रिश्ते… दिल से दिल के - 6 Hemant Sharma “Harshul” द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

रिश्ते… दिल से दिल के - 6

रिश्ते… दिल से दिल के
एपिसोड 6
[गरिमा जी की नसीहत]

गरिमा जी आंखें बंद करके प्रदिति के संगीत में इतनी गुम हो गई थीं कि उन्हें पता ही नहीं चला कि कब प्रदिति का गाना खत्म हो गया। जब ड्राइवर ने उनको आवाज़ लगाई तो उन्होंने आंखें खोलकर देखा।

उन्होंने ड्राइवर से पूछा, "क्या हुआ? क्या पता चला?"

गरिमा जी के सवाल पर ड्राइवर बोला, "मैम! वो एक भिखारी है जो अपने घर को चलाने के लिए गा गाकर भीख मांगता है। आज ना जाने कैसे उसका गला खराब हो गया जिससे वो कुछ गा नहीं पाया। ये जो लड़की गा रही थी वो आज ही यहां पर आई थी और जब उसे इस आदमी के बारे में पता चला तो वो उसकी मदद करने के लिए गाने लग गई।"

ड्राइवर की बात सुनकर गरिमा जी खुद से ही बोलीं, "क्या? आज की दुनिया में भी ऐसे लोग होते हैं? नहीं, मैं भी ऐसा ही कुछ करती थी लेकिन जिंदगी ने मुझे उसकी सज़ा अच्छे से दी। ये लड़की भी वही कर रही है।"

फिर गरिमा जी ने अपने पर्स से एक पेपर निकाला और उस पर पेन से कुछ लिखा। फिर कुछ पैसों को उनके साथ रखके ड्राइवर को दिया और बोलीं, "ये पैसे और चिट्ठी उस बच्ची को दे देना और उससे ये कहना कि ये चिट्ठी उसी के लिए है।"

ड्राइवर ने हां में गर्दन हिलाई और उन पैसों और चिट्ठी को लेकर वहां से चला गया।

उधर सभी लोगों ने प्रदिति का गाना सुनकर सत्येंद्र जी को बहुत सारे पैसे दे दिए थे। आज तक उन्हें इतने पैसे कभी नहीं मिले थे। वो दोनों सारा सामान वहां से उठा ही रहे थे कि गरिमा जी का ड्राइवर वहां आया और पैसों को सत्येंद्र जी को देकर उसने प्रदिति को वो चिट्ठी थमाई।

प्रदिति ने पहले उस चिट्ठी की तरफ आश्चर्य से देखा और फिर ड्राइवर की तरफ देखकर पूछा, "ये क्या है?"

"ये चिट्ठी हमारी मैम ने भेजी है आपके लिए।", ड्राइवर ने कहा तो प्रदिति ने उससे सवाल किया, "मैम?"

"जी, दिल्ली की सबसे बड़ी कंपनी की मालकिन हैं वो। बड़े–बड़े लोगों को उनके इंतज़ार में सुबह से शाम हो जाती है और तुम्हारे लिए उन्होंने खुद चिट्ठी भिजवाई है, इसका मतलब तुम बहुत किस्मत वाली हो।", ड्राइवर की बात सुनकर प्रदिति खुद से ही बोली, "दिल्ली की सबसे बड़ी कंपनी की मालकिन?"

फिर उसने ड्राइवर से पूछा, "लेकिन आपकी मैम का नाम क्या है?"

"उनका नाम…", ड्राइवर अपनी बात कह पाता उससे पहले ही उसका फोन बजा जिसे उसने जल्दी से उठाया और बोला, "जी, जी मैम! बस मैं आ ही रहा हूं।" कहकर वो तेज़ी से अपनी गाड़ी की तरफ चला गया।

प्रदिति उसे पीछे से आवाज़ देती रह गई। फिर वो खुद से ही बोली, "कहीं ये मां तो नहीं…"

उसके दिमाग में जैसे ही ये बात आई, वो भी ड्राइवर के जाने की दिशा में भागी लेकिन जब तक वो गरिमा जी तक पहुंच पाती उनकी गाड़ी बहुत आगे जा चुकी थी।

प्रदिति ने अपनी आंखों को कसकर बंद किया और फिर उन्हें खोलकर बोली, "पता नहीं, वो कौन थीं?"

फिर उसने अपने हाथ में लगी हुई चिट्ठी को देखा और उसे पढ़ने लगी जिसमें लिखा हुआ था…


"बेटा! सबसे पहले तो तुम्हारी आवाज़ बहुत ही प्यारी है बिल्कुल दिल को छू जाने वाली। एक अलग ही एहसास में खो गई थी मैं तो तुम्हें सुनकर। पता नहीं क्यों पर एक अपनापन सा महसूस हुआ तुमसे इसीलिए तुमसे कुछ कहना चाहती हूं… देखो, बेटा! मैं तुम्हारी ज़िन्दगी के फैसले लेने वाली कोई नहीं होती वो तो तुम्हें ही लेने पड़ेंगे पर मैं तुम्हें एक सलाह देना चाहती हूं। आज तुमने उस आदमी की मदद की, ये बहुत अच्छी बात है करना भी चाहिए लेकिन अगर इस तरह तुम हर किसी की मदद करोगी तो लोग तुम्हें यूजलेस समझेंगे, कोई तुम्हारी वैल्यू नहीं करेगा। अच्छा होना अच्छी बात है पर इतना अच्छा भी नहीं होना चाहिए कि लोग आपकी अच्छाई का फायदा उठाएं। ये सिर्फ मेरा एक सजेशन है बाकी मानना, ना मानना ये तुम्हारा डिसीजन है। हमेशा खुश रहो और दूसरों की खुशियों के लिए कभी भी खुद की खुशियां सैक्रिफाइस मत करना क्योंकि ये दुनिया बहुत मतलबी है। जब तक तुमसे काम है तुम्हारे साथ है और जब तुम्हें ज़रूरत पड़ेगी तो तुम्हें पहचानने से भी इंकार कर देगी। भगवान तुम्हें हमेशा खुश रखे!"


प्रदिति ने उसे पढ़कर अपनी आंखें बंद कीं और बोली, "वो आप ही थीं, मां!"

फिर आंखें खोलकर बोली, "ये चिट्ठी आपके दर्द को साफ–साफ बयां कर रही है। पर बहुत जल्द आपको एहसास होगा कि अक्सर जो हमें दिखता है वो झूठ भी हो सकता है। बहुत जल्द आपको एहसास होगा कि पहले वाली गरिमा सहगल ही बेस्ट थीं जो दूसरों की परवाह करती थी इसलिए उन्हें इतना प्यारा और उनके लिए कुर्बानी देने वाला परिवार मिला।"

वो खुद से यूं बातें कर ही रही थी कि सत्येंद्र जी अपना सारा सामान पैक करके वहां आ गए और प्रदिति से बोले, "क्या हुआ, बेटा? सब ठीक है ना?"

प्रदिति ने उनकी तरफ एक मुस्कान के साथ देखा और बोली, "हां, काका! मैं बिलकुल ठीक हूं।"

उसका चहरा पढ़कर सत्येंद्र जी बोले, "बेटा! अभी तुमने कहा था ना कि मैं तुम्हें अपनी बेटी समझूं तो क्या मेरा ये हक नहीं कि अपनी बेटी की परेशानी जान सकूं?"

प्रदिति ने उन्हें समझाया कि कोई परेशानी नहीं है लेकिन फिर भी जब वो नहीं माने तो प्रदिति फिर से उन्हें वहीं ले गई जहां उन्होंने गाना गाया था और दोनों वहां बैठ गए।

फिर प्रदिति बोली, "काका! मेरी वजह से आज मेरा पूरा परिवार बिखरा हुआ है। बस उसी को जोड़ने की कोशिश में यहां दिल्ली में आई हूं। पर समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं, कैसे जोडूं अपने परिवार को?"

उसकी बात सुनकर सत्येंद्र जी बोले, "देखो, बेटा! मैं नहीं जानता कि तुम्हारे परिवार में ऐसा क्या हुआ जिससे वो टूट गया और ना ही मैं तुमसे ये पूछूंगा लेकिन बेटा एक बात कहना चाहूंगा… कभी–कभी इंसान को लगता है जैसे वो बहुत गलत कर बैठा है जबकि उसने सच में ऐसा कुछ नहीं किया होता बल्कि हालात ही उससे कुछ ऐसा करवाते हैं और ऐसा अक्सर तुम्हारे जैसे अच्छे लोगों के साथ होता है जो अपने सुखों का श्रेय दूसरों को देते हैं और दूसरों के दुःख की वजह भी खुद को बना लेते हैं। मुझे नहीं पता कि तुम्हारे परिवार के बीच क्या हुआ पर तुम्हारी वजह से कुछ नहीं हुआ ये मैं कह सकता हूं क्योंकि तुम बहुत अच्छी हो, तुम चाहकर भी कोई ऐसा काम नहीं कर सकती जिससे तुम्हारे परिवार को तकलीफ पहुंचे।"

"पर, काका! हम तो अभी मिले हैं। आप कैसे बता सकते हैं कि मेरा स्वभाव कैसा है?", प्रदिति ने सत्येंद्र जी से सवाल किया तो वो हल्का सा मुस्कुराकर बोले, "बेटा! जिंदगी की धूप–छांव, आंधी–तूफान सब अच्छे से देखे हैं मैंने। बहुत अच्छे से परखा है इस जिंदगी को भी और लोगों को भी। आज की इस दुनिया में हर कोई स्वार्थी है, कोई शायद ही बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की मदद करे लेकिन तुमने निःस्वार्थ भाव से मेरी मदद की। इसीलिए मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि तुम किसी के दुःख का कारण हो ही नहीं सकती। हां, हो सकता है कि जब तुम्हारा परिवार कोई दुःख देखने वाला हो तो बीच में तुम आ गई हो और सबको ऐसा लगा हो जैसे तुम ही दोषी हो। पर सच तो वो ऊपरवाला अच्छे से जानता है। सारी लीला उसने रचाई है वो जो भी करेगा सब अच्छे के लिए करेगा। तुमने आज मुझ गरीब की इतनी मदद की है तो वो ऊपरवाला तुम्हें भी तुम्हारी मंज़िल तक जरूर पहुंचाएगा, तुम्हारे लक्ष्य को जल्द से जल्द तुम्हें दिलवाएगा।"

सत्येंद्र जी की बात सुनकर प्रदिति ने एक मुस्कान दे दी।

"राहुल!", आकृति ने कॉलेज के अंदर आते ही अपने एक क्लासमेट को आवाज़ लगाई तो वो दौड़कर उसके पास आया और बोला, "हां, आकृति! क्या हुआ?"

"तूने विराज को कहीं देखा? मैं तो कबसे उसे ढूंढ रही हूं पर वो कहीं मिल ही नहीं रहा है।", आकृति ने इधर–उधर देखते हुए राहुल से कहा तो राहुल बोला, "वो तो आज कॉलेज आया ही नहीं।"

"क्या? ये लड़का आज फिर एब्सेंट है! हे भगवान… मैं तो परेशान हो चुकी हूं इस लड़के से। क्या करूं इसका? कॉलेज आता ही नहीं है ये।", आकृति ने गुस्से से कहा तो राहुल बोला, "हो सकता है कि उसे कोई काम हो।"

आकृति उसकी तरफ देखकर दांत पीसकर बोली, "हां, हर हफ्ते में चार दिन उसे कोई ना कोई काम रहता है। कॉलेज तो वो सिर्फ तीन दिन आता है। अब तू ही बता ऐसे कैसे चलेगा हमारा रिलेशनशिप?"

राहुल उसे शांत कराते हुए बोला, "अरे, रिलैक्स यार! तू चिल कर। मैं हूं ना।"

"तू कोई शाह रुख खान है? बड़ा आया मैं हूं ना!", आकृति उसे चिढ़ाते हुए बोली तो राहुल मुंह बनाकर बोला, "दैट इज़ नॉट फैर, मैं तुझे हँसाने की कोशिश कर रहा हूं और तू मेरा ही मज़ाक उड़ा रही है।"

उसका छोटा सा मुंह देखकर आकृति उसे मनाते हुए बोली, "अच्छा, सॉरी बाबा! गलती हो गई। माफ कर दे अपनी इस बेवकूफ फ्रेंड को।"

"ठीक है, किया। अब चल, क्लास के लिए लेट हो रहे हैं।"

"अरे, यार! ये क्लासेज भी ना… मैं तो परेशान हो जाती हूं इन टीचर्स के लेक्चर्स सुन सुनकर। पता नहीं क्या बताते हैं कुछ समझ ही नहीं आता।", आकृति ने मुंह बनाके कहा तो राहुल बोला, "आएगा भी कैसे, हफ्ते के तीन दिन जब विराज आता है तब तू उसके साथ बिजी रहती है तो जब तू लेक्चर्स अटेंड ही नहीं करेगी तो कैसे समझ आयेंगे तुझे? अच्छा, अब वो सब छोड़, तुझे पता है आज हमारे कॉलेज में एक म्यूजिक टीचर आई हैं।"

"वाउ! म्यूजिक टीचर…", आकृति पहले खुशी से बोली और फिर मुंह बनाकर उसने कहा, "पर क्या फायदा? टीचर भी ऐसी होगी जो क्लासिकल सोंग्स गाएगी और सिखाएगी जो मेरे सिर के ऊपर से जायेंगे फिर मैं और भी ज़्यादा बोर हो जाऊंगी।"

राहुल उसकी बात को काटकर बोला, "अरे, नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। वो कोई बुड्ढी टीचर नहीं है वो लगभग हमारी जितने एज की ही हैं।"

"क्या? रियली?"

"हां!"

"अरे, तो वेट किसका कर रहा है? चल देखकर आते हैं कि हमारी म्यूजिक टीचर हमें कैसे म्यूजिक सिखाती हैं।", आकृति ने कहा तो दोनों ही क्लास की तरफ भागकर चले गए।

क्रमशः