रिश्ते… दिल से दिल के - 3 Hemant Sharma “Harshul” द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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रिश्ते… दिल से दिल के - 3

रिश्ते… दिल से दिल के
एपिसोड 3
[प्रदिति को आया कॉल]

प्रदिति और विनीत जी कुर्सियों पर बैठे हुए अपने दुःख को बांट रहे थे तभी पीछे से एक 41–42 वर्षीय महिला वहां आईं और प्रदिति को आवाज़ लगाई तो प्रदिति और विनीत जी ने उनकी तरफ देखा और हल्का सा मुकुराए।

वो उन दोनों के पास आईं और उनकी आंखों में आंसू देखकर बोलीं, "क्या हुआ? आप दोनों की आंखों में ये आंसू?"

विनीत जी खड़े हुए और अपनी आंखों की नमी साफ करके बोले, "कुछ नहीं, बस ऐसे ही। दोनों बाप–बेटी कुछ पुरानी बातों में खो गए थे।"

उनकी बात सुनकर वो नजरें झुकाकर बोलीं, "आप दोनों गरिमा के बारे में बात कर रहे थे न? मुझे माफ कर दीजिए, विनीत जी! मैं आपके टूटते हुए घर को नहीं बचा पाई। आय एम रियली वैरी सॉरी!"

उनकी बात पर विनीत जी बोले, "रश्मि! तुम ऐसा क्यों कह रही हो? तुमने तो पूरी कोशिश की थी पर भगवान को कुछ और ही मंज़ूर था… और तुमने तो हमेशा ही मेरी मदद की है। अगर तुम नहीं होती तो शायद मैं ये सब संभाल ही नहीं पाता। उसके लिए थैंक यू सो मच!"

"लेकिन फिर भी…", रश्मि जी की बात पूरी नहीं हो पाई उससे पहले ही विनीत जी बोले, "अरे, बस भी करो तुम दोनों। पहले वो खुद को कुसुरवार कहे जा रही थी और अब तुम। लगता है तुमसे ही सीखा है प्रदिति ने ये सब।"

प्रदिति भी अपनी जगह से खड़ी हो गई और रश्मि जी से बोली, "मम्मा! आपने गलत किया था।"

उसकी बात सुनकर विनीत जी और रश्मि जी दोनों अचंभित रह गए।

प्रदिति आगे बोली, "हां, मम्मा! अगर आप मुझे जन्म होते ही मार देतीं तो मैं एक हँसते–खेलते परिवार के टूटने की वजह नहीं बनती।"

प्रदिति ने जैसे ही ये कहा रश्मि जी ने उसे गले लगा लिया और बोलीं, "नहीं, बेटा! ये तुम क्या कह रही हो? तुम्हारी इसमें कोई गलती नहीं है और तुमने ये सोच भी कैसे लिया कि एक मां अपने हाथों से अपनी ही बच्ची को मार डालेगी!"

"मम्मा! मेरी वजह से मां आपको और पापा को गलत समझती हैं। मुझसे ये सब नहीं देखा जाता।", प्रदिति ने रोते हुए कहा तो रश्मि जी उसके आंसू पोंछकर बोलीं, "बेटा! तुम्हारी वजह से कुछ भी नहीं हुआ है। वो तो हालात ही कुछ ऐसे थे कि विनीत जी और गरिमा को अलग होना पड़ा… और अब तुम ये रोना बंद करो नहीं तो एक खींचकर लगाऊंगी।"

दोनों फिर से एक–दूसरे के गले लग गईं। उन्हें इस तरह देखकर विनीत जी के चहरे पर एक मुस्कान आ गई।

अचानक से प्रदिति का फोन बजा। उसने उसे उठाया। दूसरी तरफ से कोई शख्स प्रदिति को कुछ कह रहा था पर हर एक बात के साथ प्रदिति के चहरे का रंग बदल रहा था जिसे देखकर विनीत जी और रश्मि जी को एक डर सा लग रहा था।

"थैंक यू, सर!", कहकर प्रदिति ने फोन काटा और टेंशन के साथ विनीत जी और रश्मि जी को देखा।

रश्मि जी भी उन्हीं भावों के साथ बोलीं, "क्या हुआ, बेटा? किसका फोन था?"

"सब ठीक तो है न?", विनीत जी ने भी कांपते हुए दिल के साथ कहा तो प्रदिति ज़ोर से हँस दी। जिसे देखकर विनीत जी और रश्मि जी हैरान रह गए और अचंभे से एक–दूसरे की तरफ देखने लगे।

रश्मि जी ने उसी हैरानी के साथ पूछा, "क्या हुआ, प्रदिति? तुम ऐसे हँस क्यों रही हो?"

प्रदिति ने रश्मि जी को पकड़कर सोफे पर बैठाया और फिर विनीत जी को भी। फिर दोनों से बोली, "आप लोग मेरे एक्सप्रेशंस देखकर डर गए ना? चिंता मत कीजिए, टेंशन वाली कोई बात नहीं है। वो आपको याद है मैंने म्यूजिक टीचर के लिए एक कॉलेज में फॉर्म अप्लाई किया था?"

विनीत जी ने हां में गर्दन हिलाकर कहा, "हां, किया तो था।"

"वहीं से फोन था। मुझे अपॉइंट कर लिया गया है।", प्रदिति ने कहा तो विनीत जी और रश्मि जी दोनों खुश हो गए।

फिर विनीत जी हैरानी के साथ बोले, "लेकिन ऐसे बिना किसी डेमो के?"

"मैंने उन्हें अपना एक म्यूजिक वीडियो बनाकर भेज दिया था। उसे देखकर वो बहुत खुश हो गए और मुझे कल ही बुलाया है।", प्रदिति खुश होकर बोली।

रश्मि जी और विनीत जी एक साथ हैरानी से बोले, "कल?"

"हां, कल"

"लेकिन, जाना कहां है?", रश्मि जी ने सवाल किया तो प्रदिति के चहरे की खुशी गायब हो गई।

उसके मुरझाए हुए चहरे को देखकर विनीत जी ने भी सवाल किया, "प्रदिति! बेटा, कहां जाना है तुम्हें?"

"वो… पापा…", प्रदिति अटकते हुए कह रही थी तभी विनीत जी एकदम से बोले, "दिल्ली, है ना?"

उसे सुनकर रश्मि जी और प्रदिति दोनों ने उसे हैरानी से देखा। प्रदिति ने अपनी नजरें झुका लीं।

विनीत जी उसके पास आए और बोले, "बेटा! दिल्ली से मेरा एक बहुत ही गहरा रिश्ता था। सब कुछ तो था मेरा वहां पर लेकिन जब से यहां आया हूं एक बार भी वहां नहीं गया। डर लगता है कहीं गरिमा के सामने ना आ जाऊं और आ गया तो उससे नजरें कैसे मिलाऊंगा? लेकिन, बेटा! मैं तुम्हें मना नहीं करूंगा ये बात तो मैं और रश्मि दोनों जानते हैं कि तुम्हें म्यूजिक से कितना प्यार है! कब से तुम एक म्यूजिक टीचर बनने के लिए इतनी मेहनत कर रही हो! नहीं, बेटा! मेरी जिंदगी एक तरफ और तुम्हारा आने वाला उज्ज्वल भविष्य एक तरफ।"

विनीत जी ने जैसे ही कहा प्रदिति उनके गले लग गई और बोली, "थैंक यू सो मच, पापा!"

विनीत जी ने उसे खुद से अलग किया और बोले, "बिलकुल नहीं, थैंक यू से काम नहीं चलेगा। तुम्हें मुझे मेरी फेवरेट केसर वाली खीर बनाकर खिलानी पड़ेगी।"

उनकी बात सुनकर प्रदिति मुस्कुराई और आंसू पोंछकर बोली, "मैं अभी बनाकर लाती हूं।" कहकर वो किचन की तरफ चली गई।

उसके जाने की दिशा में देखकर विनीत जी रश्मि जी से बोले, "हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई, रश्मि!"

"कौन सी गलती, विनीत जी?", रश्मि जी ने चौंककर पूछा तो विनीत जी बोले, "हमें उस दिन वो बातें नहीं करनी चाहिए थीं। उन बातों को प्रदिति ने सुन लिया और इसीलिए अब वो खुद को गुनहगार मानने लगी है।"

"आप सही कह रहे हैं। अगर हम उन बातों का ज़िक्र ही नहीं करते तो हमारी प्यारी बच्ची कभी अपने दिल पर इतना बड़ा बोझ नहीं लेती।", रश्मि जी ने उनकी हां में हां मिलाते हुए कहा।

"तुम्हें पता है ना, विराज! मैं तुमसे कितना प्यार करती हूं!", आकृति ने विराज के कंधे पर अपने सिर को रखकर कहा तो विराज बोला, "आय नो, बेबी! यू लव मी सो मच"

"तो फिर हम शादी कब कर रहे हैं?", आकृति ने उसके कंधे से अपने सिर को उठाकर उसकी तरफ अपनी मुंडी करके कहा तो वो बोला, "अरे, पहले हम अपना कॉलेज तो कंप्लीट कर लें।"

"तुम कब से यही बोले जा रहे हो!"

"हां, तो बेबी! कॉलेज अभी कंप्लीट हुआ नहीं है ना। ये हमारा लास्ट ईयर है।", विराज ने जैसे ही कहा आकृति फुदक कर बोली, "मतलब अगले साल हम दोनों की शादी होगी। येस!"

"अरे, बेबी! कंट्रोल, अभी पहले हम अपनी स्टडी पर काँसंट्रेट कर लें।"

उसकी बात पर आकृति चिढ़कर बोली, "एक मिनट! तुम कब से ये पढ़ाई की बातें करने लगे! विराज! कहीं तुम मुझे चीट तो नहीं कर रहे हो?"

विराज एकदम से बोला, "बेबी! व्हॉट आर यू टॉकिंग? मैं ऐसा कैसे कर सकता हूं! आय लव यू।", कहकर उसने आकृति को अपने गले से लगा लिया और एक कुटिल मुस्कान के साथ मन में बोला, "बेवकूफ कहीं की, प्यार करती है मुझे! प्यार… माय फुट! अरे, मैं तो बस तेरा यूज कर रहा हूं। अब इतने बड़ी घर की लड़की है तो ऐसे कैसे हाथ से निकल जाने दूं। जब तक तुझसे मेरा काम चलेगा तब तक तुझसे प्यार है… काम खत्म तो प्यार भी खत्म।" मन ही मन कहकर वो फिर से टेढ़ा मुस्कुरा दिया।

क्रमशः