिमा! आज हमारी फर्स्ट मैरिज एनिवर्सरी है तो बताओ तुम्हें क्या चाहिए?", विनीत जी ने गरिमा जी के सामने बैठते हुए कहा तो गरिमा जी ने उन्हें खड़ा किया और बोलीं, "मेरे पास तो दुनिया की सबसे कीमती चीज़ है तो मुझे किसी और चीज़ की क्या ज़रूरत?"

"सबसे कीमती चीज़?", विनीत जी ने गरिमा जी को प्रश्नसूचक दृष्टि से देखा तो वो बोलीं, "हां, आप और आपका प्यार… मेरे लिए सबसे कीमती हैं।"

विनीत जी उनको बेड पर बिठाकर और खुद उनके पास नीचे बैठकर बोले, "हां वो तो मुझे पता है लेकिन फिर भी कुछ और मांगो।"

गरिमा जी ने सोचने की मुद्रा में अपने हाथों को रखा और फिर बोलीं, "वैसे तो मुझे ये कहने की ज़रूरत नहीं है लेकिन फिर भी मैं आपसे एक प्रोमिस चाहती हूं।"

"प्रोमिस? कैसा प्रोमिस?"

"हर रिश्ते की नींव होती है भरोसा। अगर ये नहीं तो दुनिया की कोई भी ताकत किसी के दिल में किसी के लिए प्यार नहीं जगा सकती। यूं तो मुझे आप पर पूरा भरोसा है कि आप कभी मेरे भरोसे को नहीं तोड़ेंगे लेकिन फिर भी मैं आपसे ये वादा चाहती हूं कि आप मेरा भरोसा कभी मत तोड़िएगा।"

विनीत जी ने कुछ सोचकर गरिमा जी से कहा, "और अगर मैंने वो भरोसा तोड़ दिया तो…? अगर मैं तुम्हें छोड़कर किसी और के पास चला गया तो…?"

गरिमा जी ने भी उनके सवाल के जवाब में कहा, "आप पर मेरा हक है। मैं अपने हक को हक से मांगकर लाऊंगी। कहीं नहीं जाने दूंगी मैं आपको।"

"ऑ! इतना प्यार कोई कैसे कर सकता है किसी से!", विनीत जी ने गरिमा जी के गालों को खींचते हुए कहा और फिर मुस्कुराकर उन्हें अपने गले से लगा लिया।

गरिमा जी अपने ख्यालों में खोई हुई थीं उन्हें पता ही नहीं चला कि कब उनकी आंखों से आंसू बह आया। उन्होंने उसे पोंछकर खुद से ही कहा, "नहीं, गरिमा! नहीं, तू अब वो पुरानी गरिमा नहीं है। अब तुझे लोगों से अपना हक छीनना ही पड़ेगा।" कहकर उन्होंने एक गुस्से के साथ सामने की तरफ देखा।


क्रमशः